Surgery (1-41) - Completed

1. घुटने बदलने का ऑपरेशन या घुटना प्रत्यारोपण सर्जरी - Knee Replacement Surgery (Knee Arthroplasty) in Hindi

घुटने की समस्या और उससे होने वाले दर्द के उपचार के लिए की जाने वाली शल्यचिकित्सा (सर्जरी) को घुटनों की अर्त्रोप्लास्टी (Knee Arthroplasty) या घुटनों को बदलने की सर्जरी (Knee Replacement Surgery) कहा जाता है। अर्त्रोप्लास्टी का अर्थ है "जोड़ों की शल्यचिकित्सा" इसलिए, Knee Replacement Surgery है घुटने के जोड़ों की शल्यचिकित्सा। Knee Replacement Surgery में खराब जोड़ों (जिन जोड़ों में परेशानी है) को एक कृत्रिम धातु के जोड़ों (Artificial Metallic Joint) के साथ बदल दिया जाता है।

घुटनों का ऑपरेशन क्या होता है? - Knee replacement surgery kya hai in hindi?
Knee Replacement आज एक बहुत ही आम सर्जरी है जिसे न केवल बुज़ुर्ग बल्कि वे लोग भी करवा रहे हैं जिन्हें घुटने की किसी प्रकार की क्षति पहुंची हो, या जिन्हें किसी दुर्घटना की वजह से घुटने की कोई समस्या हो गयी हो जिससे चलने फिरने में परेशानी हो रही हो। निम्नलिखित घटनाएं ऐसी घटनाएं हैं जिनकी वजह से किसी व्यक्ति को Knee Replacement Surgery करवानी पड़ सकती है:

अस्थिसंधिशोथ या ऑस्टियोआर्थराइटिस (Osteoarthritis):
Osteoarthritis एक प्रकार का गठिया है जिसमें घुटनों के जोड़ों में सूजन हो जाती है। यह गठिया होने की सम्भावना 20 या 30 वर्ष के व्यक्तियों में भी उतनी ही है जितनी कि इसकी सम्भावना एक ऐसे व्यक्ति को है जिसकी उम्र 50 या उससे ज़्यादा है। Osteoarthritis से पीड़ित लोगों के लिए जोड़ों की सूजन या दर्द एक आम स्थिति है। हालांकि, Arthroplasty या Knee Replacement Surgery केवल तब ही करवाई जानी चाहिए जब सूजन वाले घुटने से उस व्यक्ति की ज़िंदगी की गुणवत्ता को काफी हद तक नुकसान हो रहा हो। 

रुमेटी संधिशोथ या रूमेटाइड आर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis):
रुमेटी संधिशोथ (Rheumatoid Arthritis) न केवल एक ऑटोइम्यून बीमारी (एक बीमारी जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला करती है) है बल्कि सिस्टेमिक (Systemic, पूरे शरीर को प्रभावित करने वाला) भी है। इस विकार में भी जोड़ों में सूजन और दर्द होता है। यदि उपचार न किया जाए, तो इस विकार से हड्डियों, उपास्थि, जोड़ों के ऊतकों (Tissues) को हानि पहुँच सकती है जिसका उपचार बहुत कठिन है। चिकित्सक सर्जरी की सलाह तब ही देते हैं, जब दवाएं अपेक्षित नतीजे नहीं दे पाती। 

घुटने की विकृति (Knee Deformity):
यह एक ऐसी स्थिति है जिसमे घुटने बाहर निकलने लगते हैं जो स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगता है। ऐसे में आपके डॉक्टर आपको सर्जरी की सलाह दे सकते हैं। 

निष्क्रियता (Inactivity):
घुटने के जोड़ों के दर्द से होने वाली निष्क्रियता या चलने फिरने में कठिनाई जिसमें रोज़मर्रा के काम न कर पाना भी शामिल है, चिंता का कारण हो सकते हैं। ऐसे में Knee Replacement Surgery करवाई जा सकती है।
घुटनों का प्रत्यारोपण होने से पहले की तैयारी - Ghutno ke operation ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा: 

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग/ खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)

घुटनों का ऑपरेशन कैसे किया जाता है? - Ghutno ka operation kaise hota hai?
एक अंतःशिरा रेखा (Intravenous Line) आपके हाथ या बांह से जुड़ी होती है। आपको बेहोश करने के लिए सामान्य एनेस्थीसिया दिया जाता है। मूत्र के स्त्राव के लिए एक मूत्र कैथेटर शरीर के अंदर रखा जाता है।

प्रतिस्थापन प्रक्रियाओं के दो प्रकार हैं:-

पूरे घुटने की रिप्लेसमेंट (Total Knee Replacement)
आंशिक घुटने की रिप्लेसमेंट (Partial Knee Replacement)
1. पूरे घुटने का प्रतिस्थापन (Total Knee Replacement):
पूरे घुटने की प्रतिस्थापन प्रक्रिया 1 से 3 घंटे ले सकती है। घुटनों की स्थिति (पोजीशन) को बदलने के लिए घुटने में एक चीरा लगाया जाता है जिससे पूरी सर्जरी के दौरान घुटने के जोड़ों को पर्याप्त रूप से देखा जा सके। चीरा पिंडली की हड्डी और जांघ की हड्डी तक पहुंचने में सहायता करती है। घुटने के अंदर की सतहों को इस प्रकार आकार दिया जाता है, जिससे वे शल्य चिकित्सा के दौरान लगाए गए कृत्रिम जोड़ों को पकड़ सके। फिर कृत्रिम अंग (artificial body part) को जांघ की हड्डी के आखिरी छोर पर लगाया जाता है। उसके बाद कृत्रिम अंग को उसकी जगह पर लगाने के लिए बोन सीमेंट का उपयोग किया जाता है। 

जब कृत्रिम अंग हड्डी पर लगा दिया जाता है उसके बाद एक प्लास्टिक स्पेसर को पिंडली की हड्डी से सम्बन्धित सतह पर रखा जाता है। प्लास्टिक स्पेसर सदमे अवशोषित करने का कार्य करता है। उसके बाद, सर्जन घुटने को 110 डिग्री तक मोड़ता है। इसके बाद, त्वचा को जहाँ से चीरा गया होता है वहां से उसे सिल दिया जाता है (स्टिचेस लगाए जाते हैं)।

2. घुटने का कोई हिस्सा बदलना (Partial Knee Replacement): 
आंशिक घुटने की रिप्लेसमेंट- Unicompartmental Knee Replacement और Unicondylar Knee Replacement के नाम से भी जाना जाता है। यह क्षतिग्रस्त घुटने के जोड़ों को बदलने के लिए शरीर को सबसे कम छेदकर या चीरकर की जाने वाली सर्जरी है। सर्जन द्वारा घुटने के जोड़ों पर काम करने के लिए पूरे घुटने के रिप्लेसमेंट की तुलना में छोटे चीरे बनाये जाते हैं। घुटने के जोड़ों के क्षतिग्रस्त भाग को सर्जरी द्वारा हटाया जाता है। एक कृत्रिम अंग को उसकी जगह लगाया जाता है। सर्जन यह सुनिश्चित करता है कि सर्जरी के पूरा होने से पहले कृत्रिम अंग बिल्कुल सही तरह से लग जाए। 

घुटने के प्रभावित हिस्से पर धातु से बना एक नी-कैप (घुटनों पर लगाया एक ढक्कन जैसा आकार) रखा जाता है। उसको जगह पर बनाये रखने के लिए बोन सीमेंट से भरा जाता है। इसके बाद, चीरा को सिला जाता है (स्टिचेस लगाए जाते हैं)। आदर्श रूप से, आप को आंशिक घुटने के बदलने के लिए कहा जाता है अगर गठिया से घुटने का केवल एक भाग ही प्रभावित हुआ है और अभी भी घुटने की गति अच्छी है, लिगामेंट स्थिर हैं और अगर आप बूढ़े हैं या आपका शरीर इतना सक्रिय नहीं है।

सर्जरी के बाद क्या करें और क्या न करें
सर्जरी के बाद स्वास्थ्य में जल्दी लाभ हो ये सुनिश्चित करने के लिए आपको निम्न बातों का ध्यान रखना होगा :-

सोते समय ध्यान दें कि आप सीधे सोएं और ऐसी नहीं जिससे आपका घुटना मुड़ जाए या उस पर बल पड़े।
सर्जरी के बाद कम से कम 6 से 8 हफ़्तों तक ड्राइविंग न करें। ड्राइविंग तब ही करें जब आपको विशवास हो जाये की अब आप पूरी तरह से ठीक हैं।
रोज़मर्रा के कार्य करते हुए ध्यान रखें कि आप अपने घुटनों पर बल न दें। 
चीरे के घाव के जल्दी भरने के लिए आवश्यक है उसे साफ़ और संक्रमण रहित रखा जाए।
ध्यान दें कि आप नहाते हुए बाथरूम में न फिसलें।
रिकवरी के दौरान ध्यान दें कि आप भागने, कूदने, या कोई और ऐसे कार्य न करें जिससे आपके घुटने पर बल पड़े। इससे चोट लग सकती है और रिकवरी में और समय लग सकता है।
अगर आपका घर बहुमंज़िला है तो सीढ़ियां न चढ़ें और सर्जरी से पहले ही अपने रहने की योजना नीचे की मंज़िल पर करवा लें। 
कोशिश करें कि आप ज़्यादा देर तक बैठे न रहें क्योंकि इससे घुटनों में ऐंठन हो सकती है।
सूजन और खुजली से बचने के लिए अपने घुटनों पर आइस पैक्स का इस्तेमाल करें। 
डॉक्टर और फ़िज़ियोथेरेपिस्ट द्वारा निर्धारित व्यायाम और रोज़ चलने को नज़रअंदाज़ न करें।
सर्जरी से पहले ही बैसाखी और छड़ी की सहायता से चलने का अभ्यास करें।
डॉक्टर द्वारा बताये तरीके से CPM का प्रयोग करें क्योंकि इससे आपको अधिकतम सीमा तक गति प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
घर से सारे कालीन हटा लें क्योंकि इससे गिरने का खतरा बढ़ सकता है।
फिजियोथेरेपी सेशन में सिखाये गए सारे व्यायाम सीखें और सही तरीके से करें क्योंकि ये आपको ऐंठन और तकलीफ से निजात पाने में सहायता करेंगे और घुटने में रक्‍तसंचार में सुधार पाने में भी मदद करेंगे।
घुटने की सर्जरी के बाद की समस्याओं को उचित आहार की मदद से रोका जा सकता है। फिजियोथेरेपी के व्यायाम करें और हर समय आराम करने की बजाय सक्रिय रहें। आदर्श रूप से ये प्रतिस्थापन अगले 15-20 वर्षों तक चल जायेगा।
घुटने बदलने के बाद सावधानियां - Knee ka operation hone ke baad savdhaniya
घुटनों के जोड़ बदलने की सर्जरी के बाद आपको सामान्य कार्य करने के लिए 6 हफ्ते लग सकते हैं। हालांकि दर्द और सूजन जाने में 3-6 महीने लग सकते हैं। पूरी तरह से ठीक होने में एक साल तक लग सकता है। हालांकि रिकवरी का समय मरीज की शारीरिक स्थिति और सर्जरी के बाद की देखभाल पर भी निर्भर करता है। इसलिए डॉक्टर द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करें। 

घुटने प्रतिस्थापन की जटिलताएं - Ghutno ki surgery me jatiltaye
ये एक ऐसी सर्जरी है जो आपके जीवन में सुधार लाकर उसे बेहतर कर सकती है। मगर, अन्य सर्जरी की तरह इसमें भी कई जोखिम हैं जिनपर ध्यान देना ज़रूरी है। ऐसे ही कुछ जोखिम नीचे दिए गए हैं:

गहरी नस की घनास्रता (Deep Vein Thrombosis)
साधारण शब्दों में Deep Vein Thrombosis का अर्थ है गहरी नसों (ज़्यादातर पैरों की) में रक्त के थक्कों का गठन हो जाना। रक्त के थक्के बनने के कई कारण हो सकते हैं। रक्तप्रवाह में निकल जाने वाले एंटीजन और वसा में भी रक्त के थक्के बनाने की क्षमता होती है।
फ्लूइड बिल्डअप (Fluid Buildup; द्रव इकठा हो जाना)
यह बहुत गंभीर परेशानी नहीं है। घुटने के पीछे तरल पदार्थ बन सकते हैं और इसे आसानी से बहार भी निकला जा सकता है।
अकड़न
मरीज अपने घुटनों में अकड़न का अनुभव कर सकते हैं जो एक घुटने की सर्जरी के बाद पूरी तरह से सामान्य है। रोगी अपने घुटनों को आगे पीछे नहीं मोड़ या झुका पाते। यह परेशानी एक फिजियोथेरेपिस्ट की सहायता से कम की जा सकती है। घुटने की सामान्य गति सीमा भी अभ्यास की मदद से प्राप्त की जा सकती है।
संक्रमण
संक्रमण एक आम या हलके में लिए जाने वाला जोखिम नहीं है। यदि सर्जरी के बाद घुटने के जोड़ों के भीतर संक्रमण विकसित होता है, तो यह बेहद दर्दनाक स्थिति हो सकती है। सर्जरी के कुछ हफ्तों
तक संक्रमण होने का जोखिम रहता है और इस समय इससे बचने के लिए दवाओं और एंटीबायोटिक्स की मदद ली जाती है।
बदले हुये घुटने से आवाज़ आना
इम्प्लांट से हल्की आवाज़ होना आम है। चूंकि इम्प्लांट्स प्लास्टिक और धातु से बने होते हैं, इसलिए घुटने को हिलाने या कुछ कार्य करने पर आवाज़ आना सामान्य है और कोई चिंता का विषय नहीं है।
रक्त वाहिका में चोट
सर्जरी के दौरान घुटनों के पीछे की नसों में चोट या रक्त वाहिकाओं को क्षति पहुँचने की थोड़ी सम्भावना रहती है।
नसों में चोट
दुर्लभ मामलों में, यह संभव है कि घुटने के जोड़ों (जिसकी सर्जरी की जा रही है) से सटी हुई कोई नस सर्जरी के दौरान गलती से क्षतिग्रस्त हो जाए। इससे नसों के कार्य (क्षति के आधार पर) भी बिगड़ सकता है। यदि क्षति गंभीर है, तो न्यूरोलॉजिस्ट (नसों का डॉक्टर) को दिखाएँ।
अपनी जगह से हिल जाना (Dislocation)
नए फिट किये गए जोड़ों का विस्थापन (अपनी जगह से खिसक जाना) भी हो सकता है जिसे सर्जरी द्वारा ठीक किया जा सकता है।
घाव
घावों और घुटनों के पास की त्वचा को ठीक से भरना ज़रूरी है। अगर रिकवरी अपेक्षित रूप से न हो पाए तो स्किन ग्राफ्ट (त्वचा का प्रत्यारोपण) का सहारा लेना पड़ सकता है।
एलर्जी
इम्प्लांट धातुओं (जैसे टाइटेनियम और अन्य धातुओं के मिश्रण) से तैयार किया जाता है। बहुत से लोगों को कुछ वस्तुओं और धातुओं से एलर्जी होती है। चिकित्सक को उनके बारे में सूचित किया जाना चाहिए।
हड्डी का फ्रैक्चर
सर्जिकल उपकरणों और आकस्मिक क्षति की वजह से प्रक्रिया के दौरान आसपास की हड्डियों के फ्रैक्चर और क्षति की पूरी सम्भावना रहती है।

2. कूल्हे का प्रत्यारोपण या हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी - Hip replacement surgery in Hindi

कूल्हे का प्रत्यारोपण क्या होता है? - Hip replacement surgery kya hai in hindi?
कूल्हे के जोड़ों की सर्जरी (हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी) के अंतर्गत ऐसी ऑपरेटिव विधियां शामिल है जिनमें काम न कर रहे या बेकार काम कर रहे कूल्हे के जोड़ों को एक कृत्रिम और स्वस्थ जोड़े के साथ बदला जाता है। सर्जरी के लिए पूरी तरह कार्यात्मक कृत्रिम कूल्हे के जोड़ों का निर्माण किया जाता है।

कूल्हे के जोड़े बॉल और सॉकेट जोड़े होते हैं जिसका अर्थ है इन जोड़ों को कई दिशाओं में मोड़ा या स्थानांतरित किया जा सकता है। फेमूर हेड (जांघ की हड्डी का ऊपरी भाग) कूल्हे के जोड़ों की बॉल है और ऐसीटैबुलम इसका सॉकेट होता है। कूल्हे के जोड़ों की आंशिक रिप्लेसमेंट सर्जरी में सिर्फ कूल्हे की बॉल को बदला जाता है। कूल्हे के जोड़ों की कुल रिप्लेसमेंट सर्जरी में कूल्हे की बॉल को बदलकर सॉकेट को फिर से संगठित (निर्मित) किया जाता है।

यह सर्जरी कृत्रिम अंग के विशेषज्ञ द्वारा की जाती है। कृत्रिम अंग एक मानव द्वारा निर्मित शरीर का अंग है जो असली अंग की तरह ही सामान्य कार्यों को पूरा करता है। सर्जरी लगभग 1-2 घंटे तक चलती है। यह एक बहुत सावधानीपूर्वक की जाने वाली प्रक्रिया है और ऐसे चिकित्सक द्वारा की जाती है जो आर्थोपेडिक्स (हड्डियों के रोग) के क्षेत्र में विशेषज्ञ है।

कूल्हा प्रत्यारोपण क्यों कराया जाता है? - Hip replacement kab kiya jata hai?
कूल्हे के जोड़ों की कुल रिप्लेसमेंट सर्जरी (Total Hip Replacement Surgery)
स्वास्थ्य की कोई भी ऐसी स्थिति, जिसमें दोनों में से कोई एक तरफ के कूल्हे के जोड़ों की कारवाई में परेशानी हो, का उपचार करना ज़रूरी है। कभी कभी दवा, फिजियोथेरेपी, या व्यायाम से भी मदद मिल सकती है। हालांकि, कभी-कभी ये उपचार विधियां कूल्हे के जोड़ों को ठीक करने में मदद नहीं कर पाती हैं। ऐसा भी हो सकता है की कूल्हे के जोड़ों का ज़्यादा नुकसान हो रखा है, जिसे सिर्फ पारंपरिक तरीकों से ठीक नहीं किया जा सकता। ऐसी परिस्थितियों में शल्य चिकित्सा की ज़रुरत होती है। यदि कूल्हे के जोड़े इतने क्षतिग्रस्त हैं कि उनको ठीक करना मुश्किल है, तो ऐसे में उसे बदलने के लिए सर्जरी की जाती है। निम्न लिखित कुछ ऐसी स्थितियां जिसमें कूल्हे के जोड़ों को बदलने की सर्जरी की ज़रुरत हो सकती है :-

गठिया (Arthritis):
कूल्हे के जोड़ों का गठिया सामान्य है क्योंकि इन जोड़ों में जब भी पैर चलते हैं तो हमेशा ही क्रिया होती रहती है। श्रोणि और जांघ की हड्डी कूल्हे के जोड़ों को बनाती हैं। ये हड्डियां जहाँ मिलती हैं वहां उपास्थि की एक परत होती है जो एक तकिये की तरह काम करती है और हड्डियों की सतह को टकराव से बचाती है। जोड़ों के लगातार उपयोग से वे घिसना शुरू हो जाते हैं जिससे वह ख़राब या नष्ट होने लगते हैं। इससे गठिया बनता है। गठिया धीरे धीरे बढ़ता है जिससे उपास्थि और घिसने और ख़राब होने लगती है। गठिया व्यक्ति के ठीक से चलने फिरने या काम करने की क्षमता को सीमित करता है। यदि नुकसान ज़्यादा है और किसी उपचार से ठीक नहीं हो पा रहा, तो जोड़ों को बदलने के लिए सर्जरी की ज़रुरत हो सकती है।
कूल्हे के जोड़ों का परिगलन:
कूल्हे के जोड़ों की संरचना कुछ ऐसी है: जांघ की हड्डी का एक गोल फलाव (आगे निकला हुआ हिस्सा) जो श्रोणि की हड्डी की गोलाकार गुहा (कैविटी) में बैठता है। यह एक सुगठित (कॉम्पैक्ट) संरचना है। इस संरचना में रक्त वाहिका कभी-कभी बाधित हो सकती है। यह कूल्हे के जोड़ों को ख़राब करता है। ऐसी स्थिति में ख़राब जोड़ों को बदलना ही श्रेष्ठ विकल्प होता है।
लक्षण (जिनको ठीक न किया जाए):
कूल्हे के जोड़ों के रोगों में चलने या कूल्हे के द्वारा किये जाने वाले हर काम में दर्द; अकड़न; मांसपेशियों के अति प्रयोग के कारण पैरों में कमजोरी, पालथी मारने या बैठने में असमर्थता, खड़े होकर बैठने में या बैठकर खड़े होने में परेशानी जैसे लक्षण पाए जाते हैं। अगर कूल्हे के जोड़ों का रोग बढ़ता जाए तो लक्षण भी जल्दी जल्दी बढ़ने लगते हैं।
आर्थोस्कोपी (Arthroscopy) की असफलता:
आर्थ्रोस्कोपी में कूल्हे के जोड़ों के अंदर एक वीडियो कैमरा डाला जाता है और आंतरिक संरचनाओं को देखा जाता है। यदि कोई रोगग्रस्त उपास्थि या हड्डी है या जोड़ों में अस्वस्थ मलबा जमा है, तो इसे आर्थोस्कोपी के दौरान हटा दिया जाता है। यह जोड़े के सामान्य कार्यों को फिर से करने में मदद करता है। अगर आर्थ्रोस्कोपी राहत प्रदान करने में विफल रहती है, तो पूरे कूल्हे के जोड़ों को बदलने के लिए सर्जरी की जा सकती है।
रोगी के शरीर का पूर्ण परीक्षण और अतीत में रह चुकी सारी बीमारियों की जानकारी की मदद से डॉक्टर ये तय करता है कि रोगी को इस सर्जरी की ज़रुरत है या नहीं। इसके बाद डॉक्टर सर्जरी की तैयारी करता है। 

कूल्हे के जोड़ों की आंशिक रिप्लेसमेंट सर्जरी (Partial Hip Replacement Surgery)
जोड़ों की क्षति के आधार पर हड्डियों का डॉक्टर कूल्हे के जोड़ों की आंशिक रिप्लेसमेंट सर्जरी के लिए कहता है। आम तौर पर यह तब किया जाता है अगर फेमूर नैक (फेमूर के शाफ़्ट को फेमूर के हेड से जोड़ने वाला भाग; जांघ की हड्डी को फेमूर कहते हैं) में होने वाली फ्रैक्चर को ठीक नहीं किया जा सकता और सॉकेट बिलकुल ठीक है। डॉक्टर को कूल्हे के जोड़ों की सिर्फ बॉल को बदलने की जरूरत पड़ती है।

जांघ की हड्डी की गर्दन के फ्रैक्चर को निम्न रूप में ग्रेड किया जाता है:-

टाइप 1: हड्डियां साथ में दब जाती हैं और अलग नहीं होती। इसके अलावा, उनके संरेखण को काफी हद तक प्रभावित नहीं किया गया है। यह एक प्रकार का स्थिर (स्टेबल) फ्रैक्चर है।
टाइप 2: यहां, हड्डियों का फ्रैक्चर होता है, लेकिन कूल्हे की हड्डियों का संरेखण अभी भी वही है जो फ्रैक्चर से पहले था।
टाइप 3: फ्रैक्चर का वह चरण जहां हड्डियां पूरी तरह से विस्थापित हो जाती हैं लेकिन फिर भी दो हड्डी के टुकड़ों के बीच थोड़ा संपर्क होता है।

टाइप 4: फेमूर नैक फ्रैक्चर। हड्डियां पूरी तरह से विस्थापित हो जाती हैं और हड्डी के टुकड़ों के बीच कोई संपर्क नहीं है।

टाइप 1, टाइप 2 और टाइप 3 प्रकार के फेमूर नैक के फ्रैक्चर को नेलिंग (Nailing) उपकरण या पिन की मदद से ठीक किया जा सकता है। टाइप 4 फ्रैक्चर में, खंडित हड्डी के हिस्सों को किसी भी पिन या नेलिंग उपकरण का उपयोग करके ठीक नहीं किया जा सकता और फेमूर हेड (जांघ की हड्डी का ऊपरी हिस्सा) में रक्त आपूर्ति भी बाधित हो सकती है जिससे हड्डी को जल्दी कमज़ोर कर सकता है। इसलिए, ऐसी स्थितियों से बचने के लिए, हड्डियों का डॉक्टर आंशिक हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी के लिए कहता है। इस सर्जरी में सॉकेट को नहीं छेड़ा जाता क्योंकि वह बिलकुल स्वस्थ है। यह सर्जरी टूटी हुई या फ्रैक्चर हो रखे कूल्हों के लिए एक उपचार है; गठिया के मरीज़ों के लिए यह सही उपचार नहीं है।

हिप प्रत्यारोपण होने से पहले की तैयारी - Hip ke operation ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा: 

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग (खाली पेट रहना) (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)
कृत्रिम अंग (Prosthesis) का चयन: कृत्रिम अंग बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली धातु को सावधानीपूर्वक चुना जाना चाहिए। शरीर के तरल पदार्थ या अन्य अंगों पर कृत्रिम जोड़ों की वजह से कोई विपरीत प्रतिक्रिया नहीं होनी चाहिए। कृत्रिम अंग को प्रत्येक रोगी के लिए उनकी ऊंचाई, वजन, डील-डौल के आधार पर विशेष रूप से डिजाइन किया जाना चाहिए।
फिजियोथेरेपी (Physiotherapy): जिन मरीज़ों की जोड़ों की सर्जरी होनी होती है, उन्हें ऑपरेशन से पहले फिजियोथेरेपी सेशंस से गुजरना है। यह जोड़ों के आसपास की माँसपेशिओ को मज़बूती देता है जिससे सर्जरी के बाद परेशानियों से बचा जा सके।
अन्य खास बातें: सर्जरी के लिए एक्सेस प्वाइंट (जहाँ चीरा काटकर क्षतिग्रस्त हिस्से तक पहुंचा जायेगा) के रूप में उपयोग की जाने वाली त्वचा पर से सभी बालों को हटा दिया जाता है। यह सभी सूक्ष्मजीवों को खत्म करने के लिए एक एंटी-सेप्टिक सलूशन से साफ किया जाता है।


कूल्हा प्रत्यारोपण ऑपरेशन कैसे किया जाता है? - Kulhe ka operation kaise hota hai?
कूल्हे के जोड़ों की कुल रिप्लेसमेंट सर्जरी (Total Hip Replacement Surgery)
कूल्हे के रोगग्रस्त जोड़ों को बदलने की प्रक्रिया केवल एक है, लेकिन इसे ओपन (Open) या Minimally Invasive Method) से किया जा सकता है। दोनों तरीकों को नीचे विस्तार से समझाया गया है:

ओपन सर्जरी (Open Surgery)
यह एक आक्रामक प्रक्रिया है। कूल्हे (जिसे बदलना है) के किनारे में लगभग 6-8 इंच लम्बा चीरा किया जाता है। अंतर्निहित मांसपेशियों, वसा, तंत्रिकाओं और रक्त वाहिकाओं को ध्यान से अलग किया जाता है ताकि उन्हें नुकसान न पहुंचे। जांघ की हड्डी का ऊपरी भाग, जो संरचना में एक गेंद की तरह है, को एक ओर्थपेडीक आरी की मदद से काटा जाता है। 
जांघ की हड्डी (जो अभी स्वस्थ है) को चुने हुए कृत्रिम अंग (जो धातु या प्लास्टिक से बना है) के साथ जोड़ा जाता है। जोड़ों को फिट करने के लिए एक मजबूत चिपकाने वाले पदार्थ की ज़रुरत होती है। किसी भी रोगग्रस्त उपास्थि या निकले हुए मलबे को कूल्हे की सतह से हटा दिया जाता है। कृत्रिम सॉकेट को कूल्हे की सतह से जोड़ा जाता है। जांघ की हड्डी के बॉल (गेंद) जैसी संरचना वाले कृत्रिम भाग और कृत्रिम सॉकेट को एक दुसरे में फिट किया जाता है। सर्जन यह जांच करता है कि कृत्रिम जोड़े ठीक से फिट हो गए हैं या नहीं। जिन मांसपेशियों को पहले विभाजित किया गया था, उन्हें फिर लगा दिया गया है। सर्जिकल धागे का उपयोग करके त्वचा पर बनाया गया चीरा बंद कर दिया जाता है।
न्यूनतम आक्रामक सर्जरी (Minimally Invasive Surgery)
यह प्रक्रिया आकार और सर्जरी में किये गए चीरों की संख्या में ओपन सर्जरी से अलग होती है। एक लंबे चीरे के बजाय, कूल्हे (जो कि प्रतिस्थापित किया जाना है) के किनारे पर कई छोटे चीरे किये जाते हैं। इन चीरों के माध्यम से सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट्स डाले जाते हैं। आंतरिक अंगों को देखने के लिए एक आर्थोस्कोप (Arthroscope) का उपयोग किया जाता है। आगे की प्रक्रिया ओपन सर्जरी जैसी होती है। न्यूनतम आक्रामक सर्जरी से आसपास के अंगों या भागों को काम नुक्सान पहुँचता है और इसमें कम रक्तस्त्राव होता है।
हालांकि दोनों प्रक्रियाओं में कुछ अंतर है,लेकिन दोनों का निष्कर्ष एक समान है। सर्जरी के अंत में पुराने जोड़े को कृत्रिम जोड़े से बदला जाता है। बाद में देखभाल करने के लिए कुछ निर्देश दिए जाते हैं जिससे जल्दी रिकवरी हो सके।

कूल्हे के जोड़ों की आंशिक रिप्लेसमेंट सर्जरी (Partial Hip Replacement Surgery)
कूल्हे के जोड़ों की आंशिक रिप्लेसमेंट सर्जरी एक बहुत ही जटिल प्रक्रिया है और इसे पूरा करने के लिए लगभग एक या दो घंटे लगते हैं। कूल्हे के जोड़ों में मौजूद बॉल को कृत्रिम या मानव निर्मित इम्प्लांट से बदला जाएगा। इसकी सर्जिकल प्रक्रिया निम्नलिखित है और निम्न क्रम में होती है:
कूल्हे के जोड़ों के आगे या पीछे या किनारे में एक चीरा बनाई जाती है। मांसपेशियों, ऊतकों, कण्ड्रों को स्थानान्तरित किया जाता है। कूल्हे को फिर ऐसी स्थिति में रखा जाता है जिससे सर्जन आसानी से उसे पूरी तरह खोल सकें।
फिर, फेमूर हेड (जांघ की हड्डी का ऊपरी भाग) को हटा दिया जाता है।
फेमूर स्टेम (कृत्रिम अंग का हिस्सा जो तैयार फेमूर के अंत में सम्मिलित होता है) को डालने के लिए फेमूर के अंदर के चैनल को खाली किया जाता है।  
फिर फेमूर स्टेम को सिमेंट की मदद से फेमूर के खाली किये गए हिस्से में लगाया जाता है। एक बार यह सही तरह से लग जाये, कृत्रिम बॉल को फेमूर स्टेम के ऊपर लगाया जाता है। 
कूल्हे के जोड़ों को फिर से जोड़ दिया जाता है और सारी मांसपेशियां, ऊतकों और कण्ड्रों (जिन्हें पहले कूल्हे के जोड़ों तक पहुँचने के लिए हटाया गया था) को फिर अपनी जगह पर लगाया जाता है और प्रक्रिया समाप्त हो जाती है।
कूल्हे के जोड़ों की आंशिक रिप्लेसमेंट की तकनीकें बेहतर हो रहीं हैं और कम आक्रामक आंशिक रिप्लेसमेंट सर्जरी के मिश्रित परिणाम पाए गए हैं इसलिए अभी भी पारंपरिक तरीके से उपचार किया जा रहा।

कूल्हा प्रत्यारोपण सर्जरी के बाद देखभाल - Kulhe ka operation hone ke baad dekhbhal
सर्जरी के बाद, रोगी को रिकवरी रूम में ले जाया जाता है। एनेस्थीसिया का असर कुछ समय तक रहेगा। रोगी को आंशिक रिप्लेसमेंट सर्जरी के बाद एक या दो दिन तक और कुल रिप्लेसमेंट सर्जरी में 4 से 6 दिन तक अस्पताल में रहने की ज़रुरत हो सकती है।

अस्पताल में देखभाल
जब तक आप अस्पताल में हैं तब तक आप नर्सों की निगरानी में होते हैं। एनेस्थीसिया का असर जाने के बाद जब मरीज़ को होश आ जाता है तब उसके पूरे शरीर की जाँच की जाती है। घाव को रूई और पट्टियों से ढका जाता है। सर्जरी के बाद 1 या 2 दिन तक मरीज़ को ऐसे काम करने से मना किया जाता है जिनसे कूल्हे के जोड़ों पर बल पड़े। अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद आपको देखभाल के लिए कई बातों का ध्यान देना होगा और अपने डॉक्टर द्वारा निर्देशित सभी सलाहों का पालन करना होगा।
फिजियोथेरेपी (Physiotherapy)
कूल्हे के नवनिर्मित जोड़ों के आसपास मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए, फिजियोथेरेपी आवश्यक है। रोगी की रिकवरी के आधार पर सर्जरी के बाद यह जल्द ही शुरू कर देनी चाहिए। रोगी को कम थकाने वाले व्यायाम निर्धारित किये जाते हैं। 
सामान्य देखभाल 
मरीज़ ऐसे कार्य न करें जिससे उनके कूल्हे के कृत्रिम जोड़ों पर किसी भी तरह का बल पड़े। संक्रमण और रक्तस्त्राव से बचने के लिए घाव का ध्यान रखें और उसे साफ़ रखें। घाव को सर्जिकल पट्टियों से ढक के रखें। चलने के लिए लाठी या बैसाखी का सहारा लें। जब तक डॉक्टर न कहे तब तक कोई ऐसे कार्य न करें जिसमे भरी चीज़ें उठानी पड़ें।
दवाएं 
डॉक्टर आपको दर्द से बचने के लिए दर्द निवारक गोलियां और एंटीबायोटिक गोलियां दे सकते हैं। अपने डॉक्टर द्वारा निर्धारित खुराक में निर्धारित अवधि के लिए इन सभी दवाओं का उपयोग करें। 
आहार 
इस सर्जरी के बाद जल्दी रिकवरी के लिए ज़रूरी है कि आप अपने खान पान का ध्यान रखें। आयरन (Iron), कैल्शियम (Calcium) और फॉस्फोरस (Phosphorus) युक्त आहार का सेवन करें। 
हिप रिप्लेसमेंट के बाद सावधानियां - Kulhe ka operation hone ke baad savdhaniya
कूल्हे के जोड़ों की सर्जरी के बाद मरीज़ अपनी आम दिनचर्या 1-6 महीनों में शुरू कर सकता है हालांकि रिकवरी का समय मरीज़ की शारीरिक स्थिति और सर्जरी के बाद की गयी देखभाल पर निर्भर करता है।

हिप रिप्लेसमेंट की जटिलताएं - Kulhe ki surgery me jatiltaye
हर सर्जरी के अपने कुछ जोखिम होते हैं। ज़रूरी है कि आप इन सभी जोखिमों के बारे में जानते हों :

रक्तस्त्राव 
किसी भी बड़ी सर्जरी में सबसे बड़ा जोखिम अधिक रक्तस्त्राव का होता है। सर्जरी के दौरान किसी रक्त वाहिका को क्षति पहुँच सकती है या अन्य कोई परेशानी हो सकती है जिससे अत्यधिक रक्तस्त्राव हो सकता है। इसे पहले ही मरीज़ के ब्लड ग्रुप के हिसाब से मरीज़ के ग्रुप का रक्त तैयार रखा जाता है ताकि अगर सर्जरी के दौरान अत्यधिक खून बहे तो स्थिति को नियंत्रित रखा जा सके और शरीर में तरल पदार्थों का संचार बना रहे। 
रक्त के थक्के बन जाना
रक्तस्त्राव से थक्कों का गठन हो सकता है। बड़े थक्कों को यंत्रों की मदद से हटाया जा सकता है लेकिन छोटे थक्कों को हटाने में दिक्कत हो सकती है। इसके लिए डॉक्टर आपको Blood Thinner (खून को पतला करने वाली दवाएं ) दे सकता है। इनका प्रयोग डॉक्टर के निर्देशानुसार ही करें। 
नए जोड़ों का अपनी जगह से हिल जाना 
अगर मरीज़ ज़्यादा शारीरिक कार्य करते हैं तो इससे कृत्रिम जोड़ों के अपनी जगह से हिल जाने का खतरा रहता है। इसको ठीक करने के लिए सर्जरी की ज़रुरत पड़ सकती है। 
पैरों की बदली हुई लम्बाई 
ऐसा हो सकता है की कृत्रिम अंग असल अंग के आकर का न हो जिससे दोनों पैरों (इस सर्जरी में) की लम्बाई में फर्क लगे। अगर अंतर को अनदेखा किया जा सकता है तो इसको खास तौर पर बनाये गए जूतों की मदद से ठीक किया जा सकता है। लेकिन अगर अंतर ज़्यादा है तो इसके लिए एक सर्जरी की ज़रुरत हो सकती है।  

3. एसीएल पुनर्निर्माण सर्जरी - Anterior Cruciate Ligament (ACL) Reconstruction Surgery in Hindi

एसीएल पुनर्निर्माण सर्जरी क्या होता है? - ACL surgery kya hai in Hindi
ACL पुनर्निर्माण सर्जरी (ACL Reconstruction Surgery) घुटने की कार्यवाही को सुधारने के लिए की जाती है। एसीएल, जिसे Anterior Cruciate Ligament के रूप में भी जाना जाता है, जांघ की हड्डी (फेमूर) को शिन की हड्डी (टिबिया) के साथ जोड़ता है। जो लोग बहुत सारे मैदानी खेल खेलते हैं वे अपने ACL को क्षतिग्रस्त या चोटिल कर सकते हैं। जब लिगामेंट के उपचार के लिए गैर-आक्रामक तरीके काम नहीं करते हैं, तो एसीएल पुनर्निर्माण सर्जरी ही अंतिम उपाय रह जाता है। घुटने के सामान्य कार्यों को ठीक करने या सुधारने के लिए क्षतिग्रस्त (फटे हुये) लिगामेंट को ग्राफ्ट (Graft; उपरोपण) से बदल दिया जाता है।

एसीएल पुनर्निर्माण सर्जरी क्यों की जाती है? - ACL Surgery kab ki jati hai?
ACL का प्रमुख कार्य घुटने की Hyperextensibility (सामान्य डिग्री से अधिक फैला पाने की क्षमता होना) को रोकना है (पैर की हड्डी और जांघ की हड्डी के बीच का एंगल उससे ज़्यादा नहीं होना चाहिए जितना पूरी तरह से सीधा होने के बाद होता है)। यह घुटने को घुमाने की स्थिरता को भी बनाये रखता है।

ACL की चोटें ऐसे एथलीट्स में आम हैं जो घुटनों को मोड़ने या इस्तेमाल करने वाले खेलों से जुड़े हैं, जैसे कि बास्केटबॉल, फुटबॉल, स्कीइंग, नृत्य आदि।
हड्डियों की संरचना के रूपांतरण, पेशी नियंत्रण और समन्वय, और लिगामेंट की हीलिंग (इलाज करने की) क्षमता पर एस्ट्रोजन के प्रभाव की वजह से महिलाओं में पुरुषों की तुलना में यह होने की अधिक संभावनाएं हैंl
ACL पुनर्निर्माण 'Unhappy Triad' (रोगी त्रय) वाले मरीजों में सही विकल्प माना जाता है - घुटने के Medial Meniscus, Medial Cruciate Ligament और Anterior Cruciate Ligament का नुक्सान। फुटबॉल खिलाड़ियों में यह त्रय सामान्य है।
क्षतिग्रस्त ACL और कार्यात्मक अस्थिरता वाले मरीज़ों को इस विकल्प पर विचार करना चाहिए।
छोटे बच्चों में इसे नहीं करवाया जाना चाहिए क्योंकि इससे हड्डियों के विकास को नुकसान पहुँच सकता है।
अगर ACL के साथ Menisci या Articular Cartilage को भी नुक्सान पहुंचा हो तो ऐसे में सर्जरी की जानी चाहिए। 
एसीएल पुनर्निर्माण सर्जरी होने से पहले की तैयारी - ACL Surgery ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा: 

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)
ध्यान रखने वाली अन्य बातें (Other Things To Be Kept In Mind Before Surgery)
घुटने को बहुत साफ़ रखें। इसे दिन में बार बार धोएं ताकि संक्रमण के खतरे को टाला जा सके। ध्यान दें कि आपके घुटने पर किसी भी तरह की चोट या कट या घाव न लगे। घुटने पर शेविंग (बाल हटाने) की ज़रुरत नहीं है। यदि आप बैसाखी का प्रयोग करते हैं तो उन्हें अपने साथ ही रखें। 
एक सामान्य ACL पुनर्निर्माण सर्जरी को लगभग एक से डेढ़ घंटे लग सकते हैं। आप इसके बाद घर जा सकते हैं।
सर्जरी से पहले किये जाने वाले विशिष्ट परीक्षण (Specific Tests Before Surgery)
सामान्य टेस्ट्स के साथ आपके डॉक्टर द्वारा आपको निम्न टेस्ट्स करवाने के लिए भी कहा जा सकता है:
अल्ट्रासोनोग्राफ़ी (Ultrasonography): ध्वनि तरंगों का उपयोग नरम ऊतकों की छवियां उत्पन्न करने के लिए किया जाता है, और अगर कोई क्षति हो तो इससे उसका भी पता चल जाता है।
आर्थ्रोग्राम (Arthrogram): एक डाई को घुटने के जोड़ों के क्षेत्र में लगाया जाता है जो चोट के क्षेत्रों को आउटलाइन करेगा।
आर्थ्रॉन्स्टेसिस(Arthrocentesis): सुई और सिरिंज की सहायता से श्लेष द्रव का एक सैंपल लिया जाता है। अध्ययन से सूजन के सूचक दिख सकते हैं।
Lachman's टेस्ट: आर्थोपेडिक सर्जन यह शारीरिक परीक्षा (टिबिया द्वारा सहन हो जाने वाली कार्यवाही करवाकर) ACL को हुए नुकसान का आंकलन करने के लिए करता है।


एसीएल पुनर्निर्माण सर्जरी कैसे की जाती है? - ACL Surgery kaise hoti hai?
यह सर्जरी निम्न क्रम में की जाती है:

आर्थरोस्कोप (Arthroscope) नामक एक उपकरण को घुटने के क्षतिग्रस्त जोड़े में डाला जाता है। उसपर एक कैमरा लगाया हुआ होता है। 
जोड़ों पर फिर एक सेलाइन (Saline) इंजेक्ट किया जाता है जिससे आर्थरोस्कोप द्वारा और बेहतर तरीके से देखा जा सकता है।
फिर इस क्षत्र पर हुई क्षति का निरिक्षण किया जाता है। 
इसके बाद डोनर के शरीर से या आपके ही शरीर से लिए हुआ ग्राफ्ट लगाया जाता है। अगर डोनर से लिया गया है तो ग्राफ्ट को सही तरह से उस जगह का आकार दिया जाता है जहाँ उसे लगाना होता है। 
हड्डी में दो सुरंगों को खोला जाएगा: एक टिबियल सुरंग (शिन की हड्डी में) और एक फेमुरल सुरंग (जांघ की हड्डी में)। ये दो सुरंग पुनर्निर्मित ACL को पकड़ेंगी। 
इन सुरंगों के माध्यम से एक पिन पार करवाई जाएगी और नए ACL को इसके अंत में जोड़ा जाएगा। इसे अब फेमूर और टिबिया से स्क्रू की मदद से लगाया जायेगा। स्क्रू (Screw) धातु से बने हो सकते हैं। 
समय के साथ, ग्राफ्ट आसपास की हड्डी पर बढ़ने लगता है।
ग्राफ्ट (Graft)
ग्राफ्ट एक जीवित या सिंथेटिक ऊतक का एक टुकड़ा है जो सर्जरी में शरीर में डाला जाता है। ACL पुनर्निर्माण में विभिन्न प्रकार के ग्राफ्ट का उपयोग किया जाता है:

ऑटोग्राफ्ट (Autograft):

ग्राफ्ट का स्रोत रोगी का अपना शरीर ही होता है। ग्राफ्ट हैमस्ट्रिंग (घुटने के पीछे की पाँच नसों में एक नस) के कण्डरा या पेटेलेर लिगामेंट (Patellar Ligament) से लिया हो सकता है। पटेलर लिगामेंट के स्थान पर क्वाड्रिसिप कण्डरा (Quadriceps Tendon) का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। ऑटोग्राफ्ट का एक फायदा यह है कि अन्य ग्राफ्ट के मुकाबले इसमें अस्वीकृति की संभावना कम होती है। और नुकसान यह है कि, अब रिकवरी सिर्फ एक नहीं बल्कि शरीर में किये गए दो चीरों की होगी।

एलोग्राफ्ट (Allograft): 

स्रोत किसी अन्य शरीर (जीवित या मृत) से होता है। Achilles कण्डरा, पेटेलेर लिगमेंट या Tibialis Anterior कण्डरा का इस्तेमाल किया जाता है। इन ग्राफ्ट्स को ठीक से विकिरणित किया जाता है और अपनी नई जगह के अनुकूल होने से पहले उसे Sterelise (संक्रमण रहित) किया जाता है।

ब्रिज एनहांस्ड एसीएल रिपेयर (Bridge Enhanced ACL Repair):

एक स्पंज जैसी संरचना का प्रयोग पुल के रूप में किया जाता है ताकि एसीएल को सुधारा जा सके। यह प्रायोगिक चरण में है लेकिन एक आशाजनक प्रक्रिया की तरह लग रही है। यह कम छेदकर या चीरकर किया जाने वाला उपचार है और बेहतर सफलता दर देने की क्षमता रखता है।

ग्राफ्ट का विकल्प रोगी की उम्र और जीवन शैली के द्वारा पूर्व निर्धारित किया जाता है। इसके अलावा, आप्का सर्जन किस प्रकार उसको स्थानांतरित करता है और आसपास के भागों की स्थिरता भी महत्वपूर्ण निर्धारक हैं।

हाल ही में, स्टेम कोशिका के उपचार का पता लगाया जा रहा है ताकि उन्ही की क्षमता से नए लिगामेंट का निर्माण किया जा सके। स्टेम सेल बहुसंख्यक होते हैं और यदि सही तरीके से सुधारी जाए तो किसी भी नए प्रकार के सेल के रूप में पृथक किये जा सकते हैं। 

एसीएल पुनर्निर्माण सर्जरी के बाद देखभाल - ACL Surgery hone ke baad dekhbhal
चूंकि इस सर्जरी के बाद उस ही दिन घर जा सकते हैं, जैसा आपके डॉक्टर को ठीक लगे। हालांकि आपको एनेस्थीसिया दिए गया होगा इसलिए आपको सर्जरी के बाद थोड़ा समय (जब तक एनेस्थीसिया का असर रहता है) रिकवरी रूम में रहना होगा। 

आपको शिन और एड़ी पर सूजन या घाव महसूस हो सकता है या वे लाल हो सकते हैं। यह श्लेष द्रव, जोकि आपके पैरों से नीचे की ओर जा रहा है, की वजह से है। यह सामान्य है और सर्जरी के बाद कई दिन तक ऐसा हो सकता है।
इसके बाद आपको उनींदापन महसूस हो सकता है। यह एनेस्थीसिया की वजह से होता है।
सर्जरी के बाद दर्द से बचने के लिए दर्द निवारक और सूजन रोधी दवाइयां दी जाएँगी।
सूजन कम करने के लिए आपको एक Cryocuff, जिसमें बर्फ होगी, भी दिया जा सकता है।
सर्जरी के बाद नर्स आपकी ड्रेसिंग बदलेगी। ड्रेसिंग को आप सर्जरी के 4 दिन बाद निकाल सकते हैं। 
घाव की देखभाल:

आप 4 दिन के बाद ही नहा सकते हैं। ध्यान दें कि चीरे पर पानी न लगे। घाव को साफ और सूखा रखें। स्पंज बाथ भी एक अच्छा विकल्प है। अवशोषित टांके अपने आप खुल जाएंगे। अगर धागे नज़र आने लगे तो आप अस्पताल जाकर इन्हे कटवा सकते हैं। 

सर्जरी के बाद दर्द कम करने के लिए ध्यान देने वाली बातें:

इसके लिए आराम करें। घाव पर बर्फ लगाएं और इसे दबाकर रखें। अपने पैरों को ह्रदय के स्टार से ऊँचा उठायें। इससे रक्त शरीर के निचले हिस्सों में नहीं जमेगा। इसका पालन रात को भी करें। व्यायाम से आधे घंटे पहले दर्द निवारक गोलियां खा लें। 

गतिविधि:

बैसाखी का प्रयोग करें। चलते समय शरीर का वज़न बैसाखी पर रखें और पैर पर उतना ही वज़न रखें जितना डॉक्टर ने बताया हो। नी ब्रेसेस (Knee Braces) का प्रयोग करें और उनको पहनकर चलने का प्रयास करें। बैसाखी पर अत्यधिक निर्भर न हों। जब आप ठीक महसूस करने लगें तो धीरे धीरे नी कैप पहनकर पैर पर वज़न डालना शुरू करें। आपका डॉक्टर आपकी इसमें सहायता करेगा।

कुछ डॉक्टर आपको Continuous Passive Motion (CPM) नामक एक उपकरण भी प्रयोग करने के लिए कह सकते हैं। इसे सर्जरी के बाद शुरूआती हफ़्तों में इस्तेमाल किया जाता है। यह आपके पैरों की मूवमेंट (गतिविधि) बनाये रखता है, जब आप बिस्तर में होते हैं या आराम कर रहे होते हैं। इसको 5 से 7 दिनों तक रोज़ 10 घंटे के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इसके बाद आप फ़िज़ियोथेरेपिस्ट (Physiotherapist) के पास जा सकते हैं।

फिजियोथेरेपी (Physiotherapy):

सर्जरी के एक हफ्ते बाद से इसे शुरू किया जा सकता है। आपको डॉक्टर द्वारा कई प्रकार के व्यायाम सिखाये जाएंगे जिससे जोड़ों की ताकत वापस आने में मदद मिलेगी। यह 24 हफ़्तों तक चल सकती है। अगर आप किसी खेल से जुड़े हैं तो अपने डॉक्टर से पूछें कि आप कबसे फिर खेलना शुरू कर सकते हैं। अगर आप फिर से खेल शुरू करना चाहते हैं तो स्विमिंग या ऐसी चीज़ों से शुरू करें जिनमें ज़्यादा मुड़ने या उछलने की ज़रुरत न हो।

सर्जरी के बाद डॉक्टर के साथ फॉलो-अप (जांच):

आपको सर्जरी के बाद पहले तो हर 2-4 हफ़्तों में डॉक्टर से मिलना होगा, फिर हर 3 महीनों में उसके बाद 6 महीनों और फिर 1 या 2 साल में। घुटने की गतिविधि का आंकलन किया जाता है। फ़िज़ियोथेरेपिस्ट आपके व्यायाम को बदलते रहेंगे। सर्जरी के बाद कभी भी दर्द या कोई और परेशानी महसूस हो तो तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें। 

एसीएल पुनर्निर्माण सर्जरी के बाद सावधानियां - ACL Surgery hone ke baad savdhaniya
आप 2 से 6 हफ़्तों में गतिहीन कार्य करना शरू कर सकते हैं, हलके शारीरिक काम करना 3 से 4 महीनों में और थकाने वाली अतिउत्साही काम शुरू करने के लिए 9 महीने लग सकते हैं। ACL ग्राफ्ट के बाद पूर्ण रिकवरी में करीब एक साल लगेगा। 

एसीएल पुनर्निर्माण सर्जरी की जटिलताएं - Anterior Cruciate Ligament Reconstruction Surgery me jatiltaye
इस सर्जरी का सफलता दर लगभग है। हालांकि अन्य सर्जरी की तरह इस सर्जरी में भी कई जोखिम हो सकते हैं:

पहले 5-7 दिनों में संक्रमण होने का जोखिम रहता है। इससे बचने के लिए एंटीबायोटिक्स दी जा सकती हैं। कुछ गंभीर समस्यायों में फिर सर्जरी करने की आवश्यकता हो सकती है।
सर्जरी के बाद 2-3 हफ़्तों तक पैरों में रक्त के थक्कों (Deep Vein Thrombosis; गहरी नसों में भी थक्के बन सकते हैं) के बनने की सम्भावना हो सकती है। इन्हें Blood Thinner (खून पतला करने की दवा) से ठीक किया जा सकता है।
रक्त के थक्कों की या किसी अन्य वजह से फेफड़ों की धमनियों में रूकावट पैदा हो जाना जिससे फेफड़ों में रक्त की आपूर्ति पूरी नहीं हो पाती। इसे पल्मोनरी एम्बोलिस्म (Pulmonary Embolism) कहते हैं।
रक्त वाहिकाओं या नसों को भी क्षति हो सकती है जिससे उनको कार्यवाही में परेशानी या असमर्थता हो सकती है। 
ऊतकों में बने थक्कों में सूजन हो सकती है। जो अपने आप 3-4 हफ़्तों के बाद ठीक हो जाती है।
एनेस्थीसिया के साथ जुड़े जोखिम जैसे उनींदापन, चक्कर, उलटी, अवसाद, श्वास सम्बन्धी परेशानियां हो सकती हैं।
हो सकता है कि सूजन और दर्द जाने में 3-4 महीने लग जाएँ। 
सर्जरी के बाद शारीरिक कामों को जल्दी शुरू कर देने से ऐसा हो सकता है की ग्राफ्ट पूरी तरह से शरीर के अनुकूल न बैठ पाए।

4. आर्थोस्कोपी कंधे की सर्जरी - Shoulder Arthroscopy in Hindi

कंधे की आर्थोस्कोपी सर्जरी क्या होती है? - Shoulder Arthroscopy kya hai in hindi?
कंधे की अर्थरोस्कोपी (Shoulder Artroscopy) एक कम छेदकर या चीरकर की जाने वाली प्रक्रिया है जो कंधे के जोड़ों के क्षतिग्रस्त हिस्सों को ठीक करने के लिए की जाती है। सर्जरी को पूरा करने में दो घंटे से कम समय लगता है और यह कंधे की पारंपरिक ओपन सर्जरी से कम पीड़ायुक्त है। यह सर्जिकल प्रक्रिया कम छेदकर या चीरकर की जाती है इसलिए रिकवरी की अवधि भी कम होती है। यह एक जटिल प्रकार की सर्जरी नहीं है और कंधे के गंभीर दर्द का इलाज करने के लिए एक सामान्य उपचार है। 

कंधे की सर्जरी क्यों की जाती है? - Shoulder Arthroscopy kab kiya jata hai?
यदि आपके कंधे में अत्यधिक दर्द है जो इंजेक्शन या दवाइयों से ठीक नहीं हो पा रहा है तो आपके डॉक्टर आपको सर्जरी करवाने के लिए कह सकते हैं। आम तौर पर, उम्र और चोट के कारण, कंधे की मांसपेशियां क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और इससे गंभीर दर्द हो सकता है। कंधे के जोड़ों की सूजन की वजह से ऐंठन या अकड़न हो सकती है। निम्नलिखित कुछ ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से आपको यह सर्जरी करवानी हो सकती है:

क्षतिग्रस्त लिगामेंट या उपास्थि (लैब्रम; Labrum)
क्षतिग्रस्त बाइसेप (ऊपरी बांह की सामने वाली मांसपेशियां) कण्डरा। बाइसेप की मांसपेशिओं से दो कण्डरा जुड़ी होती हैं- एक बाइसेप की मांसपेशियों को कंधे की हड्डियों से जोड़ती है, जबकि अन्य मांसपेशियों को कोहनी की त्रिज्या हड्डी (Radius Bone) से जोड़ती है। यदि इनमें से कोई भी कण्डरा क्षतिग्रस्त है तो उन्हें ठीक करने के लिए सर्जरी की आवश्यकता होती है।
कंधे की अस्थिरता (कंधे के जोड़ों का अपनी जगह से खिसक जाना)
ऊतक का खिसकने लगना या ढीला हो जाना जिससे दर्द हो और इसे हटाया जाना चाहिए। 
क्षतिग्रस्त रोटेटर कफ (Rotator Cuff)
रोटेटर कफ के आसपास सूजन या अस्थि स्कंध (Bone Spur)
कंधे के जोड़ों की लाइनिंग में क्षति या सूजन, जिसका कारण रियुमेटोइड गठिया (Rheumatoid Artiritis) हो सकता है
हंसली (कॉलरबोन) का गठिया 
अगर आपको अपने कंधे को हिलाने में कठिनाई हो रही है तो इसका कारण कंधे में कम जगह भी हो सकता है। इसलिए ऐसी स्थिति में सर्जरी करवाई जा सकती है जिससे कंधे के जोड़ों को हिलाने में आसानी होगी।  
कंधे के ऑपरेशन से पहले की तैयारी - Shoulder Arthroscopy ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा: 

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग (खाली पेट रहना) (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)


कंधे की आर्थोस्कोपी कैसे की जाती है? - Shoulder Arthroscopy kaise hota hai?
कंधे की अर्थरोस्कोपी में अर्थरोस्कोप (Artroscope) का प्रयोग होता है, जो एक छोटा फाइबर ऑप्टिक उपकरण होता है जिसमें कैमरा लगाया हुआ होता है और जिसके माध्यम से जोड़ों के आंतरिक भाग को अच्छे से देखा जा सकता है और सर्जरी की जा सकती है। कैमरे की मदद से वीडियो मॉनीटर पर चित्र प्रदर्शित किए जाते हैं और इन छवियों को विशेष सर्जिकल लघु-उपकरणों के मार्गदर्शन के लिए प्रयोग किया जाता है।

कंधे की आर्थोस्कोपी की प्रक्रिया निम्नलिखित क्रम में की जाती है:

जैसे ही एनेस्थीसिया अपना काम करना शुरू करदे उसके बाद सर्जरी शुरू की जाती है। सर्जरी के दौरान या तो मरीज़ को एक तरफ करके लिटाया जायेगा जिससे क्षतिग्रस्त कन्धा, जिसपर प्रक्रिया की जानी है, ऊपर की तरफ हो और डॉक्टर द्वारा ढंग से देखी जा सके, या डेकचेयर पोजीशन (Deckchair Position) में बिठाया जाएगा।
कंधे के जोड़ों पर एक चीरा काटा जायेगा जिसके माध्यम से अर्थरोस्कोप अंदर डाला जाएगा।
क्षतिग्रस्त भागों की छवियों की सर्जन द्वारा जांच की जाती है। फिर, जोड़ों के क्षतिग्रस्त हिस्से को ठीक करने के लिए चीरे से विशेष उपकरणों को डाला जाता है। क्षतिग्रस्त ऊतकों, जिन
से कंधे को हिलाने में परेशानी हो या जिनमें दर्द हो, को हटा दिया जाता है।
चीरों को टाँके या चिपकने वाला स्ट्रिप्स के साथ बंद कर दिया जाएगा। डॉक्टर कंधे के चारों ओर ड्रेसिंग करेंगे और पट्टियों से उसे लपेट देंगे। 
अगर सर्जन को जोड़ों के क्षतिग्रस्त हिस्से पर हुई क्षति के आधार पर ओपन सर्जरी करनी है, तो वह आपकी सहमति पाने के लिए आपको पहले ही बताएगा और आपको कंधे की ओपन सर्जरी से जुड़े जोखिमों के बारे में बताएगा।

आर्थोस्कोपी कंधे की सर्जरी के बाद देखभाल - Shoulder Arthroscopy hone ke baad dekhbhal
सर्जरी के बाद जल्दी रिकवरी के लिए डॉक्टर द्वारा बताई बातों का ध्यान रखें:

स्लिंग पहनें: मरीज़ को कुछ दिन तक सर्जरी किये हुए हाथ पर स्लिंग पहनने के लिए कहा जा सकता है। लेकिन अगर सर्जरी में ज़्यादा मरम्मत की गयी है तो हो सकता है कि आपको इसे ज़्यादा दिनों तक पहनना पड़े।

दर्द निवारक: सर्जरी के बाद कुछ दिनों तक कंधे में दर्द हो सकता है। अगर दर्द गंभीर है तो अपने डॉक्टर को बताएं। डॉक्टर आपको दर्द निवारक गोलियां निर्धारित कर सकते हैं।

फिजियोथेरेपी (Physiotherapy): रोगी कंधे की मांसपेशियों और जोड़ों की ताकत को पुनः प्राप्त करने के लिए फ़िज़ियोथेरेपिस्ट की सहायता ले सकते हैं। इससे कंधे की मूवमेंट में आसानी होगी। फिजियोथेरेपिस्ट आपकी आवश्यकताओं के अनुसार प्लान किया गया व्यायाम करवाएंगे जिससे रिकवरी में आसानी होगी और दर्द से निजात पाया जा सकता है। अगर आप किसी खेल से जुड़े हैं तो अपने डॉक्टर से पूछें कि आप फिर से खेलना शुरू कर सकते हैं या नहीं। रिकवरी की शुरुआत में ऐसे व्यायाम न करें जिनसे आपके कंधे के जोड़ों पर ज़्यादा बल पड़े। धीरे धीरे आप अपने कंधे की गतिविधि बढ़ा सकते हैं।

सर्जरी के बाद रूटीन जांच (फॉलो-अप): जब आपको कहा जाये तब अपने डॉक्टर से मिलें और अपने कंधे की जांच कराएं क्योंकि डॉक्टर आपकी रिकवरी की जांच करेंगे और सर्जरी के परिणाम को आंकेंगे। सर्जरी के बाद होने वाले जोखिमों से बचने के लिए भी ज़रूरी है कि आप अपने डॉक्टर से संपर्क में रहें। 

आर्थोस्कोपी कंधे की सर्जरी के बाद सावधानियां - Shoulder Arthroscopy hone ke baad savdhaniya
पूरी तरह रिकवरी में 1 से 6 महीने लग सकते हैं। रिकवरी का समय मरीज़ के शरीर, वह किस प्रकार अपना ध्यान रखते हैं और डॉक्टर द्वारा बताये गयी सारे नियमों का पालन करते हैं पर निर्भर करता है।

कंधे की आर्थोस्कोपी सर्जरी की जटिलताएं - Shoulder Arthroscopy me complications aur risks in hindi
हर सर्जरी के कुछ जोखिम हो सकते हैं। इस सर्जरी से जुड़े जोखिम निम्नलिखित हैं:

सर्जरी के और एनेस्थीसिया के जोखिमों में श्वास सम्बन्धी परेशानियां, रक्त के थक्के बनना, संक्रमण, एलर्जी (निर्धारित दवाओं से), रक्तस्त्राव आदि शामिल हैं। सर्जरी के बाद आप चक्कर आना या नींद महसूस कर सकते हैं, एनेस्थीसिया के बाद ऐसा होना सामान्य है।
इस सर्जरी से जुड़े अन्य जोखिम हैं: अकड़न, कंधे की या उसके आसपास की किसी रक्त वाहिका या तंत्रिका में क्षति, जोड़ों में कमज़ोरी, या कंधे को हिलाने में परेशानी, या जिन लक्षणों की वजह से आपने सर्जरी करवाई थी वे अभी भी मौजूद हैं। 


5. लैमिनेक्टॉमी - Laminectomy

लैमिनेक्टॉमी क्या होता है? - Laminectomy kya hai in hindi?
लैमिनेक्टॉमी एक प्रकार की सर्जरी है जिसका उपयोग रीढ़ की हड्डी में हुए संपीड़न (compression) से राहत देने के लिए किया जाता है। नसों और रीढ़ की हड्डी की जड़ों पर दबाव पड़ने से गंभीर पीठ दर्द, सुन्न होना, चलने की समस्याएं, पैरों में कमजोरी हो सकती हैं। लैमिना रीढ़ की हड्डी का एक हिस्सा है जो कशेरुका ढांचा (vertebral arch) बनाता है। लैमिनेक्टॉमी को निम्नलिखित नामों से भी जाना जाता है:

लम्बर लैमिनेक्टॉमी (Lumbar laminectomy)
सरवाइकल लैमिनेक्टॉमी (Cervical laminectomy)
डीकम्प्रेस्सिव लैमिनेक्टॉमी (Decompressive laminectomy)
ज्यादातर समय, स्पाइनल स्टेनोसिस (spinal stenosis) के लक्षणों में, लैमिनेक्टॉमी की मदद से राहत मिलती है। हालांकि रीढ़ की हड्डी से जुडी भविष्य की समस्याओं को पूरी तरह से रोका जाना संभव नहीं है। यह प्रत्येक मामले में दर्द कम करने में मदद नहीं कर सकता है। सामान्य तौर पर, रीढ़ की हड्डी के विलयन वाले मरीजों को रीढ़ की हड्डी से जुडी समस्यायें हो जाती हैं।

लैमिनेक्टॉमी क्यों की जाती है? - Laminectomy kab kiya jata hai?
सामान्यतया, लैमिनेक्टॉमी का इस्तेमाल तब किया जाता है जब मरीज़ की रीढ़ की हड्डी से सम्बंधित समस्या उसकी रोज़ाना की ज़िन्दगी में हस्तक्षप करती है। जब कम चीरकर या काटकर की जाने वाली तकनीक उचित परिणाम प्रदान नहीं कर पाती हैं, तो लैमिनेक्टॉमी का उपयोग किया जाता है।

स्पाइनल स्टेनोसिस से निजात पाने के लिए, लैमिनेक्टॉमी का उपयोग किया जाता है। स्पाइनल स्टेनोसिस के मामले में, मेरूदंड (spinal column) संकरी हो जाता है, जिससे रीढ़ की हड्डी और साथ ही नसों की जड़ों पर दबाव पड़ता है। स्पाइनल स्टेनोसिस रीढ़ की हड्डी के सिकुड़ने, रीढ़ गठिया (spine arthritis), जन्मजात दोष, हड्डियों और स्नायुओं (Ligaments) की सूजन, एकोंड्रॉप्लासिया (achondroplasia; बौनापन), रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर, डिस्क खिसकना (slipped disc) और किसी गहरी चोट के परिणामस्वरूप विकसित होता है।

लैमिनेक्टॉमी होने से पहले की तैयारी - Laminectomy ki taiyari
सर्जरी से पहले आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और आपके डॉक्टर द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करना होगा: 

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ और जो दवाइयां आप ले रहे हैं उनकी सूचना अपने चिकित्सक को दें (Medication Before Surgery And Inform Your Doctor About Medicines You are Taking)
सर्जरी से पहले फास्टिंग/ खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)


लैमिनेक्टॉमी कैसे किया जाता है? - Laminectomy kaise hota hai?
एनेस्थेसिया देकर, रोगी के बेहोश हो जाने के बाद लैमिनेक्टॉमी की जाती है। कुछ मामलों में स्पाइनल एनेस्थेसिया दिया जाता है, जिनमे रोगी सर्जरी के दौरान होश में रहता है। दोनों ही मामलों में, प्रक्रिया के दौरान रोगी को किसी भी प्रकार का दर्द महसूस नहीं होता है। सर्जरी के दौरान, एक एनेस्थेटिस्ट (anesthetist) रोगी की निगरानी करता है।

यह प्रक्रिया निम्नलिखित क्रम में की जाती है। सामान्य तौर पर लैमिनेक्टॉमी की पूरी प्रक्रिया एक से तीन घंटे के भीतर हो जाती है।

सबसे पहले, बैक्टीरिया संक्रमण की रोकथाम के लिए एंटीसेप्टिक लोशन से सर्जिकल साइट की त्वचा को साफ़ किया जाता है।
रोगी की पीठ के बीच के हिस्से या गर्दन पर छोटे चीरे लगाए जाते हैं। सर्जरी के दौरान रोगी की त्वचा को हटाया जाता है ताकि सर्जरी करने में आसानी रहे।
रोगी की रीढ़ की हड्डी से लैमिना निकालने की प्रतिक्रिया की जाती है।
बॉन स्पर्स (Bone spurs) या छोटी डिस्क के टुकड़े निकाल दिए जाते हैं।
चीरों को टाँके की सहायता से बंद कर दिया जाता है
चीरों को कवर करने के लिए विसंक्रमित पट्टियों का उपयोग किया जाता है।
स्पाइनल फ्यूजन (प्रमुख सर्जरी) की प्रक्रिया की जा सकती है, इसमें रोगी की पीठ में दो या अधिक हड्डियों को जोड़ा जाता है। इससे बेहतर रीढ़ की स्थिरता प्राप्त करने में मदद मिलती है  जिस क्षेत्र से तंत्रिका जड़ें रीढ़ की हड्डी के माध्यम से प्रवेश करती हैं उस क्षेत्र को चौड़ा करने के लिए फोरमीनोटॉमी (Foraminotomy) नामक प्रक्रिया की जा सकती है ।
लैमिनेक्टॉमी के बाद देखभाल - Laminectomy hone ke baad dekhbhal
सर्जरी के बाद रोगी को रिकवरी रूम में स्थानांतरित किया जाता है। एनेस्थेसिया का असर ख़तम होने के कुछ देर बाद रोगी को होश आ जाता है। होश आने के कुछ देर बाद रोगी का शारीरिक परिक्षण किया जाता है। सर्जन मरीज़ को ऐसी स्थिति में आराम करने की सलाह देता है जिसमे उसकी, पीठ की मांसपेशियों को ज़्यादा तनाव न हो।

सर्जन की सलाह के आधार पर रोगी को घूमने फिरने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। रोगी को सर्जरी के बाद चलना फिरना चाहिए, लेकिन पीठ की मांसपेशियों को अत्यधिक झुकाने या मोड़ने से बचना चाहिए। ज्यादातर मामलों में, रोगी को सर्जरी के बाद 2-3 दिनों के लिए अस्पताल में भर्ती होने  की सलाह दी जाती है ताकि उचित स्वास्थ सुधार सुनिश्चित हो सके।
सर्जरी और सुधार के बाद मरीजों को निम्नलिखित गतिविधियों से बचने की जरूरत है:

सीढ़ियों को जल्दबाज़ी में चढ़ना
भारी वजन उठाने और श्रमसाध्य गतिविधियों
धीरे-धीरे, मरीजों को चलने जैसे कार्यों में वृद्धि करनी चाहिए और जटिलताओं से बचने के लिए सभी फॉलो-अप अपॉइंटमेंट्स का पालन करना चाहिए।
सर्जरी के बाद स्नान या शॉवर लेते समय मरीजों को बहुत सावधान रहने की आवश्यकता होती है। चीरे वाली जगह को रगड़ना नहीं चाहिए क्योंकि इससे टांकों को नुकसान पहुंच सकता है और संक्रमण हो सकता है। सर्जन के परामर्श के बिना चीरे पर कोई लोशन या क्रीम नहीं लगाना चाहिए  बाथटब, हॉट टब के इस्तेमाल से और तैराकी जैसी गतिविधियों से बचना चाहिए।

सर्जन द्वारा दिए गए विशेष निर्देशों का पालन किया जाना चाहिए। अगर रोगियों को निम्नलिखित लक्षणों का अनुभव होता है तो सर्जन से समय पर परामर्श करने की जरूरत है:

छाती में दर्द
चीरा साइट पर लाली
चीरा साइट से स्त्राव होता महसूस होना
गर्माहट महसूस होना
सांस लेने में कठिनाई
चीरा साइट पर या आसपास सूजन
पेशाब करने में कठिनाइयां
आंत्र या मूत्र नियंत्रण न कर पाना
तेज़ बुखार
पैरों में सूजन
लैमिनेक्टॉमी की जटिलताएं - Laminectomy me jatiltaye
चूंकि लैमिनेक्टॉमी रीढ़ की हड्डी की सर्जरी है, सर्जरी करते समय काफी सावधानी बरती जानी चाहिए। लैमिनेक्टॉमी के सामान्य जोखिम यहां सूचीबद्ध है:

दिल का दौरा 
स्ट्रोक 
औषधि प्रतिक्रियाएं
साँस सम्बन्धी परेशानी
संक्रमण
रक्त की हानि
पैरों में खून के थक्कों का गठन जिसके परिणामस्वरूप पल्मोनरी एम्बोलिस्म (pulmonary embolism) हो सकता है।

6. डिस्केक्टॉमी - Discectomy in Hindi

डिसेक्टॉमी क्या होता है? - Discectomy kya hai in hindi?
यह सर्जरी रीढ़ की हड्डी (Spine) के क्षतिग्रस्त डिस्क के एक छोटे हिस्से या पूरी क्षतिग्रस्त डिस्क को हटाने के लिए की जाती है जिससे स्पाइनल कनाल (Spinal Canal) की प्रभावित नस की रुट (Root, जड़) को दबाव रहित किया जा सके। इस प्रक्रिया का प्रयोग अक्सर उन मरीज़ों के लिए किया जाता है जिन्हे अपकर्षक कुंडल रोग (Degenerative Disc Disease, डीजेनेरेटिव डिस्क डिज़ीज़), उभरी हुई डिस्क (Bulging Disc, बल्जिंग डिस्क) या हर्नियाग्रस्त डिस्क (Herniated Disc) की परेशानी हो।

डिसेक्टॉमी क्यों की जाती है? - Discectomy kab kiya jata hai?
यह सर्जरी दर्द कम करने एवं गतिशीलता और कार्य-पद्धति पुनः प्राप्त करने के लिए की जाती है। निम्न स्थितियों में सर्जिकल हस्तक्षेप की आवश्यकता हो सकती है। 

गतिशीलता में कमी (Reduced Mobility): एक पैर या दोनों पैरों में गंभीर दर्द, कमज़ोरी या सुन्न होना महसूस हो जिससे गतिशीलता प्रभावित हो रही हो और दैनिक गतिविधियां करने में परेशानी हो। 
मेडिकल उपचार की विफलता (Failure of Medical Treatment): गैर-सर्जिकल उपचार यानि दवाओं का चार हफ़्तों से अधिक समय तक प्रयोग करने पर भी लक्षणों में कोई सुधार न होना। 
सर्जरी के सहायक होने का प्रमाण (Evidence that Surgery may be Helpful): अगर शारीरिक जांच से ये पता चला हो कि लक्षणों से निजात पाने में सर्जरी सहायक सिद्ध होगी। 
कौडा इक्विना सिंड्रोम (​Cauda Equina Syndrome): यह एक गंभीर स्थिति है जो नसों की जड़ों के बंडलों के स्पाइनल कॉर्ड (Cauda Equina; कौडा इक्विना) के अंत में भींच जाने से होती है। इससे पैरों में कमज़ोरी या जननांग, कूल्हे और पैरों का सुन्न होना जैसे लक्षण हो सकते हैं। इस स्थिति में आपातकालीन सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है। 
डिसेक्टॉमी होने से पहले की तैयारी - Discectomy ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा: 

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ परीक्षण (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग/ खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)

डिसेक्टॉमी कैसे किया जाता है? - Discectomy kaise hota hai?
यह प्रक्रिया पारंपरिक ओपन डिस्केक्टॉमी द्वारा भी की जा सकती हालांकि अब इस प्रक्रिया को करने के लिए कई कम चीरकर की जाने वाली प्रक्रियाओं का विकास किया जा चुका है। डिस्केक्टॉमी किये जाने की प्रक्रियाएं निम्न हैं:

ओपन स्पाइन डिस्केक्टॉमी (Open Spine Discectomy)
कई दशक पहले, हर्नियाग्रस्त या उभरी हुई डिस्क को ठीक करने के लिए इस ही प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता था। हालांकि अब डिस्केक्टॉमी करने के कई ओपन प्रक्रिया से कम चीरकर की जाने वाली तकनीकें आ चुकी हैं। यह प्रक्रिया निम्न प्रकार से की जाती है:

हर्नियाग्रस्त या क्षतिग्रस्त डिस्क के स्थान पर चीरा काटा जाता है। फिर डाइलेटर (Dilator) और रिट्रेक्टर (Retractor) की मदद से मांसपेशियों को रीढ़ की हड्डी से अलग करके प्रभावित हिस्से को बाहर की तरफ किया जाता है ताकि उसे देखा जा सके। 
अगले स्टेप में, कशेरुका (Vertebrae) का एक छोटा हिस्सा, जिसे लैमिना (Lamina) कहा जाता है, को निकाला जाता है (Laminectomy; लैमिनेक्टॉमी) जिससे स्पाइनल नसों को देखने के लिए एक छोटी सी खिड़की सी बन जाती है। 
एक बार क्षतिग्रस्त डिस्क का पता लग जाए, उस डिस्क को उसके अन्य टुकड़ों के साथ जो उखड़ चुके हैं या उनके उखड़ने की सम्भावना है। 
उसके बाद ऊतकों की परतों को सिला जाता है और त्वचा पर टाँके लगा दिए जाते हैं। 
सर्जरी के अंत में चीरे के ऊपर पट्टियां लगायी जाती हैं।
माइक्रोडिस्केक्टॉमी (Microdiscectomy)
यह डिस्केक्टॉमी किये जाने की कम चीरकर की जाने वाली प्रक्रिया है और यह ओपन प्रक्रिया के स्थान पर प्रयोग किये जाने वाला स्वर्णमान (Gold Standard) उपचार है। प्रकिया इस प्रकार की जाती है:

प्रभावित डिस्क के ऊपर एक से डेढ़ इंच का चीरा काटा जाता है। 
एक लाइटेड माइक्रोस्कोप (Lighted Microscope) से सर्जन प्रभावित क्षेत्र को देखते हैं। 
एक कैंची जैसे उपकरण की मदद से सर्जन क्षतिग्रस्त ऊतकों को निकाल देते हैं और नसों को दबाव रहित कर देते हैं। 
चीरे को टांकों से सिल दिया जाता है। 
आमतौर पर मरीज़ को उस ही दिन या अगले दिन अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है।

डिसेक्टॉमी के बाद देखभाल - Discectomy hone ke baad dekhbhal
सर्जरी के बाद, रोगी को रिकवरी रूम में शिफ्ट किया जाता है और उसकी शारीरिक स्थिति की जाँच की जाती है। स्थिति के स्थिर होते हुए मरीज़ को अस्पताल के कमरे में शिफ्ट कर दिया जाता है। 
एनेस्थीसिया का प्रभाव हटते ही मरीज़ को द्रव दिए जाते हैं। 
आँतों की कार्यवाही सामान्य होते ही ठोस आहार दिया जायेगा जिसमें करीब दो दिन लगते हैं। 
अगले दिन, मरीज़ को लगभग 20 मिनट तक कुर्सी पर बैठने के लिए कहा जाता है। पीठ पर तनाव न हो इसके लिए सिर्फ बीस मिनट तक ही खड़े हों या बैठें। शुरू में, बैठना थोड़ा मुश्किल हो सकता है इसलिए शुरूआती अवधि में सिर्फ बीस मिनट ही बैठें। यह समय धीरे धीरे बढ़ाएं। 
निर्धारित दर्द निवारक दवाओं का सेवन करें ताकि दर्द से बचा जा सके। सर्जरी के एक या दो दिन बाद से शारीरिक चिकित्सा शुरू कर दी जाएगी। 
फिज़िकल थेरेपिस्ट आपको सही तरीके से शारीरिक गतिविधियां करना और पीठ की मांसपेशियों को मज़बूत करने के लिए आपको व्यायाम बताएँगे। 
पर्याप्त गतिशीलता प्राप्त होते ही, आम तौर पर, मरीज़ को छुट्टी दे दी जाती है। घर जाने के बाद भी नियमित रूप से डॉक्टर से जांच करवाना और फॉलो-अप (Follow-Up) करना बहुत ज़रूरी है।
पीठ को अतिरिक्त समर्थन देने हेतु ब्रेसिज़ (Braces) या कॉर्सेट (Corset) का प्रयोग किया जा सकता है।
रिकवरी की अवधि के दौरान, मरीज़ को ब्रेसिज़ पहने रखने चाहिए।
कम से कम छह हफ़्तों तक ड्राइविंग न करें।
मरीज़ कमर के बल न झुकें। घुटनों के बल झुकने से कोई परेशानी नहीं होती। भारी सामान न उठायें।
चीरे को संक्रमण रहित रखने के लिए उसे सूखा रखें। जब तक डॉक्टर नियमित रूप से नहाने को न बोले तब तक स्पंज बाथ ले सकते हैं।
रिकवरी की अवधि के दौरान, चलना मरीज़ के लिए अच्छा है लेकिन ध्यान दें कि आप ज़्यादा न थकें। सीढ़ियां उतरना-चढ़ना जितना हो सके न करें। चलने से गतिशीलता पुनः प्राप्त करने में आसानी होगी।
सर्जरी के बाद सामान्य संतुलित आहार का सेवन करें जो प्रोटीन (Protein) समृद्ध हो। हाई-प्रोटीन आहार जैसे लीन मीट, मछली और अंडे खाएं। प्रोटीन युक्त आहार में ज़िंक (Zinc) होता है जिससे संक्रमण से लड़ने में मदद मिलती है।
कम वसा (Fat) वाले डेयरी उत्पाद का सेवन करें क्योंकि उनमें कैल्शियम (Calcium) और विटामिन-डी (Vitamin-D) होता है जो हड्डियों के लिए अच्छे होते हैं।
अधिक से अधिक मात्रा में तरल पदार्थों का सेवन करें जिससे आप हाइड्रेटेड रहें।
विटामिन-सी (Vitamin-C) युक्त फल खाने से घाव भरने में और रिकवरी में मदद मिलेगी।
दिन में तीन बार खाने के बजाय पांच से छह बार थोड़ा-थोड़ा खाएं। इससे आपके पाचन तंत्र पर भार नहीं पड़ेगा।
आपको डॉक्टर द्वारा मल्टीविटामिन टैबलेट्स भी खाने के लिए कहा जा सकता है। 
डिसेक्टॉमी के बाद सावधानियां - Discectomy hone ke baad savdhaniya
अगर आपकी ऑफिस-जॉब (Office-Job) है तो सर्जरी के 2-4 हफ़्तों के बाद काम पर जा सकते हैं हालांकि अगर आपके काम में शारीरिक श्रम या इधर उधर घूमना शामिल है तो काम शुरू करने से पहले कम से कम 6-8 हफ्ते रुकें। रिकवरी इस पर भी निर्भर करती है कि आप सर्जरी के बाद किस प्रकार अपनी देखभाल करते हैं। डॉक्टर से बिना पूछे काम पर न जाएँ।

डिसेक्टॉमी की जटिलताएं - Discectomy me jatiltaye
सर्जिकल प्रक्रिया की तरह डिस्केक्टॉमी के साथ भी कुछ जोखिम जुड़े हैं:

सर्जरी के दौरान नसों की क्षति हो सकती है। 
संक्रमण
एनेस्थीसिया के दुष्प्रभाव
रक्तस्त्राव
फिर से डिस्क की क्षति हो जाना या डिस्क का हर्नियाग्रस्त हो जाना

7. फेफड़ों के कैंसर का ऑपरेशन - Lung Cancer Surgery in Hindi

फेफड़ों के कैंसर का ऑपरेशन क्या होता है? - Lung Cancer Surgery kya hai in hindi?
लंग कैंसर (फेफड़े का कैंसर) एक गंभीर विकार है जिसे देखभाल और उपचार की जरूरत है। फेफड़े के कैंसर की सर्जरी में मरीज के शरीर से इस कैंसर संबंधी विकार को समाप्त करने के लिए सभी सर्जिकल तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है। 

कैंसर की उत्पत्ति या तो फेफड़ों में होती है या यह शरीर के किसी अन्य अंग में उत्पन्न होकर फेफड़ों तक फ़ैल जाता है। फेफड़ों के कैंसर को शरीर से हटाने के लिए और ताकि यह दूसरे अंगों तक न पहुंचे इसके लिए यह सर्जरी एक महत्वपूर्ण उपचार है। 

फेफड़ों के कैंसर का ऑपरेशन क्यों किया जाता है? - Lung Cancer Surgery kab kiya jata hai?
जब एक रोगी के शरीर में फेफड़ों के कैंसर का निदान हो जाता है फिर ऑन्कोलॉजिस्ट (Oncologist; ट्यूमर का निदान और उपचार करने वाले विशेषज्ञ) मरीज़ के लिए उपचार के विकल्पों का चयन करते हैं। फेफड़ों के कैंसर को खत्म करने के लिए विभिन्न प्रकार के उपचार के तरीके हैं- कीमोथेरेपी (Chemotherapy), औषधीय चिकित्सा (Medical Therapy), विकिरण चिकित्सा (Radiation Therapy) और सर्जरी। अधिकतर, इनके मेल से फेफड़ों के कैंसर का उपचार किया जाता है। हालांकि, निम्न लिखित स्थितियों में कैंसर के उपचार के लिए सर्जरी ही एक मात्र उपचार होता है:

शुरुआती स्टेज पर ही निदान हो जाना: यदि कैंसर का निदान बहुत प्रारंभिक अवस्था में होता है, तो कैंसर का ट्यूमर अपेक्षाकृत छोटा होता है और फेफड़ों के केवल एक छोटे से क्षेत्र को नुक्सान पहुँचा होता है। फेफड़ों के स्वस्थ भाग को बचाने के लिए रोगग्रस्त भाग को सर्जरी द्वारा हटा दिया जाता है। 

उपचार के अन्य तरीकों द्वारा उपचार में विफलता: यदि फेफड़ों के कैंसर का रोगी औषधीय चिकित्सा, कीमोथेरेपी या विकिरण चिकित्सा पर उचित प्रतिक्रिया नहीं दिखा रहा तो ऐसे में सर्जरी करवाई जा सकती है। 

अन्य उपचार विधियों के साथ संयोजन में: जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, फेफड़ों के कैंसर को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए किसी अन्य उपचार विधि का इस्तेमाल दूसरी विधियों के साथ किया जा सकता है। सर्जरी का प्रयोग विकिरण चिकित्सा या कीमोथेरेपी के साथ संयोजन में किया जा सकता है। 

फेफड़ों के कैंसर का ऑपरेशन होने से पहले की तैयारी - Lung Cancer Surgery ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा: 

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)
ध्यान देने योग्य अन्य बातें (Other Things To Be Kept In Mind Before Surgery)
एक बार यह तय हो जाए कि इस रोगी की सर्जरी की जानी है तो उसके बाद से उस मरीज़ का उपचार ओंकोसर्जन (Oncosurgeon; ट्यूमर की सर्जरी के विशेषज्ञ) के द्वारा किया जाता है। सर्जरी से पहले रोगी की छाती पर से बाल हटाए (शेव किये) जाते हैं और फिर उस त्वचा को एंटी सेप्टिक सोल्युशन से साफ किया जाता है। मूत्राशय में एक कथेतर (Cathetar) लगाया जाता है जिससे मरीज़ को मूत्र त्याग करने में परेशानी न हो।  

फेफड़ों के कैंसर का ऑपरेशन कैसे किया जाता है? - Lung Cancer Surgery kaise hota hai?
फेफड़ों के कैंसर की सर्जरी करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि रोगी की उम्र, रोगी का सामान्य स्वास्थ्य और कैंसर कितना फैला है। इस सर्जरी के सामान्यतः कार्यरत तकनीकें निम्नलिखित हैं:

लोबेक्टॉमी (Lobectomy; जरायु) 
- ओपन लोबैक्टोमी (Open Lobectomy)
- कम छेदकर या चीरकर की जाने वाली सर्जरी (Minimal Access Surgery)
वैज रिसेक्शन (Wedge Resection)
सेग्मेंटेक्टॉमी (Segmentectomy)
न्यूमोनेक्टॉमी (Pneumonectomy)
सर्जिकल लिम्फ नोड रिमूवल (Surgical Lymph Node Removal)

लोबेक्टॉमी(Lobectomy; जरायु)
मानव शरीर में प्रत्येक फेफड़े में लोब (Lobe) होते हैं। दाएं फेफड़ों में 3 लोब होते हैं, और बाएं फेफड़ों में 2 लोब होते हैं। जब कैंसर फेफड़ों के किसी विशेष क्षेत्र में स्थानांतरित होता है ऐसे में लॉबैक्टोमी एक अधिमानित प्रक्रिया है। फेफड़ों के कैंसर के उपचार के लिए ओंकोसर्जन (Oncosurgeon) केवल कैंसरयुक्त हिस्से के हटाने के बजाय कैंसरग्रस्त क्षेत्र के पूरे लोब को हटाने का निर्णय भी ले सकता है। लॉबैक्टोमी के लिए, सर्जन ओपन या थोरैकोस्कोपिक (Thoracoscopic) विधि का उपयोग कर सकता है:

जब दाएं फेफड़े में कैंसर होता है और केवल एक की बजाय दो लोबों पर उपचार किया जाना है, तो इसी प्रकार की प्रक्रिया की जाती है। इसे बाइलोबेक्टॉमी (Bilobactomy) के रूप में जाना जाता है।

ओपन लोबैक्टोमी (Open Lobectomy)

रोगी को एक तरफ लिटाया जाता है जिससे कि जिस तरफ सर्जरी की जानी है, वो हिस्सा सर्जन की ओर हो। निप्पल से कंधे की हड्डी तक छाती की त्वचा पर एक अपेक्षाकृत बड़ी चीरा बनाई जाती है। इससे ऑपरेशन के दौरान सर्जन को प्रभावित क्षेत्र को देखने में आसानी रहेगी। उसके बाद प्रभावित क्षत्रे को ढकने वाली पसलियां को उचित उपकरणों से हटाया जाता है।

रोगग्रस्त लोब से जुड़ी रक्त वाहिकाओं और श्वसनी (ब्रोन्कस; Bronchus) को अलग करके सुरक्षित रखा जाता है। लोब को अन्य स्वस्थ लोब से अलग किया जाता है और हटाया जाता है। पसलियों को उनकी पूर्व स्थिति में वापस रख दिया जाता है और त्वचा की चीरा को मेडिकल थ्रेड से सिल दिया जाता है।

कम छेदकर या चीरकर की जाने वाली सर्जरी (Minimal Access Surgery)

इसमें ओपन लॉबैक्टोमी की ही प्रक्रिया को एक थोरैकोस्कोप (Thoracoscope) का उपयोग करके किया जाता है। फेफड़े के रोगग्रस्त लोब के ऊपर छाती की त्वचा पर कई छोटे चीरे किये जाते हैं। थोरैकोस्कोप (एक उपकरण जिससे एक कैमरा जुड़ा होता है) को छाती की गुहा में डाला जाता है। इससे सर्जन को एक स्क्रीन (जहां कैमरे के सभी रिकॉर्डिंग प्रदर्शित होती हैं) पर सभी आंतरिक अंगों को स्पष्ट रूप से देखने की सुविधा मिलती है। सर्जिकल उपकरणों को अन्य छोटे चीरों के माध्यम से अंदर डाला जाता है। बाकी प्रक्रिया ओपन सर्जरी के समान ही है। यह प्रक्रिया स्वचालित मैकेनाइज्ड रोबोट बाहों (Automated Mechanized Robotic Arms) का उपयोग करके भी की जा सकती है, जो कि कम्पूटराइज़्ड पैनल के माध्यम से ओंकोसर्जन द्वारा नियंत्रित की जाती है। इस प्रक्रिया को रोबोट लॉबैक्टोमी (Robot Lobactomy) के रूप में जाना जाता है।

वैज रिसेक्शन (Wedge Resection)
लॉबैक्टोमी की तरह, इस प्रक्रिया को केवल ऐसे मामलों में ही नियोजित किया जा सकता है जहां फेफड़ों का कैंसर एक विशेष क्षेत्र में होता है। प्रक्रिया को ओपन या थोरैकोस्कोपिक (Thoracoscopic) विधि द्वारा किया जा सकता है। फेफड़े के रोगग्रस्त भाग के अनुरूप फेफड़े के एक छोटे से वैज (Wedge) हटाया जाता है न कि पूरे लोब को जैसा लोबेक्टॉमी में किया जाता है।

सेग्मेंटेक्टॉमी (Segmentectomy)
सेग्मेंटेक्टॉमी में फेफड़े के उस लोब का एक विशिष्ट भाग निकाला जाता है, जो कैंसर ग्रस्त है। एक सेगमेंट फेफड़े का एक हिस्सा है जिसमें ब्रोन्काए, श्वसन वायुमार्ग और रक्त वाहिकाएं शामिल हैं। फेफड़ों के ऊतकों को हटाए जाने की मात्रा को छोड़कर, यह प्रक्रिया लोबैक्टोमी के ही समान होती है। इस प्रक्रिया को उन रोगियों के लिए चुना जाता है जिनके स्वस्थ फेफड़े के ऊतक की मात्रा बहुत सीमित होती है। केवल एक सेगमेंट को हटाने से यह सुनिश्चित होता है कि रोगी की श्वसन क्षमता को प्रशस्त स्तर को बनाए रखने के लिए फेफड़े के पर्याप्त स्वस्थ ऊतकों को छोड़ दिया गया है।

न्यूमोनेक्टॉमी (Pneumonectomy)
इस प्रक्रिया में पूरे फेफड़े (जो आधा या पूरा कैंसर से प्रभावित है) को हटाया जाता है। यह ज्यादातर एक ओपन प्रक्रिया ही होती है क्योंकि ऊतक की एक बड़ी मात्रा को हटाया जाता है। कैंसर ग्रस्त फेफड़े के किनारे से एक लंबी चीरा बनाई जाती है। फेफड़ों तक पहुँचने के लिए सर्जन उसके ऊपर की पसलियों को हटा भी सकते हैं। वायुमार्ग ट्यूब से सारी हवा को निकाला जाता है और फेफड़ों से जुड़ी रक्त वाहिकाओं को अलग करके सुरक्षित कर दिया जाता है। ध्वस्त फेफड़े को पसलियों के बीच से बनाई हुई जगह से निकाला जाता है। चीरे को फिर सर्जिकल थ्रेड (धागे) से सिल दिया जाता है।

सर्जिकल लिम्फ नोड रिमूवल (Surgical Lymph Node Removal)
किसी भी अंग या शरीर का कैंसर प्रभावित अंग के आस-पास के लिम्फ नोड्स में फैल जाता है। इसलिए, लिम्फ नोड्स पर प्रभाव पड़ने से रोकने के लिए और कैंसर को और फैलने से रोकने के लिए, कभी-कभी कैंसर फेफड़ों के आसपास के लिम्फ नोड्स को निकालने के लिए कहा जा सकता है। यह सर्जरी ओपन विधि या कम छेदकर या चीरकर की जाने वाली विधि द्वारा की जा सकती है। यह आम तौर पर लोबैक्टोमी, वैज रिसेक्शन, न्यूमोनेक्टॉमी या सेग्मेंटेक्टॉमी के साथ जाता है। 

उपर्युक्त सभी सर्जरी के दौरान, श्वसन को बनाए रखने के लिए एक अंतःश्वासनलीय (Endotracheal) ट्यूब को व्यक्ति की वायु-नली में रखा जाता है।



फेफड़ों में कैंसर के ऑपरेशन के बाद देखभाल - Lung Cancer Surgery hone ke baad dekhbhal
सर्जरी के बाद होश आने पर मरीज़ को उनींदापन महसूस हो सकता है। द्रव के लिए मरीज़ के शरीर से IV Infusion जैसी कुछ ट्यूब लगायी जा सकती हैं। सर्जरी के बाद कुछ समय के लिए मरीज़ को ICU (Intensive Care Unit) में रखा जायेगा।

अस्पताल में रिकवरी
सर्जरी के बाद 2-4 दिनों के लिए मरीज़ को अस्पताल में ही रखा जाएगा। होश में आने के बाद मरीज़ की जाँच की जाएगी। सर्जरी के दौरान काटे गए चीरे को रूई और पट्टियों से कवर (ढक) करके रखा जायेगा। मरीज़ को इधर उधर चलने के लिए और मूवमेंट करते रहने के लिए कहा जायेगा लेकिन परिश्रम वाले कार्य करने की मनाही होगी। चलते फिरते रहने से रक्‍तसंचार बना रहेगा जिससे रिकवरी में मदद होगी। दर्द और संक्रमण से बचने के लिए दर्द निवारक और एंटीबायोटिक दवाएं दी जा सकती हैं।

घर में रिकवरी 
अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद, मरीज़ को कई बातों का ध्यान रखने की हिदायत दी जाती है जिससे सर्जरी के बाद होने वाले जोखिमों से बचा जा सके। सर्जिकल घाव का ध्यान रखना अनिवार्य है। घाव को साफ़ और सूखा रखा जाना चाहिए। सर्जन द्वारा निर्धारित दवाओं का निर्धारित खुराक में सेवन करें। मरीज़ घर में चलते फिरते रहें और न कि सिर्फ आराम करें। लेकिन घर के बाहर घूमना मना है। इससे श्वास संक्रमण का खतरा बन जाता है जिससे जटिलताएं हो सकती हैं। 

सर्जरी के बाद जांच (फॉलो-अप)
सर्जन मरीज़ को एक फॉलो-अप स्केड्यूल देंगे। डॉक्टर से नियमित चेक-अप करवाने से रिकवरी दर का आंकलन करने में मदद मिलेगी और मरीज़ के स्वास्थ्य की भी जांच की जा सकेगी। अगर मरीज़ को कोई भी परेशानी महसूस हो तो अपने डॉक्टर को बताएं। हर चेक-अप में घाव की भी जांच की जाएगी। एक बार घाव पूरी तरह भर जाए फिर उसके बाद टाँके काट दिए जाएंगे। 

फिजियोथेरेपी (Physiotherapy)
श्वास सम्बन्धी विकारों में फिजियोथेरेपी उतनी ही मददगार होती है जितनी कि जोड़ों के विकारों में। अगर मरीज़ को सर्जरी के बाद सांस लेने में कोई दिक्कत हो रहे हो तो फ़िज़ियोथेरेपिस्ट को दिखाएँ। अगर कैंसर रोगग्रस्त पूरे फेफड़े को हटाया जाता है तो ये समस्या हो सकती है। श्वास प्रणाली की मांसपेशियों को बेहतर करने वाले व्यायामों से मरीज़ों को मदद होगी। 

जांच/ टेस्ट्स 
स्वास्थ्य की जांच करने के लिए नियमित रक्त जांच, सीटी स्कैन या एमआरआई स्कैन या एक्स-रे करवाते रहने के लिए कहा जाता है। इनसे सर्जन को यह जांच करने में मदद मिलेगी की कैंसर का उपचार पूरी तरह से हुआ है या नहीं और कहीं वो किसी अन्य अंग में फिर तो नहीं उत्पन्न हो रहा।  

फेफड़ों के कैंसर का ऑपरेशन के बाद सावधानियां - Lung Cancer Surgery hone ke baad savdhaniya
इस सर्जरी के बाद रिकवरी कितनी जल्दी होती है ये पूरी तरह सर्जरी के बाद की गयी देखभाल और आपकी शारीरिक स्थिति पर निर्भर करता है। डॉक्टर के निर्देशों का सही से पालन करें। 

फेफड़ों में कैंसर के ऑपरेशन की जटिलताएं - Lung Cancer Surgery me complications in Hindi
दर्द: सर्जरी के बाद लंबे समय तक फेफड़ों के कैंसर के कुछ रोगियों में गंभीर दर्द का अनुभव किया जा सकता है। सर्जरी के दौरान क्षतिग्रस्त नसों के कारण यह दर्द हो सकता है। कुछ रोगियों में, यह दर्द धीरे-धीरे कम हो जाता है, जबकि कुछ में यह बना रहता है। अगर दवा से दर्द कम न हो तो ऐसे में दर्द निवारक दवाओं के विशेषज्ञ को दिखाएँ। 

अंग का नुकसान: फेफड़ों की कैंसर की सर्जरी करते समय, यह संभावना है कि फेफड़े का ही अन्य स्वस्थ हिस्सा या कोई रक्त तंत्रिका और रक्त वाहिका या कोई अन्य स्वस्थ अंग आकस्मिक चोट से क्षतिग्रस्त हो जाए। चोट के आधार पर क्षतिग्रस्त अंगों के सामान्य कार्यों को पुनर्स्थापित करने के लिए सुधारात्मक उपचार शुरू किया जा सकता है।

श्वसन संबंधी कठिनाइयों: संपूर्ण फेफड़ों या फेफड़ों के किसी भाग को हटाने के बाद श्वसन समस्याओं का अनुभव करना स्वाभाविक है। रोगियों को नियमित श्वसन फिजियोथेरेपी (Physiotherapy) और योग के साथ बहुत फायदा हो सकता है। व्यायाम जो श्वसन मांसपेशियों की क्षमता बढ़ाते हों रोगियों को काफी मदद कर सकते हैं। 

8. बच्चेदानी के कैंसर का ऑपरेशन - Ovarian Cancer Surgery in Hindi

अंडाशय कैंसर की सर्जरी क्या है? - Ovarian Cancer Surgery kya hai in hindi?
अंडाशय महिला प्रजनन प्रणाली का अभिन्न हिस्सा हैं और ये एस्ट्रोजेन (Estrogen) और प्रोजेस्टेरोन (Progesterone) का उत्पादन करते हैं। ये हार्मोन यौवनारम्भ (प्यूबर्टी; Puberty) में महिला के विकास को नियंत्रित करते हैं। वे गर्भाशय के दोनों तरफ स्थित अंडाकार अंग हैं। विभिन्न रोग अंडाशय को प्रभावित कर सकते हैं और अंडाशय का कैंसर उनमें से एक है।

ये कैंसर एक प्राथमिक विकार हो सकता है या किसी कैंसरग्रस्त अंग से कैंसर फैलने के कारण हो सकता है। अंडाशय कैंसर सर्जरी इस कैंसर में अपनाई जाने वाली मुख्य उपचार विधि है। कैंसर कितना फैला है इसके अनुसार सर्जरी का चुनाव किया जाता है। गाइनोकोलोजिक (Gynecologic; स्त्री रोग विशेषज्ञ) ऑन्कोलॉजिस्ट (Oncologist; ट्यूमर का निदान और उपचार करने वाले विशेषज्ञ) के द्वारा ही यह सर्जरी की जानी चाहिए।

बच्चेदानी के कैंसर की सर्जरी क्यों की जाती है? - Ovarian Cancer Surgery kab kiya jata hai?
इस कैंसर के उपचार में कीमोथेरेपी, सर्जरी और कभी कभी विकिरण तकनीक शामिल हैं। ज़्यादातर महिलाओं में कीमोथेरेपी के साथ सर्जरी की आवश्यकता होती ही है। निम्नलिखित कुछ मुख्य कारण हैं जिनकी वजह से यह सर्जरी की जाती है:
शुरूआती स्टेज पर ही निदान हो जाना
इमेजिंग टेस्ट्स हमेशा इस कैंसर के निदान के लिए और यह कितना फैला है यह जांच करने के लिए काफी नहीं होते। ऐसे समय में सर्जरी कैंसर के ठीक स्टेज का पता लगाने और कैंसर किसी और अंग तक तो नहीं फैला यह जानने में उपयोगी होती है।
कैंसर के ट्यूमर को हटाने के लिए
सर्जरी के द्वारा सर्जन अंडाशय से कैंसर के हर चिह्न को हटा सकते हैं। अधिकतर समय ट्यूमर के आकर को कम करने के लिए ही यह सर्जरी की जाती है। 

अंडाशय कैंसर की सर्जरी होने से पहले की तैयारी - Ovarian Cancer Surgery ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा: 

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग (खाली पेट रहना) (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)

अंडाशय में कैंसर का ऑपरेशन कैसे किया जाता हैं? - Ovarian Cancer Surgery kaise hota hai?
अंडाशय के कैंसर के उपचार के लिए उपरोक्त सर्जिकल समाधानों के अलावा साइटोरेडक्शन (Cytoreduction), कीमोथेरेपी और विकिरण चिकित्सा जैसे चिकित्सीय विधियों का उपयोग भी किया जाता है।

द्विपक्षीय सैल्पिंगो डिम्बाशय-उच्छेदन (Bilateral Salpingo-Oopherectomy, BSO)

यह अंडाशय के कैंसर के इलाज का एक उपचार है। यह दोनों अंडाशयों और फैलोपियन ट्यूबों को सर्जरी से हटाता है। यह प्रक्रिया पेट की लैप्रोस्कोपी (Laparoscopy) का उपयोग कर की जाती है। इसमें लैप्रोस्कोप (Laparoscope) का प्रयोग किया जाता है जो एक पतला, रोशनी वाला कैमरा और सर्जिकल उपकरण है जो पेट में चीरा करके उस चीरे के माध्यम से शरीर में डाला जाता है।

सफलतापूर्वक ढंग से किए जाने की इस प्रक्रिया के लिए पेट के निचले हिस्से में कुछ छोटे चीरों की भी आवश्यकता हो सकती है। इससे ऐसे मरीज़ों में जल्दी मेनोपॉज़ (Menopause; मासिक धर्म का बन्द होना) होने की सम्भावना होती है जिनकी उम्र अभी तक मेनोपॉज़ की नहीं हुई है।

ओमेन्टेक्टॉमी (Omentectomy)

डिम्बग्रंथि के कैंसर से पीड़ित रोगियों में ओमेन्टेक्टॉमी को हिस्टेरेक्टॉमी (Hysterectomy), उफेरेक्टॉमी (Oopherectomy) और साल्पिंगक्टॉमी (Salpingectomy) के साथ संयोजन में किया जाता है। इस प्रक्रिया के दो प्रकार हैं - टोटल ओमेन्टेक्टॉमी (पूरा) और आंशिक ओमेन्टेक्टॉमी (पार्शियल)। यह एक सर्जिकल उपचार पद्धति है जिसमें ओमेंटम (Omentum) को हटाया जाता है जो कि पेट का एक ऊतक है। यह इस क्षेत्र में कैंसर के प्रसार से बचने के लिए किया जाता है। ओमेन्टेक्टॉमी लैप्रोस्कोपिक तरीके या पारंपरिक तरीके से कई छोटे चीरों का उपयोग करके की जाती है। आमतौर पर, कीमोथेरेपी दवाओं को ओमेन्टेक्टॉमी के बाद कैथेटर (Cathetar) या इंजेक्शन द्वारा दिया जाता है।

 डेबल्किंग सर्जरी (Debulking Surgery)

इस तरह के सर्जिकल उपचार का उपयोग तब किया जाता है जब अंडाशय का कैंसर पेट या श्रोणिक (Pelvic; पैल्विक) क्षेत्र में फैल गया हो। इस सर्जरी का लक्ष्य है जितने संभव हो उतने कैंसरयुक्त ऊतकों को निकालना और अप्रत्‍यक्ष रूप से अन्य उपचारों की प्रभावशीलता में वृद्धि करना।

हिस्टेरेक्टॉमी (Hysterectomy)

मरीज को धड़ और चेहरे को ऊपर की तरफ करके लिटाया जाता है। एनेस्थीसिया अपना काम शुरू करदे उसके बाद गर्भाशय (Uterus) और सर्विक्स (Cervix) को हटाया जाता है। यह दो प्रकार की होती है - टोटल हिस्टेरेक्टॉमी और सब-टोटल हिस्टेरेक्टॉमी। 

कई मामलों में अंडाशय के कैंसर की सर्जरी के बाद कीमोथेरेपी का सुझाव दिया जाता है। हिस्टेरेक्टॉमी न केवल निदान की पुष्टि करता है बल्कि ट्यूमर को भी हटाता है जो गर्भाशय में और अंडाशय के अन्य स्वस्थ भाग में फैल सकता है।

बच्चेदानी के कैंसर का ऑपरेशन होने के बाद देखभाल - Ovarian Cancer Surgery hone ke baad dekhbhal
सर्जरी के बाद एक इन्ट्रावेनस (Intravenous; नसों के अंदर) ट्यूब को आपकी नस से जोड़ा जाता है जिससे की जब तक आप कुछ खा नहीं पाते तब तक आपको भोजन और दवाएं दी जा सकती हैं। सामन्य तौर पर सर्जरी के कुछ दिनों के बाद खाना-पीना संभव हो जाता है। 
मूत्र त्याग के लिए मूत्राशय से एक कैथेटर को जोड़ा जाता है। 
सर्जरी के बाद किसी भी तरह का दर्द होने पर अपने डॉक्टर को ज़रूर बताएं। डॉक्टर आपको दर्द निवारक दवाएं दे देंगे।
सर्जरी के बाद क्या करें और क्या न करें
जल्दी रिकवरी पाने के लिए ज़रूरी है कि आप अपना ध्यान रखें और डॉक्टर द्वारा दी गयी हर सलाह का पालन करें:

अपने डॉक्टर से पूछें कि आप कब ड्राइविंग शुरू कर सकते हैं।
सर्जरी के 3-4 हफ़्तों के बाद यौन-संबंध बना सकते हैं।
इस सर्जरी में गर्भ को हटा दिया जाता है जो एक महिला के लिए भावनात्मक अशांति का कारण बन सकता है। अगर आपको रिकवरी की अवधि के दौरान तनाव महसूस हो तो आप कॉउंसलर की सहायता भी ले सकते हैं। 
अगर सर्जरी के दौरान दोनों अंडाशय को हटा दिया गया है तो यह मेनोपॉज़ का कारण बन सकता है। ऐसे में कैल्शियम स्तर को बढ़ाने के लिए आपको विटामिन के पूरक और टेबलेट्स दी जा सकती हैं। इस स्थिति में आप थकान, Hot Flashes (चेहरे, गर्दन, कान और धड़ में गर्मी का महसूस होना), रूखी त्वचा या घबराहट महसूस कर सकते हैं। 
जल्दी रिकवरी के लिए ज़रूरी है की आप कम थकाने वाले व्यायाम और योग आदि करें जिससे हड्डियां, मांसपेशियां मज़बूत होंगी। सर्जरी के बाद शारीरिक गतिविधि बनाये रखना आवश्यक है।
सर्जरी के बाद डाइट (आहार)
सर्जरी के बाद जल्दी रिकवरी के लिए ज़रूरी है कि आप सही और स्वस्थ भोजन करें। अपने डॉक्टर और डायटीशियन से इस बारे में बात करें कि आप क्या खा सकते हैं और क्या नहीं। सर्जरी के बाद शरीर का वज़न एक स्वस्थ स्तर पर रहे यह बहुत ज़रूरी है।

फलों और सब्जिओं का सेवन करना बहुत आवश्यक है क्योंकि फाइबर से आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली और बेहतर होगी जिससे रिकवरी में मदद होगी। 
मीट, अंडे और चिकन जैसे प्रोटीन युक्त आहार खाएं। 
सैल्मन (एक प्रकार की मछली), टूना मछली और अन्य ओमेगा 3 (Omega 3) युक्त भोजन आपके लिए बहुत अच्छा है। 
प्रोबायोटिक पूरक और दही, ऑलिव आदि जैसे पाचन शक्ति को बढ़ाने वाले भोजन का सेवन करें। 
दूध और अन्य डेरी उत्पाद, कैफीन और कार्बोनेटेड सोडा जैसी चीज़ें जिनसे पाचन में समस्या हो, का सेवन न करें।
ये डाइट ताउम्र पालन करने की कोशिश करें जिससे आप आगे आने वाले समय में रोगमुक्त रह सकें। 

अंडाशय कैंसर की सर्जरी के बाद सावधानियां - Ovarian Cancer Surgery hone ke baad savdhaniya
सर्जरी के बाद करीब 6 हफ़्तों में आप सामान्य गतिविधियां शुरू कर सकते हैं। रिकवर होने में कितना समय लगेगा यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप किस तरह सर्जरी के बाद अपनी देखभाल करते हैं। इसलिए डॉक्टर  निर्देशों का सही से पालन करें। 

ओवेरियन कैंसर के ऑपरेशन की जटिलताएं - Ovarian Cancer Surgery me jatiltaye
हिस्टेरेक्टॉमी (Hysterectomy) के बाद आमतौर पर कोई जटिलताएं नहीं होती हैं। इससे जुड़े कुछ जोखिम और जटिलताएं निम्न हैं:

मरीज़ को बुखार हो सकता है।
इस प्रक्रिया के बाद मरीज़ों को मूत्र त्याग करने में कठिनाई हो सकती है।
अगर प्रक्रिया के बाद 4 से 6 हफ़्तों से ज़्यादा समय तक योनिक क्षेत्र से रक्तस्त्राव हो तो ये सामन्य नहीं हैl अगर रक्तस्त्राव ज़्यादा है तो अपने डॉक्टर को ज़रूर दिखाएँ।
ऑपरेशन के बाद दर्द और संक्रमण का खतरा रहता है।
पैरों या फेफड़ों में रक्त के थक्कों का गठन हो सकता है।
रक्तगुल्म (सर्जरी की जगह पर रक्त संचय या रक्त के थक्कों की सूजन; Hematoma) होना इस सर्जरी के बाद एक आम दुष्प्रभाव है।
इसके बाद मेनोपॉज़ होने की सम्भावना रहती है।
इस सर्जरी के बाद अन्य शारीरिक परेशानियां जैसे श्रोणिक मांसपेशियों में कमज़ोरी जिससे आंत के विकार हो सकते हैं, हो सकती हैं। इसके बाद अन्य सर्जरी की भी आवश्यकता हो सकती है।
द्विपक्षीय सैल्पिंगो डिम्बाशय-उच्छेदन (Bilateral Salpingo-Oopherectomy, BSO) से जुड़े कुछ जोखिम और जटिलताएं निम्न हैं:

इसके बाद आँतों में ब्लॉकेज हो सकती है जिससे मल त्याग में कठिनाई महसूस हो सकती है।
इसके बाद हृदय तथा रक्तवाहिकाओं संबंधी परेशानियां होने का जोखिम रहता है।
सर्जरी की जगह पर ऊतक थिक हो सकते हैं।
इस सर्जरी के बाद हर्निया (Hernia), संक्रमण, बुखार जैसे दुष्प्रभाव होने का खतरा रहता है। 
ओमेन्टेक्टॉमी (Omentectomy) से जुड़े कुछ जोखिम और जटिलताएं निम्न हैं:

सर्जरी के दौरान आसपास के अंग, जैसे पेट, अग्नाशय का अंतिम हिस्सा, क्षतिग्रस्त हो सकते हैं।

9. ब्रेस्ट कैंसर का ऑपरेशन - Breast Cancer Surgery in

ब्रेस्ट कैंसर का ऑपरेशन क्या होता है? - Breast Cancer Surgery kya hai in hindi?
स्तन कैंसर मुख्य रूप से एक महिला विशिष्ट रोग माना जाता है। हालांकि सेल की अनियंत्रित वृद्धि जो ट्यूमर में परिवर्तित हो जाती है पुरुषों को भी पीड़ित कर सकती है। अग्रिम चरण में ट्यूमर को हटाने के लिए या अगर कैंसर के उपचार के लिए दवाएं अप्रभावी हों तो स्तन कैंसर की सर्जरी की जाती है। स्तन कैंसर के उपचार के लिए विभिन्न प्रकार के शल्य चिकित्सा पद्धतियां उपयोग की जाती हैं। किस पद्धति का प्रयोग किया जाना है यह इस पर निर्भर करता है कि कैंसर किस चरण पर है। 

स्तन कैंसर 30 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं में पाया गया है। यह महिलाओं में सबसे आम कैंसर है। 

ब्रेस्ट कैंसर की सर्जरी क्यों की जाती है? - Breast Cancer Surgery kab kiya jata hai?
सर्जरी करने के लिए तब ही कहा जाता है जब कैंसर अग्रिम चरण में हो और सर्जरी के अलावा अन्य कोई विकल्प न बचे। सर्जरी एक विकल्प तब भी है जब स्तन कैंसर को नष्ट करने के लिए न तो दवाएं और न ही चिकित्सा काम कर पा रही हो। निम्न स्थितियों में आपको डॉक्टर द्वारा स्तन कैंसर की सर्जरी करने का निर्णय लिया जा सकता है। अगर पूरे स्तन ऊतक को हटा दिया जाए तो ही कैंसर की पुनरावृत्ति से बचा जा सकता है। 
अग्रिम चरण के कैंसर के लक्षण - कैंसर के अग्रिम चरण पर होने के थोड़े से भी लक्षण दिखने पर ये सर्जरी मददगार है।

कैंसर का अन्य अंगों तक फैलना - इस सर्जरी से ये भी पता चल सकता है कि कहीं कैंसर आसपास के किसी अन्य अंग तक तो नहीं पहुँच गया।
कैंसर को हटाने हेतु - सर्जरी का एक और लक्ष्य शरीर से पूरी तरह से कैंसर के ट्यूमर के सभी लक्षणों को नष्ट करना है।
स्तन कैंसर का ऑपरेशन होने से पहले की तैयारी - Breast Cancer Surgery ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा: 

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग (खाली पेट रहना) (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)
सर्जरी से पहले किये जाने वाले विशिष्ट परीक्षण (Specific Tests Before Surgery)
बायोप्सी (Biopsy; जीवित ऊतकों की जांच) और मैमोग्राम (Mammogram) की मदद से डॉक्टर सर्जरी का प्रकार चुनता है। इन परीक्षणों की सहायता से डॉक्टर स्तन कैंसर द्वारा शरीर को पहुंचाई हई क्षति और बचे हुए स्वस्थ ऊतकों का आंकलन करता है। 

स्तन कैंसर का ऑपरेशन कैसे किया जाता है? - Breast Cancer Surgery kaise hota hai?
ट्यूमर के आकार और स्थान के अनुसार स्तन कैंसर के लिए उपचार का फैसला किया जाता है। यह उस पर भी निर्भर करता है कि शरीर के जिस अंग में कैंसर की उत्पत्ति हई थी वहां से दुसरे अंगों तक कैंसर का ट्यूमर कितना और किस मात्रा में फैला है। स्तन कैंसर की सर्जरी की कुछ उपचार तकनीकें निम्नानुसार हैं:

1. मास्टेक्टॉमी (स्तन-उच्छेदन; Mastectomy)
इस प्रक्रिया में स्तन कैंसरग्रस्त स्तन को हटा दिया जाता है। मास्टेक्टॉमी प्रक्रिया शुरू करने से पहले, एक इंट्रावेनस (नसों में) ड्रिप को रोगी के शरीर से जोड़ा जाता है जिससे आसानी से उसके शरीर में दवा डाली जा सके। पूरी सर्जरी के दौरान महत्वपूर्ण संकेतों की लगातार निगरानी करने के लिए एक इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम मशीन रोगी के शरीर से जुड़ी हुई होती है। इसके बाद रोगी को एनेस्थीसिया दिया जाता है।

सर्जरी की अवधि कैंसर के विस्तार-क्षेत्र और मास्टेक्टॉमी के प्रकार पर निर्भर करती है। मास्टेक्टॉमी का प्रकार कई कारकों जैसे ट्यूमर के चरण, ग्रेड, आकार पर निर्भर करता है। 

इस प्रक्रिया के उप-प्रकार निम्नलिखित हैं:

कुल मास्टेक्टॉमी (टोटल मास्टेक्टॉमी; Total Mastectomy)
कुल मास्टेक्टॉमी को साधारण मास्टेक्टॉमी भी कहा जाता है। इसमें लिम्फ नोड्स का काटना/ हटाना शामिल नहीं है। इस प्रक्रिया में एक लंबे चीरे (जो लंबाई में 6 से 8 इंच का होता है) के माध्यम से पूरे स्तन का हटाया जाता है। चीरे को स्तन के अंदर से शुरु करके ऊपर की ओर बगल की तरफ काटा जाता है। इस प्रकार से कैंसर की पुनरावृत्ति, निपल्स का पैगट रोग (एक प्रकार का कैंसर; Paget's Disease Of Nipples) और सीटू में नली का कार्सिनोमा (एक प्रकार का स्तन कैंसर; Ductal Carcinoma In Situ) रोकने के लिए किया जाता है।  इस प्रक्रिया में पूरे स्तन को हटाया जाता है और इसमें निप्पल और एरोला भी हटाए जाते हैं। जब दोनों स्तनों पर की जाए तो इसे डबल मास्टेक्टॉमी (Double Mastectomy) कहा जाता है।
अवत्वचीय मास्टेक्टॉमी (सबक्यूटेनियस मास्टेक्टॉमी; Subcutaneous Mastectomy)
इसे निप्पल-स्पेयरिंग मास्टेक्टॉमी (Nipple-Sparing Mastectomy) भी कहा जाता है। इसमें सिर्फ स्तन के कैंसरग्रस्त ऊतकों को ही हटाया जाता है। सर्जन और ऑन्कोलॉजिस्ट (ट्यूमर के निदान और उपचार के विशेषज्ञ; Oncologist) इसे ऐसी स्थितियों में उपयुक्त नहीं मानते जिनमें ट्यूमर का आकर बहुत बड़ा होता है या वह निप्पल या एरोला के नीचे होता है। इसके अलावा, इस पद्धति का उपयोग साइड स्तन पुनर्निर्माण सर्जरी  (Side Breast Reconstruction Surgery) के साथ हमेशा किया जाता है, जिससे यह स्तन मूल स्तन से बेहतर लगता है।
संशोधित कणिक मास्टेक्टॉमी (मॉडिफाइड रेडिकल मास्टेक्टॉमी; Modified Radical Mastectomy)
जब कैंसर लिम्फ नोड्स से आगे बढ़ जाता है तो ऐसे में यह प्रक्रिया निर्धारित की जाती है। इसमें निप्पल, एरोला और स्तन के आसपास के ऊतकों को हटाया जाता है। स्तन कैंसर के इस प्रारंभिक चरण की सर्जरी 2-4 घंटों में की जाती है। इस सर्जरी के बाद स्तन पुनर्निर्माण भी संभव है। इस सर्जरी में सामान्य एनेस्थीसिया दिया जाता है। इसके बाद सर्जन छाती पर एक चीरा बनाता है और स्तन ऊतकों को हटा देता है।
आंशिक मास्टेक्टॉमी (पार्शियल मास्टेक्टॉमी; Partial Mastectomy)
इस पद्धति में, ट्यूमर के आस-पास के ऊतकों और ट्यूमर दोनों को ही हटा दिया जाता है। आम तौर पर ये तब किया जाता है जब कैंसर प्रारंभिक चरण में होता है। इसे क्वाड्रांटेक्टॉमी के रूप में भी जाना जाता है। आंशिक मास्टेक्टोमी निपल्स के चारों ओर स्तनों में एक चीरे के माध्यम से की जाती है। सर्जरी के बाद निप्पल्स की पोजीशन बदल जाती है। ऑपरेटेड और स्वस्थ स्तन के आकर को बराबर करने के लिए ब्रेस्ट रिडक्शन सर्जरी की जाती है।
कणिक मास्टेक्टॉमी (रैडिकल मास्टेक्टॉमी; Radical Mastectomy)
इस पद्धति में भी स्तन के ऊतकों, बगल और छाती में लिम्फ नोड्स और निपल्स हटाना शामिल है। एक संशोधित कणिक मास्टेक्टॉमी अधिक प्रभावी है और इसलिए, इन दिनों रेडिकल पद्धति का उपयोग नहीं किया जाता। यह एक बहुत ही कम इस्तेमाल किया उपचार प्रकार है। यह केवल तभी किया जाता है जब व्यक्ति का स्तन कैंसर खतरनाक चरण तक बढ़ गया हो।
2. लम्पेक्टॉमी (Lumpectomy)
लम्पेक्टॉमी को स्तन-संरक्षण पद्धति भी कहा जाता है क्योंकि इसमें पूरे अंग के बजाय स्तन के एक छोटे हिस्से को हटाया जाता है। जब कैंसर की पुष्टि हो जाती है, तब कैंसर की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए लम्पेक्टॉमी को विकिरण चिकत्सा के साथ संयोजन में किया जाता है। रोगी को होने वाली तकलीफ चीरे की जगह और किस मात्रा में ऊतक निकाले गए हैं इसपर निर्भर करती है।  

जब स्तन में असामान्यताओं का पता लगाया जाता है, तो एक रेडियोएक्टिव मार्कर (Radioactive Marker) सर्जरी से पहले ट्यूमर की जगह पर डाला जाता है। यह मार्कर उस जगह की तरफ पॉइंट आउट करता है जिसे ऑपरेशन की ज़रुरत है। तब निकाले हुए ट्यूमर को विश्लेषण के लिए एक प्रयोगशाला में भेजा जाता है। उसके बाद टांके की सहायता से चीरों को बंद कर दिया गया है। अगर सेंटिनल लिम्फ नोड्स (Sentinel Lymph Nodes) या एक्सीलरी लिम्फ नोड्स (Axillary Lymph Nodes) पर ऑपरेशन की आवश्यकता है, तो भी प्रक्रिया यही रहती है ।

स्तन कैंसर की सर्जरी के बाद देखभाल - Breast Cancer Surgery hone ke baad dekhbhal
हॉस्पिटल से छुट्टी मिलने के बाद रिकवरी के लिए डॉक्टर द्वारा दी गयी हर सलाह का पालकन करें।

पूरा दिन आराम करते या सोते न रहें। शरीर की सक्रियता बनाये रखने के लिए व्यायाम करें। रिकवरी की अवधि में व्यायाम करने से गहरी नसों में थक्कों का गठन होने से बचा जा सकता है।
आपको दर्द निवारक गोलियों की ज़रुरत हो सकती है। रिकवरी के समय अगर कभी दर्द असहनीय हो जाये तो दर्द निवारक दवाओं से मदद मिल सकती है। 
भारी सामान और बिजली के उपकरणों को न उठायें। 
छाती की अकड़न, झुनझुनाहट या पीड़ा से बचने के लिए व्यायाम करना ज़रूरी है। इसके लिए फ़िज़ियोथेरेपिस्ट द्वारा बनाये गए व्यायाम रूटीन का पालन करें और नियमित रूप से व्यायाम करें।
सर्जरी के बाद रिकवरी का आंकलन करने के लिए डॉक्टर से नियमित चेक-अप करवाते रहना बहुत आवश्यक है।
कुछ रोगियों में, सर्जरी के दौरान बांह के निचले हिस्से (बगल) में एक ड्रेनेज ट्यूब (Drainage Tube) लगायी जाती है जिससे रिकवरी के प्रारंभिक दिनों के दौरान रक्त और अन्य द्रव को जमा किया जा सके। इस ट्यूब को लगाने के शुरूआती 2 सप्ताह तक ट्रैक करने की आवश्यकता होती है, जब तक ये चिकित्सक द्वारा बाहर न निकाल दिया जाए।
अगर रिकवरी की अवधि के दौरान आपको ड्रेसिंग में से रक्तस्त्राव, चिंता या अवसाद (डिप्रेशन), आँतों को खाली करने में कठिनाई, दर्द निवारक लेने के बावजूद दर्द कम न होना जैसी परेशानियां महसूस हों तो अपने डॉक्टर
को तुरंत दिखाएँ। 
रिकवरी के दौरान मरीज़ सरल और स्वस्थ आहार का सेवन करें। किसी भी तरह के भोजन के सेवन पर रोक नहीं है हालांकि आपको वसा-युक्त भोजन, मदिरा आदि का सेवन न करें। धूम्रपान न करें। 
स्तन कैंसर की सर्जरी के बाद सावधानियां - Breast Cancer Surgery hone ke baad savdhaniya
इस सर्जरी की रिकवरी में शारीरिक और भावनात्मक दोनों प्रकार की रिकवरी ज़रूरी है। मरीज़ की रिकवरी पूरी तरह से सर्जरी के बाद की गयी देखभाल पर निर्भर करती है। 

स्तन कैंसर के ऑपरेशन में जटिलताएं - Breast Cancer Surgery me jatiltaye
मास्टेक्टॉमी (स्तन-उच्छेदन; Mastectomy) से जुड़े जोखिम:

इस सर्जरी के बाद सूजन होना आम है जो कुछ हफ़्तों बाद अपने आप खत्म हो जाएगी। 
रक्तगुल्म (Haematona; ऊतकों से रक्तस्त्राव होना जिससे सूजन और दर्द होता है) की भी सम्भावना रहती है। ऐसा होने पर अपने डॉक्टर से बात करें। 
घाव पर संक्रमण होने का जोखिम है जिससे घाव में सूजन हो सकती है, घाव लाल हो सकता है या घाव से स्त्राव हो सकता है। 
स्तन कैंसर का निदान होने के बाद इसका आपके दिनचर्या, व्यवसाय और रिश्तों पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। सर्जरी करवाने का फैसला और सर्जरी करवाना अपनेआप में एक दर्दनाक अनुभव हो सकता है। 
इस प्रक्रिया के बाद कई लोगों को बुखार महसूस हो सकता है। इसके उपचार के लिए एंटीबायोटिक्स दी जाती हैं। 
सर्जरी के दौरान जहाँ चीरा काटा गया होता है वहां पर द्रव का निर्माण हो सकता है। यह द्रव आम तौर पर 3-4 हफ़्तों में हट जाता है। 
स्तन के आसपास की त्वचा में संवेदना कम हो जाती है।
सर्जरी के बाद स्तन में भारीपन या तकलीफ महसूस की जा सकती है। हालांकि यह एक आरामदायक ब्रा पहनने से कम किया जा सकता है। 
इस सर्जरी के बाद कुछ महिलायें शरीर के पोस्चर में बदलाव महसूस कर सकती हैं। स्तन प्रोस्थेसिस (कृत्रिम अंग; Prosthesis) से सहायता हो सकती है।
लम्पेक्टॉमी (Lumpectomy) से जुड़े जोखिम:

एनेस्थीसिया से होने वाले दुष्प्रभाव
स्तन में रक्तस्त्राव 
घाव पर निशान पड़ जाना 
स्तन के आकर में विषमता
नींद में परेशानी होना, मतली, शरीर के बालों का झड़ जाना, रक्तस्त्राव आदि कीमोथेरेपी से जुड़े कुछ जोखिम हैं। विकिरण चिकित्सा से जुड़े कुछ जोखिमों में ह्रदय के विकार भी शामिल हैं। 

10. प्रोस्टेट कैंसर सर्जरी - Prostate Cancer Surgery in Hindi

प्रोस्टेट कैंसर ऑपरेशन क्या होता है? - Prostate Cancer Surgery kya hai in hindi?
पुरुषों में पौरुष ग्रंथि का कैंसर (Prostate Cancer) सबसे आम है। यह अलग से उत्पन्न हो सकता है और ऐसा भी हो सकता है कि यह किसी और अंग में उत्पन्न होकर पौरुष ग्रंथि तक पहुंचा हो। इससे ग्रंथि में ट्यूमर बन जायेगा। इस बीमारी के फैलने से साथ लगे हुए लिम्फ नोड या आसपास के अंग भी कैंसरग्रस्त हो सकते हैं। ऐसी स्थितियों से बचने के लिए पौरुष ग्रंथि कैंसर की सर्जरी की जाती है।

सर्जरी में प्रोस्टेट कैंसर के उपचार हेतु पौरुष ग्रंथि का कैंसरग्रस्त हिस्सा, ट्यूमर और संलग्न लिम्फ नोड्स को हटाया जाता है। आसपास के अंग, जिनमें भी कैंसर के पहुँचने की सम्भावना है, भी हटाए जा सकते हैं (पूर्ण रूप से या आंशिक)। सर्जरी का उद्देश्य यह भी है कि बचे हुए स्वस्थ अंग और आसपास के स्वस्थ अंगों की कार्यवाही बनी रहे और सामान्य रूप से चलती रहे। 

प्रोस्टेट कैंसर सर्जरी क्यों की जाती है? - Prostate Cancer Surgery kab kiya jata hai?
पौरुष ग्रंथि के कैंसर का उपचार आम तौर पर दवाओं, विकिरण चिकित्सा या सर्जरी से किया जाता है। उपचार का विकल्प रोगी की उम्र, स्वास्थ्य और कैंसर के स्टेज (चरण) पर निर्भर करता है। स्टेजिंग में कैंसर की गंभीरता का आंकलन (ट्यूमर के आकार और मौजूदगी, कितने लिम्फ नोड प्रभावित हुए हैं और अन्य अंगों तक कैंसर कितना फैला है के आधार पर) किया जाता है।

निम्न स्थितियां संकेत करती हैं कि सर्जरी की आवश्यकता है:

लक्षणों का बढ़ जाना
इस कैंसर के आम लक्षण हैं मूत्र त्याग करने में कठिनाई, बहार बार मूत्र त्याग करना, मूत्र में रक्त। उपचार के बावजूद ये लक्षण बढ़ सकते हैं। ऐसे में सर्जरी की आवश्यकता होती है।

अन्य उपचार का प्रभाव न होना या मरीज़ के लिए हानिकारक होना 
कुछ स्थितियों में दवाओं का मरीज़ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। कई बार दवाएं या विकिरण चिकित्सा मरीज़ के लिए उचित नहीं होती और इनसे मरीज़ को नुक्सान हो सकता है। कुछ कैंसर इतने अग्रिम चरण पर होते हैं कि उनमें अन्य उपचार काम ही नहीं करते। ऐसी स्थितियों में सर्जरी की ज़रुरत होती है।

कैंसर की पुनरावृत्ति
पौरुष ग्रंथि का कैंसर उपचार किये जाने के बाद भी फिर से हो सकता है। ऐसे में कैंसर को सर्जरी द्वारा ठीक किया जाता है।

प्रोस्टेट कैंसर सर्जरी होने से पहले की तैयारी - Prostate Cancer Surgery ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा: 

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)
ध्यान देने योग्य अन्य बातें (Other Things To Be Kept In Mind Before Surgery)
शरीर के जिस क्षेत्र में सर्जरी की जानी है उसे मार्क किया जाता है। पौरुष ग्रंथि तक आम तौर पर पेट के निचले हिस्से से (नाभी और प्यूबिस के बीच में) पहुंचा जाता है। कभी कभी गुदे (Anus) से वृषणकोष (Scrotum) के बीच का हिस्सा भी इस्तेमाल किया जाता है। त्वचा का वो हिस्सा जहाँ से चीरा काटा जायेगा वहां पर से बाल हटा दिए (शेव) जाते हैं। इसके बाद उस त्वचा को एंटी-सेप्टिक सोल्युशन से साफ़ किया जाता है।

प्रोस्टेट कैंसर सर्जरी कैसे किया जाता है? - Prostate Cancer Surgery kaise hota hai?
प्रोस्टेट कैंसर का उपचार निम्न पांच प्रकार की प्रक्रियाओं द्वारा किया जा सकता है:

ओपन प्रोस्टेटेक्टॉमी (Open Prostatectomy)
लैप्रोस्कोपिक रेडिकल प्रोस्टेटेक्टॉमी (Laproscopic Radical Prostatectomy)
क्रायोसर्जरी (Cryosurgery)
द्विपक्षीय वृषणग्रंथि-उच्छेदन (Bilateral Orchiectomy)
प्रोस्टेट का ट्रांसुरेथ्रल विभाजन (Transurethral Resection of Prostate, TURP)
ओपन प्रोस्टेटेक्टॉमी (Open Prostatectomy)
प्रोस्टेटेक्टॉमी का अर्थ है पौरुष ग्रंथि को हटाना। ओपन सर्जरी में अपेक्षाकृत बड़ा चीरा काटा जाता है और कई सर्जिकल उपकरणों का प्रयोग करके पौरुष ग्रंथि तक पहुंचा जाता है। इस प्रकार की सर्जरी में अन्दरूनी अंग सीधा देखे जा सकते हैं। सर्जरी दो प्रकार से की जा सकती है- नाभी और प्यूबिस के बीच से पहुँच कर (यह आम तौर पर किया जाता है) या गुदे और वृषणकोश के बीच से (यह कम प्रयोग किया जाता है क्योंकि इस क्षेत्र का प्रयोग करने से स्तंभन में परेशानियां हो सकती हैं)।

चुने हुए क्षेत्र पर चीरा काटा जाता है। उसके नीचे के वसा ऊतकों को हटाया जाता है। फिर मांसपेशियों की परत को सावधानी से काटा जाता है ताकि उनमें और संलग्न नसों या रक्त वाहिकाओं को कोई स्थायी क्षति न हो जाए। ऊतकों को सावधानी से काटा जाता है जबतक पौरुष ग्रंथि न आ जाये। 

आम तौर पर शुक्र-संबंधी पुटिका (Seminal Vesicle) भी पौरुष ग्रंथि के साथ हटाई जाती है। संलग्न लिम्फ नोड भी हटा दिए जाते हैं ताकि कैंसर अन्य अंगों तक न पहुंचे। हटे हुए ऊतक को फिर से उसकी जगह पर लगाया जाता है। मांसपेशियों की मरम्मत की जाती है। चीरे को सिल दिया जाता है। 

लैप्रोस्कोपिक रेडिकल प्रोस्टेटेक्टॉमी (Laproscopic Radical Prostatectomy)
यह प्रक्रिया ओपन सर्जरी से इस प्रकार अलग है कि इसमें ओपन प्रक्रिया के मुकाबले छोटे और ज़्यादा चीरे किये जाते हैं। इससे रक्त की हानि कम होती है और घाव जल्दी भरता है। एक चीरे के माध्यम से एक छोटा वीडियो कैमरा डाला जाता है जो सर्जन को अंदरूनी अंग देखने में मदद करता है जिससे पौरुष ग्रंथि तक पहुंचा जा सके। अन्य चीरे सर्जिकल उपकरण डालने के लिए किये जाते हैं। आगे की प्रक्रिया ओपन सर्जरी के समान है।

इस प्रक्रिया को रोबोटिक सर्जरी (Robotic Surgery) से भी किया जा सकता है। सर्जन को ऑपरेशन थिएटर (Operation Theater) में रहने की आवश्यकता नहीं होती और कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित रोबोटिक आर्म्स (Robotic Arms) की मदद से पूरी प्रक्रिया की जा सकती है। 

क्रायोसर्जरी (Cryosurgery)
क्रायो (Cryo) का अर्थ है ठंडा। इस सर्जरी में बहुत ही कम तापमान में फ्रीज़ करके कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करता है जिससे उन्हें फैलने से बचाता है। यह सर्जरी रीजनल एनेस्थीसिया (Regional Anesthesia) देकर भी की जा सकती है, इसका अर्थ है कि मरीज़ सर्जरी के दौरान होश में होता है। एनेस्थटिक दवाएं इस प्रकार दी जाती हैं कि शरीर के किसी विशेष अंग की नसें सुन्न हो जाएँ। गुदे और वृषणकोष के बीच की त्वचा पर नीडल्स डाली जाती हैं। नीडल्स द्वारा ठंडी गैसों (Cold Gases) को डाला जाता है जिससे पौरुष ग्रंथि का कैंसरग्रस्त भाग नष्ट हो जाए। अन्य अंगों को क्षति न पहुंचे इसका ध्यान रखा जाता है। 

मूत्र सम्बन्धी परेशानियों से बचने के लिए मूत्राशय में कैथेटर (Cathetar) डाला जाता है। सर्जरी के दौरान, मूत्रमार्ग में गर्म नमक का पानी इंजेक्ट किया जाता है ताकि वह न जम जाए। 

यह प्रक्रिया प्राथमिक चरण के कैंसर के उपचार में प्रयोग की जा सकती है हालांकि इसकी अग्रिम चरण के कैंसर में प्रभावशीलता पर ज़्यादा अध्ययन नहीं किया गया है। यह सर्जरी आउट पेशेंट (Outpatient; जिस मरीज़ को उपचार के बाद अस्पताल में दाखिल होने की आवश्यकता नहीं होती) आधार पर भी की जा सकती है जिससे हर बार मरीज़ को अस्पताल में भर्ती न होना पड़े। प्रोस्टेटेक्टॉमी के मुकाबले इसमें रक्त की हानि बहुत काम होती है।

सर्जरी में बड़े चीरे नहीं किये जाते। सर्जन सीधा पौरुष ग्रंथि को नहीं देख पाते इसलिए सोनोग्राफी (Sonography) की सहायता ली जाती है। 

द्विपक्षीय वृषणग्रंथि-उच्छेदन (Bilateral Orchiectomy)
इस प्रक्रिया में सर्जरी द्वारा दोनों वृषण निकाल दिए जाते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि पौरुष ग्रंथि में टेस्टोस्टेरोन (Testosterone) की आपूर्ति न हो सके और कैंसर के विकास को और उसको फैलने से रोका जा सके। टेस्टोस्टेरोन वृषण में उत्पादित किया जाता है। इस प्रक्रिया में वृषणकोष के आगे एक-एक चीरा काटा जाता है। मांसपेशियों के ऊतकों को सावधानी से काटा जाता है। वृषण ऊतकों को हटा दिया जाता है। 

इस सर्जरी के अन्य प्रकार को सबकैप्सूलर वृषणग्रंथि-उच्छेदन (Subcapsular Orchiectomy) कहा जाता है जिसमें सिर्फ टेस्टोस्टेरोन (Testosterone) बनाने वाले ऊतकों को हटाया जाता है। दोनों ही प्रक्रियाओं में लिंग और वृषणकोष को नहीं छेड़ा जाता। यह सर्जरी प्रजनन आयु के अंतर्गत आने वाले पुरुषों (जवान पुरुषों) में नहीं की जाती। टेस्टोस्टेरोन की मात्रा में अचानक कमी हो जाने से उनकी प्रजनन क्षमता बाधित हो सकती है। टेस्टोस्टेरोन दर कम होने से शरीर में कई दुष्प्रभाव हो सकते हैं इसलिए सर्जरी के बाद देखभाल किया जाना आवश्यक है। कई बार वृषण को कृत्रिम वृषण से भी बदला जा सकता है। 

प्रोस्टेट का ट्रांसुरेथ्रल विभाजन (Transurethral Resection of Prostate, TURP)
यह प्रक्रिया सीधा कैंसर के उपचार के लिए नहीं बल्कि अक्सर पौरुष ग्रंथि के कैंसर रहित बढ़ाव के उपचार में की जाती है। कैंसर में इसका प्रयोग मूत्रत्याग में कठिनाई के लक्षण से आराम पाने के लिए किया जाता है। मूत्रमार्ग का प्रोस्टेटिक भाग इस सर्जरी में एक्सेस पॉइंट (Acces Point; रोगग्रस्त अंग तक पहुँचने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाले क्षेत्र) होता है। अंदरूनी अंगों को ढंग से देखा जा सके इसके लिए मूत्रमार्ग में एक रेसेक्टोस्कोप (Resectoscope) डाला जाता है। मूत्रमार्ग के आसपास के पौरुष ग्रंथि को बहुत ही कम और परिगणित तीव्रता की बिजली या लेज़र बीम से वेपराइज़ किया जाता है। सावधानी बरती जाती है कि आसपास के ऊतकों को कोई नुक्सान न हो। इस सर्जरी में चीरों की आवश्यकता नहीं होती। मूत्रत्याग के लिए कैथेटर लगाया जाता है जिसे दो से तीन दिनों के लिए रखा जाता है। 

मरीज़ की उम्र, कैंसर की गंभीरता, रोगी का सामान्य स्वस्थ और अन्य अंगों को कितना प्रभाव पहुँच रहा है, के आधार पर सर्जरी की प्रक्रिया तय की जाती है।

प्रोस्टेट कैंसर सर्जरी के बाद देखभाल - Prostate Cancer Surgery hone ke baad dekhbhal
सर्जरी की प्रक्रिया समाप्त होने का अर्थ यह नहीं है कि उपचार भी समाप्त हो चुका है। कुछ तत्काल किये जाने जाने वाले और लम्बे समय तक की जाने वाली देखभाल के तरीके निम्न हैं। जल्दी रिकवरी तब ही मुमकिन है अगर ये साड़ी बातें मानी जाये और उचित देखभाल की जाए।

तत्काल की जाने वाली देखभाल (Short Term Care)
सर्जरी के बाद मरीज़ की सामान्य स्वास्थ्य स्थिति की जांच की जाती है। जब तक एनेस्थीसिया का असर पूरी तरह नहीं चला जाता तब तक रक्त चाप, ह्रदय की गति, श्वास एवं शरीर का तापमान को निरंतर मॉनिटर किया जाता है।
जैसा कि पहले बताया गया है - सर्जरी के बाद एक कैथेटर मरीज़ के शरीर में लगाया जाता है जिससे मूत्रत्याग करने में परेशानी न हो। कैथेटर की भी निरंतर जांच की जाएगी कि वो अपनी जगह पर है या नहीं और कहीं कोई रक्तस्त्राव तो नहीं। कुछ दिनों के बाद कैथेटर को हटा दिया जायेगा।
मरीज़ को शुरूआती कुछ घंटों तक ठोस आहार नहीं दिया जाता अगर सर्जरी के दौरान जनरल एनेस्थीसिया का प्रयोग किया गया है। सर्जन मरीज़ की आँतों की गतिविधि और मल त्याग का आंकलन करेंगे और फिर तय किया जायेगा कि ठोस आहार कबसे शुरू किया जाना है।
कब्ज न हो इसके लिए रेशेदार भोजन को अपनी रोज़ की डाइट में शामिल करें। कब्ज से आँतों पर तनाव पड़ सकता है जो कि सर्जरी एक बाद मरीज़ के लिए बिलकुल सही नहीं है।
अत्यधिक मात्रा में पानी पियें। इससे मूत्र का संचय बना रहेगा और मूत्र संक्रमण से बचा जा सकेगा। 
रेचक औषधि दी जा सकती हैं जिससे मल त्याग करने में आसानी हो।
ज़्यादातर मरीज़ों को एंटीबायोटिक्स और दर्द निवारक दवाएं दी ही जाती हैं। 
नियमित रूप से डॉक्टर से जांच करवाते रहें। 
मरीज़ ध्यान दें कि कुछ दिनों तक किसी भी प्रकार की यौन गतिविधि न करें। सर्जन से पूछ कर ये शुरू किये जा सकते हैं। 
लम्बे समय तक की जाने वाली देखभाल (Long Term Care)
रिकवरी का समय सर्जरी की प्रक्रिया पर भी निर्भर करता है। अगर मरीज़ पूरी तरह ठीक हो भी गया है, तो भी उसे अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखा चाहिए। डॉक्टर आम तौर पर एक विस्तृत विवरण करते हैं कि सर्जरी के बाद किन बातों का ध्यान रखा जाना है।

कैंसर के मरीज़ों को आमतौर लम्बे समय तक फॉलो-अप के लिए बुलाया जाता है ताकि यह जांच की जा सके कि कैंसर की पुनरावृत्ति तो नहीं हुई या कैंसर किसी और अंग में तो उत्पन्न नहीं हुआ। 

कई बार कैंसर पूरी तरह ठीक नहीं हुआ होता या दुबारा उत्पन्न हो जाता है। इसके उपचार के लिये उपर्लिखित किसी प्रक्रिया (व्यक्तिगत स्थिति के आधार पर) का इस्तेमाल करके उसका उपचार किया जाता है। आंकलन करने के लिए कई तरह के टेस्ट्स किया जाएंगे जैसे एमआरआई (MRI), सीटी स्कैन (CT Scan), सोनोग्राफी (Sonography) आदि।

प्रोस्टेट कैंसर ऑपरेशन के बाद सावधानियां - Prostate Cancer Surgery hone ke baad savdhaniya
रिकवरी का समय प्रक्रिया की विधि और आपकी स्वास्थ्य स्थिति पर निर्भर करता है। उपर बताई गई बातों का ध्यान रखें और उचित देखभाल करें।

प्रोस्टेट कैंसर सर्जरी की जटिलताएं - Prostate Cancer ke operation me jatilta
हर उपचार से जुड़े कुछ जोखिम और कुछ नुक्सान होते हैं। कई बार ऐसा हो सकता है कि मरीज़ को कोई परेशानी न हो और कई बार गंभीर जोखिमों का सामना करना पड़ता है।

द्विपक्षीय वृषणग्रंथि-उच्छेदन (Bilateral Orchiectomy) के बाद प्रजनन क्षमता में कमी, हॉट फ्लैशेस (Hot Flashes:चेहरे, गर्दन, कान और धड़ में गर्मी का महसूस होना), घबराहट और अवसाद, Gynecomastia (पुरुषों में स्तन बढ़ना), वज़न बढ़ना, लिंग स्तम्भन में परेशानी हो सकती है। इनके उपचार के लिए हॉर्मोनल चिकत्सा की आवश्यकता होती है।
प्रजनन में असमर्थता भी एक परिणाम हो सकता है। यह टेस्टोस्टेरोन आपूर्ति में कमी, यौन इच्छा में कमी, लिंग स्तम्भन में परेशानी से हो सकता है। इन समस्याओं से निजात पाने हेतु दवाएं दी जाती हैं।
मूत्रमार्ग के इस प्रक्रिया में शामिल होने की वजह से मूत्रत्याग में परेशानी या कठिनाई हो सकती है। यह परशानी आमतौर पर स्वयं ही बेहतर हो जाती है। बेहतर न होने पर अपने सर्जन से संपर्क करें।
बार बार मूत्रत्याग की तीव्र इच्छा होना या मूत्र रोक पाने में असमर्थता हो सकती है।
पौरुष ग्रंथि के स्वस्थ भाग या संलग्न स्वस्थ अंगों को आकस्मिक चोट पहुँच सकती है।
रक्त वाहिका को क्षति होने से रक्त की अत्यधिक हानि हो सकती है। इसलिए लगभग हर सर्जरी से पहले ही रक्त-आधान (Blood-Transfusion; खून चढ़ाना) के लिए रोगी के ब्लड ग्रुप का रक्त तैयार रखा जाता।
एनेस्थेटिक दवाओं के प्रति एलर्जिक प्रतिक्रिया हो सकती है। इसके लिए उचित मेडिकल चिकित्सा आवशयक है।
आम तौर देखा गया है कि प्रोस्टेट का ट्रांसुरेथ्रल विभाजन (Transurethral Resection of Prostate, TURP) के बाद मूत्र में रक्त पारित होता है। अगर यह स्वयं बंद न हो तो सर्जन से परामर्श अवश्य करें। 


11. त्वचा के कैंसर की सर्जरी - Skin Cancer Surgery in Hindi

त्वचा के कैंसर की सर्जरी क्या है? - Skin Cancer Surgery kya hai in hindi?
जब स्किनकोशिकाएं असामान्य प्रकार से बढ़ती हैं, तो इससे स्किन का कैंसर हो सकता है। स्किन कैंसर की सर्जरी इस रोग के लिए प्राथमिक उपचार है। कैंसर के प्रारंभिक चरण में ही इसे हटा देने से रोगियों को कई जटिलताओं से बचाया जा सकता है। 

आपकी त्वचाआपके शरीर की बाहरी परत है। कैंसर कोशिकाओं का विकास इतनी तेज़ी से होता है कि यह बाहरी परत से भीतरी परत तक फैलने में ज्यादा समय नहीं लेती हैं। इसलिए, इसका निष्कासन एक आवश्यकता बन जाता है। इन कैंसरयुक्त त्वचा कोशिकाओं को सर्जरी द्वारा निकालना जीवनरक्षी साबित हो सकता है।  

त्वचा के कैंसर की सर्जरी क्यों की जाती है? - Skin Cancer Surgery kab kiya jata hai?
स्किन कैंसर मुख्य रूप से शरीर की ऊपरी बाहरी परतों पर होता है। इससे पहले कि ऊपरी कैंसर-ग्रस्त परत अंदरूनी परत को संक्रमित करे, कैंसर-ग्रस्त परत को सर्जरी के माध्यम से हटा देना चाहिए। ऐसे सर्जिकल तरीके हैं जिसमे सर्जन आपकी कैंसर-ग्रस्त तवचा को परत दर परत हटाते हैँ जब तक की कैंसर रहित स्किन की परत न मिले।

स्किन कैंसर की सर्जरी इस घातक बीमारी से छुटकारा पाने का एक आसान और प्रभावी तरीका है। इस सर्जरी का संचालन कैंसर या डर्मेटोलॉजिस्ट (Dermatologist; स्किन रोग विशेषज्ञ) द्वारा किया जाता है। सर्जरी को आमतौर पर उपचार पद्धति के रूप में प्रयोग किया जाता है ताकि कैंसरग्रस्त स्किन को हटाया जा सके और साथ ही यदि आवश्यक हो, तो उसे ग्राफ्ट (graft; उपरोपण) भी किया जा सके। 

त्वचा के कैंसर की सर्जरी होने से पहले की तैयारी - Skin Cancer Surgery ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा: 

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग / खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)
सर्जरी से पहले की जाने वाली स्किन बायोप्सी (Skin Biopsy before surgery)
शेव बायोप्सी (Shave Biopsy): शेव बायोप्सी या स्पर्शरेखा बायोप्सी (Tangential Biopsy) में आपकी त्वचा की ऊपरी परत को सर्जिकल ब्लेड की सहायता से निकाल दिया जाता है। डॉक्टर इन नमूनों को इकट्ठा करते हैं और विश्लेषण के लिए प्रयोगशाला में भेजते हैं। शेव किये गए क्षेत्र के रक्तस्त्राव को रोकने के लिए घाव को विद्युत प्रवाह से दागा जाता है।
पंच बायोप्सी (Punch Biopsy): पंच बायोप्सी की प्रक्रिया में, आपका सर्जन एक कुकी कटर (cookie cutter) जैसे उपकरण का प्रयोग आपकी त्वचा से सैंपल निकालने के लिए करेगा। इस उपकरण की सहायता से आपकी त्वचा में छिद्र किया जाता है जब तक की सभी ज़रूरी परतें न कट जाएं। एक छोटा सा नमूना एकत्र किया जाता है और घाव को सी दिया जाता है।
इंसिज़नल और एक्सिज़नल बायोप्सी (Incisional & Excisional Biopsies): ट्यूमर या तो आपकी त्वचा पर उभर सकता है या आपकी त्वचा के नीचे बढ़ सकता है। इसके आधार पर, आपका डॉक्टर इंसिज़नल या एक्सिज़नल बायोप्सी का उपयोग करता है। इन प्रतिक्रियाओं में, एक सर्जिकल चाकू का आपके शरीर पर चीरा काटने के लिए उपयोग किया जाता है। आपकी त्वचा का एक टुकड़ा विश्लेषण के लिए निकाला जाता है और कटे हुए क्षेत्र को वापिस सिल दिया जाता है।
इंसिज़नल बायोप्सी में ट्यूमर के केवल एक भाग को हटाते हैं, जबकि एक्सिज़नल बायोप्सी में पूरे ट्यूमर को हटाया जाता है। इसलिए, अधिकतम, एक्सिज़नल बायोप्सी विधि का संदिग्ध स्किन कैंसर रोग के लिए उपयोग किया जाता है।
ऑप्टिकल बायोप्सी (Optical Biopsy): रिफ्लेक्टेंस कन्फोकल माइक्रोस्कोपी (Reflectance Confocal Microscopy (RCM)) एक नवीनतम बायोप्सी विधि है। इसमें त्वचा से सैंपल नहीं काटा जाता, केवल आपके एपिडर्मिस (epidermis) और इसकी निचली परतों पर नॉन-इनवेसिव विज़ुअलाइज़ेशन तकनीक (non-invasive visualization technique) का उपयोग किया जाता है।
फाइन नीडल एस्पिरेशन बायोप्सी (Fine Needle Aspiration (FNA) Biopsy): FNA का उद्देश्य मोल्स या कैंसर ट्यूमर के आसपास मौजूद लिम्फ नोड्स को लक्षित करना होता है। इस प्रक्रिया में ट्यूमर या लिम्फ नोड्स को हटाने के लिए एक खोखली सुई का उपयोग किया जाता है। रक्त परीक्षणों के लिए उपयोग की जाने वाली सुई की तुलना में यह सुई काफी छोटी होती है। यह परीक्षण आमतौर पर दर्द रहित होता है और इंजेक्शन वाले क्षेत्र पर निशान नहीं छोड़ता है। जो लिम्फ नोड्स त्वचा के नीचे मौजूद होते हैं उनका पता लगाना आसान होता हैं लेकिन, शरीर के अन्य हिस्सों में जैसे जिगर आदि में लिम्फ नोड्स का पता लगा कर सुई का इस्तेमाल करने के लिए सीटी स्कैन की आवश्यकता हो सकती है।
सर्जिकल लिम्फ नोड बायोप्सी (Surgical Lymph Node Biopsy): इस प्रक्रिया का मुख्य रूप से इस्तेमाल एक छोटे चीरे का उपयोग करके बढ़े हुए लिम्फ नोड को निकालने के लिए किया जाता है। यदि लिम्फ नोड शरीर के अंदर गहराई में है, तो रोगियों को इस प्रक्रिया से पहले बेहोश किया जाता है। स्किन के नीचे स्थित लिम्फ नोड्स के लिए, एक लोकल एनेस्थेसिया दिया जा सकता है।
सेंटिनल लिम्फ नोड बायोप्सी (Sentinel Lymph Node Biopsy): यदि स्किन कैंसर का पता लग गया है और कुछ चिंताजनक लक्षण नज़र आते हैं, तो संभावित है कि कैंसर आसपास के लिम्फ नोड्स में फैल गया है। ऐसे समय पर, उपचार के विकल्प प्रभावित होते हैंI प्रभावित लिम्फ नोड्स के बारे में जानने के लिए कुछ परीक्षण किए जाते हैं। ऐसे लिम्फ नोड्स को सेंटिनल नोड्स (sentinel nodes) के रूप में नामित किया गया है।

सर्जरी से पहले कुछ विशिष्ट परिक्षण (Some important tests before surgery)
इस सर्जरी से पहले कैंसर के कारण जीन में बदलाव का पता करने के लिए परिक्षण किये जा सकते हैं और कैंसर शरीर के किसी अन्य हिस्से में तो नहीं फैला है यह पता लगाने के लिए पोजीशन एमिशन टोमोग्राफी (Position Emission Tomography (PET) Scan) भी किया जा सकता है।

त्वचा के कैंसर की सर्जरी कैसे की जाती है? - Skin Cancer Surgery kaise hota hai?
अधिकांश प्रकार के कैंसर के लिए सर्जरी मुख्य उपचार श्रेणी के अंतर्गत आती है। आमतौर पर सर्जरी त्वचा कैंसर के शुरुआती चरणों का इलाज करने के लिए उपयोगी है।

वाइड एक्सिज़न (Wide Excision)
अगर स्किन कैंसर का निदान शुरूआती स्टेज पर ही हो जाता है तो इसे सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कैंसर पूरी तरह से ख़तम हो गया है। छोटे ऑपरेशन त्वचा की पतली परतों की कैंसर कोशिकाओं को ठीक कर सकते हैं। प्रारंभ में, उपचार किये जाने वाले क्षेत्र पर लोकल एनेस्थेसिया का इस्तेमाल किया जाता है। ट्यूमर की साइट के साथ साथ आस पास के कुछ हिस्से को भी काटा जाता है। त्वचा का यह छोटा खंड मार्जिन के रूप में जाना जाता है। ट्यूमर जितना मोटा/ बड़ा होता है, मार्जिन भी उतना ही बड़ा होता है। मार्जिन निकलने के बाद घाव को सिल दिया जाता है और यह निशान छोड़ सकता है।  

मार्जिन की जांच माइक्रोस्कोप के तहत की जाती है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि इस त्वचा की परत के किनारों पर कोई कैंसर कोशिका मौजूद नहीं है।

मार्जिन ट्यूमर के स्थान के अनुसार भी भिन्न होते हैं। उदाहरण के लिए, चेहरे पर मौजूद ट्यूमर के लिए, मार्जिन छोटा होना चाहिए ताकि यह बड़े निशान न छोड़े। लेकिन, इसकी यह खामी है कि छोटे मार्जिन कैंसर के पुनः होने की संभावना को बढ़ा सकते हैं।

मोह्स सर्जरी (Mohs Surgery)
अधिकांश प्रकार के स्किन कैंसर का इलाज मोह सर्जरी से होता है यह सर्जरी एक डर्मेटोलॉजिस्ट (dermatologist; त्वचा रोग  विशेषज्ञ) या सर्जन द्वारा की जाती है। मोहस सर्जरी प्रक्रिया में, कैंसर-ग्रस्त परत को परत दर परत हटाया जाता है। माइक्रोस्कोप के तहत प्रत्येक परत का विश्लेषण किया जाता है। यदि कैंसर कोशिकाएं पाई जाती हैं, तो सर्जन त्वचा की दूसरी परत को भी हटा देता है। यह तब तक चलता रहता है जब तक सर्जन को ऐसी त्वचा की परत न मिले जो कैंसर से प्रभावित न हो। इस सर्जरी का लाभ यह होता है की आसपास के क्षेत्र ऊतकों को कैंसर से बचाया जा सकता है।

विच्छेदन (Amputation)
यदि आपकी हाथों की उंगलियों या पैर की उंगलियों में त्वचा कैंसर है और वह गहराई से फैल गया है, तो कैंसरग्रस्त हिस्से या उस पूरे खंड का विच्छेदन हो सकता है।

काइरोसर्जरी (Cyrosurgery)
काइरोसर्जरी में एक चिकित्सीय साधन का उपयोग करते हैं जिसमें तरल नाइट्रोजन मौजूद होता है। तरल नाइट्रोजन का कैंसर प्रभावित त्वचा पर छिड़काव किया जाता है, जो उन ऊतक कोशिकाओं को जमा देता है और नष्ट करता है।

एलेक्ट्रोडेसिकेशन और क्युरेटेज (Electrodesiccation and Curettage)
इस सर्जरी में कैंसर के प्रभावित ऊतकों को खत्म कर दिया जाता है। यह एक तेज शल्य चिकित्सा उपकरण का उपयोग करके किया जाता है जिसे क्योरेट (curette) कहा जाता है। प्रक्रिया पूरी होने के बाद, एक इलेक्ट्रो सर्जिकल यूनिट (electro-surgical unit) से घाव को दाग दिया जाता है।

लिम्फ नोड विच्छेदन (Lymph Node Dissection)
लिम्फ नोड विच्छेदन सर्जरी में कैंसरग्रस्त क्षेत्र के आस-पास के सभी लिम्फ नोड्स को हटाया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि वर्तमान में पैर पर कैंसर है, तो सर्जन पेट और जांध के बीच के भाग से  लिम्फ नोड्स का टुकड़ा निकाल सकता है, जहां कैंसर फैलने की सम्भावना हो सकती है। 

असामान्य रूप से बड़े लिम्फ नोड्स के मामले में, FNA या एक्सीजनल बायोप्सी (excisional biopsy) का उपयोग किया जाता है इन्हे काटने के लिए। जो लिम्फ नोड्स बढे हुए नहीं होते हैं उनके लिए सेंटिनल बायोप्सी (Sentinal biopsy) का उपयोग किया जा सकता है।

मेटास्टैटिक त्वचा कैंसर के लिए सर्जरी (Surgery for Metastatic Skin Cancer)
अगर कैंसर त्वचा से शरीर के अन्य अंगों में मेटास्टासाइज (Metastasize; फ़ैल गया है) कर गया है, तो यह सर्जरी द्वारा ठीक नहीं किया जा सकता। 

अगर कैंसर से दो से अधिक क्षेत्र प्रभावित होते हैं, तो सर्जरी इसके फैलाव को नियंत्रित करने के उद्देश्य से की जाती है न कि इलाज के उद्देशय से। यदि 1 या अधिक मेटास्टेस हो चुके हैं और इसे पूरी तरह हटाया जा सकता है, तो यह सर्जरी रोगी को लंबे समय तक जीवित रहने में मदद कर सकती है। मस्तिष्क जैसे स्थानों से मेटास्टाज़ को हटाने से लक्षणों को रोकने और राहत देने में भी सहायता हो सकती है। इससे रोगी के जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है। 

पूर्ण लिम्फ नोड विच्छेदन के कारण दीर्घकालिक साइड इफेक्ट होते हैं। उनमें से एक दुष्प्रभाव लिम्फेडेमा है। बाजुओं के नीचे मौजूद लिम्फ नोड्स अंगों से तरल पदार्थ निकालने के लिए जिम्मेदार होते हैं। यदि इनका विच्छेदन किया जाता है तो, ये द्रव्यों के जमाव का कारण हो सकता है। जिसके परिणामस्वरूप सूजन होती है। यह अंगों में गंभीर समस्याएं पैदा कर सकता है और संक्रमण के जोखिम को भी बढ़ा सकता है। ऐसे रोगियों के लिए कम्प्रेशन बेल्ट उपयोगी हो सकती है।

इसलिए, लिम्फ नोड्स विच्छेदन सर्जरी तब तक नहीं की जाती जब तक यह वास्तव में आवश्यक नहीं है। हालांकि, सेनिटल लिम्फ नोड बायोप्सी के कारण ऐसे दुष्प्रभावों के होने की संभावना नहीं है।

त्वचा के कैंसर की सर्जरी के बाद देखभाल - Skin Cancer Surgery hone ke baad dekhbhal
ज्यादातर रोगियों को शल्य चिकित्सा के बाद भी बेहोशी होती है क्योंकि उन्हें सर्जरी के बाद आराम करने के लिए कुछ समय की आवश्यकता होती है। आराम करने के लिए, डॉक्टरों और नर्सों की टीम आपको सामान्य वार्ड में स्थानांतरित करेगी। कुछ रोगियों को ग्लूकोस चढाने की आवश्यकता पड़ सकती है इसके अलावा, कभी-कभी कुछ आवश्यक दवाएं भी इसके साथ दी जाती हैं।

आपके चिकित्सक के सफलतापूर्वक सर्जरी आयोजित करने के बाद, पोस्ट प्रक्रिया अवधि के दौरान अपने स्वास्थ्य की देखभाल करने का काम रोगी का होता है। उचित स्वास्थ्य देखभाल के कारण रोगी जल्दी स्वस्थ हो सकता है। स्वास्थ्य देखभाल में उचित सावधानी बरतना, सभी आवश्यक उपायों का पालन करना, अपने डॉक्टर से समय-समय पर जांच करना, और कई अन्य महत्वपूर्ण कदम शामिल हैं।

सावधानियां
सर्जरी के जरिए कैंसर निकालने के बाद आपका शरीर कमजोर हो जाता है। इसे ठीक होने के लिए अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता है। आवश्यक सावधानी बरतने से रोगियों को जल्दी स्वस्थ होने में मदद मिलती है। ऐसा करने में नाकाम रहने से आपके स्वस्थ होने में देरी हो सकती है या आपकी स्वास्थ्य स्थितियों में बदलाव आ सकता है।

अतिरिक्त सूरज एक्सपोजर (exposure) से बचें
धूम्रपान से बचें
शराब पीने से बचें, खासकर जब आप दवाइयां ले रहे हों
संक्रमण से बचने के लिए समय पर ड्रेसिंग बदलें
घर पर रिकवरी (Recovery at Home)
डॉक्टर आपकी त्वचा के सर्जिकल क्षेत्रों पर लगाने के लिए क्रीम या लोशन की सलाह देंगे। दवाओं का सेवन समय पर किया जाना चाहिए। बहुत सारी दवाओं का सेवन आपके शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है इसलिए, इस अवधि के दौरान आपके शरीर को स्वस्थ और पौष्टिक आहार की आवश्यकता होती है।

कैंसर मरीज को शारीरिक और मानसिक रूप दोनों से प्रभावित करता है। ज़्यादातर रोगियों को जब यह मालूम पड़ता है की उन्हें कैंसर है तो वह बहुत खतरा महसूस करते हैं। ऐसे तनावपूर्ण परिस्थितियों का सामना करने के लिए, चिकित्सक रोगियों के लिए कुछ थेरेपी सेशन प्रदान करते हैं। ये सेशन शारीरिक भी हो सकते हैं। मानसिक और शारीरिक तनाव को झेलने के लिए चिकित्सक ध्यान (Meditations), योग (yoga), आदि का प्रबंध करते हैं रोगियों के लिए ।

फॉलो-अप अपॉइंटमेंट्स
एक सफल त्वचा कैंसर की सर्जरी के बाद भी आपके डर्मेटोलॉजिस्ट (dermatologist; त्वचा रोग विशेषज्ञ) या कैंसर विशेषज्ञों के साथ फॉलो-अप अपॉइंटमेंट्स आवश्यक हैं ताकि आपके डॉक्टर निम्नलिखित बातों की जाँच कर सकें:

हीलिंग और स्वास्थ्य की स्थिति
क्या कैंसर पुनः हो सकता है?
पट्टियों को बदलने के लिए
सामान्य नियमित चेक-अप
सर्जरी के बाद जीवन
विभिन्न परिवर्तनों के चलते सर्जरी के बाद जीवन कठिन हो जाता है। जो रोगी कैंसर के कारण त्वचा की सर्जरी करा चुके हैं, उनकी बाहरी दिखावट में बहुत बदलाव आ जाता है; मुख्य रूप से उदाहरण के लिए, उनके चेहरे, हाथों या पैरों पर त्वचा की सर्जरी उनके ऑपरेशन के बाद ध्यान देने योग्य परिवर्तन का कारण बन जाती हैं।

ज्यादातर चिकित्सक त्वचा उपरोप (skin grafts; त्वचा प्रत्यारोपण, त्वचा को आपके शरीर या दाता (donor) के शरीर के विभिन्न हिस्से से लिया जाता है) या त्वचा फ्लैप्स (स्वस्थ त्वचा या ऊतक जो आपके घावों को कवर करने के लिए जुड़ा हुआ है) का उपयोग करते हैं। तो आपकी संलग्न त्वचा (attached skin) का रंग और बनावट आपकी मूल त्वचा से थोड़े भिन्न होते हैं।

त्वचा के कैंसर की सर्जरी की जटिलताएं - Skin Cancer Surgery me jatiltaye
हर त्वचा कैंसर की सर्जरी के साथ जुड़े कुछ जोखिम और जटिलताएं हैं। इन जटिलताओं को उनके होने के आधार पर विभिन्न भागों में विभाजित किया जाता है।

सर्जरी के तुरंत बाद होने वाली जटिलताएं

जटिलताएं जो आमतौर पर त्वचा कैंसर की सर्जरी के दौरान या तुरंत बाद होती हैं:

त्वचा की महत्वपूर्ण संरचनाओं को क्षति, जैसे आस पास की तंत्रिकाओं या ग्रंथियों को 
घावों को टांकने में कठिनाई
रक्तस्त्राव
कुछ दवाओं की प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं
नील पड़ना
सर्जरी के बाद विलंबित जटिलताएं 

जटिलताएं जो सर्जरी के कुछ घंटों बाद या सर्जरी के कुछ दिनों बाद होती हैं। ऐसी आम जटिलताओं में शामिल हैं:

सर्जिकल क्षेत्रों के आसपास संक्रमण
सिवनी प्रतिक्रियाएं
स्वस्थ होने की प्रक्रिया में देरी
घाव का ख़राब होना
अपूर्ण एक्ससीजन
लगातार सूजन
सर्जरी के ज़्यादा समय बीतने के बाद होने वाली जटिलताएं

त्वचा कैंसर की सर्जरी के काफी समय बाद होने वाली जटिलताएं निम्नानुसार हैं:

अदम्य कॉस्मेटिक परिणाम
आवर्ती त्वचा कैंसर या कैंसर के अन्य रूप
आवर्ती ट्यूमर
यदि आप अपनी त्वचा के साथ कोई भी असामान्य परिवर्तन देखते या महसूस करते हैं, तो जितनी जल्दी हो सके अपने चिकित्सक से जांच कराएं। प्रारंभिक इलाज हमेशा बेहतर होता है।

12. लिवर कैंसर ऑपरेशन - Liver Cancer Surgery in Hindi

लिवर कैंसर ऑपरेशन क्या होता है? - Liver Cancer Surgery kya hai in hindi?
लिवर शरीर का एक अत्यंत सहायक अंग है। यह न सिर्फ पाचन में मदद करता है बल्कि साथ ही यह बाहरी संक्रमण से भी लड़ता है जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए हानिकारक हो सकते हैं। लिवर कैंसर और लिवर फेलियर लिवर को होने वाली बीमारियों में सबसे गंभीर हैं। इसलिए अन्य जटिलताओं, जैसे कैंसर के फैलने, से बचने के लिए लिवर कैंसर की सर्जरी सबसे बेहतर विकल्प है। 

लिवर कैंसर ऑपरेशन कब होता है? - Liver Cancer Surgery kab kiya jata hai?
कुछ स्थितियों में लिवर को पूरी तरह हटा दिया जाता है, लेकिन कुछ में सर्जरी सिर्फ इसलिए की जाती है ताकि मरीज़ अपेक्षित से ज़्यादा समय के लिए जीवित रह सके। यह सर्जरी एक जीवनरक्षी प्रक्रिया है। 

साथ ही, सर्जरी इसलिए भी की जाती है ताकि कैंसर को शरीर के अन्य अंगों तक फैलने से रोका जा सके। मरीज़ की स्थिति के हिसाब से डॉक्टर सर्जरी की प्रक्रिया का चुनाव करते हैं।

लिवर कैंसर ऑपरेशन होने से पहले की तैयारी - Liver Cancer Surgery ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा: 

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)
ध्यान देने योग्य अन्य बातें (Other Things To Be Kept In Mind Before Surgery)
सर्जरी से पहले बायोप्सी की जाती है जिससे ट्यूमर के फैलाव का पता लगाया जा सकेगा। सर्जरी के बाद पैरों के व्यायाम (रक्त के थक्कों के गठन को रोकने के लिए) और श्वास सम्बन्धी व्यायाम (फेफड़ों के संक्रमण को होने से रोने के लिए) करना ज़रूरी है, इसलिए आपको फ़िज़ियोथेरेपिस्ट यह व्यायाम पहले ही सीखा दिए जाएंगे। पेट के ऊपर की त्वचा को शेव (बाल हटाए जाना) किया जाएगा और उसे एंटी-सेप्टिक सोल्यूशन से साफ किया जायेगा। मरीज़ के मूत्राशय में एक कैथेटर (Cathetar) भी लगाया जा सकता है जिससे मूत्राशय को खाली करने में आसानी हो। 

लिवर कैंसर ऑपरेशन कैसे किया जाता है? - Liver Cancer Surgery kaise hota hai?
लिवर रिसेक्शन (Liver Resection)
लिवर के क्षतिग्रस्त हिस्सों को हटाने की सर्जरी को लिवर रिसेक्शन कहा जाता है। इसे पूर्ण या आंशिक हेपेक्टेक्टॉमी (Hepactectomy) भी कहा जाता है। लिवर का सर्जिकल रिसेक्शन (उच्छेदन) संभव है क्योंकि यह ऐसा अंग है जिसमें पुनर्जनन क्षमता होती है। अगर लिवर की कार्यवाही बहुत बिगड़ चुकी है तो ऐसे में लिवर प्रत्यारोपण करना आवश्यक हो जाता है। ऐसे में सिर्फ लिवर के क्षतिग्रस्त हिस्से को हटाने से लिवर फेलियर हो सकता है और इसलिए डोनर द्वारा लिवर प्रत्यारोपण किया जाना बहुत सहायक होता है। ऐसे में पुराने लिवर को हटाकर नया लिवर लगा दिया जाता है।

लिवर के ट्यूमर को लैप्रोस्कोपी (Laparoscopy) द्वारा कम चीरकर की जाने वाली प्रक्रिया से भी किया जा सकता है। ट्यूमर के आकार और स्थान के अनुसार लैप्रोस्कोपिक प्रक्रिया को चुना जा सकता है। इस प्रक्रिया में, एक या एक से ज़्यादा चीरे काटे जाते हैं जिनसे लैप्रोस्कोप अंदर डाला जा सके। रिसेक्शन सर्जरी करने के लिए इन चीरों के माधयम से डॉक्टर वीडियो कैमरा (अंदरूनी अंग देखने के लिए) और सर्जिकल उपकरण डाले जाते हैं। इस प्रक्रिया में ओपन सर्जरी की तुलना में कम रक्तस्त्राव होता है और रिकवरी भी जल्दी हो जाती है। साथ ही सर्जरी के बाद दर्द भी कम होता है। 

क्रायोसर्जरी (Cryosurgery)
इस प्रक्रिया में एक धातु के प्रोब (Probe) के द्वारा कोल्ड गैसेस (Cold Gases) की मदद से ट्यूमर को फ्रीज़ करके कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है। इस प्रक्रिया में प्रोब को पेट की त्वचा से डाला जाता है। 

इस प्रक्रिया को परक्यूटेनियस तकनीक (Percutaneous Technique) भी कहा जाता है। धातु से बने प्रोब को पेट की गुहा में भी डाला जा सकता है। इस तकनीक को इंट्रा-एब्डोमिनल सर्जरी (Intra-Abdominal Surgery) कहा जाता है।

लिवर प्रत्यारोपण (Liver Transplant)
यह लिवर कैंसर को हटाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली अन्य प्रक्रिया है। यह उन मरीज़ों में नहीं की जाने चाहिए जिनको पित्त वाहिका (Bile Duct) का कैंसर हो। 

जिन मरीज़ों एक या उससे ज़्यादा छोटे ट्यूमर होते हैं, उनके लिए इस प्रक्रिया को चुना जाता है। इस प्रक्रिया में रोगग्रस्त लिवर को हटाकर नया स्वस्थ लिवर (डोनर का) लगाया जाता है। 

जिन मरीज़ों के लिए डॉक्टर प्रत्यारोपण का निर्णय लेते हैं उनको लम्बे समय तक स्वस्थ लिवर और उनके शरीर के लिए उचित डोनर का इंतज़ार करना पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप, कैंसर बढ़ जाता है। इतने समय के लिए ट्यूमर पृथक्करण चिकित्सा (Tumor Ablation Therapy) को ऐसे मरीज़ के लिए उचित माना जाता है।

आइसोलेटेड लिवर पर्फ्यूशन (Isolated Liver Perfusion)
यह प्रक्रिया उन दुर्लभ स्थितियों में प्रयोग की जाती है जब कैंसर अन्य तकनीकों से ठीक न हो पाए। इसका नाम इस प्रक्रिया में ही इस्तेमाल किये जाने वाले एक स्टेप से लिया गया है जिसमें हाइली कंसन्ट्रेटेड कीमोथेरप्यूटिक दवाएं (Highly Concentrated Chemotherapeutic Drugs) लिवर में डाली जाती हैं। इसके परिणाम स्वरूप लिवर संचार प्रणाली अन्य स्त्रोतों से अलग हो जाती है जो शरीर में रक्त की आपूर्ति करते हैं। 

उपर्लिखित प्रक्रियाओं के अलावा, लिवर कैंसर से पीड़ित मरीज़ों के उपचार के लिए टार्गेटेड थेरेपी (Targeted Therapy), कीमोथेरेपी (Chemotherapy), पॉलिएटिव उपचार (Palliative Treatment) और रेडियोएम्बोलाइज़शन (Radioembolisation) का प्रयोग किया जा सकता है। प्रक्रिया का चुनाव ट्यूमर के प्रकार, स्टेज और फैलाव के अनुसार किया जाता है।

लिवर कैंसर ऑपरेशन के बाद देखभाल - Liver Cancer Surgery hone ke baad dekhbhal
सर्जरी में कितना समय लगेगा यह लिवर कैंसर की जटिलताओं और फैलाव पर निर्भर करता है। आपको सर्जरी के बाद रिकवरी रूम में ले जाय जायेगा। इंट्रावेनस (नसों में) ड्रिप द्वारा आपको द्रव और दवाएं दी जाएँगी। ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए ऑक्सीजन मास्क लगा रहेगा। मूत्राशय में एक कैथेटर लगाया जाता है ताकि मूत्र प्रणाली की कार्यवाही में अगले दो-तीन दिनों तक कोई बाधा न हो। कुछ दिनों बाद, जब स्थिति में थोड़ा सुधार हो जाये, मरीज़ को घर भेजा जा सकता है।

सर्जरी के बाद क्या करें क्या न करें
घाव और पट्टियों (Dressing) को साफ़ और संक्रमण रहित रखें।
सर्जरी के बाद थका हुआ और चिड़चिड़ा महसूस करना आम है। कुछ दिनों तक आपको एकाग्रता और याददाश्त की भी परेशानियां हो सकती हैं। 
घर जाने के बाद जितना हो सके उतना विश्राम करें। 
भारी सामान न उठायें और ऐसे कार्य न करें जिनसे अत्यधिक थकान हो। 
तीन से चार हफ़्तों में आप काम पर वापिस लौट सकते हैं हालांकि एक बार अपने डॉक्टर से इस बारे में सलाह ज़रूर लें। 
कम से कम छह हफ़्तों तक मदिरा का सेवन बिलकुल न करें। 
रिकवरी अवधि के शुरूआती दिनों में, ठोस या कुरकुरे भोजन का सेवन न करें। जूस, सूप आदि द्रवों का सेवन करें जिससे आप हाइड्रेटेड रहें और स्वस्थ भी। 
सर्जरी के बाद लिवर की कार्यवाही वैसे ही अस्तव्यस्त हो जाती है इसलिए पूरे दिन में भोजन का सेवन करने में ज़्यादा समय का अंतर न रखें। 
सर्जरी के बाद संतुलित आहार और पोषक तत्वों का ही सेवन करें। इससे न सिर्फ लिवर की कार्यवाही बेहतर होगी बल्कि कैंसर को हटाने के लिए की गयी सर्जरी के बाद लिवर के पुनर्जनन में भी मदद मिलेगी।
शुरुआत के कुछ दिनों में रेचक (Laxatives) लेने की आवश्यकता हो सकती है जिससे आसानी से मलत्याग करने में मदद मिले। सूखा आलूबुखारा और कीवी फल खाएं जिससे बिना दवाओं के अच्छी तरह से मलत्याग किया जा सके। 
लिवर कैंसर ऑपरेशन की जटिलताएं - Liver Cancer Surgery me jatiltaye
लिवर रिसेक्शन के जोखिम
रक्तस्त्राव
पैरों में रक्त के थक्कों का गठन (Deep Vein Thrombosis)
सर्जरी की जगह पर संक्रमण
लिवर से पित्त का लीकेज
लिवर प्रत्यारोपण के जोखिम
इस प्रक्रिया का सबसे आम दुष्प्रभाव है प्रत्यारोपित लिवर का अग्रहण। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि प्रत्यारोपित लिवर अभी शरीर और प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए नया है। इसके परिणामस्वरूप, दस्त, ऊर्जा के स्तर में कमी, त्वचा का पीला पड़ना और बुखार (उच्च तापमान के साथ) हो सकते हैं। अग्रहण रपढी दवाओं से भी दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
क्रायोसर्जरी के जोखिम
इस प्रक्रिया से नकसीर (Hemorrhage), संक्रमण, मुख्य रक्त वाहिकाओं और पित्त वाहिका को क्षति हो सकते हैं। कभी कभी कैंसर के पुनरावर्तन का भी जोखिम रहता है।

13. पेट के कैंसर का ऑपरेशन - Stomach Cancer Surgery in Hindi

पेट के कैंसर का ऑपरेशन क्या होता है? - Stomach Cancer Surgery kya hai in hindi?
पेट कैंसर की सर्जरी में पेट के कैंसरयुक्त भाग और आसपास के लिम्फ नोड्स और अंगों को निकालने के लिए प्रक्रियाएं शामिल हैं। यह कैंसर के लक्षणों से रोगी को राहत प्रदान कराने के लिए भी किया जा सकता है।

पेट के कैंसर का ऑपरेशन क्यों की जाती है? - Stomach Cancer Surgery kab kiya jata hai?
कैंसर के चरण के आधार पर पेट कैंसर के लिए उपचार के प्रकार का निर्णय लिया जाता है। स्टेजिंग एक विधि है जो कैंसर के प्रसार और गंभीरता का आकलन करने के लिए की जाती है। पेट के कैंसर को 0-4 तक 5 चरणों में वर्गीकृत किया गया है। पेट सर्जरी का उपयोग निम्न में किया जाता है:

उपशमन (Palliation)
कैंसर के साथ ट्यूमर का विकास भी होता है। पेट के कैंसर के मामले में, ट्यूमर बढ़ सकता है और अंततः पाचन तंत्र में भोजन के मार्ग को अवरुद्ध करना शुरू कर सकता है।
अन्य उपचार विकल्पों का काम न करना:
सर्जरी को आमतौर पर किसी भी समस्या का इलाज करने के लिए पहला विकल्प नहीं माना जाता है। कैंसर के मामले में, विकिरण चिकित्सा (radiation therapy) और औषधीय चिकित्सा (medicinal therapy) को आमतौर पर पहले चुना जाता है। कुछ मामलों में वे काम नहीं करते हैं, इसका कारण यह हो सकता है की कैंसर उन्नत चरण में है या इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि विकिरण चिकित्सा और औषधीय चिकित्सा साथ में करने से इनका निराकरण हो गया हो। फिर ऑन्कोलॉजिस्ट सर्जरी का ही फैसला करते हैं। 
अन्य उपचारों के साथ:
कैंसर के मामलों में, कई बार चिकित्सा का केवल एक ही तरीका पर्याप्त नहीं होता है। ऐसे मामलों में, सर्जरी का उपयोग रेडियोथेरेपी या कीमोथेरेपी के साथ किया जा सकता है।
कैंसर को फैलने से रोकने के लिए:
सर्जरी कभी-कभी पेट के आस-पास के लिम्फ नॉड्स को हटाने के लिए की जाती है, जो कैंसर से प्रभावित हो भी सकते हैं और नहीं भी। लिम्फ नोड्स को हटाने से कैंसर को आगे फैलने से रोकने में मदद मिलती है। कैंसर का प्रसार होने के लिए लिम्फ नोड्स सबसे आम ज़रिया हैं।

कैंसर के लिए की जाने वाली सर्जरी उनके चरण पर निर्भर करती है। सर्जरी और उपचार के अन्य तरीकों के बीच थोड़ा बहुत अंतर है। औषधि चिकित्सा या विकिरण चिकित्सा के लिए बहुत व्यापक पूर्व नियोजन की आवश्यकता नहीं होती जैसी सर्जरी के लिए होती है। यदि मेडिकल/ औषधि चिकित्सा दी जानी है, तो चिकित्सक मामले का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करेगा, और किसी निष्कर्ष पर पहुंचकर सबसे उपयुक्त दवाइयां बताएगा।

पेट के कैंसर का ऑपरेशन होने से पहले की तैयारी - Stomach Cancer Surgery ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा: 

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ परीक्षण (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग/ खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)

पेट के कैंसर का ऑपरेशन कैसे किया जाता है? - Stomach Cancer Surgery kaise hota hai?
पेट के कैंसर की सर्जरी को पेट के कैंसरयुक्त भाग,या पेट के किसी हिस्से या पूरे पेट को निकालने के लिए किया जाता है। यह प्रभावित क्षेत्र पर निर्भर करता है। सर्जिकल तरीके निम्नानुसार हैं:

गैस्ट्रेक्टमी (Gastrectomy)
एन्डोस्कोपिक म्यूकोसल रिसेक्शन (Endoscopic Mucosal Resection)
फीडिंग ट्यूब प्लेसमेंट (Placement of Feeding Tube)
लिम्फडेनिकटमी (Lymphadenectomy)
ट्यूमर एब्लेशन (Tumor Ablation)
गैस्ट्रिक बाईपास (Gastric Bypass)
स्टेंट प्लेसमेंट (Stent placement)

गैस्ट्रैक्टमी (Gastrectomy)
गैस्ट्रैक्टमी सर्जरी में पेट का हिस्सा या पूरा पेट निकाला जाता है। जब पेट का ऊपरी या निचला भाग निकाला जाता है और बाकी पूरा पेट स्वस्थ होता है तो उसे पार्शियल गेस्टरक्टमी (partial gastrectomy) कहा जाता है। यदि पेट के ऊपरी हिस्से को हटा दिया जाता है, तो निम्न घुटकी (esophagus) का कुछ हिस्सा इसके साथ काटा जा सकता है। इस प्रक्रिया में, पेट के ऊपरी भाग और छाती के कुछ हिस्से पर एक ऊर्ध्वाधर (vertical) चीरा बनाया जाता है। कभी-कभी 2 सर्जिकल चीरों की भी आवश्यकता हो सकती है। 

यदि पेट के निचले हिस्से को हटा दिया जाता है, तो ग्रहणी (duodenum) के कुछ हिस्से को भी निकला जा सकता है। यदि अन्य अंगों में कैंसर के फैलने का खतरा होता है तो निकटस्थ लिम्फ नोड्स को हटाया जा सकता है। यदि स्प्लीन, लिवर जैसे आसन्न (adjacent) अंगों में भी कैंसर का खतरा है, तो प्रभावित भागों को भी निकाल दिया जाता है।

यदि पूरे पेट को हटा दिया जाता है, तो घुटकी और छोटी आंतों के ऊपरी कुछ भाग को सर्जरी के माध्यम से एक दूसरे से जोड़ा जाता है। इससे पाचन तंत्र की निरंतरता सुनिश्चित होती है। अगर पेट का कोई हिस्सा हटाया जाता है, तो शेष भाग को या तो सर्जरी से ऊपरी तरफ घुटकी से या निचली तरफ   छोटी आंत से जोड़ दिया जाता है।

यदि कैंसर पूरे पेट में फैल गया है तो टोटल गैस्ट्रेक्टमी की जाती है।  

सर्जरी के दौरान आपके पेट पर एक ऊर्ध्वाधर (vertical) चीरा बनाया जा सकता है, या एक साथ दो चीरे या ऊतक त्वचा पर आकृति के आकार का चीरा लगाया जा सकता है। सामान्यतः यह प्रक्रिया 1-3 घंटों के बीच पूरी हो जाती है।

निम्नलिखित दो तरीके हैं जिससे गॉटेस्ट्रोमी किया जा सकता है: 

ओपन गैस्ट्रेक्टमी (Open Gastrectomy)
इस प्रक्रिया में पेट के आस-पास एक चीरा बनाया जाता है। पेट के नीचे मौजूद वसा और मांसपेशियों की परतों को सावधानी से काटा जाता हैं। निकटतम स्वस्थ अंगों, रक्त वाहिकाओं और तंत्रिकाओं को नुकसान न पहुंचे इसका ख़ास ख्याल रखा जाता हैI पूरे पेट या उसके प्रभावित हिस्से को हटा दिया जाता है। ओमेन्टम () का कुछ हिस्सा भी हटाया जा सकता है। ओमेन्टम एक मोटी परत है जो पाचन तंत्र में पेट को सही स्थिति पर बनाए रखती है। प्रक्रिया के बाद चीरे को टाँके से सील दिया जाता है।

लैप्रोस्कोपिक गैस्ट्रेक्टमी (Laparoscopic Gastrectomy)
लैप्रोस्कोपिक सर्जरी में ओपन सर्जरी की अपेक्षाकृत बहुत छोटा चीरा लगाया जाता है। सर्जरी के  उपकरण सम्मिलित करने के लिए छोटे छोटे कई चीरे बनाये जाते हैं। इन्हीं में से एक चीरे के माध्यम से, एक कैमरा डाला जाता है जो सर्जन को पेट के आंतरिक संरचनाओं को देखने और सावधानीपूर्वक और सही तरीके से सर्जरी करने में मदद करता है। छोटे चीरों के कारण, ओपन सर्जरी की तुलना में  इस प्रक्रिया में रक्त की कमी भी कम होती है। दोनों पार्शियल और टोटल गैस्ट्रेक्टमी लैपेरोस्कोपिक रूप से की जा सकती हैं।

एन्डोस्कोपिक म्यूकोसल रिसेक्शन (Endoscopic Mucosal Resection)
इस प्रक्रिया में पेट में मौजूद कैंसर ग्रस्त हिस्से के साथ साथ पेट की भित्ति के भी कुछ हिसे को भी निकला जाता है जो कैंसर से अप्रभावित होती है। यह सर्जरी केवल तब ही प्रभावी होती है जब यह प्रारंभिक चरण में की जाती है यानि जब कैंसर पेट की आंतरिक परत तक सीमित होता है और लिम्फ नोड्स भी प्रभावित नहीं होती है।

एक एंडोस्कोप को मुंह के माध्यम से पेट में डाला जाता है। एन्डोस्कोप एक लम्बी टूयब होती है जिसके के एक छोर पर एक वीडियो कैमरा लगा होता है। ट्यूब मुंह से गले में चला जाता है जिसके बाद वह पेट में उतरा जाता है। एंडोस्कोप के माध्यम से कैंसरयुक्त ऊतकों को निकालने के लिए आवश्यक उपकरणों को डाला जाता है। सर्जन स्पष्ट रूप से वीडियो कैमरा की सहायता से सभी आंतरिक भागों को ठीक ढंग से देख सकता है।

इस प्रक्रिया के दौरान त्वचा पर कोई चीरा देने की आवश्यकता नहीं होती है। यदि ओंकोसर्जन (oncosurgeon) को आवश्यकता महसूस होती है तो निकाले गए पेट के ऊतक को परिक्षण के लिए भेजा जाता है। 

फीडिंग ट्यूब प्लेसमेंट (Placement of Feeding Tube)
इस सर्जरी को आमतौर पर गैस्ट्रोक्टोमी के समय किया जाता है अगर संपूर्ण पेट को या उसके काफी हिस्से को हटा दिया जाता है, तो पाचन सामान्य तरीके से नहीं हो सकता। रोगी की पोषण स्थिति में बाधा आ सकती है इस सर्जरी में जेजुनम (jejunum) में एक ट्यूब लगाया जाता है। ट्यूब का एक छोर रोगी के शरीर के बाहर रहता है इस छोर सेब, तरल पदार्थ सीधे आंत में डाले जाते है। यह सर्जरी के बाद होने वाले कुपोषण से रोगी को बचता है।

लिम्फडेनिकटमी (Lymphadenectomy)
लिम्फडेनिकटमी शब्द का अर्थ है लिम्फ नोड्स को हटाना गैस्ट्रैक्टोमी आमतौर पर लिम्फ नोड्स को हटाया जाता है। लिम्फ नोड्स कैंसर के प्रसार का एक महत्वपूर्ण मार्ग है। इसलिए, उनको हटाने से यह सुनिश्चित होता है कि कैंसर आगे नहीं फैलेगा। पेट के आस पास के सभी लिम्फ नोड्स हटा दिए जाते हैं; चाहे वे कैंसर-ग्रस्त हों या न हों।

ट्यूमर एब्लेशन (Tumor Ablation)
कुछ मामलों में, कैंसर को केवल कुछ हद तक ही समाप्त किया जा सकता है ऐसे में, कैंसर के लक्षणों को कम करने के लिए सर्जरी की जाती है। ऐसी ही एक प्रक्रिया ट्यूमर एब्लेशन है।

एंडोस्कोप को पेट तक पहुंचाया जाता है और इस प्रक्रिया के दौरान ट्यूमर को ख़तम करने के लिए लेजर बीम का उपयोग किया जाता है। यह आगे होने वाली जटिलताओं जैसे  ट्यूमर से रक्तस्राव, पाचन तंत्र को अवरुद्ध करना आदि को रोकता है। इस प्रक्रिया में किसी चीरे की आवश्यकता नहीं होती है। इस तरह का उपचार उपशामक चिकित्सा का हिस्सा होता है यह करीब आधे घंटे तक रहता है। 

गैस्ट्रिक बाईपास (Gastric Bypass)
जब ट्यूमर पेट के निचले हिस्से में मौजूद होता है तो यह सर्जरी एक विकल्प होती है। ट्यूमर बड़ा होकर पेट के आउटलेट को ब्लॉक कर सकता है। यदि मरीज सर्जरी कराने के लिए फिट है, तो गैस्ट्रिक बाईपास एक विकल्प है। इस प्रक्रिया में पेट के ऊपरी हिस्से को जेजुनम से जोड़ा जाता है। यह आंत तक आसानी से भोजन का पारित होना सुनिश्चित करता है। 

गैस्ट्रिक बाइपास ओपन या लैप्रोस्कोपिक विधि द्वारा किया जा सकता है। प्रारंभिक प्रक्रिया दोनों सर्जरी के लिए भिन्न होती है ओपन सर्जरी में पेट पर एक बड़ा चीरा बनाया जाता है। लैप्रोस्कोपिक विधि में कई  चीरें लगाने पड़ते हैं जो ओपन सर्जरी के अपेक्षाकृत छोटे होते हैं। एक चीरे के माध्यम से वीडियो कैमरा डाला जाता है जो आंतरिक संरचनाओं को चित्रित करने में मदद करता है। आगे की प्रक्रिया दोनों तरीकों के लिए एक ही है।

अंतर्निहित फैटी ऊतक और मांसपेशियों को आसन्न स्वस्थ संरचनाओं को नुकसान से बचाने के उद्देश्य से काट दिया जाता है। जेजुनम का एक हिस्सा सावधानी से छेड़ दिया जाता है और ऊपरी पेट से जोड़ दिया जाता है। प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद ओवरलाइनिंग त्वचा को ठीक ढंग से सील दिया जाता है। गैस्ट्रिक बाईपास प्रक्रिया को पूरा होने के लिए करीब 2 घंटे की आवश्यकता होती है।

स्टेंट प्लेसमेंट (Stent Placement)
जब ट्यूमर के बढ़ने और पेट के आउटलेट (निकास) को अवरुद्ध करने का खतरा बढ़ जाता यही तब स्टेंट का प्रयोग किया जाता है इस प्रक्रिया का उद्देश्य यह है की खाना आसानी से पारित हो सके। स्टेंट कहाँ लगेगा यह ट्यूमर के किस स्थान पर है इसपर निर्भर करता है।  यह प्रक्रिया एंडोस्कोपिक रूप से की जाती है। 

पेट के कैंसर का ऑपरेशन के बाद देखभाल - Stomach Cancer Surgery hone ke baad dekhbhal
सर्जरी पूरा होने का यह मतलब नहीं है कि इलाज खत्म हो गया है। जब तक रोगी को अस्पताल से छुट्टी नहीं दी जाती तब तक रोगी की अच्छे से देखभाल की जाती है। दवाइयों, और देखभाल के अन्य तरीकों से यह सुनिश्चित होता है कि रोगी जल्द ही पुनः स्वस्थ हो सकें। इन सभी कारकों को नीचे विवरण में वर्णित किया गया है:

सर्जरी के तत्काल बाद
सर्जरी के पूरा होने के बाद:

सर्जरी के बाद रोगी को ऑपरेटिंग रूम से बाहर स्थानांतरित किया जाता है। आंत्र गतिविधियों, रक्तचाप, नाड़ी, श्वसन दर की सावधानीपूर्वक और नियमित रूप से निगरानी की जाती है। सर्जरी से पहले मूत्राशय में कैथेटर (catheter) रखा जाता है। इसे 2-3 दिनों के लिए रखा जा सकता है। एक नेज़ो-गैस्ट्रिक ट्यूब (naso-gastric tube) रोगी से जुड़ा होती है। यह एक सक्शन मशीन (suction machine) से जुड़ा होता है यह मशीन पेट को खाली रखता है। जब पेट से गड़गड़ाहट की आवाज़ (Bowel sounds) वापिस आने लगती है तो, ट्यूब हटा दी जाती है। सर्जरी के दौरान, जनरल एनेस्थेसिया के कारण आंतों का अस्थायी रूप से स्थानांतरित होना बंद हो जाता है। इसलिए, पेट की आवाज़ यह संकेत देती है कि एनेस्थेसिया का असर ख़त्म हो गया है और पाचन तंत्र ने सामान्य रूप से कार्य करना शुरू कर दिया है। सामान्य श्वास के फिर से शुरू होने के बाद श्वसन ट्यूब को हटाया जा सकता है।

पहले कुछ दिनों के लिए आहार:
पहले कुछ दिनों के लिए तरल आहार दिया जाता है। यदि वह बर्दाश्त हो जाता है, तो रोगी को सरल और नरम ठोस भोजन दिया जायेगा जो कि पचाने में आसान है।

पोस्ट ऑपरेटिव दवाएं:
सर्जरी के बाद, रोगी को सर्जरी के स्थल पर दर्द का अनुभव हो सकता है सर्जरी के बाद रोगी संक्रमण भी विक्सित कर सकते हैं इसीलिए उन्हें दर्द निवारक और एंटीबायोटिक्स दी जाती हैं

पहले कुछ दिनों के लिए घरेलु देखभाल:
सर्जरी के एक या दो दिन बाद मरीज़ चल फिर सकता है। अस्पताल से छुट्टी कब मिलेगी ये सर्जरी के बाद मरीज़ के स्वस्थ्य दर पर निर्भर करता है। निर्धारित अंतरालों पर नियमित रूप से डॉक्टर के पास जांच करने जाना चाहिए। रोगी को एक डाइटीशियन (Dietician; आहार विशेषज्ञ)  से संपर्क करने की सलाह दी जा सकती है जो सभी पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपयुक्त आहार सुझाएंगे और जो उपभोग और पचाने में भी आसान हो।

सर्जरी के साथ-साथ, कैंसर का इलाज करने के लिए विकिरण चिकित्सा और कीमोथेरेपी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। उपचार के इन सभी तरीकों का इस्तेमाल अलग से किया जा सकता है या एक दूसरे के साथ किया जा सकता है।

लम्बे समय तक ध्यान देने योग्य बातें
स्वास्थ्य की जागरूकता
कैंसर का इलाज होने के बाद, कोई गारंटी नहीं है कि यह पुनः नहीं होगा। इसके फिर से होने से बचा जा सकता है यदि मरीज सतर्क रहे और उनके स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहे। किसी भी नए लक्षण के विकास के बारे में उन्हें चौकस होना चाहिए और चिकित्सक से तुरंत सलाह करनी चाहिए।

आहार
आहार प्रतिबंधों का पालन करना आवश्यक है। अगर गैस्ट्रेक्टमी का उपयोग किया गया है, तो प्राकृतिक पाचन की प्रक्रिया थोड़ा प्रभावित हो सकती है। मरीज़ों को एक समय में ज़्यादा खाने से बचना चाहिए तथा तले और मसालेदार खाने से भी बचना चाहिए। शराब और तंबाकू का बिलकुल उपयोग नहीं करना चाहिए। जो लोग मांस खाते हैं, उन्हें जितना संभव हो उतना संभवतः प्रतिबंधित करना चाहिए क्योंकि यह पचाने में भारी होता है।

स्वस्थ जीवनशैली
कैंसर और उसके उपचार के बाद ठीक होने के लिए आवश्यक है की आपकी जीवनशैली स्वस्थ हो। आपको नियमित रूप से व्यायाम और पूर्ण आहार वाला भोजन लेना चाहिए, पूरी नींद लेनी चाहिए और अनावश्यक तनाव से दूर रहना चाहिए।

पेट के कैंसर का ऑपरेशन की जटिलताएं - Stomach Cancer Surgery me jatiltaye
उपचार के बाद रोगियों में निम्नलिखित जटिलताओं को देखा जा सकता है:

एनेस्थेसिया से अलेर्जिक प्रतिक्रिया हो सकती है। इसके कारण सांस लेने में परेशानी हो सकती है।
सर्जरी के दौरान आसन्न स्वस्थ अंगों को कभी कभी आकस्किमिक क्षति पहुंच सकती है।
कई बार ट्यूमर से अत्यधिक रक्तस्राव हो सकता है। यह रक्त के थक्कों का निर्माण भी कर सकता है ऐसे मामलों में, ब्लड ट्रांसफ्यूजन  की आवश्यकता हो सकती है। रक्त के थक्कों को सर्जरी से हटा सकते हैं या दवाओं के साथ इलाज किया जा सकता है। हालांकि, इन दवाइयों को बहुत सावधानी के साथ प्रशासित किया जाना चाहिए।
कई बार मतली, उल्टी, या पेट में दर्द की शिकायत हो सकती है। इन लक्षणों को कम करने में दवाएं मदद करती हैं
पेट विटामिन बी का अवशोषण करता है। गैस्ट्रोटेमी के कारण अक्सर इस विटामिन की कमी हो सकती है। हालांकि यह पोषण पूरक के साथ सही हो सकता है।​
पेट के कैंसर के हर मामले में अलग उपचार की जरूरत होती है। प्रत्येक मामले में सर्जरी की एक ही विधि का उपयोग नहीं किया जा सकता है। सर्जरी और उपचार के अन्य तरीकों से संबंधित निर्णय कैंसर  रोगी की आयु, सामान्य स्वास्थ्य और कैंसर की तीव्रता के आधार पर ओंकोलॉजिस्ट (oncologist) और ओंकोसर्जन (oncosurgeon) द्वारा किया जाता है। उपरोक्त जानकारी आपको पेट कैंसर के लिए सर्जरी के संबंध में क्या उम्मीद करनी है, इसका एक मूल अनुमान देती है।

14. कोलोरेक्टल कैंसर का ऑपरेशन - Colorectal Cancer Surgery in Hindi

कोलोरेक्टल कैंसर का ऑपरेशन क्या होता है? - Colorectal Cancer Surgery kya hai in hindi?
कोलोरेक्टल कैंसर (Colorectal Cancer) कॉलन (Colon) और मलाशय (Rectum) दोनों प्रभावित होते हैं। कैंसरग्रस्त ट्यूमर का स्त्रोत कॉलन या मलाशय में से कोई भी हो सकता है। लेकिन अंत में ट्यूमर कॉलन और मलाशय दोनों को ही प्रभावित करता है जिससे कोलोरेक्टल कैंसर होता है। कोलोरेक्टल कैंसर के उपचार में इस्तेमाल की गई सर्जिकल प्रक्रिया में कैंसरग्रस्त या हानिकारक ट्यूमर को निकाल दिया जाता है। अगर ट्यूमर पूरे कॉलन या मलाशय तक फ़ैल जाए, तो ऐसे में प्रभावित अंग को निकालना पड़ता है जिससे मेटास्टासिस (Metastasis; कैंसर का फैलना) को रोका जा सके। 

कभी कभी, ट्यूमर के आसपास के कॉलन या मलाशय के स्वस्थ भाग को भी हटा दिया जाता है जिससे कैंसर की पुनरावृत्ति की सम्भावना को कम किया जा सके। आसपास के लिम्फ नोड्स को भी निकाला जा सकता है और कॉलन या मलाशय के अंत के कोनों को आँतों से जोड़ दिया जाता है। सर्जरी कोलोरेक्टल कैंसर के लिए मुख्य उपचार है। सर्जरी का तरीका कैंसर के स्टेज पर निर्भर करता है। 

कोलोरेक्टल कैंसर का ऑपरेशन क्यों की जाती है? - Colorectal Cancer Surgery kab kiya jata hai?
सर्जरी ऑन्कोलॉजिस्ट (Oncologist; ट्यूमर का निदान और उपचार करने वाले विशेषज्ञ) को सबसे आसान तरीके से ट्यूमर को निकालने में मदद करती है। यह हानिकारक ट्यूमर का उपचार करने के और कोलोरेक्टल कैंसर की पुनरावृत्ति को रोकने के सबसे विश्वसनीय तरीकों में से एक है। कैंसर की शुरूआती स्टेज में भी यह प्रक्रिया सबसे ज़्यादा सहायक सिद्ध हुई है हालांकि अगर कैंसर अग्रिम चरण पर है तो सर्जरी के साथ अन्य तकनीकें जैसे कीमोथेरेपी (Chemotherapy) या विकिरण चिकित्सा (Radiation Therapy) का भी प्रयोग किया जा सकता है।

कोलोरेक्टल कैंसर का ऑपरेशन होने से पहले की तैयारी - Colorectal Cancer Surgery ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा: 

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)

कोलोरेक्टल कैंसर का ऑपरेशन कैसे किया जाता है? - Colorectal Cancer Surgery kaise hota hai?
कोलोरेक्टल कैंसर के उपचार की कई सर्जिकल प्रक्रियाएं हैं:

कोलेक्टॉमी (Colectomy)
प्रोक्टेक्टॉमी (Proctectomy)
कॉलोस्टोमी (Colostomy)
हाइपरथर्मिक इंट्रापेरिटोनियल कीमोथेरेपी (Hyperthermic Intraperitoneal Chemotherapy, HIPEC)
लोकल एक्सिशन और पॉलीपेक्टॉमी (Local Excision and Polypectomy)
कोलेक्टॉमी (Colectomy)
इस प्रक्रिया द्वारा कॉलन में स्थित कैंसरग्रस्त ट्यूमर या कोशिकाओं को निकाला जाता है। कैंसरग्रस्त ट्यूमर पूरी तरह निकल चुके हैं और कैंसर की पुनरावृत्ति नहीं होगी, यह सुनिश्चित करने के लिए कॉलन के स्वस्थ हिस्से को भी निकाला जा सकता है। ज़्यादातर स्थितियों में जहाँ कैंसर के विकास पर नियंत्रण रखा जा सकता है, वहां कॉलन का बस एक-चौथाई या एक-तिहाई हिस्सा ही निकाला जाता है। 

कोलेक्टॉमी करने के दो तरीके हैं- ओपन सर्जरी (Open Surgery) और लैप्रोस्कोपिक कोलेक्टॉमी (Laparoscopic Colectomy)। ओपन प्रक्रिया में पेट पर एक लम्बा चीरा काटा जाता है। फिर सर्जिकल उपकरणों की मदद से कॉलन को आसपास के ऊतकों से निकला जाता है। सर्जन कॉलन का कुछ हिस्सा (Partial Colectomy; आंशिक कोलेक्टॉमी) या ज़रुरत पड़ने पर पूरे कॉलन को (Total Colectomy; टोटल कोलेक्टॉमी) निकाल देते हैं। मरीज़ों को करीब एक हफ़्तों तक अस्पताल में रहने की आवश्यकता होती है। 

लैप्रोस्कोपिक प्रक्रिया में पेट पर चार से पांच छोटे चीरे काटे जाते हैं जिसके माध्यम से लैप्रोस्कोप (Laparoscope) डाला जाता है। लैप्रोस्कोप एक पतली लचीली ट्यूब है जिससे एक छोटा वीडियो कैमरा जोड़ा जाता है। कैमरे के माध्यम से पेट के अंदरूनी हिस्सों को देखा जा सकेगा। इससे सर्जन को ट्यूमर को देखने में और उसे निकालने में मदद मिलेगी।

लिम्फाडेनेक्टॉमी (Lymphadenectomy) नामक एक प्रकिया का भी प्रयोग किया जा सकता है जिससे अगर कैंसरग्रस्त कोशिकाएं लिम्फ नोड्स तक फ़ैल गयी हैं तो उनको हटाया जा सके। सर्जिकल प्रक्रिया के दौरान पैथोलोजिस्ट (Pathologist; रोग-विज्ञान विशेषज्ञ) मौजूद होता है ताकि उस ही समय माइक्रोस्कोप (Microscope) पर लिम्फ नोड्स को जांचा जा सके और देखा जा सके कि उन पर तो कैंसरग्रस्त कोशिकाओं का फैलाव नहीं हुआ है। इस प्रकार सर्जन प्रक्रिया में जितने संभव हो उतने कैंसरग्रस्त ऊतकों को निकाल पाएंगे। सर्जरी के समाप्त होने पर कॉलन के स्वस्थ कोनों को फिर जोड़ दिया जाता है। 

प्रोक्टेक्टॉमी (Proctectomy)
इस सर्जिकल प्रक्रिया द्वारा मलाशय के क्षतिग्रस्त भाग या अगर कैंसर अग्रिम चरण में है तो पूरा मलाशय निकाला जाता है। अगर कैंसर मलाशय के ऊपरी भाग में है तो इसके लिए लो एंटीरियर रिसेक्शन प्रक्रिया (Low Anterior Resection Procedure) का प्रयोग करके कैंसरग्रस्त ट्यूमर को निकाला जाता है और अगर हानिकारक ट्यूमर मलाशय के निचले हिस्से में है तो इसके लिए अब्डॉमिनोपेरिनियल प्रक्रिया (Abdominoperineal Procedure; पेट-सम्बन्धी एक प्रक्रिया) का प्रयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान भी पैथोलोजिस्ट मौजूद होता है।

लो एंटीरियर रिसेक्शन प्रक्रिया से कैंसरग्रस्त ऊतकों को निकालकर बचे हुए मलाशय को सिग्मोइड कॉलन के साथ जोड़ दिया जाता है। इससे अपशिष्ट पदार्थ (Waste Materials) गुदे के ज़रिये शरीर से बाहर निकल जायेंगे। 

अब्डॉमिनोपेरिनियल प्रक्रिया में मलाशय के निचले भाग से कैंसरग्रस्त ऊतकों को निकाला जाता है। इस प्रक्रिया में स्फिंक्टर मांसपेशियों (Sphincter Muscles) को भी (आंशिक या पूरी तरह से) निकाला जाता है। अगर स्फिंक्टर मांसपेशियों को निकाला गया है तो, ऑन्कोलॉजिस्ट शरीर से अपशिष्ट पदार्थ निकालने के लिए एक आउटलेट (Outlet; निकास) बनाते हैं। 

कॉलोस्टोमी (Colostomy)
अगर अब्डॉमिनोपेरिनियल प्रक्रिया के बाद या स्फिंक्टर मांसपेशियों को पूर्ण रूप से निकालने के बाद सर्जन कॉलन और मलाशय के स्वस्थ भाग को जोड़ने में असमर्थ हैं तो इस प्रक्रिया की ज़रुरत पड़ती है। ऐसे में, पेट के निचले हिस्से में स्टोमा (Stoma) नामक एक कृत्रिम खुलाव बनाया जाता है जिससे अपशिष्ट पदार्थ को शरीर से बाहर निकाला जा सकता है। स्टोमा पेट के बाहरी हिस्से पर बनाया जाता है जिससे कॉलन का सेगमेंट जोड़ा जाता है। अपशिष्ट को इकट्ठा करने के लिए स्टोमा के साथ कोलोस्टॉमी बैग (Colostomy Bag) जोड़ा जाता है। यह एक गंध मुक्त बैग है जो डिस्पोजेबल (Disposable; जिसे फेंका जा सके) होता है। 

हाइपरथर्मिक इंट्रापेरिटोनियल कीमोथेरेपी (Hyperthermic Intraperitoneal Chemotherapy, HIPEC)
अगर कैंसर अग्रिम चरण में है और किसी अन्य अंग तक नहीं फैला है तो ये प्रक्रिया लाभकारी सिद्ध हुई है। इस प्रक्रिया में सर्जरी के दौरान पेट में मौजूद कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को सीधा कीमोथेरेपी दी जाती है।

लोकल एक्सिशन और पॉलीपेक्टॉमी (Local Excision and Polypectomy)
यह प्रक्रिया, आम तौर पर, स्टेज I या स्टेज II के कैंसर के उपचार के लिए प्रयोग की जाती है।

कॉलोनोस्कोपी (Colonoscopy) के द्वारा, सर्जन हानिकारक ट्यूमर (स्टेज I या स्टेज II कैंसर के) को निकालते हैं। यह सर्जरी कॉलोनोस्कोप (Colonoscope) द्वारा की जाती है जोकि एक पतली लचीली ट्यूब है जिससे एक लाइट और कैमरा जुड़ा होता है। कैमरा की मदद से ऑन्कोलॉजिस्ट को हानिकारक ट्यूमर की ठीक जगह और यह कितना फैला है जानने में मदद मिलती है। इस सर्जरी से ऊतकों की ज़्यादा टूट - फूट नहीं होती। अगर हानिकारक ट्यूमर को कॉलोनोस्कोप से निकाला जाता है तो इस प्रक्रिया को एंडोस्कोपिक म्यूकोसल रिसेक्शन (Endoscopic Mucosal Resection, EMR) कहा जाता है। यदि प्रक्रिया में पॉलिप निकाला जाता है तो, इसे पॉलीपेक्टॉमी (Polypectomy) कहा जाता है।

कोलोरेक्टल कैंसर का ऑपरेशन के बाद देखभाल - Colorectal Cancer Surgery hone ke baad dekhbhal
सर्जरी के बाद बिना किसी परेशानी के रिकवरी हो इसके लिए ज़रूरी है कि कुछ बातों का ध्यान रखा जाये:

डॉक्टर द्वारा नियमित फॉलो-अप शिड्यूल (Follow-Up Schedule) का पालन करें। यह चेक-अप्स इसलिए ज़रूरी हैं ताकि डॉक्टर यह जांच कर सके की सर्जरी का परिणाम कितना सफल है और कैंसर की पुनरावृत्ति तो नहीं हो रही। 
डॉक्टर द्वारा निर्धारित दवाओं को निर्धारित खुराक में लें। 
सर्जरी के करीब तीन महीने बाद, इमेजिंग टेस्ट्स (Imaging Tests) जैसे सीटी स्कैन (CT Scan), एमआरआई स्कैन (MRI Scan) और अन्य जांच करवाई जाएँगी।
सर्जरी के बाद, जितना हो सके उतना सक्रिय रहें। इससे आपको लम्बे समय तक स्वस्थ और फिट रहने में मदद मिलेगी। अध्ययनों में पाया गया है कि जो मरीज़ सक्रीय रहे हैं उनमें कैंसर की पुनरावृत्ति का जोखिम कम रहता है।
स्वस्थ जीवन के लिए स्वश्थ आहार अत्यंत आवश्यक है। इससे जल्दी रिकवरी में मदद मिलेगी। पशु आधारित भोजन की तुलना में पौधों से मिलने वाला भोजन ज़्यादा आसानी से पच जाते हैं। ऐसा भोजन खाएं जिसके पाचन में परेशानी न हो।
आपको खनिज पदार्थ (Minerals) और विटामिन्स (Vitamins) की कमी पूर्ति करने के लिए पूरक (Supplements) लेने की आवश्यकता हो सकती है। आयरन (Iron) के पूरकों से रक्त गणना (Blood Count) को बेहतर करने में मदद मिलेगी और एनीमिया (Anemia) से बचा जा सकेगा। कैल्शियम (Calcium) के पूरक लेने से हड्डियां मज़बूत होंगी।
धूम्रपान न करें और मदिरा का सेवन न करें। इनसे कैंसर की पुनरावृत्ति होने का जोखिम रहता है।
बार बार अस्पताल के चक्कर काटने, दवाओं और सर्जिकल प्रक्रियाओं से मरीज़ों पर मानसिक तनाव भी पड़ता है। मरीज़ के करीबी और परिवार वालों को यह प्रयास करना चाहिए कि मरीज़ खुश रहे। भावनात्मक सहारे और प्रेम से भी रिकवरी जल्दी में मदद मिलती है। 
कोलोरेक्टल कैंसर का ऑपरेशन की जटिलताएं - Colorectal Cancer Surgery me jatiltaye
हर प्रक्रिया की तरह इस प्रक्रिया से भी कुछ जोखिम जुड़े हैं। सर्जरी करवाने से पहले आपको इनके बारे में जानकारी रखनी चाहिए:

एनेस्थीसिया के दुष्प्रभाव (जैसे मतली, सिरदर्द आदि) 
रक्तस्त्राव
संक्रमण
आसपास के अंगों को आकस्मिक चोट पहुँच सकती है
मलत्याग करने में परेशानी (खासकर अगर पूरा कॉलन या मलाशय निकाला गया है)

15. मुंह के कैंसर का ऑपरेशन - Oral Cancer Surgery

मुंह के कैंसर का ऑपरेशन क्या होता है? - Oral Cancer Surgery kya hai in hindi?
मौखिक कैंसर सर्जरी (ओरल कैंसर सर्जरी; Oral Cancer surgery) को आपकी मौखिक गुहा में मौजूद कैंसर कोशिकाओं या ट्यूमर को निकालने के लिए किया जाता है। सर्जरी मुख्य रूप से इसीलिए की जाती है ताकि कैंसर आपके शरीर के अन्य भागों में न फैले। इसलिए, सर्जरी करने का उद्देश्य कैंसर प्रभावित ऊतकों को दूर करना है जिससे मुंह को न्यूनतम नुकसान हो। सर्जरी में कैंसरयुक्त लिम्फ नोड्स को भी निकला जा सकता है इसके अलावा, अन्य सीमांत लिम्फ नॉड्स भी हटाए जा सकते हैं।

मुंह के कैंसर का ऑपरेशन क्यों किया जाता है? - Oral Cancer Surgery kab kiya jata hai?
मौखिक कैंसर का विभिन्न तरीकों और तकनीकों से उपचार किया जा सकता है। सर्जरी कैंसर के उपचार के लिए इस्तेमाल की जाने वाली विधियों में से एक विधि है। यदि प्रारंभिक चरण में मौखिक कैंसर का पता लग जाता है, तो इसके बढ़ने और अन्य शरीर के अंगों में फैलने से पूर्व ही इसे सर्जरी से हटाया जा सकता है। इसलिए, अगर कैंसर का पता प्रारंभिक चरण में ही चल जाता है, तो यह जीवन बचा सकता है। जब अन्य उपचार से कोई आवश्यक सुधार नहीं दिखाई देता है, तब भी उपयोग किया जाता है।

मुंह के कैंसर का ऑपरेशन होने से पहले की तैयारी - Oral Cancer Surgery ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा: 

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ परीक्षण (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग/ खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)
कुछ अन्य विशिष्ट परिक्षण 
पेट स्कैन (PET Scan) - यह जानने के लिए की कैंसर कहाँ खान तक फैला है 
एंडोस्कोपी (Endoscopy)- विंडपाइप, नाक के मार्ग, साइनस, आंतरिक गले, फैरिंक्स, लैरिंक्स, टॉन्सिल और आसपास के क्षेत्र की जांच करने के लिए

मुंह के कैंसर का ऑपरेशन कैसे किया जाता है? - Oral Cancer Surgery kaise hota hai?
मौखिक कैंसर को हटाने के लिए कई तरीके हैं। आपके द्वारा आवश्यक सर्जरी की मात्रा आपके कैंसर के चरण पर भी निर्भर करती है। प्रारंभिक चरण के लिए, लेजर सर्जरी का उपयोग करके कैंसर को हटाया जा सकता है।

मौखिक कैंसर के लिए अधिकांश ऑपरेशन प्रमुख सर्जरी होती हैं हटाने वाले ऊतकों की मात्रा इस बात पर निर्भर करती है कि कैंसर किस जगह है। उदाहरण के लिए, यदि आपकी जीभ कैंसर से प्रभावित होती है, तो आप अपनी जीभ के एक बड़े हिस्से को निकाल सकते हैं।

मौखिक कैंसर (ओरल कैंसर) सर्जरी में निम्नलिखित शामिल हैं:
- प्राथमिक ट्यूमर रिसेक्शन (Primary Tumor Resection)
यह सर्जरी ट्यूमर और उसके आसपास के ऊतकों को हटाने के लिए की जाती है। इस प्रक्रिया में कैंसर ग्रस्त क्षेत्र के सीमान्त ऊतकों के साथ पूरे कैंसर को हटाना शामिल है। इससे यह आश्वासन मिलता है कि कैंसर पूरी तरह समाप्त हो चुका है। सर्जन कैंसर के ऊतकों को इकट्ठा करके उन्हें प्रयोगशाला में भेजेगा। पैथोलॉजी लैब में, इन ऊतकों के नमूने की जांच की जाती है। यदि ऊतक के किनारे पर कोई कैंसर कोशिका नहीं पाए जाते हैं, तो यह कैंसर मुक्त सीमान्त दिखता है।
यदि ट्यूमर छोटा है और सर्जन के लिए पहुंच योग्य है, तो आपके मुंह के माध्यम से सर्जरी की जा सकती है। बड़े ट्यूमर होने के मामले में, सर्जन ट्यूमर तक पहुंचने के लिए आपके जबड़े की हड्डी या गर्दन के माध्यम से चीरा बना कर सर्जरी कर सकते हैं। इस प्रक्रिया को मैन्डीबुलोटोमी  (mandibulotomy) के रूप में जाना जाता है।

मैंडिब्यूलर रिसेक्शन (Mandibular Resection)
यदि कैंसर से आपके जबड़े की हड्डी पर असर पड़ता है, तो आपका चिकित्सक आपको मैंडिब्यूलर रिसेक्शन कराने का सुझाव देगा। इस सर्जरी में ट्यूमर के साथ-साथ आपके जबड़े के ऊतकों और हड्डी के कुछ भाग या पूरे को हटा देना शामिल है। सर्जरी में पार्शियल थिकनेस रिसेक्शन (partial thickness resection) या फुल थिकनेस रिसेक्शन (full thickness resection) हो सकता है।
पार्शियल थिकनेस रिसेक्शन में आपके जबड़े कि एक पतली परत को निकला जाता है जो आपके दांतों को समाविष्ट करता है। यह तब किया जाता है जब आपके चिकित्सक को संदेह होता है कि कैंसर ने आपके जबड़े की हड्डी को प्रभावित किया हो, भले ही एक्स-रे में ऐसे लक्षण नहीं दिखाई दिए हों।
फुल थिकनेस रिसेक्शन में पूरे जबड़े की हड्डी को हटा दिया जाता है इस सर्जरी का सुझाव उन रोगियों को दिया जाता है जिनके एक्स-रे रिपोर्ट से यह पता चलता है कि कैंसर ने उनके जबड़े की हड्डी को प्रभावित किया है।

मैक्सिलेक्टोमी (Maxillectomy)
यदि कैंसर के ट्यूमर आपके मुंह (तालू) की ऊपरी सतह कि हड्डियों में फैल गया है, तो आपको इनमें से एक या अधिक हड्डियों को निकालने के लिए मैक्सिलेक्टोमी की आवश्यकता होती है। इस ऑपरेशन में दो श्रेणियां हैं: पार्शियल मैक्सिलेक्टोमी और फुल मैक्सिलेक्टोमी - इन दोनों सर्जरीओं में आपके तालु में नाक के लिए एक जगह छोड़ी जाती है। नाक और मुंह के बीच विभाजन बनाने के लिए और खाली जगह को भरने के लिए उस क्षेत्र में आपका सर्जन पुनर्निर्माण सर्जरी (reconstruction surgery) कर सकता है। 

मोहस 'सर्जरी (Mohs' Surgery)
मोहस सर्जरी को माइक्रोग्राफ़िक सर्जरी (Micrographic surgery) के रूप में भी जाना जाता है। स्किन कैंसर का इलाज करने के लिए यह एक उन्नत उपचार प्रक्रिया है। यदि कैंसर से आपके होंठ प्रभावित हुए हैं, तो यह सर्जरी इसके लिए बहुत प्रभावी है। इस सर्जरी की प्रक्रिया में आपके होंठ की एक पतली परत से कैंसर हटाया जाता है। जब तक सर्जन को कैंसर मुक्त परत नहीं मिलती है तब तक प्रत्येक परत की जांच होती है। यह सर्जरी बहुत उपयोगी है क्योंकि इसमें ऊतकों की न्यूनतम मात्रा को हटाने की सम्भावना होती है। यद्यपि, होंठ से हटाए गए ऊतकों की मात्रा आपके चेहरे कि दिखावट पर फर्क डाल सकती है।

ग्लोसेक्टमी (Glossectomy)
इसमें दो प्रकार होते हैं; पार्शियल ग्लोसेक्टमी (Partial glassectomy) और फुल ग्लोसेक्टमी (Total glassectomy)। पार्शियल ग्लोसेक्टमी में आपकी जीभ का एक हिस्सा निकला जाता है। फुल ग्लोसेक्टमी में आपकी पूरी जीभ निकली जाती है। ये सर्जरी केवल तब ही की जाती हैं जब कैंसर को ख़तम करना बहुत ज़रूरी हो जाता है। मरीजों को यह काफी भयावह महसूस होता है जब उन्हें ग्लोसेक्टमी सर्जरी कि सलाह दी जाती है। जीभ कैंसर के अधिकांश मामलों में रेडियोथेरेपी या कीमोथेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है।

इस सर्जरी के बाद आपके बोलने के तरीके में बहुत अंतर आएगा और साथ ही आपके खाने-पीने की आदतों में भी बहुत बदलाव आएगा। पार्शियल ग्लोसेक्टमी में आपकी आधे से कम जीभ को हटाया जाता है। कुल ग्लोससेक्टमी के मामले में, आपका सर्जन आपकी जीभ का पुनर्निर्मित कर सकता है।

लैरिंजेक्टोमी (LARYNGECTOMY)

आपके लैरिंक्स (larynx) को हटाने के लिए की जाने वाली सर्जरी (वॉयस बॉक्स) को लैरिंजेक्टोमी (Laryngectomy) कहा जाता है। अगर आपकी जीभ पर बड़े कैंसरयुक्त ट्यूमर हैं तो उसके लिए ऊतकों को हटाने की आवश्यकता है, जो आपको निगलने में सहायता करते हैं। एक संभावित जटिलता यह हो सकती है कि भोजन आपके ट्रेकिआ (विंडपाइप), और फेफड़ों में प्रवेश कर सकता है। इससे चोकिंग (श्वसन मार्ग में अवरोध) और फेफड़ों में संक्रमण हो सकता है। यदि कैंसर अधिक जोखिम भरा दिखता है, तो आपका सर्जन आपकी जीभ के ट्यूमर के साथ-साथ आपके पूरे लैरिंक्स या इसके एक भाग को निकाल सकता है।

लैरिंक्स एक अंग है जो आपको सांस लेने में सहायता देता है। यदि यह अंग हटा दिया जाये, तो आपका सर्जन आपके ट्रेकिआ के अंत को आपकी गर्दन को जोड़ने वाले छिद्र में जोड़ देगा। फिर आप छिद्र के माध्यम से साँस ले सकते हैं। आपकी गर्दन में मौजूद इस छेद को स्टोमा (stoma) या ट्रैकिओस्टोमी (tracheostomy) कहा जाता है।

दांतों को हटाना और दंत प्रत्यारोपण (Dental implants)

आपके कुछ दांतों या सभी दांतों को पहले रेडियोथेरेपी से हटाया जा सकता है। सर्जरी के दौरान या सर्जरी के बाद में दंत प्रत्यारोपण किया जा सकता है। 

पुनर्निर्माण सर्जरी (Reconstruction Surgery)

उपरोक्त कुछ प्रक्रियाओं के लिए पुनर्निर्माण सर्जरी की आवश्यकता होती है।  यदि आपके ऊतकों का एक बड़ा हिस्सा कैंसर सर्जरी के दौरान हटा दिया जाता है, तो आपका सर्जन उस हिस्से या अंग का पुनर्निर्माण कर सकता है। वे इस प्रक्रिया में निम्न विधियों का उपयोग कर सकते हैं:

-शरीर के दूसरे हिस्सों के ऊतकों का उपयोग करना

जिस सर्जरी में शरीर के एक हिस्से के ऊतकों को दूसरे हिस्से में उपयोग किया जाता है इसे फ्लैप की मरम्मत (Flap repair ) या फ्री फ्लैप पुनर्निर्माण (Free flap reconstruction) कहा जाता है। उदाहरण के लिए, यदि आपके सर्जन ने आपके मुंह की परत को हटाया है, तो आपकी आंत्र से ऊतक या आपकी बाहों, पीठ या पेट क्षेत्र से मांसपेशियों का इस्तेमाल किया जा सकता है। सूक्ष्म संवहनी तकनीक (Micro vascular technique) का इस्तेमाल करके छोटी रक्त वाहिकाओं को सूक्ष्मदर्शी तंत्र (Microscope) के तहत टांका जाता है। यह विशेष रूप से प्रशिक्षित सर्जनों द्वारा किया जाता है।

फ्लैप की मरम्मत के बाद, आपके डॉक्टर और नर्स यह सुनिश्चित करेंगे कि फ्लैप को अच्छी मात्रा में रक्त मिल रहा है ताकि रक्त से ऑक्सीजन और पोषक तत्व से ऊतकों को ठीक होने में मदद मिले। यह सुनिश्चित करने के लिए कि फ्लैप ठीक से काम कर रहा है, उस क्षेत्र की ढंग से जांच की जाती है।

-त्वचा उपरोपण करना (Skin graft)

इस प्रक्रिया में आपकी त्वचा के एक क्षेत्र पर आपके शरीर के अन्य क्षेत्र से ली गई त्वचा का उपरोप होता है। आपके सर्जन आपके फ्लैप को त्वचा उपरोपण से ढँक सकते हैं। यह आपकी आंतरिक जांघ या प्रकोष्ठ से त्वचा की एक पतली परत लेकर किया जाता है, इस साइट को डोनर साइट (Donor site) के रूप में जाना जाता है।

सर्जरी के बाद, डोनर साइट की त्वचा कुछ हफ्तों के भीतर ही बढ़ जाती है/ वापिस आ जाती है। कभी-कभी डोनर साइट से भारी मात्रा में त्वचा को हटाया जा सकता है। ऐसे अवसरों पर, डोनर साइट को एक साथ वापस टांक कर ठीक कर दिया जाता है।

त्वचा उपरोपण प्रक्रिया के बाद, नई त्वचा अपने आसपास के क्षेत्र से अलग दिखती है। इसमें रंग और सतह का अंतर देखा जा सकता है। आप पहले की तुलना में भी अलग दिखाई दे सकते हैं।

-शरीर के दूसरे भाग की हड्डी का उपयोग करना

जब सर्जरी में आपके जबड़े की हड्डी को निकालने की आवश्यकता होती है, तो इसे आपके कूल्हे, पीठ या निचले पैर से ली गई हड्डियों का उपयोग करके प्रतिस्थापित किया जा सकता है।

लिम्फ नोड्स निकालना 

ओरल कैंसर आपके लिम्फ नोड्स में फैल सकता है। यदि आपकी लिम्फ नॉड्स कैंसर से प्रभावित होती हैं तो उन्हें निकाला जा सकता है। इस प्रक्रिया को एक नैक डिसेक्शन (Neck dissection) कहा जाता है। नैक डिसेक्शन में आपके कुछ या सभी लिम्फ ग्रंथियों और उसके आसपास के प्रभावित संरचनाओं को हटा दिया जाता है। ज़्यादातर, सर्जन प्रभावित लिम्फ नोड्स का इलाज करने के लिए रेडियोथेरेपी का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि सर्जिकल तरीके से दीर्घकालिक दुष्प्रभाव होते हैं।

मुंह के कैंसर का ऑपरेशन के बाद देखभाल - Oral Cancer Surgery hone ke baad dekhbhal
ऐसी कई बातें हैं जिनका रोगियों को कैंसर ऑपरेशन के बाद पालन करना चाहिए।

अस्पताल में रिकवरी

यदि उनकी जीभ या जबड़े की हड्डियों के लिए पुनर्निर्माण सर्जरी की गयी है तो मरीजों को चेहरे के लिए व्यायाम सिखाये जाते हैं। तनाव को दूर करने के लिए ध्यान (Meditation) करने की सलाह दी जाती है। रोगियों को सलाह दी जाती है कि अस्पताल से घर जाने के बाद भी वे इन बातों का पालन करें।

अस्पताल में रहने के दौरान रोगियों की नब्ज़ () की नियमित रूप से निगरानी की जाती हैं। रोगियों को उनके स्वास्थ्य और स्वास्थ्य स्थिति के आधार पर कुछ दवाएं निर्धारित की जाती हैं।

घर पर रिकवरी

डॉक्टर कैंसर के रोगियों के लिए आहार चार्ट तैयार करेंगे। स्वस्थ रहने के लिए आहार चार्ट का पालन करना चाहिए। आपके द्वारा उपभोग किए जाने वाले भोजन में विभिन्न आवश्यक पोषक तत्व शामिल होते हैं जो आपके शरीर को तेजी से ठीक करने में सहायता करते हैं। आपके शरीर को मजबूत दवाओं को सहन करने में सक्षम होना चाहिए। इसलिए, पोषक आहार आपके शरीर को इसे सहन करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

फॉलो-अप अपॉइंटमेंट्स (Follow-up Appointments)

सर्जरी के बाद, रोगी के लिए उनके स्वास्थ्य और रिकवरी स्थिति का ट्रैक रखना बहुत महत्वपूर्ण है
निम्न के बारे में जानने के लिए आपको अपने डॉक्टर के साथ फॉलो-अप अपॉइंटमेंट्स का पालन करना होगा :

दवाएं कितनी अच्छी तरह से काम कर रही हैं
दुष्प्रभाव
उपचार, चिकित्सा या दवाओं में कोई परिवर्तन आवश्यक है की नहीं 
अपनी नब्ज़ की जानकारी के लिए
आपका स्वस्थ्य दर 
सर्जरी के बाद जीवन

मौखिक कैंसर आपकी जीभ, होंठ, दांत, गले, और आपके मुंह के आसपास के कई अन्य अंगों को प्रभावित कर सकता है। मौखिक कैंसर की सर्जरी जहां आपके जीभ, गले, आदि का कुछ भाग या पूरा भाग हटाया जाता है आपके जीवन को कई तरह से प्रभावित कर सकता है। बोलने, खाने और श्वास जैसी क्रियाएं ऐसी सर्जरी के बाद समस्याग्रस्त हो सकती हैं। कभी-कभी, यदि जीभ को हटा दिया जाता है, तो चिकित्सक सर्जरी की सहायता से उसका पुनर्निर्माण करते हैं; लेकिन इसे ठीक होने के लिए समय की आवश्यकता होती है। ऐसे समय में,कोई थेरेपिस्ट आपकी सहायता कर सकता है
मौखिक कैंसर सर्जरी के बाद, मरीजों के चेहरे की दिखावट में कुछ बदलाव आ सकते हैं। कभी-कभी ऐसा परिवर्तन देखने में काफी निराशा होती है आपका थेरेपिस्ट आपको तनाव से बचने के लिए कुछ  दिशानिर्देश दे सकता है।

यदि कैंसर का निदान पहले किया गया है तो कैंसर की वापसी की 20% सम्भावना हमेशा होती है। मरीजों को हमेशा आवश्यक सावधानी बरतनी चाहिए ताकि कैंसर को वापस आने से रोक सकें।

सावधानियां:

धूम्रपान से बचें
शराब से बचें
जब तक आपके आंतरिक ज़ख्म ठीक नहीं हो जाते तब तक सख्त भोजन लेने से बचें
समय-समय पर ड्रेसिंग बदलें
उन खाद्य पदार्थों से बचें जिनसे आपकी चिकित्सा प्रक्रिया में परेशानी आ सकती है 
जब आप सो रहे हों तो अपने सिर ऊंचा रखें  ताकि आप उस क्षेत्र को क्षति न पहुंचा दें जहां टाँके लगे हों
इससे पहले कि आप अपना चेहरा धोएं या स्नान करें तान्खेग्रस्त क्षेत्रों को कवर करें ताकि पानी से टाँके और ज़ख्म प्रभावित न हों 
मुंह के कैंसर का ऑपरेशन की जटिलताएं - Oral Cancer Surgery me jatiltaye
आपके मौखिक खंड में हुई सर्जरी से होने वाले जोखिम और जटिलताएं आपके मुंह के कामकाज संबंधित कई कारकों पर प्रभाव डालती हैं। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

साँस लेने में परेशानियां
खाने और बोलने में समस्याएं (अगर जीभ, गला, जबड़े या दांत निकाल दिए जाते हैं)
चेहरे की दिखावट में बदलाव
मौखिक कैंसर या कैंसर के किसी अन्य रूप की पुनरावृत्ति (Reccurence)
संक्रमण
निशान पड़ना

16. ओवेरियन सिस्ट का ऑपरेशन - Ovarian Cyst Removal (Cystectomy) Surgery in Hindi

ओवेरियन सिस्ट का ऑपरेशन क्या होता है? - Ovarian Cyst Removal Surgery kya hai in hindi?
डिम्बग्रंथि/ ओवरी/ अंडाशय में सिस्ट कई रोगों के कारण हो सकता है। इन सिस्ट्स को हटाने के लिए सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है। इस प्रक्रिया को अंडाशय से सिस्ट (पुटी) हटाने (सिस्टक्टोमी; Cystectomy) की सर्जरी कहा जाता है। यह ओपन पद्धति या लैप्रोस्कोपी (Laparoscopy) द्वारा की जा सकती है।

सिस्ट एक या एक से ज़्यादा भी हो सकते हैं। क्षति के आधार पर या केवल सिस्ट हटा दिए जाते हैं या अंडाशय के कुछ भाग को भी हटा दिया जाता है। कुछ स्थितियों में सिस्ट बड़ा होता है और अंडाशय के प्रमुख भाग तक फ़ैल चुका होता है। ऐसे में, सर्जरी से पूरे अंडाशय को हटाने की आवश्यकता हो सकती है। इस सर्जरी की अवधि अंडाशय को हुए नुक्सान की मात्रा और सिस्ट पर निर्भर करती है। यह सर्जरी महिला रोगियों में ही होती है।

अंडाशय से सिस्ट हटाने की सर्जरी क्यों की जाती है? - Cystectomy kab kiya jata hai?
अण्डाशयी सिस्ट अंडाशय की सतह पर फैलता है। ये आम तौर पर मुलायम, ठोस और तरल पदार्थ से भरे होते हैं। लेकिन ये कई बार सख्त भी हो सकते हैं। निम्न स्थितियों में इन्हें हटाने के लिए सर्जरी की जा सकती है:

पॉलिसिस्टिक अंडाशय सिंड्रोम, पीसीओएस (Polycystic Ovary Syndrome, PCOS)

पॉली सिस्टिक अंडाशय सिन्ड्रोम सामान्यतः पायी जाने वाली स्थिति है। हार्मोन के स्तर में असामान्यता के कारण, अंडाशय अंडा बनाने में असमर्थ हो जाते हैं जिसकी वजह पुरुष शुक्राणुओं के साथ गर्भाधान नहीं हो पाता। ये अंडे जोकि रिलीज़ नहीं हुए (और शुक्राणुओं के साथ नहीं मिले) आसपास के तरल पदार्थों में मिलकर अंडाशय की सतह पर छोटे सिस्ट बना देते हैं।

ये सिस्ट बड़े हो सकते हैं और स्थिति को और ख़राब कर सकते हैं। अगर दवाओं से इनसे निजात पाना मुश्किल हो जाता है तो ऐसे में सिस्ट को हटाने की सर्जरी की जाती है।

एंडोमेट्रिओसिस (Endometriosis)

एंडोमेट्रियोसिस एक ऐसी स्थिति है जिसमें सामान्य कोशिकाएं जो गर्भाशय के गुहा में स्थित होती हैं गर्भाशय से बाहर निकल जाती हैं और अन्य अंगों पर जमा होती हैं। ये अंडाशय पर जमा हो सकती हैं और मासिक धर्म चक्र के साथ समन्वय में सामान्य परिवर्तन कर सकती हैं। प्रत्येक मासिक चक्र के साथ, यह कोशिकाएं भी गर्भाशय की लाइनिंग (एंडोमेट्रियम; Endometrium) के सामान ही विकसित होती हैं, ब्रेक डाउन होती (टूटती) हैं और रक्तस्राव से गुजरती हैं। ये रक्त अंडाशय के आसपास इकट्ठा हो जाता है और चॉकलेट सिस्ट बना देता है। इसमें बहुत दर्द से गुज़रना पड़ता है और इस सिस्ट को हटाने के लिए सर्जरी करना आवश्यक है। 


विकृत सिस्ट (रप्चर्ड सिस्ट; Ruptured Cyst)

सिस्ट आकार में बढ़ सकता है और अंततः फट (बर्स्ट) भी सकता है। सिस्ट्स से द्रव श्रोणिक (पैल्विक) गुहा में फैल जाता है। इससे गंभीर जटिलताएं हो सकती हैं और सर्जरी की ज़रुरत पड़ सकती है। 

रोगसूचक सिस्ट (सिम्पटोमैटिक सिस्ट; Symptomatic Cyst)

कई बार, डिम्बग्रंथि सिस्ट के कोई दिखने वाले लक्षण नहीं होते। कई बार हालांकि, पेट के निचले हिस्से में दर्द, मूत्राशय पर दबाव के कारण पेशाब की आवृत्ति बढ़ जाना, पेट में भारीपन, मतली, उल्टी, यौन संभोग के दौरान श्रोणि क्षेत्र में दर्द का अनुभव होना जैसे लक्षण पाए जा सकते हैं। हार्मोनल अशांति के आधार पर, मासिक धर्म में असामान्यताएं भी हो सकती हैं।

अंडाशयी कैंसर (Ovarian Cancer)

अंडाशय का सिस्ट ज़्यादातर कैंसर नहीं होता। लेकिन कुछ स्थितियों में, अंडाशय का कैंसर सिस्ट के रूप में मौजूद हो सकता है। सिस्ट को निकालने के लिए सर्जरी की जा सकती है। 
जिन रोगियों के अंडाशय में सिस्ट होता है उन्हें गाइनोकोलोजिस्ट (Gynaecologist; स्त्री रोग विशेषज्ञ) के पास भेजा जाता है। गाइनोकोलोजिस्ट सिस्ट के कारण का पता लगाने के लिए रोगी की अच्छे से जांच करेंगे। नैदानिक जांच के बाद और क्षति का आंकलन करने के बाद सर्जरी की योजना बनाई जाती है।  

अंडाशय से सिस्ट हटाने की सर्जरी से पहले की तैयारी - Ovarian Cyst Removal Surgery ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा: 

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)

ओवेरियन सिस्ट सर्जरी कैसे किया जाता है? - Ovarian Cyst Removal Surgery kaise hota hai?
यह सर्जरी ओपन प्रक्रिया या कम छेड़कर या काटकर की जाने वाली प्रक्रिया (Minimally Invasive Method) से की जा सकती है। दोनों प्रक्रिया बराबर असरदार हैं। दोनों प्रक्रियाओं के बारे में नीचे विस्तार से बताया गया है:

ओपन सर्जरी (Open Surgery)
निचले पेट की त्वचा पर एक चीरा काटी जाती है। अंतर्निहित मांसपेशियों, प्रावरणी, रक्त वाहिकाओं को सावधानी से अलग किया जाता है। सिस्ट के दिखने पर उसे काटकर हटा दिया जाता है और आसपास के ऊतकों को लेज़र बीम से जला दिया जाता है। अलग की गयी मांसपेशियों को उनकी मूल स्थिति में रख दिया गया है। सर्जिकल धागे का उपयोग कर के चीरा सिल दिया जाता है।

लैप्रोस्कोपिक प्रक्रिया (Laparoscopic Cyst Removal)
इस प्रक्रिया में एक बड़ी चीरा के बजाय पेट की त्वचा पर कई छोटे चीरे किये जाते हैं। इन चीरों के माध्यम से, पेट की गुहा के अंदर सर्जिकल उपकरणों को डाला जाता है। एक वीडियो कैमरा एक चीरा के माध्यम से अंदर डाला जाता है। यह कैमरा सर्जरी करते समय आंतरिक अंगों को देखने और अधिक सटीकता से प्रक्रिया पूरी करने में मदद करता है। इसके आगे की प्रक्रिया ओपन सर्जरी के समान है।
इन दोनों प्रक्रियाओं के दौरान, ध्यान देना चाहिए की सिस्ट फूटे न। यदि ऐसा होता है, तो सिस्ट का द्रव श्रोणिक (पैल्विक) गुहा में जमा हो जायेगा जिससे जटिलताओं होंगी।

ओपन सर्जरी ज़्यादा चीड़कर या काटकर की जाने वाली प्रक्रिया है इसलिए इसमें संक्रमण का भी अधिक जोखिम रहता है। हालाँकि अगर सिस्ट का आकार बड़ा है या अण्डाशयी कैंसर होने के आसार हैं तो ओपन सर्जरी ही एकमात्र विकल्प रह जाता है।लैप्रोस्कोपी में कम चीरे होने के कारण संक्रमण का जोखिम भी काम होता है और इसमें रक्त की हानि भी काम होती है। हालाँकि दोनों प्रक्रियाओं का परिणाम एक ही होता है (सिस्ट को हटाना)।

अंडाशय से सिस्ट हटाने के ऑपरेशन होने के बाद देखभाल - Cystectomy Surgery hone ke baad dekhbhal
कम से कम जोखिमों के साथ जल्दी रिकवरी के लिए सर्जरी के बाद आपको डॉक्टर द्वारा बताये तरीके से अपनी देखभाल करें।

अस्पताल में देखभाल
सर्जरी के बाद मरीज़ कुछ समय तक बेहोश ही रहेगा। जब एनेस्थीसिया का असर खत्म हो जाए और मरीज़ को होश आ जाए, तब मरीज़ की एक शारीरिक जांच की जाती है। घाव की जांच करके उसको रूई और पट्टियों से कवर (ढका) किया जाता है। सर्जरी के तुरंत बाद कुछ भी खाने पीने की मनाही होती है। शरीर में पोषक तत्व बनाये रखने के लिए IV लाइन की मदद से ग्लूकोस या सेलाइन दिया जाता है। एक बार आँतों की गतिविधि सामान्य रूप से शुरू हो जाए, मरीज़ को खाना दिया जा सकता है।

घर में देखभाल
मरीज़ को सर्जरी की बाद 1-2 दिनों तक ऑब्ज़र्वेशन (Observation) में रखा जाता है। उसके बाद रिकवरी के हिसाब से उसे घर भेज दिया जाता है। सर्जिकल घाव को साफ़ और सूखा रखें। सर्जन के कहे अनुसार ड्रेसिंग बदलें। रक्तस्त्राव, दर्द या संक्रमण के लक्षण पाए जाने पर तुरंत ही अपने डॉक्टर से संपर्क करें।

शारीरिक गतिविधि
मरीज़ को रिकवरी में कुछ हफ्ते लग सकते हैं। इस दौरान मरीज़ शारीरिक तनाव न लें और थकाने वाले काम न करें। ऐसे काम न करें जिससे पेट की मांसपेशिओं पर दबाव या ऐंठन पड़े। इससे जटिलताएं हो सकती हैं जिससे अन्य सर्जरी की ज़रुरत पड़ सकती है। 

दवाएं 
सर्जरी के बाद आपको दर्द और संक्रमण से बचने के लिए दर्द निवारक और एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं। रक्त के थक्के न बनें इसके लिए Blood Thinners (रक्त को पतला करने वाली दवाएं) भी दी जा सकती हैं।

सर्जरी के बाद जांच (फॉलो-अप)
जल्दी रिकवरी होने के लिए सर्जरी के बाद अपने डॉक्टर से नियमित रूप से जांच करवाते रहना ज़रूरी है। डॉक्टर घाव की और मरीज़ की स्थिति की जांच करेंगे। जब घाव भर जाए फिर उसके टाँके खोल दिए जाते हैं।  

अंडाशय पुटी हटाने की सर्जरी के बाद सावधानियां - Cystectomy operation hone ke baad savdhaniya
जैसा कि पहले बताया जा चुका है, सर्जरी से पूरी तरह रिकवर होने में कुछ हफ्ते लग सकते हैं। जल्दी रिकवरी पाने के लिए ये अत्यंत आवश्यक है कि आप अपना ध्यान रखें।

अंडाशय में सिस्ट के ऑपरेशन की जटिलताएं - Ovarian Cyst Removal Surgery me jatiltaye
हर सर्जरी से कुछ जोखिम और जटिलताएं जुड़ी होती हैं। इस सर्जरी से जुड़े जोखिम निम्न हैं:

रक्तस्त्राव: अंडाशय के आसपास की रक्त वाहिकाओं को गलती से क्षति पहुंच सकती है जिससे रक्तस्त्राव हो सकता है। श्रोणि में इकट्ठे हुए रक्त को निकालना भी ज़रूरी होता है जिससे सर्जरी के दैरान सर्जन को सिस्ट को देखने में परेशानी न हो। अगर रक्त की अत्यधिक हानि हो जाए तो ऐसे में स्थिति पर नियंत्रण बनाये रखने के लिए आपके ब्लड ग्रुप का रक्त पहले ही एकत्रित करलिया जाता है जिसे ज़रुरत पड़ने पर इस्तेमाल किया जा सकता है।

संक्रमण: सर्जरी के बाद अंधरूनी अंगों पर या घाव की जगह पर संक्रमण हो सकता है। ऐसा तब होता है अगर घाव को साफ़ न रखा जाए या स्वच्छता का ध्यान न रखा जाए। इससे बचने के लिए एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं।

सिस्ट का फट जाना: सर्जरी के दौरान सिस्ट फटने का खतरा रहता है। अगर सिस्ट का द्रव श्रोणिक गुहा में इकठ्ठा हो जाए तो इससे स्वास्थ्य सम्बन्धी जटिलताएं हो सकती हैं। श्रोणिक संक्रमण के उपचार के लिए आपको स्ट्रांग एंटीबायोटिक दवाएं दी जा सकती हैं।

अन्य अंगों को क्षति: मूत्राशय, गर्भाशय, मलाशय जैसे अंग, जो अंडाशय के आसपास स्थित होते हैं, को सर्जरी के दौरान क्षति पहुँच सकती है। इन अंगों को ठीक करने के लिए अन्य सर्जरी की ज़रुरत हो सकती है।

ज़रूरी नहीं कि ऊपर लिखा हर जोखिम हर मरीज़ के साथ हो।

यह सर्जरी सिस्ट की पुनरावृत्ति न हो ऐसी गारंटी नहीं देती। इससे बस लम्बे समय तक सिस्ट से आराम पाया जा सकता है।  

17. बच्चेदानी का ऑपरेशन - Hysterectomy in Hindi

गर्भाशय निकालने का ऑपरेशन क्या होता है? - Hysterectomy kya hai in hindi?
हिस्टेरेक्टॉमी (Hysterectomy) वह सर्जिकल प्रक्रिया है जिसका उपयोग करके महिला के शरीर से गर्भाशय को निकाला जाता है। गर्भाशय के साथ अंडाशय, फैलोपियन ट्यूब, योनि और सर्विक्स को भी हटाया जा सकता है। या तो पूरे गर्भाशय को हटा दिया जाता है या इसके कुछ हिस्से को छोड़ दिया जाता है। सर्जरी मरीज़ की उस स्वास्थ्य स्थिति पर निर्भर करती है जिसके लिए यह प्रक्रिया की जा रही  है।

हिस्टेरेक्टॉमी ओपन पद्धति या लैप्रोस्कोपी द्वारा की जा सकती है। प्रक्रिया लगभग 1-2 घंटे तक चलती है। यह सर्जरी पेट या योनि से की जा सकती है। यह सर्जरी गाइनोकोलोजिस्ट (Gynaecologist; स्त्री रोग विशेषज्ञ) द्वारा की जाती है।

गर्भाशय निकालने की सर्जरी क्यों की जाती है? - Hysterectomy kab kiya jata hai?
गर्भाशय महिला प्रजनन प्रणाली का एक बहुत महत्वपूर्ण अंग है। यह कई वजहों से रोगग्रस्त हो सकता है। गर्भाशय को सर्जरी द्वारा हटाना आमतौर पर उपचार का आखिरी विकल्प होता है। लेकिन यह संभव है कि कभी-कभी अन्य कोई भी उपचार पद्धति से राहत न मिल पा रही हो। ऐसे मामलों में, गर्भाशय को हटाने के लिए सर्जरी ही एकमात्र विकल्प रह जाता है। निम्न स्थितिओं में हिस्टेरेक्टॉमी करवाने की ज़रुरत पद सकती है:

फाइब्रॉएड (Fibroids)
गर्भाशय के अंदर फाइब्रॉएड पैदा हो सकते हैं हालाँकि ये कैंसरजनक नहीं होते। ये गर्भाशय की गुहा के आंतरिक आकार को बदल देते हैं, इनकी वजह से भारी मासिक स्त्राव, पेट में दर्द, सामन्य गर्भधारण में कठिनाई, गर्भावस्था में परेशानी हो सकती है। दवाओं द्वारा इन्हें कम किया जा सकता है।लेकिन गंभीर स्थितियों में या जब कई बड़े फाइब्रॉएड मौजूद होते हैं, तो गर्भाशय को हटाने की आवश्यकता हो जाती है।
एंडोमेट्रिओसिस (Endometriosis)
गर्भाशय गुहा की लाइनिंग पर उपस्थित कोशिकाएं विशेष कोशिकाएं होती हैं जो शरीर में और कहीं स्थित नहीं होतीं। एंडोमेट्रियोसिस में, ये कोशिकाएं गर्भाशय से बाहर निकल जाती हैं और अन्य अंगों पर जमा हो जाती हैं। नए स्थान पर भी कोशिकाएं विकसित होंगी, टूटेंगी और इनसे रक्तस्त्राव होगा, जैसे गर्भाशय की लाइनिंग की कोशिकाओं में होता है। चिकित्सा या सर्जिकल उपचार के बावजूद भारी मासिक स्त्राव, गर्भाशय में ऐंठन जैसे लक्षण पाए जा सकते हैं। इसके बाद गर्भाशय को हटाना ही आखरी विकल्प होता है।
प्रोलैप्सेड (Prolapsed; आगे की ओर बढ़ा हुआ) गर्भाशय
गर्भाशय मज़बूत और टाइट मांसपेशियों और लिगामेंट द्वारा अपनी जगह पर स्थित रहता है। कई बार गर्भधारण करने, बार बार गर्भपात, प्रसव में कठिनाई जैसी स्थितियां गर्भाशय और उसको सँभालने वाले ऊतकों पर तनाव डालती हैं। इससे गर्भाशय अपनी सामान्य स्थिति से विस्थापित हो सकता है। यदि सामान्य स्थिति पर वापिस आने के लिए की जाने वाली सर्जरी नहीं की जाती या ये सर्जरी होने पर भी विफल हो जाए तो सर्जरी द्वारा गर्भाशय को हटवा दिया जा सकता है।
गर्भाशय का कैंसर
गर्भाशयी कैंसर गर्भाशय में भी बन सकता है और शरीर के किसी और अंग में उत्पन्न होकर भी गर्भाशय तक पहुँच सकता है। किसी भी स्थिति में, इसका परिणाम घातक हो सकता है। यदि दवाओं और विकिरण चिकित्सा से उपचार से कैंसर नहीं नियंत्रित हो पाता तो ऐसे में सर्जरी का सहारा लेना पड़ सकता है।
ग्रंथिपेश्यर्बुदता (Adenomyosis)
इस स्थिति में, गर्भाशय की लाइनिंग और मोटी हो जाती है। इससे अत्यधिक मासिक स्त्राव, गर्भाशय में ऐंठन और पेट में सूजन हो जाती है। यदि लक्षण अन्य उपचार विधियों से ठीक नहीं हो पाते हैं, तो गर्भाशय को निकालने के लिए सर्जरी की जा सकती है।
यह सर्जरी उन महिलाओं में नहीं की जाती है जो गर्भधारण करने में सक्षम हैं या जिनकी उम्र माँ बनने योग्य है। इस सर्जरी के बाद आप गर्भ धारण नहीं कर सकेंगे।

बच्चेदानी निकालने के ऑपरेशन से पहले की तैयारी - Hysterectomy ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा:

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग (खाली पेट रहना) (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)
ध्यान देने योग्य अन्य बातें (Other Things To Be Kept In Mind Before Surgery)
सर्जरी से पहले पेट और प्यूबिस की त्वचा पर से सारे बाल हटाए (शेव) जाते हैं। फिर उस त्वचा को एंटी-सेप्टिक सोल्यूशन से साफ़ किया जाता है।

बच्चेदानी निकालने का ऑपरेशन कैसे किया जाता है? - Hysterectomy kaise hota hai?
पेट या योनि के माधयम से सर्जरी द्वारा गर्भाशय को हटाया जा सकता है। गर्भाशय को पूरा या आधा भी हटाया जा सकता है और ये भी हो सकता है कि महिला प्रजनन प्रणाली के किसी अन्य अंग को भी हटाया जाए। इस सर्जरी की तकनीकें निम्नलिखित हैं:

पेट की हिस्टेरेक्टॉमी (Abdominal Hysterectomy)
पेट के निचले भाग में एक 5 इंच लम्बा चीरा (सीधा या आड़ा) काटा जाता है। पेट की मांसपेशियों, प्रावरणी और रक्त वाहिकाओं को ध्यान से अलग किया जाता है। गर्भाशय को अपनी जगह पर रखने वाले लिगामेंट्स को काटा जाता है। इस बात का ख्याल रखा जाता है कि स्वस्थ अंगों, तंत्रिकाओं और रक्त वाहिकाओं को नुकसान न पहुंचे।

गर्भाशय को हटा दिया जाता है। मांसपेशियों और अन्य अंगों को पहले की तरह लगाया जाता है और सर्जिकल धागे से चीरा को सिल दिया जाता है। अगर गर्भाशय का आकर बड़ा है तो सर्जरी के इस को चुना जाता है क्योंकि इसमें चीरे इतना बड़ा होता है कि एक बड़े गर्भाशय को आसानी से निकाला जा सके।

योनि हिस्टेरेक्टॉमी (Vaginal Hysterectomy)
योनि हिस्टेरेक्टॉमी के लिए, त्वचा पर कोई सर्जिकल चीरा नहीं काटा जाता। पेट की हिस्टेरेक्टॉमी, जो एक ओपन विधि है, के मुकाबले यह एक कम चीड़कर या काटकर की जाने वाली प्रक्रिया है। योनि के माध्यम से सर्जिकल उपकरणों को डाला जाता है। योनि के छिद्र को सर्जिकल तरीके से बढ़ाया जा सकता है। गर्भाशय के संलग्नक काट दिए जाते हैं, और योनि के छिद्र के माध्यम से गर्भाशय को हटा दिया जाता है। इस पद्धति को आसानी से किया जा सकता है क्योंकि केवल गर्भाशय और सर्विक्स को ही निकला जाता है।

योनि के माध्यम से अंडाशय और फैलोपियन ट्यूबों को हटाना असंभव नहीं है, लेकिन यह मुश्किल है।पेट की हिस्टेरेक्टॉमी में यह आसानी से किया जा सकता है। सर्जरी से पहले दिए गए योनि के चीरे को सर्जिकल धागों से बंद किया जाता है। इसमें हलके निशान पड़ते हैं जो जल्दी हट भी जाते हैं।

लैप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॉमी (Laparoscopic Hysterectomy)
इस कम चीड़कर या काटकर की जाने वाली (Minimally Invasive) प्रक्रिया में पेट की त्वचा पर कई छोटे चीरे काटे जाते हैं। सर्जिकल उपकरणों को इन चीरों के माध्यम से डाला जाता है। एक चीरे के माध्यम से एक लचीली ट्यूब (लैप्रोस्कोप; Laparoscope) से जुड़ा एक वीडियो कैमरा डाला जाता है। यह आंतरिक अंगों को देखने में मदद करता है और प्रक्रिया के दौरान सर्जन को मदद करता है।

लैप्रोस्कोपिक मार्गदर्शन से योनि हिस्टेरेक्टॉमी भी की जा सकती है। आंतरिक अंगों को देखने के लिए योनि के माध्यम से लैप्रोस्कोप डाला जा सकता है। रोबोटिक लैप्रोस्कोपी भी की जा सकती है। सर्जन रोबोटिक आर्म्स (Robotic Arms) का प्रयोग करके सर्जरी को नियंत्रित करते हैं। सर्जरी को 3D व्यू में एक स्क्रीन पर देखा जा सकता है। इस प्रकार की सर्जरी ज़्यादा सटीक होती है।

यदि गर्भाशय का केवल एक भाग निकाल दिया जाता है, तो इसे आंशिक हिस्टेरेक्टॉमी (Partial Hysterectomy) कहा जाता है। सर्विक्स नहीं हटाया जाता। इसका अन्य प्रकार है कुल हिस्टेरेक्टॉमी (टोटल हिस्टेरेक्टॉमी; Total Hysterectomy), जिसमें सर्विक्स के साथ पूरा गर्भाशय हटा दिया जाता है। रेडिकल हिस्टेरेक्टॉमी (Radical Hysterectomy) में गर्भाशय, फैलोपियन ट्यूब, सर्विक्स और योनि के कुछ हिस्से हटाए जाते हैं।

अंडाशय को हटाने के लिए भी कहा जा सकता है। वे आमतौर पर पूरी तरह से नहीं हटाए जाते। अंडाशय का एक हिस्सा आमतौर पर रखा जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि अंडाशय एस्ट्रोजेन (Estrogen) और प्रोजेस्टेरोन (Progestrone) उत्पन्न करते हैं जो महिला प्रजनन प्रणाली के दो सबसे महत्वपूर्ण हार्मोन हैं। सर्जरी का मार्ग और गर्भाशय को किस हद तक हटाना है यह सर्जरी के कारण, रोगी की उम्र और सामान्य स्वास्थ्य पर निर्भर करता है।

गर्भाशय निकालने की सर्जरी के बाद देखभाल - Hysterectomy hone ke baad dekhbhal
सर्जरी के बाद मरीज़ को ऑब्ज़र्वेशन और रिकवरी के लिए एक कमरे में रखा जाता है। जब तक एनेस्थीसिया का असर नहीं ख़त्म होता तब तक मरीज़ बेहोश रहता है।

सर्जरी के बाद जांच
एक बार होश आने के बाद मरीज़ की शारीरिक जांच की जाती है। सर्जिकल घाव की जांच की जाती है। मरीज़ को 2-3 दिनों के लिए अस्पताल में ही रखा जाता है। उसके बाद उसे घर भेज दिया जाता है।

घाव की देखभाल 
पेट की हिस्टेरेक्टॉमी में किया गया चीरा लम्बा होता है इसलिए इसे भरने में लैप्रोस्कोपी में किये गए छोटे चीरों से ज़्यादा समय लगता है। घाव को साफ़ और सूखा रखें। घाव को रूई और पट्टियों से कवर (ढक) करके रखा जायेगा। घाव से रक्तस्त्राव, सूजन, संक्रमण आदि जैसी परेशानियां होने पर तुरंत अपने डॉक्टर को बताएं। एक बार घाव पूरी तरह भर जाए फिर उसके टाँके खोल दिए जायेंगे। घाव की जगह पर एक निशान रह जाता है जो हटने में बहुत ज़्यादा समय लगाता है।

शारीरिक गतिविधि
इस सर्जरी के बाद थकाने वाले काम न करें। गर्भाशय निकल जाने के बाद, मरीज की श्रोणिक (पैल्विक) गुहा के अंदर एक खाली जगह बन जाती है। पेट पर ज़्यादा दबाव पड़ने से खाली जगह में हर्निया हो सकता है।
हालांकि कोई भी शारीरिक गतिविधि न होना भी सही नहीं है। हल्का शारीरिक काम रक्त संचार बनाए रखने में मदद करता है। यह नसों के भीतर रक्त के थक्कों के गठन को रोक देता है।

गर्भाशय निकालने के ऑपरेशन के बाद सावधानियां - Hysterectomy hone ke baad savdhaniya
हिस्टेरेक्टॉमी के बाद करीब 8 हफ्ते लगते हैं पूरी तरह रिकवरी होने में। तब तक डॉक्टर के दिए निर्देशों का पालन करें। ऐसे कार्य न करें जिनसे पेट में या श्रोणि में तनाव हो। 4-6 हफ़्तों तक घरेलु काम जैसे बर्तन धोना, कपडे धोना, सफाई, सीढ़ियां चढ़ना आदि बिलकुल न करें। सर्जरी के बाद एक महीने तक कोई भी व्यायाम न करें। अपने से पूछकर आप हलके शारीरिक कार्य जैसे धीरे धीरे चलना, घर में इधर उधर टहलना आदि कर सकते हैं।

गर्भाशय निकालने की सर्जरी में जटिलताएं - Hysterectomy me jatiltaye
इस सर्जरी से जुड़े कुछ जोखिम निम्नलिखित हैं। हालांकि अगर सावधानी बरती जाए तो इन जोखिमों से बचा जा सकता है। अगर फिर भी ये हो जाएँ तो दवाओं या सर्जिकल उपचार से इन्हे ठीक किया जा सकता है।

रक्तस्त्राव: सर्जरी के दौरान किसी सर्जिकल उपकरण से गर्भाशय के आसपास की कोई रक्त वाहिका में क्षति पहुँच सकती है। इससे रक्तस्त्राव हो सकता है। सर्जरी के दौरान क्षतिग्रस्त अंग को देखने में रक्त रूकावट दाल सकता है इसलिए उसे हटा दिया जाता है। रक्त की अत्यधिक हानि होने पर ऐसी स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पहले से ही आपके ब्लड ग्रुप का रक्त तैयार रख लिए जाता है जो ज़रुरत पड़ने पर आपके शरीर में डाला जा सकता है।

अंगों को क्षति: सर्जिकल उपकरणों से गर्भाशय के आसपास के अंगों को भी क्षति पहुँच सकती है। अगर क्षति गंभीर है तो सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है।

मूत्र/ मल असंयमिता (रोक न पाना): प्रक्रिया के दौरान मूत्राशय को चोट लगने से ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। मूत्र के पारित होने पर कोई नियंत्रण नहीं होता। व्यक्ति को बार बार मूत्र त्याग करने की इच्छा हो सकती है। सर्जरी के दौरान अगर मलाशय को क्षति पहुंचे तो भी ऐसा ही हो सकता है। मल असंयम हो जाएगा और इससे मल का अनैच्छिक त्याग या मल त्याग करने में कठिनाई हो सकती है। इनका इलाज करने के लिए सर्जिकल उपचार का प्रयोग करना पद सकता है।

हर्निया का गठन हो जाना (हर्नियेशन; Herniation): हर्नियेशन का अर्थ है किसी अंग के फलाव का प्राकृतिक या कृत्रिम रूप से निर्मित स्थान में निकालना। जो अंग हेर्निएट होता है वह अपने सामान्य स्थान से हट जाता है। इस सर्जरी के बाद श्रोणिक गुहा में एक खाली स्थान रह जाता है। आंत इस स्थान पर हेर्निएट हो सकते हैं। इसे दर्द या पाचन क्रिया में बदलाब आदि परेशानियां हो सकती हैं। हर्निया के उपचार के लिए सर्जरी करनी पड़ सकती है।

संक्रमण: घाव की जगह पर संक्रमण हो सकता है। इससे घाव पर सूजन, दर्द या घाव लाल हो सकता है। अगर सर्जरी के दौरान किसी अन्य अंग को क्षति पहुँच जाती है तो उससे अंधरूनी संक्रमण भी हो सकता है। इसके उपचार के लिए एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं। दर्द से निजात पाने हेतु दर्द निवारक दिए जाते हैं।

हार्मोनल दिक्कत: कई बार इस सर्जरी में दोनों अंडाशय को निकाल दिया जाता है। अंडाशय में एस्ट्रोजन (Estrogen) और प्रोजेस्ट्रोन (Progestrone) का उत्पादन होता है। अंडाशय के हट जाने से शरीर में इन होर्मोनेस का स्तर भी घट जायेगा। इससे हॉट फ्लैशेस (चेहरे, गर्दन, कान और धड़ में गर्मी का महसूस होना), मूड में परिवर्तन, अवसाद (डिप्रेशन), त्वचा के विकार, पाचन सम्बन्धी विकार हो सकते हैं। ऐसे में हॉर्मोन प्रतिस्थापन चिकित्सा से काफी मदद मिल सकती है।

प्राकृतिक रूप से गर्भ धारण न कर पाना: इस सर्जरी के बाद आप गर्भधारण नहीं कर सकतीं। इसलिए ये तब तक नहीं की जाती जब तक इसके आलावा उपचार का और कोई विकल्प न बचे। 

18. गर्भाशय की सफाई - Dilation & Curettage in Hindi

डी एंड सी क्या है? - Dilation & Curettage kya hai in hindi?
डाइलेशन और क्यूरेटेज (Dilation And Curettage) प्रक्रिया, जिसे डी&सी (D&C) भी कहा जाता है, एक सर्जिकल प्रक्रिया है जिसमें गर्भाशय ग्रीवा/ सर्विक्स (Cervix - गर्भाशय का निचला, संकीर्ण हिस्सा) को विस्तारित (Dilate) किया जाता है ताकि गर्भाशय की परत (Endometrium; एंडोमेट्रियम) को क्यूरेट (Curette - चम्मच जैसे आकार का उपकरण) की मदद से असामान्य ऊतकों को निकालने के लिए स्क्रैप (कुरेदना) किया जा सके।

एंडोमेट्रिएम के निदान और उपचार के लिए इस्तेमाल होने वाली अन्य संबंधित प्रक्रियाएं एंडोमेट्रियल पृथक्करण (Endometrial Ablation), हिस्टेरोस्कोपी (Hysteroscopy) और हिस्टेरेक्टोमी (Hysterectomy) शामिल हैं।

गर्भाशय की सफाई क्यों की जाती है? - Dilation & Curettage kab kiya jata hai?
इस प्रक्रिया को करने के पीछे कई कारण हो सकते हैं:

माहवारी के दौरान या दो मासिक धर्म चक्र के बीच में रक्तस्त्राव की वजह जानने के लिए।
कैंसर-रहित ट्यूमर (Non-Cancerous Tumors) या फाइब्रॉइड्स (Fibroids) को हटाने के लिए।
संभावित कैंसरग्रस्त ट्यूमर (Potentially Cancerous Tumors) को हटाने के लिए।
संक्रमित ऊतकों को हटाने हेतु, जो अक्सर पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिज़ीज़ (Pelvic Inflammatory Disease - महिलाओं के प्रजनन अंगों का संक्रमण) नामक यौन रोग (Sexually Transmitted Disese, STD) से होते हैं।
उन ऊतकों को निकालने के लिए जो प्रसव या गर्भपात (Miscarriage) के बाद गर्भ में रह गए हैं।
वैकल्पिक (मरीज़ की स्वयं की इच्छा से) गर्भपात (Elective Abortion) करने के लिए।
अंतर्गर्भाशयी यंत्र (Intrauterine Device, IUD) को निकालने के लिए, जो जन्म नियंत्रण का एक प्रकार है।
गर्भाशय की सफाई होने से पहले की तैयारी - Dilation & Curettage ki taiyari

सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा:

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)
सर्जरी से पहले ध्यान देने योग्य अन्य बातें (Other Things To Be Kept In Mind Before Surgery)
गर्भाशय ग्रीवा/ सर्विक्स को खोलने के लिए डॉक्टर आपको एक दिन पहले आने के लिए बोल सकते हैं ताकि वे जेल लगाकर प्रक्रिया को शुरू कर पाएं। आप प्रकिया के बाद प्रयोग करने के लिए सैनिटरी नैपकिन (Sanitary Napkin) ला सकती हैं।

गर्भाशय की सफाई कैसे होती है? - Dilation & Curettage kaise hota hai?
प्रक्रिया निम्न क्रम में की जाती है:

जैसे ही एनेस्थीसिया का असर शुरू हो जाए, डॉक्टर द्वारा स्पेक्युलुम (Speculum) नामक एक उपकरण आपकी योनि डाला जाता है जिससे योनि को विस्तृत किया जा सके और गर्भाशय ग्रीवा/ सर्विक्स को देखा जा सके।
इसके बाद डॉक्टर रोगी के सर्विक्स छिद्र में रॉड्स की एक सीरीज़ डाली जाती है जिससे उसे विस्तृत किया जा सके। प्रत्येक रॉड पिछली रॉड से थोड़ी मोती होती है।
इसके बाद डॉक्टर क्यूरेट (Curette) नामक एक उपकरण डालेंगे और उसको गर्भाशय की लाइनिंग पर चलाएंगे जिससे ऊतकों को स्क्रैप (कुरेदना) किया जा सके।
अगर क्यूरेट से यह ढंग से न हो पाए तो डॉक्टर सक्शन डिवाइस (Suction Device) की भी मदद ले सकते हैं।
प्रक्रिया पूरी होने पर डॉक्टर उपकरणों को बाहर निकालते हैं।
गर्भाशय से निकाले गए पदार्थों को प्रयोगशाला में जांच के लिए भेज दिया जाता है।
गर्भाशय की सफाई के बाद देखभाल - Dilation & Curettage hone ke baad dekhbhal
सर्जरी के बाद, रिकवरी की प्रक्रिया इस पर निर्भर करती है की सर्जरी के दौरान एनेस्थीसिया का कौनसा प्रकार इस्तेमाल किया गया था। सर्जरी आउट-पेशेंट (Out-Patient; मरीज़ को सर्जरी के बाद अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं होती) आधार पर भी की जा सकती है।

प्रक्रिया के बाद एक या दो दिन तक हलकी ऐंठन महसूस हो सकती है और आप थका हुआ महसूस कर सकते हैं।
इस प्रक्रिया के बाद हल्का रक्तस्त्राव होना आम है। आप सैनिटरी नैपकिन या मेंस्ट्रुअल पैड का प्रयोग कर सकती हैं।
सर्जरी के बाद टैम्पॉन (Tampons) का प्रयोग न करें। इससे संक्रमण हो सकता है।
आप दर्द के लिए डॉक्टर से पूछ कर दर्द निवारक दवाएं ले सकते हैं।
भले ही यह असुविधाजनक लगे, फिर भी जितना हो सके उतना हिलते-डुलते रहें। इससे मांसपेशियां मज़बूत होंगी और पैरों में रक्त के थक्कों के गठन को रोका जा सकेगा।
आप प्रक्रिया के एक या दो दिन बाद से सामान्य रूटीन पर लौट सकते हैं। हालांकि डॉक्टर आपको कम से कम तीन दिनों तक नहाने, संभोग करने या थकाने वाले कार्य करने या भारी सामान उठाने के लिए मना कर सकते हैं।
अगर यह प्रक्रिया संभावित कैंसरग्रस्त ट्यूमर को हटाने हेतु की गयी है, तो आपको प्रयोगशाला से ट्यूमर की जांच के परिणाम लेने होंगे। अगर परिणाम कैंसर रहित हैं तो इसके बाद आपको डॉक्टर से फॉलो-अप करने की आवश्यकता नहीं होती। अगर परिणामों में यह पता चले की ट्यूमर कैंसरग्रस्त है तो आपको आगे के उपचार के लिए विशेषज्ञ से जांच करवानी पड़ेगी।
क्योंकि इस प्रक्रिया में गर्भाशय की लाइनिंग को हटाया जाता है इसलिए लाइनिंग फिर से बनती है। अगले मासिक धर्म में देरी हो सकती है या जल्दी हो सकता है।
आप सामान्य आहार ले सकते हैं। हालांकि अगर डॉक्टर ने कुछ विशिष्ट परहेज़ या आहार में कोई विशिष्ट पदार्थ लेने के लिए कहा हो तो अपने डॉक्टर की सलाह का पालन अवश्य करें।
इनमें से कोई भी परेशानी होने पर तुरंत अपने चिकित्सक से परामर्श करें: भारी रक्तस्त्राव, योनि से बदबूदार स्त्राव, बुखार और/या ठंड लगना, पेट में गंभीर दर्द।
आपकी स्थिति के हिसाब से आपको डॉक्टर द्वारा अन्य सलाहें भी दी जा सकती हैं।

गर्भाशय की सफाई की जटिलताएं - Dilation & Curettage me jatiltaye
हर सर्जिकल प्रक्रिया की तरह इस प्रक्रिया से भी कुछ जोखिम और जटिलताएं होने की सम्भावना रहती है।

संक्रमण
गर्भाशय भित्ति (Uterine Wall) या आँतों में छिद्र हो जाना
गर्भाशय में स्कार ऊतकों (Scar Tissues) का बन जाना
एनेस्थीसिया सम्बंधित परेशानियां
गतिविधियां न करने या हर वक़्त आराम करते रहने से रक्त के थक्के बन जाना
गर्भाशय या गर्भाशय ग्रीवा को क्षति पहुँच सकती है और उसके संकेत हैं: भारी रक्तस्त्राव, बदबूदार स्त्राव, गंभीर दर्द, बुखार या ठण्ड लगना।

19. मायोमेक्टोमी - Myomectomy in Hindi

मायोमेक्टोमी क्या होता है? - Myomectomy kya hai in hindi?
गर्भाशय भित्ति (Uterus Wall) से फाइब्रॉइड्स (कैंसर-रहित ट्यूमर्स) (Fibroids) निकालने को मायोमेक्टोमी (Myomectomy) कहा जाता है। जो महिलाएं अपना गर्भाशय नहीं निकलवाना चाहतीं उनके लिए लक्षणात्मक फाइब्रॉइड्स के उपचार के लिए यह एक अधिमानित प्रक्रिया है। बड़े फाइब्रॉइड्स को पेट में चीरा काटकर निकाला जा सकता है और छोटे फाइब्रॉइड्स को लैपरोस्कोपी (Laparoscopy) या हिस्टेरोस्कोपी (Hysteroscopy) से निकाला जा सकता है।

मायोमेक्टोमी क्यों की जाती है? - Myomectomy kab kiya jata hai?
इस प्रक्रिया द्वारा उन गर्भाशयी फाइब्रॉइड्स को निकाला जा सकता है जिनसे असामान्य रक्तस्त्राव या दर्द जैसे लक्षण होते हैं। यह हिस्टेरेक्टॉमी (Hysterectomy; गर्भाशय को निकालने की सर्जिकल प्रक्रिया) का एक विकल्प है। इस प्रक्रिया द्वारा फाइब्रॉइड्स द्वारा होने वाले मासिक धर्म सम्बन्धी लक्षणों से आराम पाया जा सकता है जिन पर दवा का कोई प्रभाव न पड़ रहा हो। मायोमेक्टोमी फाइब्रॉइड्स से होने वाली प्रजनन क्षमता की परेशानियों के लिए भी एक प्रभावशाली उपचार है।

मायोमेक्टोमी होने से पहले की तैयारी - Myomectomy ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा:

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग/ खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)
सर्जरी से पहले हॉर्मोन ट्रीटमेंट (Hormone Treatment Before Surgery)
इस सर्जरी से पहले सर्जन आम तौर पर एक हॉर्मोन ट्रीटमेंट निर्धारित करते हैं जिसमें मरीज़ को सर्जरी से पहले दो से छह महीनों तक ल्युप्रोलाईड/ ल्युप्रॉन (Leoprolide/ Lupron) लेने के लिए कहा जाता है जिससे फाइब्रॉइड्स को सिकोड़ दिया जाता है। इससे उन्हें निकालने में आसानी होती है। साथ ही, इस दवा से मासिक धर्म बंद हो जाते हैं इसलिए अगर मरीज़ को एनीमिया (Anemia) है तो ऐसे में उन्हें शरीर में रक्त गणना (Blood Count) को बढ़ाने का अवसर मिल जाता है। इस दवा की मदद से सर्जरी के दौरान रक्त की अत्यधिक हानि होने के जोखिम कम हो जाता है, लेकिन थोड़ा सा जोखिम छोटे फाइब्रॉइड्स के छूट जाने का भी रहता है।

मायोमेक्टोमी कैसे किया जाता है? - Myomectomy kaise hota hai?
आम तौर पर फाइब्रॉइड्स गर्भाशय की बाहरी परत पर गढ़े हुए होते हैं और इन्हे हटाने के लिए पेट की सर्जरी की आवश्यकता होती है। अगर ये गर्भाशय की अंदरूनी दीवार पर हैं, तो इन्हे हिस्टेरोस्कोपी (Hysteroscopy) से निकाला जा सकता है। अगर यह गर्भाशय के बहार की परत पर हैं तो लैपरोस्कोपी (Laparoscopy) की जा सकती है।

पेट पर सर्जरी करके फाइब्रॉइड्स को निकालना मुश्किल होता है और ज़्यादा जोखिम भरा होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जिन स्थानों से फाइब्रॉइड्स को निकाला जाता है वहाँ से गर्भाशय से रक्तस्त्राव होता है और कई बार इस रक्तस्त्राव को रोक पाना मुश्किल हो सकता है।

चीरा आड़ा (बिकिनी कट) या सीधा (नाभि से नीचे की ओर) किया जा सकता है। त्वचा के नीचे की मांसपेशियों की परतों को हटाने के बाद सर्जन पेट में खुलाव बनाते हैं। इसके बाद, सर्जन हर फाइब्रॉइड्स पर चीरा काटते हैं और उसे बाहर निकालते हैं।

इसके बाद हर खुलाव को टांकों से सिला जाता है। गर्भाशय को पूरी बारीकी से ठीक किया जाता है जिससे संभावित स्थानों से रक्तस्त्राव या संक्रमण के जोखिम से बचा जा सके। इसके बाद सर्जन पेट के खुलाव और ऊपरी मांसपेशियों को घुलने वाले टांकों से और बहरी त्वचा को टांकों से सिल देते हैं।

जब सर्जन को उचित लगे तब लैप्रोस्कोपिक मायोमेक्टोमी (Laparoscopic Myomectomy) की जा सकती है। इस प्रक्रिया में सर्जन लैप्रोस्कोप की मदद से फाइब्रॉइड्स निकालते हैं। इस प्रक्रिया में उपर्लिखित प्रक्रिया के मुकाबले छोटे चीरे काटे जाते हैं लेकिन चीरों की संख्या ज़्यादा होती है। लैप्रोस्कोप, जिससे एक वीडियो कैमरा जुड़ा होता है, को श्रोणि गुहा में नाभि पर चीरा करके डाला जाता है। नाभि के नीचे एक छोटा चीरा काटकर फाइब्रॉइड्स को निकाला जाता है।

अगर फाइब्रॉइड्स छोटे हैं और गर्भाशय की अंदरूनी परत पर हैं तो इन्हे हिस्टेरोस्कोप (Hysteroscope) नामक एक पतले टेलेस्कोप (Telescope) जैसे उपकरण से निकाला जा सकता है। हिस्टेरोस्कोप को योनि से गर्भाशय ग्रीवा (Cervix; सर्विक्स) के माध्यम से गर्भाशय में डाला जाता है। इस प्रक्रिया में पेट पर कोई चीरा काटने की आवश्यकता नहीं होती और अस्पताल में भी ज़्यादा समय तक रहने की आवश्यकता नहीं होती।

मायोमेक्टोमी के बाद देखभाल - Myomectomy hone ke baad dekhbhal
सर्जरी के बाद ज़्यादा थकाने वाली गतिविधियां न करें।
सर्जरी के बाद के पहले हफ्ते में न नहाएं।
आपको हल्का योनिक रक्तस्त्राव हो सकता है। ज़रुरत पढ़ने पड़ सेनेटरी पैड्स पहनें। टेम्पॉन्स (Tampons) या डूश (Douche) का प्रयोग न करें।
अपने डॉक्टर से पूछ कर ही ड्राइविंग फिर से शुरू करें।
आपको काम से दो से चार हफ़्तों तक छुट्टी लेनी पड़ सकती है।
जब तक डॉक्टर न बोले तब तक संभोग न करें।
आप सामान्य आहार ले सकते हैं। ज़्यादा से द्रव का सेवन करें। मलत्याग करने में परेशानी होना आम है।
डॉक्टर द्वारा निर्धारित सभी दवाओं का सेवन करें।
घाव को साफ़ और सूखा रखें। पट्टियों को रोज़ बदलें।
सर्जरी के बाद ढीले-ढाले कपड़े पहनें ताकि पेट पर दबाव न पड़े।
सर्जरी के बाद आवश्यक है की आप नियमित रूप से डॉक्टर से चेक-अप करवाएं।
मायोमेक्टोमी के बाद सावधानियां - Myomectomy hone ke baad savdhaniya
मरीज़ों को सर्जरी के बाद पूरी तरह रिकवर होने में 4-6 हफ्ते लग सकते हैं। इसके बाद वो सामान्य दैनिक गतिविधियां कर सकते हैं। हालांकि अगर आपकी लैप्रोस्कोपिक या हिस्टेरोस्कोपिक मायोमेक्टमी की गयी है तो एक से तीन हफ़्तों में आप पूरी तरह रिकवर हो जाएंगे।

मायोमेक्टोमी की जटिलताएं - Myomectomy me jatiltaye
सर्जरी के बाद होने वाली संभावित जटिलताएं निम्न हैं:

संक्रमण
रक्त हानि
गर्भाशय की परत कमज़ोर हो सकती है इसलिए भविष्य में प्रसव के लिए सी-सेक्शन करवाने की ज़रुरत हो सकती है
अंदरूनी स्कारिंग (जिससे प्रजनन क्षमता में कमी हो सकती है)
फाइब्रॉइड्स की पुनरावृत्ति
फाइब्रॉइड्स से गंभीर रक्तस्त्राव हो सकता है जिससे गर्भाशय को निकालने की आवश्यकता हो सकती है। रक्त की हानि से बचने के लिए अस्पताल द्वारा पहले मरीज़ के ब्लड ग्रुप का रक्त तैयार रख जाता है ताकि रक्त-आधान (खून चढ़ाना) में परेशानी न हो (अगर ज़रुरत पड़े तो)।

20. बाईपास सर्जरी - Heart Bypass Surgery in Hindi

बाईपास सर्जरी क्या है? - Heart Bypass Surgery kya hai in hindi?
ह्रदय की बायपास (Bypass; उपमार्ग) सर्जरी तब की जाती है जब हृदय की मांसपेशियों में रक्त की आपूर्ति करने वाली धमनियां क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। पूरे शरीर से रक्त (जो ऑक्सीजन युक्त नहीं होता) प्राप्त करना ह्रदय का कार्य होता है। इस रक्त को फिर फेफड़ों में भेजा जाता है जहां यह ऑक्सीजन के साथ मिलता है। इसके बाद यह रक्त हृदय द्वारा सभी अंगों में पंप किया जाता है। यह शरीर के सभी कार्यों में सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। रक्त और ऑक्सीजन की पर्याप्त आपूर्ति के बिना, शरीर का कोई अंग सामान्य रूप से कार्यवाही नहीं कर सकता। अगर दिल की मांसपेशियों में पर्याप्त रक्त आपूर्ति नहीं होती है, तो वे काम नहीं कर पाती जिससे गंभीर स्वास्थ्य जटिलताएं हो सकती हैं।

सर्जरी का मुख्य उद्देश्य रोगी के ही शरीर से ली गयी रक्त वाहिका, जिसे कृत्रिम रूप से ह्रदय से जोड़ा जाता है, के माध्यम से ह्रदय में रक्त की आपूर्ति करना है। इस प्रकार धमनी का क्षतिग्रस्त भाग 'बायपास' होता है और हृदय की मांसपेशियां सामान्य रूप से कार्य कर पाती हैं।

बाईपास सर्जरी क्यों की जाती है? - Heart Bypass Surgery kab ki jati hai?
निम्न परेशानियों में ह्रदय की बायपास सर्जरी करने की आवश्यकता हो सकती है:

धमनीकाठिन्य (Arteriosclerosis)

विभिन्न कारणों से धमनियों की दीवारें मोती और कठोर हो सकती हैं। यह धमनीकाठिन्य के रूप में जाना जाता है। धमनी की दीवारों के अंदर प्लाक (कोलेस्ट्रॉल वसा, कैल्शियम और रक्त में अन्य पदार्थों के साथ मिलकर प्लाक का निर्माण कर सकते हैं) जमा हो सकते हैं। मोटी हुई दीवारें धमनियों के लुमेन को संकरा कर देती हैं। फलतः लुमेन पूरी तरह से अवरुद्ध हो जाता है जो रक्त प्रवाह को रोक देता है। कोरोनरी धमनी की एक या सभी शाखाएं अवरुद्ध हो जाती हैं। रक्त में उच्च स्तर के कोलेस्ट्रॉल से यह स्थिति पैदा हो सकती है।

आवर्तक एनजाइना पेक्टोरिस (Recurrent Angina Pectoris)

एनजाइना (Angina) में छाती में अचानक दर्द महसूस होता है। यह हृदय की मांसपेशियों को ऑक्सीजन युक्त रक्त की पर्याप्त आपूर्ति की कमी के कारण होता है। दर्द अचानक हो सकता है और दाँत, जबड़े, हाथ, उंगलियों में महसूस किया जा सकता है। यह दिल की मांसपेशियों में बाधित रक्त आपूर्ति का लक्षण हो सकता है। यह कोरोनरी धमनी की क्षति का परिणाम हो सकता है।

साँस लेने में तकलीफ (Shortness Of Breath)

कोरोनरी धमनी की क्षति का एक अन्य संकेत हो सकता है- सांस फूलना या सांस लेने में तकलीफ होना। अगर हृदय की मांसपेशियों को पर्याप्त रक्त आपूर्ति नहीं हो पा रही है, तो वे आसानी से कमज़ोर हो जाएंगी। मामूली शारीरिक गतिविधि से भी श्वास में कठिनाई हो सकती है। सांस लेने में तकलीफ की गंभीरता कोरोनरी धमनी की क्षति पर निर्भर करती है।

धमनीशोथ (Arteritis; धमनी की सूजन)

धमनीशोथ एक ऐसी स्थिति है जो मानव शरीर की किसी धमनी को प्रभावित कर सकती है। सूजन के कारण प्रभावित धमनी की दीवारें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। इस स्थिति से कोरोनरी धमनी प्रभावित हो सकती है जिसके परिणामस्वरूप इसकी क्षति हो सकती है।

अन्य विधियों की विफलता (Failure Of Other Methods)

कोरोनरी धमनी के हर ब्लॉकेज को सर्जरी की आवश्यकता नहीं होती। कुछ समय, डॉक्टर मरीज को शारीरिक व्यायाम करने, आहार का पालन करने या दवाइयां लेने के लिए कह सकता है। थोड़े गंभीर मामलों में, एंजियोप्लास्टी की आवश्यकता हो सकती है। यदि ये सभी विधियां विफल हो जाती हैं, तो सर्जरी की जा सकती है।

बाईपास सर्जरी होने से पहले की तैयारी - Heart Bypass Surgery ki taiyari
ह्रदय शरीर का एक बहुत महत्वपूर्ण अंग होता है। इसकी सुरगेरुय से पहले काफी तैयारी करने की आवश्यकता होती है। डॉक्टर्स की एक टीम बनाई जाती है जो इस सर्जरी की योजना बनाते हैं।  इस टीम में एक कार्डियोलॉजिस्ट (ह्रदय रोग विशेषज्ञ), कार्डियक सर्जन (ह्रदय की सर्जरी का विशेषज्ञ), सहायक चिकत्सक और नर्सें शामिल होती हैं जो सब इस क्षेत्र में अच्छे से प्रशिक्षित होते हैं।

सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा:

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)
विशिष्ट टेस्ट (Specif Tests Before Surgery)
ईसीजी के साथ ह्रदय की जांच करने के लिए एंजियोग्राम (Angiogram; वाहिकाचित्र) किया जाता है। कार्डियक कैथेटेराइज़ेशन (Cardiac Cathetarisation; किसी रक्‍त वाहिनी से गुजारते हुए एक छोटी प्‍लास्टिक नली को हृदय में पहुँचाना) जिससे डॉक्टर कोरोनरी धमनियों और उसकी शाखाओं को देख पाए।
ग्राफ्ट का चयन (Selection Of Graft)
ह्रदय की बायपास सर्जरी में रोगी के शरीर की कोई अन्य रक्त वाहिका को रक्त के व्यपवर्तन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है ताकि कोरोनरी धमनी का क्षतिग्रस्त भाग 'बायपास' हो सके। इस रक्त वाहिका, जिसका इस्तेमाल किया जाएगा, ग्राफ्ट कहते हैं। जिस वाहिका को ग्राफ्ट के रूप में इस्तेमाल किया जाना है उसका चयन सर्जरी से पहले किया जायेगा। आम तौर पर पैर की नस का एक भाग या छाती की धमनी का एक भाग ग्राफ्ट के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
ध्यान देने योग्य अन्य बातें (Other Things To Be Kept In Mind Before Surgery)
जिस जगह पर चीरा काटा जाना है उसकी त्वचा पर से सारे बाल हटाए (शेव) जायेंगे। फिर उस त्वचा को एंटी-सेप्टिक सोल्यूशन से साफ़ किया जायेगा।

बाईपास सर्जरी कैसे होती है? - Heart Bypass Surgery kaise karte hai?
इस सर्जरी को बहुत सावधानी और सतर्कता के साथ किया जाना चाहिए। इस सर्जरी को करने के कई तरीके हैं हालाँकि इन्हें करने के कुछ स्टेप्स समान ही होते हैं।

ओपन सर्जरी (Open Surgery)

सर्जन छाती की हड्डी के बिलकुल ऊपर छाती के बीच में एक चीरा काटता है। इसके बाद छाती की हड्डी (Sternum Bone) को हटा कर अलग कर दिया जाता है। सर्जन मरीज़ के शरीर से एक ग्राफ्ट (चुना हुआ) निकलता है जो क्षतिग्रस्त कोरोनरी धमनी को बायपास करने के लिए इस्तेमाल किया जायेगा। ग्राफ्ट को कोरोनरी धमनी से इस प्रकार सिला जाता है जिससे यह रक्त के अबाधित प्रवाह के लिए एक वैकल्पिक मार्ग का निर्माण कर सके। धमनी का क्षतिग्रस्त हिस्सा अब रक्त को ह्रदय की मांसपेशियों तक पहुँचाने का कार्य नहीं करता। छाती की हड्डी को वापस उसकी वास्तविक जगह पर लगा दिया जाता है और चीरे को सिल दिया जाता है। यह बायपास सर्जरी का पारम्परिक तरीका है और इसे ओपन सर्जरी भी कहते हैं।

कम चीरकर या काटकर की जाने वाली बायपास ग्राफ्टिंग (Minimally Invasive Bypass Grafting)

यह प्रक्रिया छाती की हड्डी को न हटा कर भी की जा सकती है। इसे कम चीरकर या काटकर की जाने वाली बायपास ग्राफ्टिंग कहा जाता है। इसमें ओपन सर्जरी की तरह एक बड़े चीरे के बजाय कई छोटे चीरे काटे जाते हैं। छाती की हड्डी को हटाने की आवश्यकता नहीं होती। यह प्रभावपूर्ण तब ही की जा सकती है अगर सामने की कोरोनरी धमनी ब्लॉक हो। ज़्यादा ब्लॉकेज इस प्रक्रिया से नहीं ठीक की जा सकती।

ऑफ-पंप कोरोनरी धमनी बायपास (Off-Pump Coronary Artery Bypass)

ह्रदय मानव शरीर में सभी अंगों और प्रणालियों को रक्त प्रदान करता है। यदि यह रुक जाए, तो तत्काल मृत्यु हो जाती है। हृदय बायपास सर्जरी के दौरान भी, इसके कार्य रोक नहीं सकते। इसलिए हार्ट-लंग मशीन का इस्तेमाल किया जाता है। यह मशीन बायपास के दौरान शरीर के सभी अंगों को ऑक्सीजन युक्त रक्त पंप करती है और शरीर के सभी अंगों से ऑक्सीजन रहित रक्त इकठ्ठा करती है। इस मशीन का उपयोग किये बिना इस सर्जरी को पूरा करने के लिए नयी तकनीकों का विकास किया जाए चुका है। सर्जरी के दौरान हृदय के सामान्य कार्य भी संरक्षित किये जाते हैं। इस प्रक्रिया को ऑफ-पंप कोरोनरी धमनी बायपास के रूप में जाना जाता है।

ऊपर बताए अनुसार थोड़ी भिन्नताओं के साथ, हृदय बायपास सर्जरी की जाती है। एक या एक से ज़्यादा कोरोनरी धमनी को ब्लॉक किया जा सकता है। कितनी धमनियों की ग्राफ्टिंग की जानी है इसके अनुसार 'बायपास ग्राफ्टिंग' के आगे उपसर्ग जोड़ दिए जाते हैं, जैसे डबल (दो धमनियां), ट्रिपल (तीन धमनियां)।

ह्रदय की बायपास सर्जरी में 3 से 6 घंटे लगते हैं। यह एक जटिल प्रक्रिया है। जितनी ज़्यादा धमनियों को ग्राफ्टिंग की ज़रुरत है, उतना ही ज़्यादा समय लग सकता है।

बाईपास सर्जरी के बाद देखभाल - Heart Bypass Surgery hone ke baad dekhbhal
सफल बायपास सर्जरी का मतलन यह बिलकुल नहीं है की आपका उपचार समाप्त हो गया है। सर्जरी के बाद जल्दी रिकवरी के लिए उपयुक्त देखभाल किया जाना बहुत ज़रूरी है।

सर्जरी के तुरंत बाद
सर्जरी के बाद, मरीज़ को ICU में शिफ्ट किया जाता है। नब्ज पर लगातार निगरानी रखी जाती है। पोषण सम्बन्धी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए एक इंट्रावेनस (Intravenous; नसों में) नीडल डाली जाती है। इस नीडल को सर्जरी के पहले से ही डाल दिया जाता है। इसे सर्जरी के बाद कुछ समय तक लगाकर रखा जाता है। होश आने के बाद मरीज़ को छाती पर चीरे की जगह पर पीड़ा महसूस हो सकती है। मरीज़ को 1-2 दिनों के लिए ICU में ही रखा जायेगा। द्रव ह्रदय में संचित हो सकता है। इसको निकालने के लिए छाती के अंदर ट्यूब्स लगायी जाती हैं। इनको नियमित रूप से मॉनिटर किया जाता है और जब एक बार सारा द्रव निकल जाए इन्हें हटा दिया जाता है। मरीज़ को ऑब्जरवेशन में रखा जाता है और 4-5 दिनों में अस्पताल से छुट्टी दी जाती है।

ग्राफ्ट की जगह पर सूजन
जिस जगह से ग्राफ्ट लिया गया है वहां सूजन हो सकती है। ये 7-10 दिनों में ठीक हो जाएगी। अगर ग्राफ्ट पैरों की नसों से लिया गया है तो मरीज़ को इलास्टिक स्टॉकिंग्स पहननी चाहिए।

टाँके खुलना/ हटाना
चीरे की जगह पर लगाए गए टांकों की रोज़ाना जांच की जानी चाहिए। डॉक्टर ने टाँके खुलवाने के लिए जो निर्धारित किया है, उस दिन जाकर टाँके खुलवाएं।

शारीरिक गतिविधि
सर्जरी के दौरान मरीज़ की छाती की हड्डी को पंजर (Rib Cage; रिब केज) से हटाया जाता है। सर्जरी के बाद इसे पुन: संबंधित होने में कुछ हफ्ते लगते हैं। सर्जिकल चीरे के घाव भी भरने में समय लगते हैं। सर्जरी के बाद कुछ हफ़्तों तक ऐसा कोई कार्य न करें जिससे आपके ह्रदय की मांसपेशियों पर अत्यधिक बल पड़े। इसलिए इस सर्जरी बाद काम से काम एक महीने तक ऐसा कोई भी अत्यधिक शारीरिक गस्तिविधियाँ जैसे दौड़ना, ज़्यादा थकाने वाले व्यायाम, भरी वज़न उठाना, आदि न करें। उसके बाद चिकित्सक से बात करके हलके और काम थकाने वाले व्यायाम कर सकते हैं।

आहार (Diet; डाइट)
डॉक्टर आपको डायटीशियन का सहयोग लेने के लिए कह सकते हैं। सर्जरी के बाद डाइट इस तरह से तैयार की जानी चाहिए कि कोलेस्ट्रॉल का दर नॉर्मल (सामान्य) रहे। अत्यधिक वसा युक्त भोजन का सेवन न करें। रक्तचाप की रेंज भी नॉर्मल (सामान्य) बनाये रखना ज़रूरी है। इसलिए डाइट में नमक और अचार की मात्रा बहुत कम होनी चाहिए। वज़न का दर भी अनुकूल रहना चाहिए। ज़्यादा वज़न मरीज़ के ह्रदय पर ज़्यादा भार पड़ेगा। तला हुआ भोजन, चीज़, बटर, मिठाईयां, आदि न खाएं।

बाईपास सर्जरी के बाद सावधानी - Heart Bypass Surgery hone ke baad savdhaniya
मरीज़ को ह्रदय की सर्जरी से पूरी तरह रिकवर होने में करीब 6-8 हफ्ते लग सकते हैं। इस अवधि के दौरान मरीज़ को ऊपर बताई गयी डाइट का पालन करना चाहिए। अत्यधिक श्रम वाले शारीरिक कार्य न करें लेकिन इसका अर्थ ये भी नहीं है कि आप कोई भी कार्य न करें। मरीज़ को घर में टहलना चाहिए। कुछ हफ़्तों के बाद घर के बाहर भी जा सकते हैं। हालांकि मरीज़ को जल्दी जल्दी नहीं चलना चाहिए। कम से कम चार हफ़्तों तक ड्राइविंग न करें। रिकवरी की अवधि के दौरान तम्बाकू, धूम्रपान और मदिरा का सेवन भूलकर भी न करें। ठीक होने के बाद भी धूम्रपान और मदिरा का सेवन न करने की सलाह दी जाती है।

बाईपास सर्जरी के जोखिम - Heart Bypass Surgery me jatiltaye
इस सर्जरी से जुड़े जोखिम और जटिलताएं निम्न लिखित हैं:

रक्तस्त्राव
ह्रदय की बायपास सर्जरी में रक्त वाहिकाओं को उनकी सामन्य स्थिति से बदला जाता है। इस वजह से सर्जरी के दौरान रक्तस्त्राव का जोखिम बढ़ जाता है। आपके ब्लड ग्रुप का रक्त इकठा करके रखा जाता है जिससे अत्यधिक रक्तस्त्राव होने पर इस्तेमाल किया जा सकता है।

संक्रमण
ह्रदय के बायपास में किया जाने वाल चीरा बड़ा और गहरा होता है। ओपन हार्ट सर्जरी में वैक्षिक छिद्र (थोरेसिक कैविटी) में पूरी तरह अंदर जाया जाता है। इन कारकों की वजह से चीरे की जगह पर या उसके अंदर संक्रमण होने का जोखिम रहता है। इसके लिए सर्जरी से पहले और बाद एंटीबायोटिक्स दी जाती हैं।

दर्द
संक्रमण की ही तरह, चीरे की जगह पर दर्द हो सकता है, जिसे दर्द निवारक दवा से ठीक किया जा सकता है।

रक्त के थक्कों का गठन
रक्त के थक्के धमनियों को अवरुद्ध कर सकते हैं और ह्रदय, फेफड़े, या अन्य अंगों को क्षति पहुंचा सकते हैं। इनका इलाज करने के लिए Blood Thinners (रक्त को पतला करने वाली दवाएं) दी जा सकती हैं।

एम्बोलिस्म (Embolism)
एम्बोलिस्म वह स्थिति है जिसमें किसी अंग में रक्त प्रवाह कर रही धमनी पर अवरोध के कारण उस अंग में रक्त की आपूर्ति नहीं हो पाती या कम हो जाती है। अध्ययनों में पाया गया है कि हार्ट-लंग मशीन, जिसका उपयोग इस सर्जरी के दौरान किया जाता है, प्लाक को धमनी में विस्थापित करने की प्रवृत्ति रखती है। यह प्लाक कोलेस्ट्रॉल या कैल्शियम के बने होते हैं। ये रक्त प्रवाह में जाकर मस्तिष्क में रक्त की आपूर्ति को अवरुद्ध करके मस्तिष्क के एम्बोलिस्म का कारण बन सकते हैं। इससे स्मृति हानि हो सकती है और इससे आगे जाकर मस्तिष्क के कार्यों को करने में भी परेशानी हो सकती है। ऑफ-पंप कोरोनरी धमनी बायपास का उपयोग करके एम्बोलिस्म के जोखिम से बचा जा सकता है।

ह्रदय की बायपास सर्जरी एक जीवनरक्षी प्रक्रिया है। जोखिमों के बावजूद भी यह ह्रदय में होने वाली ब्लॉकेज के लिए सर्वश्रेष्ठ तकनीक है।

21. पेसमेकर सर्जरी - Pacemaker Surgery in Hindi

पेसमेकर सर्जरी क्या होता है? - Pacemaker Surgery kya hai in hindi?
पेसमेकर एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जिसे एक निश्चित तरीके से दिल की धड़कन बनाने के लिए प्रोग्राम किया गया है। जब साइनस नोड (Sinus Node), जो कि मानव शरीर का प्राकृतिक पेसमेकर है, अच्छी तरह से काम नहीं करता, हृदय की लय बाधित हो जाती है। ऐसे में पेसमेकर इम्प्लांट की ज़रुरत पड़ती है।

हृदय की असामान्य लय एक प्रत्यारोपित पेसमेकर की मदद से नियंत्रित की जाती है। जिन लोगों की ह्रदय की गति धीमी हो जाती है, उनके लिए यह एक विश्वसनीय विकल्प है। पेसमेकर एक छोटा समकोण (रेक्टेंगुलर) उपकरण होता है जिसमें कुछ विद्युत-रोधित (Insulated) तारें और एक बैटरी और सर्किट होता है जो ह्रदय तक जा रहे विद्युत संकेतों (Electrical Signals) को नियंत्रित करता है।

पेसमेकर सर्जरी क्यों की जाती है? - pacemaker kab lagaya jata hai
पेसमेकर कई प्रकार के होते हैं। उनका कार्य भी उनके प्रकार के अनुसार अलग होता है। सिंगल कक्ष पेसमेकर (Single Chamber Pacemaker) में तार या लीड होते हैं जो कि नाड़ी जनरेटर (Pulse Generator) से दाएं वेंट्रिकल, जो हृदय के निचले दायें कक्ष (Chamber) में स्थित होता है, के लिए विद्युत् पल्स (Electrical Pulse) प्रसारित करता है। इसी तरह, एक ड्यूल-कक्ष पेसमेकर (Dual-Chamber Pacemaker) में, लीडस् जनरेटर से दाएं वेंट्रिकल और दाएं एट्रियम में पल्स को संचारित करता है। अन्य प्रकार है- बाइवेन्ट्रिकुलर पेसमेकर (Biventricular Pacemaker), जो जनरेटर से पल्सेस को एट्रियम और 2 वेंट्रिकल्स में प्रसारित करता है। पेसमेकरों को स्थायी रूप से या अस्थायी रूप से प्रत्यारोपित किया जा सकता है।

आपको कई वजहों के कारण डॉक्टर द्वारा पेसमेकर का प्रयोग करने के लिए निर्धारित किया जा सकता है।

हार्ट ब्लॉक (Heart Block): हार्ट ब्लॉक या तो लोगों में जन्म से होता है या फिर तब होता है अगर दिल के दौरे में ह्रदय को कोई क्षति हो जाए। पेसमेकर इम्प्लांट आमतौर पर तब किया जाता है जब हार्ट ब्लॉक के लक्षण असहनीय हो जाते हैं।

लॉन्ग क्यूटी सिंड्रोम (Long QT Syndrome): जब व्यायाम या तनाव के प्रति शारीरिक प्रतिक्रिया के रूप में दिल की धड़कन प्रभावित हो, तब उसे लॉन्ग क्यूटी सिंड्रोम कहते हैं। पेसमेकर या डीफिब्रिलेटर (Defibrillator) इम्प्लांट हृदय की असामान्य लय को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है।

सिक साइनस सिंड्रोम (Sick Sinus Syndrome): इसे टैकी-ब्रैडी सिंड्रोम (Tachy-Brady Syndrome) के रूप में भी जाना जाता है। इसमें थकावट, सांस फूलना, एनजाइना (Angina), ह्रदय में घबराहट (Palpitations) आदि होता है। इस विकार में साइनस नोड प्रभावित होता है और खराब कार्य कर करता है। एक स्थायी पेसमेकर इम्प्लांट दिल की धड़कन को नियंत्रित करता है।

हार्ट अटैक (Heart Attack): कार्डियोलॉजिस्ट (Cardiologists; हृदय रोग विशेषज्ञ) आम तौर पर ऐसे मरीज़ों, जिन्हे हाल ही में दिल का दौरा पड़ा हो, को अस्थायी पेसमेकर लगाने के लिए कह सकते हैं।

कंजेस्टिव हार्ट फेलियर (Congestive Heart Failure): जब ह्रदय की पंप करने की क्षमता कम हो जाती है, इसे कंजेस्टिव हार्ट फेलियर कहा जाता है। पेसमेकर के प्रत्यारोपण के माध्यम से इस स्थिति को ठीक किया जा सकता है।

कार्डिएक अरेस्ट (Cardiac Arrest): इस स्थिति में हृदत का इलेक्ट्रिक सिस्टम में समस्या हो जाती है। पेसमेकर इम्प्लांट ऐसी घटनाओं में किया जाता है जब ह्रदय का धड़कना बंद हो जाता है। इस तरह पेसमेकर इम्प्लांट एक जीवनरक्षी प्रक्रिया है।

पेसमेकर ऑपरेशन से पहले की तैयारी - Pacemaker Surgery ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा:

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग (खाली पेट रहना) (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)
सर्जरी से पहले किये जाने वाले विशिष्ट परीक्षण (Specific Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले मरीज़ को कई विशिष्ट परीक्षण करवाने होते हैं: इकोकार्डियोग्राम (Echocardiogram; ह्रदय की मांसपेशियों का आकार और मोटाई जानने हेतु और सेंसर लगाकर ह्रदय की इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स के प्रति अनुक्रिया जान्ने हेतु), होल्टर मॉनिटरिंग (Holter Monitoring; यह सर्जरी से एक दिन पहले दिल की धड़कन और पैटर्न को मैप करता है) और स्ट्रेस टेस्ट (Stress Test; जब आप ट्रेडमिल पर चलते हैं, तब यह टेस्ट कार्डियोलॉजिस्ट को आपके बदलते हृदय दर को देखने में मदद करता है)।
हार्ट वाल्व रोग (Heart Valve Disease)
यदि आपको हार्ट वाल्व रोग है तो अपने डॉक्टर को ज़रूर सूचित करें। डॉक्टर को इसके हिसाब से आपको दवा देनी होगी।
पेसमेकर का ऑपरेशन कैसे किया जाता है? - pacemaker surgery kaise hoti hai?
जैसे ही एनेस्थीसिया अपना काम करना शुरू करदे उसके बाद डॉक्टर एक नीडल का उपयोग करके पेसमेकर की तारों को नसों में डालते/ सिलते हैं जिससे उसे ह्रदय में रखा जा सके। तारों को सही मार्गदर्शन देने के लिए एक्स-रे मशीन का प्रयोग किया जाता है। एक बार तारें सही जगह लग जाएँ फिर छाती या पेट में एक छोटा चीरा काटा जाता है।

चीरा काटने के बाद, एक प्लास्टिक ट्यूब की मदद से लेड वायर को रक्त वाहिका और फिर ह्रदय में डाला जाता है। लेड वायर एक बार ह्रदय में चली जाए, फिर उसका टेस्ट किया जाता है। उसके बाद पेसमेकर को चीरे से आपकी त्वचा के अंदर लगाया जाता है। जब पेसमेकर सही जगह लग जाता है, फिर डॉक्टर उसकी कार्यवाही की जांच करने के लिए उसको टेस्ट करते हैं। चीरे को सिल दिया जाता है।

पेसमेकर सर्जरी के बाद देखभाल - Pacemaker Surgery hone ke baad dekhbhal
सर्जरी के बाद आपको एक रात अस्पताल में ही बितानी होगी जिससे डॉक्टर पेसमेकर की कार्यवाही की जांच करते रहें। आप होश आने पर तरल पदार्थ और भोजन का सेवन कर सकते हैं। एक बार आपका पल्स रेट और ह्रदय का दर स्थिर हो जाए, आपको अस्पताल से छुट्टी मिल सकती है। निर्धारित आराम करने के बाद, मरीज़ अपनी आम दिनचर्या और जीवनशैली में लौट सकते हैं।

पेसमेकर सर्जरी के बाद सावधानियां - Pacemaker Surgery hone ke baad savdhaniya
पेसमेकर सर्जरी के बाद निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें
इस सर्जरी के बाद मरीज़ को शारीरिक रूप से सक्रीय रहना चाहिए।
चक्कर आना, मतली, ज़्यादा पसीना आना, छाती में दर्द और इम्प्लांट के निवेशन की जगह से रक्तस्त्राव या अन्य किसी प्रकार का स्त्राव होने पर तुरंत अपने चिकित्सक से संपर्क करें।
नियमित रूप से अपने कार्डियोलॉजिस्ट (Cardiologist; हृदय रोग विशेषज्ञ) से चेक-अप करवाएं और पेसमेकर की कार्यवाही की जांच करवाएं।
हीट थेरेपी का उपयोग न करें, इससे इम्प्लांट के आसपास की त्वचा पर बर्न्स हो सकते हैं।
अगर आप यात्रा (ट्रेवल) कर रहे हैं, तो ध्यान दें कि मेटल डिटेक्टर सीधा आपके इम्प्लांट की जगह के ऊपर नहीं  लगाया जाए। अपने साथ पेसमेकर पहचान पत्र (Pacemaker Identification Card) रखें क्योंकि ऐसा हो सकता है कि एयरपोर्ट की सुरक्षा प्रणाली में इसके डिटेक्ट होने पर साईरन बज जाएँ।
बांह को ज़्यादा न हिलाएं। इम्प्लांट के बाद 6-8 हफ़्तों तक ज़्यादा भार न उठायें क्योंकि इससे पेसमेकर की तारें बाहर निकल सकती हैं।
एक पेसमेकर की बैटरी 5 से 15 साल के बीच चल सकती है।

पेसमेकर सर्जरी की जटिलताएं - Pacemaker Surgery me jatiltaye
पेसमेकर का ऑपरेशन करवाने के बाद निम्नलिखित जटिलताएं हो सकती हैं:

सूजन और रक्त के थक्कों का गठन:
इम्प्लांट के आसपास के क्षेत्रों की नसों में रक्त के थक्के बन जाना संभव है। बांह में सूजन भी हो सकती है। हालांकि ये सूजन कुछ दिनों में ठीक भी हो जायेगी।

रक्तस्त्राव:
उपकरण को लगाने की जगह पर रक्तस्त्राव हो सकता है।

रक्त वाहिका को क्षति:
सर्जरी के दौरान पेसमेकर इम्प्लांट के आसपास की रक्त वाहिका को क्षति पहुँच सकती है।

सांस लेने में कठिनाई:
अगर सर्जरी के दौरान, हवा फेफड़े के बाहर के क्षेत्र में फंस जाए तो इससे फेफड़े पंक्चर हो जाते हैं। ये एक बहुत ही सूक्ष्म जोखिम है।

दिल में छेद:
यह एक बहुत दुर्लभ जोखिम है लेकिन यह एक बहुत गंभीर जोखिम है। सर्जन की लापरवाही की वजह से हृदय में एक छेद हो सकता है। इससे छाती में दर्द और ह्रदय में तीव्रसम्पीड़न (दबाव) (Cardiac Tamponade, Compression Of The Heart) हो सकता है। किसी दुर्लभ स्थिति में, व्यक्ति की मौत भी हो सकती है।

22. एंजियोप्लास्टी - Angioplasty in Hindi

एंजियोप्लास्टी सर्जरी क्या होती है? - Angioplasty kya hai in hindi?
कोरोनरी एंजियोप्लास्टी (Coronary Angioplasty) या परक्यूटेनियस कोरोनरी इंटरवेंशन (Percutaneous Coronary Intervention) का उपयोग हृदय की ब्लॉक्ड धमनियों को खोलने के लिए किया जाता है। दिल का दौरा पड़ने पर, आदर्श रूप से पहले 1 से 1.5 घंटों के अंदर रोगी की एंजियोप्लास्टी की जानी चाहिए। यह समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस समय सीमा के बाद, हृदय की मांसपेशियों की कोशिकाओं को अपरिवर्तनीय रूप से क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। एंजियोप्लास्टी के इस प्रकार को प्राथमिक एंजियोप्लास्टी (Primary Angioplasty) के रूप में जाना जाता है। ऐसी स्थितियों में जहां एंजियोप्लास्टी संभव नहीं है, वहां इंट्रावेनस क्लॉट बस्टर (Intravenous Clot Buster) को विकल्प के रूप में दिया जाता है। हालांकि क्लॉट बस्टर का प्रयोग करना एक आसान विकल्प है, लेकिन यह एंजियोप्लास्टी से कम प्रभावी है।

एंजियोप्लास्टी क्यों की जाती है? - Angioplasty operation kab kiya jata hai?
एंजियोप्लास्टी सर्जरी अवरुद्ध धमनियों के लक्षणों को ठीक करने में मदद करती है। इन लक्षणों में सांस लेने में तकलीफ और सीने में दर्द शामिल है। यह दिल का दौरा पड़ने पर यह अवरुद्ध धमनी को जल्दी से खोलने के लिए उपयोगी है। यह हृदय को हुई क्षति को कम करने में मदद करती है। यह कोरोनरी धमनियों से प्लाक (Plaque) को साफ करने में भी मददगार है। एंजियोप्लास्टी सर्जरी इसलिए फायदेमंद है क्योंकि इसमें बड़ी सर्जरी की आवश्यकता के बिना ही धमनी को सामान्य आकार में वापस लाया जा सकता है।

दिल का दौरा पड़ने पर, स्टेंटिंग के साथ या स्टेंटिंग के बिना, आपातकालीन एंजियोप्लास्टी को सामान्य रूप से उपचार के पहले विकल्प के रूप में किया जाता है। निम्न स्थितियों में एंजियोप्लास्टी की आवश्यकता होती है:

बार बार होने वाला गंभीर एनजाइना (Angina) जिसमें दवाओं के प्रभाव न हो पा रहा हो
दिल की मांसपेशियों का आइस्किमिया (Ischemia)
संकीर्ण या अवरुद्ध धमनी
एंजियोप्लास्टी होने से पहले की तैयारी - Angioplasty ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा:

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)

एंजियोप्लास्टी कैथीटेराइजेशन प्रयोगशाला (Cathetarization Laboratory) में की जाती है। इसमें हाथ या पैर की धमनी में पहले से डाली गई म्यान (Sheath) के माध्यम से कैथेटर डाला जाता है। कोरोनरी धमनियों को और अच्छे से देखने के लिए, रोगियों को इंजेक्शन से एक रेडियो-अपारदर्शी डाई (Radio-Opaque Dye) दी जाती है। हृदय के विभिन्न भागों से रक्तचाप दर्ज किया जाता है। वाल्वों की कार्यप्रणाली की जांच भी की जाती है। विशिष्ट कैमरों का उपयोग करते हुए, प्रक्रिया के दौरान हृदय की छवियों को कैप्चर किया जा सकता है। एक बैलून कैथेटर को रुकावट के स्थान पर रखा जाता है और धीरे-धीरे फैटी प्लाक की स्‍फीति के लिए भी प्रयोग किया जाता है। यह हृदय की मांसपेशियों को आसानी से रक्त प्रवाहित करने में मदद करता है।
रुकावट स्थल में कार्डियोलॉजिस्ट (Cardiologist; ह्रदय रोग विशेषज्ञ) द्वारा स्टेंट निवेशन (Stent Insertion) और गुब्बारे की मदद से उसी का विस्तार करने से बेहतर परिणाम मिलते हैं। स्टेंट धमनी के माध्यम से रक्त प्रवाह के लिए बेहतर माध्यम प्रदान करता है। यह लम्बे समय तक बेहतर परिणाम देता है।

एंजियोप्लास्टी कैसे किया जाता है? - Angioplasty kaise hota hai?
जिन मरीज़ों के साथ दिल का दौरा पड़ने या स्ट्रोक (Stroke) का जोखिम रहता है उनके लिए सर्जन ह्रदय की बायपास सर्जरी के बजाय एंजियोप्लास्टी का चुनाव करता है। मरीज़ की स्थिति के अनुसार, एंजियोप्लास्टी का प्रकार चुना जाता है। एंजियोप्लास्टी के मुख्य प्रकार निम्न हैं:

बैलून एंजियोप्लास्टी (Balloon Angioplasty)
लेज़र एंजियोप्लास्टी (Laser Angioplasty)
अथेरेक्टॉमी (Atherectomy)
बैलून एंजियोप्लास्टी (Balloon Angioplasty)
बैलून एंजियोप्लास्टी आमतौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला एंजियोप्लास्टी का प्रकार है। इसमें कैथेटर नामक एक पतली और लंबी ट्यूब को बांह या जांघ में एक छोटा चीरा काटकर अवरुद्ध धमनी में डाला जाता है। एक्स-रे की सहायता से, कैथेटर को रक्त वाहिकाओं के माध्यम से आसानी से धमनी में डाला जाता है। संकुचित धमनी में प्रवेश करने पर, कैथेटर टिप से जुड़े बैलून (गुब्बारा) को फुलाया जाता है। फूला हुआ बैलून प्लाक को दबाता है और चपटा कर देता है जिससे धमनी चौड़ी हो जाती है। एक बार धमनी साफ़ हो जाए, रक्त प्रवाह वापस ठीक हो जाता है।

बैलून लगाने के बाद, रोगी द्वारा छाती में परेशानी का अनुभव करना सामान्य है। आमतौर पर बैलून एंजियोप्लास्टी के दौरान स्टेंट्स का इस्तेमाल होता है। ये धातु से बने छोटे उपकरण हैं जो एंजियोप्लास्टी प्रक्रिया को पूरा करने के बाद कैथेटर की मदद से रखे जा सकते हैं। यह उपचार के तहत धमनी के संकुचन को रोकने के लिए धमनी के अंदर रहता है।

ज्यादातर बैलून एंजियोप्लास्टी स्टेंट निवेशन वाले मरीजों में लाभकारी होता है। कभी-कभी स्टेंट निवेशन के परिणामस्वरूप कमजोर दिल वाले मरीज़ों में रक्त के थक्के विकसित हो सकते हैं।

लेज़र एंजियोप्लास्टी (Laser Angioplasty)
लेज़र एंजियोप्लास्टी में, कैथेटर का प्रयोग किया जाता है लेकिन बैलून की जगह लेज़र का उपयोग किया जाता है। लेज़र को फिर प्लाक तक लेकर जाय जाता है और ब्लॉकेज वेपराइज़ (भाप बन जाना) हो जाता है। बैलून और लेज़र एंजियोप्लास्टी का प्रयोग एक के बाद एक किया जाना आम है। बैलून का प्रयोग सख्त प्लाक को हटाने के लिए और बचे हुए प्लाक को हटाने के लिए लेज़र का प्रयोग किया जाता है। दोनों प्रक्रियाओं के बिच का अंतर कार्डियोलॉजिस्ट द्वारा तय किया जाता है। लाज़र एंजियोप्लास्टी का उपयोग अन्य एंजियोप्लास्टी तकनीकों के मुकाबले बहुत कम होता है।

अथेरेक्टॉमी (Atherectomy)
इसका उपयोग तब किया जाता हिअ जब बैलून और लेज़र एंजियोप्लास्टी से भी सख्त प्लाक को न हटाया जा सके। प्लाक को सर्जिकल ब्लेड की मदद से पूरी तरह काट दिया जाता है। ब्लेड से प्रभावित धमनी की दीवारों से हटाने में मदद करता है।

रोटेशनल अथेरेक्टॉमी (Rotational Atherectomy): इसमें डाइमंड-टिप वाले तेज़ गति के ड्रिल की मदद से प्लाक को हटाया जाता है। बहुत ही सख्त प्लाक को इस से निकाला जाता है।
एक्सट्रैक्शन अथेरेक्टॉमी (Extraction Atherectomy): इसमें धमनी के अनादरा की दीवारों से प्लाक हटाने के लिए एक छोटा रोटेटिंग ब्लेड (फ़ूड प्रोसेसर के कटर के समान) का प्रयोग होता है।
डायरेक्शनल अथेरेक्टॉमी (Directional Atherectomy): इसमें प्लाक को हटाने के लिए बैलून और शेविंग ब्लेड का प्रयोग किया जाता है।
एंजियोप्लास्टी में ज़्यादा समय नहीं लगता। इसमें लगभग एक घंटा लगता है। लेकिन एंजियोप्लास्टी के बाद, अतिरिक्त 12-16 घंटे लगते हैं रिकवरी में।

एंजियोप्लास्टी के बाद देखभाल - Angioplasty hone ke baad dekhbhal
गौर आपातकालीन एंजियोप्लास्टी में मरीज़ को उसकी स्वास्थ्य की स्थिति के अनुसार अस्पताल में रखा जाता है। आम तौर पर, मरीज़ एक हफ्ते बाद अपनी दिनचर्या में लौट सकए हैं। दिल का दौरा पड़ने पर एंजियोप्लास्टी करने पर, अस्पताल में रहने की अवधि और रिकवरी की अवधि बढ़ सकती है।

दवाओं का प्रयोग
एंजियोप्लास्टी के बाद रोगियों को दवाओं के बारे में सर्जन की सलाह का पालन करना बहुत आवश्यक है। अधिकांश समय, एंजियोप्लास्टी रोगियों को सर्जरी के बाद अनिश्चितकाल के लिए एस्पिरिन (Aspirin) लेने की जरूरत होती है। स्टेंट प्लेसमेंट के साथ मरीजों को Blood Thinners (रक्त को पतला करने वाली दवाओं) की आवश्यकता होगी। ऐसी स्थितियों में एक वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिए क्लोपिडोग्रेल (Clopidogrel) दी जाती है।

एंजियोप्लास्टी के बाद ह्रदय का स्वास्थ्य बनाये रखना बहुत जरूरी है। इस सर्जरी के बाद:

धूम्रपान का सेवन न करें।
कोलेस्ट्रॉल का स्तर बनाए रखें।
स्वस्थ वजन बनाए रखें।
नियमित व्यायाम करें।
जिन स्थितियों में एंजियोप्लास्टी वांछित परिणाम नहीं दे पाती, वहां हृदय की क्षति को रोकने के लिए बायपास सर्जरी की जाती है।

एंजियोप्लास्टी के बाद सावधानियां - Angioplasty hone ke baad savdhaniya
घर पहुँचने के बाद, मरीज़ों को अत्यधिक द्रव का सेवन करना चाहिए जिससे शरीर से कंट्रास्ट डाई निकल जाए। थकाने वाले व्यायाम न करें और भारी वजन न उठायें। अन्य गतविधियां अपने सर्जन के कहे अनुसार करें। सर्जरी के बाद, कैथेटर निशेचन की जगह पर दर्द या परेशानी या सूजन या रक्तस्त्राव होने पर, बुखार, स्त्राव जैसे संक्रमण के लक्षण, तापमान में अस्थिरता, थकान या कमज़ोरी, छाती में दर्द, सांस लेने में तकलीफ होने पर अपने डॉक्टर को बताएं।

एंजियोप्लास्टी की जटिलताएं - Angioplasty me jatiltaye
निम्न कारकों की वजह से एंजियोप्लास्टी से होने वाले जोखिम बढ़ सकते हैं:
मरीज़ की उम्र- वृद्धावस्था में जोखिम ज़्यादा होते हैं।
उपचार प्रक्रिया का प्रकार: आपातकालीन प्रक्रिया ज़्यादा जोखिमों से भरी होती है क्योंकि इसमें सर्जरी की योजना बनाए का समय नहीं मिलता।
गुर्दे का कोई विकार: कंट्रास्ट एजेंट के प्रयोग के कारण गुर्दे को क्षति हो सकती है।
ह्रदय की लय की असामन्यता: एंजियोप्लास्टी के दौरान, ह्रदय की गति बढ़ या घाट सकती है। हृदय की समस्याएं आम तौर पर काम समय ही रहती हैं और इनसे बचने के लिए अस्थायी पेसमेकर निशेचन या दवाओं का प्रयोग किया जा सकता है।
जटिलताएं
कैथेटर निशेचन के स्थान पर चोट या रक्तस्त्राव।
म्यान निशेचन की जगह पर क्षति।
कोरोनरी धमनी को एंजियोप्लास्टी के दौरान क्षति पहुँच सकती है जिसके उपचार के लिए आपातकालीन बायपास सर्जरी करनी पड़ सकती है।
प्रक्रिया में प्रयोग किये गए कंट्रास्ट एजेंट के प्रति एलर्जिक प्रतिक्रिया हो सकती है। इससे बचने के लिए मरीज़ को द्रव पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
अत्यधिक रक्तस्त्राव हो सकता है।
दुर्लभ स्थिति में मरीज़ को एंजियोप्लास्टी के दौरान दिल का दौरा पड़ सकता है या स्ट्रोक होने का खतरा हो सकता है। स्ट्रोक के जोखिम से बचने के लिए का प्रयोग किया जा सकता है।

23. कोरोनरी एंजियोग्राफी - Coronary Angiography in Hindi

कोरोनरी एंजियोग्राफी क्या है? - Coronary Angiography kya hai in hindi?
कोरोनरी एंजियोग्राफी (Coronary Angiogrpahy) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका उपयोग धमिनियों (artieries) में रक्त प्रवाह की जांच करने के लिए किया जाता है। कोरोनरी एंजियोग्राफी के दौरान, कैथेटर (पतली, प्लास्टिक ट्यूब) के माध्यम से, एक कंट्रास्ट डाई को आपकी धमनियों में इंजेक्ट किया जाता है, और डॉक्टर एक्स रे स्क्रीन पर आपके दिल के रक्त प्रवाह को देखते हैं।

इस परीक्षण को कार्डियक एंजियोग्राम (Cardiac Angiogram), कैथेटर आर्टेरियोग्राफी (Catheter Arteriography), या कार्डिएक कैथीटेराइजेशन (Cardiac Catheterization) भी कहा जाता है।

कोरोनरी एंजियोग्राफी क्यों की जाती है? - Coronary Angiography kab ki jati hai?
अगर आपको अस्थिर एनजाइना (Unstable Angina), सीने में असामान्य दर्द (Atypical chest pain), ओर्टिक स्टेनोसिस (Aortic stenosis) या अस्पष्टीकृत हार्ट फेलियर (Unexplained heart failure) की समस्या है, तो आपको दिल का दौरा पड़ने का खतरा हो सकता है। इसलिए आपका डॉक्टर आपको कोरोनरी एंजियोग्राफी कराने की सलाह देता है।

कोरोनरी एंजियोग्राफी होने से पहले की तैयारी - Coronary Angiography ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा:

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग/ खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)

कोरोनरी एंजियोग्राफी कैसे की जाती है? - Coronary Angiography kaise hoti hai?
आपके चिकित्सक आपकी जांघ और पेट के बीच के भाग या बाजु के किसी क्षेत्र को साफ़ करके उसे एनेस्थीसिया के ज़रिये सुन्न कर देंगे। जब कैथेटर (catheter) आपकी धमनी को खोलेगा, तब आप हल्का सा दबाव महसूस कर सकते हैं। कैथेटर को आपके दिल में किसी एक धमनी तक धीरे-धीरे पहुंचाया जाएगा और आपके डॉक्टर एक स्क्रीन पर पूरी प्रक्रिया की निगरानी करेंगे।

आप ट्यूब को अपनी रक्त वाहिकाओं में चलता/ हिलता हुआ महसूस नहीं करेंगे।

वांछित परिणाम यह है कि आपके दिल में खून का प्रवाह सामान्य रूप से और बिना किसी रुकावट के हो रहा है। असामान्य परिणाम का मतलब यह हो सकता है कि आपकी एक या अधिक धमनियां अवरुद्ध हैं। यदि आपकी कोई धमनी अवरुद्ध है, तो आपके डॉक्टर आपकी एंजियोप्लास्टी कर सकते हैं और रक्त प्रवाह को तुरंत सुधारने के लिए संभवतः एक इंट्राकोरोनी स्टेंट (intracoronary stent) डाल सकते हैं।

कोरोनरी एंजियोग्राफी के बाद देखभाल - Coronary Angiography hone ke baad dekhbhal
डाई इंजेक्शन के बाद थोड़ी जलन या फ्लशिंग (गर्माहट) महसूस हो सकती है। परीक्षण के बाद, जिस जगह से कैथेटर निकला जायेगा उस जगह रक्तस्राव को रोकने के लिए दबाव डाला जायेगा। यदि कैथेटर आपके जांघ और पेट के बीच की जगह में लगाया जाता है, तो रक्तस्राव को रोकने के लिए परीक्षण के कुछ घंटों बाद तक आपको आपकी पीठ के बल सीधा लेटने के लिए कहा जा सकता है। इससे आपको पीठ में हल्का सा दर्द महसूस हो सकता है।

परिक्षण के बाद भरपूर आराम करें और खूब सारा पानी पिएं। धूम्रपान और शराब का स्वान न करें। आपको ध्यान रखना चाहिए की आपने एनेस्थीसिया का इस्तेमाल किया है तो ड्राइव न करें, न किसी मशीन का संचालन करें और न कोई महत्वपूर्ण निर्णय लें।
पट्टी को 24 घंटे बाद निकालें, यदि हल्का सा रक्तस्त्राव होता है तो और 12 घंटों के लिए घाव पर नयी पट्टी लगाएं।

परिक्षण के 2 दिन बाद तक सेक्स या कोई भरी व्यायाम न करें।
नहाने को लेकर अपने चिकित्सक द्वारा दी गयी सलाह का पालन करें। घाव या पंचर साइट के आस पास 3 दिन तक कोई लोशन या क्रीम न लगाएं।
आपको परिक्षण के एक हफ्ते बाद अपने हृदय चिकित्सक के पास चेक-अप के लिए जाना पड़ेगा।

कोरोनरी एंजियोग्राफी की जटिलताएं - Coronary Angiography me jatiltaye
अगर कार्डियक कैथीटेराइजेशन एक अनुभवी टीम द्वारा किया जाता है तो यह बहुत ही सुरक्षित है , लेकिन इसमें कुछ जोखिम भी हैं।

इसके कारण होने वाले जोखिम निम्लिखित हैं:

रक्तस्त्राव होना या नील पड़ना
खून के थक्के
धमनी या शिरा की क्षति
स्ट्रोक होने का हल्का खतरा
दिल का दौरा पड़ने की संभावना या बाईपास सर्जरी की ज़रूरत
कम रक्तचाप
पहले यह माननीय था कि कार्डियक एंजियोग्राफी के कारण गुर्दों को क्षति हो सकती है, लेकिन 2012 में युरोपियन हार्ट जर्नल (European Heart Journal) में प्रकाशित शोध में पता चला कि यह एक दुर्लभ जटिलता थी।

24. हृदय वाल्व रिप्लेसमेंट सर्जरी - Valve Replacement in Hindi

हृदय वाल्व रिप्लेसमेंट सर्जरी क्या होता है? - Valve Replacement kya hai in hindi?
वॉल्वुयूलर हृदय रोग (Valvular heart disease) तब होता है जब हृदय की चार वॉल्व्स में से एक या उससे अधिक वॉल्व ठीक से काम नहीं करती। यदि आपके दिल की वॉल्व बहुत नाजुक हो या क्षतिग्रस्त हो तो वॉल्व प्रतिस्थापन सर्जरी (Valve replacement surgery) एक विकल्प हो सकता है।

हृदय वाल्व रिप्लेसमेंट सर्जरी क्यों की जाती है? - Valve Replacement kab kiya jata hai?
वॉल्व की मरम्मत या प्रतिस्थापन सर्जरी का उपयोग एक या अधिक रोगग्रस्त हृदय वॉल्व की समस्याओं को ठीक करने के लिए किया जाता है।
यदि आपकी एक या एक से अधिक वॉल्व खराब हो जाती है या किसी बीमारी से ग्रस्त हो जाती है, तो इसके निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं:

चक्कर आना
छाती में दर्द
साँस लेने में कठिनाई
घबराहट
पैरों, टखनों, या पेट की सूजन
द्रव प्रतिधारण के कारण वजन में तीव्र वृद्धि
हृदय वाल्व रिप्लेसमेंट सर्जरी होने से पहले की तैयारी - Valve Replacement ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा:

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग/ खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)
ध्यान देने योग्य अन्य बातें:
​अगर आप किसी भी दवा, आयोडीन, लेटेक्स, टेप या एनेस्थेसिया (लोकल और जनरल) से एलर्जिक हो तो अपने चिकित्सक को बताएं।
यदि आप पेसमेकर का इस्तेमाल कर रहे हैं तो अपने चिकित्सक को सूचित करें।
आपकी चिकित्सा स्थिति के आधार पर, आपका चिकित्सक आपको किसी अन्य विशिष्ट तैयारी की सलाह दे सकता है।

हृदय वाल्व रिप्लेसमेंट सर्जरी कैसे किया जाता है? - Valve Replacement kaise hota hai?
हार्ट वॉल्व प्रतिस्थापन सर्जरी (Heart valve replacement surgery) को जनरल एनेस्थेसिया के तहत पारंपरिक या कम चीरकर की जाने वाली तकनीक के साथ किया जाता है। पारंपरिक सर्जरी में आपकी गर्दन से आपकी नाभि तक एक बड़ा चीरा लगाया जाता है। यदि आपका चिकित्सक कम चीरकर की जाने वाली तकनीक का इस्तेमाल करता है तो आपके चीरे की लंबाई कम हो सकती है और संक्रमण का जोखिम भी कम हो सकता है ।

एक रोगग्रस्त वॉल्व को सफलतापूर्वक निकालने के लिए और इसकी जगह नयी वॉल्व लगाने के लिए अनिवार्य है की, आपका दिल स्थिर हो। सर्जरी के दौरान आपको बायपास मशीन पर रखा जाएगा जो आपके शरीर में रक्त संचालन और आपके फेफड़ों की कार्यप्रणाली को बनाए रखने में सहायता करेगा। आपका सर्जन आपके महाधमनी (aorta) में चीरे बनायेगा, जिसके माध्यम से वॉल्व निकाले जाएंगे और उन्हें बदला जाएगा। वॉल्व प्रतिस्थापन सर्जरी के के बाद 98 प्रतिशत मरीज़ जीवित रहते हैं।

हृदय वाल्व रिप्लेसमेंट सर्जरी के बाद देखभाल - Valve Replacement hone ke baad dekhbhal
अधिकांश हृदय वॉल्व प्रतिस्थापन प्राप्तकर्ता (heart valve replacement recipients) लगभग पांच से सात दिनों के लिए अस्पताल में रहते हैं। यदि आपकी सर्जरी कम चीरे वाली थी, तो शायद आप पहले घर जा सकते हैं। वॉल्व प्रतिस्थापन के बाद पहले कुछ दिनों के दौरान मेडिकल स्टाफ आपको आपकी ज़रूरत के मुताबिक दर्द की दवा देंगे और आपके रक्तचाप, श्वास, और हृदय कार्यप्रणाली की निरंतर निगरानी करेंगे।

आपका पूर्ण स्वस्थ होना आपके स्वास्थ्य दर और सर्जरी के प्रकार पर निर्भर करता है। सर्जरी के तुरंत बाद संक्रमण होने का खतरा रहता है, इसलिए अपने चीरों को विसंक्रमित रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि आपको निम्नलिखित में से कोई लक्षण नज़र आते हैं जो संक्रमण का संकेत देते हैं, तो अपने चिकित्सक से संपर्क करें :

बुखार
ठंड लगना
चीरा साइट पर दर्द या सूजन
चीरा साइट से स्त्राव निकलना
फॉलो-अप अपॉइंटमेंट्स महत्वपूर्ण हैं। उनसे आपके डॉक्टर को यह निर्धारित करने में मदद मिलेगी कि आप अपनी रोज़मर्रा की गतिविधियों को फिर से शुरू करने के लिए तैयार हैं या नहीं।

हृदय वाल्व रिप्लेसमेंट सर्जरी के बाद सावधानियां - Valve Replacement hone ke baad savdhaniya
आपको पूर्ण रूप से स्वस्थ होने में कुछ सप्ताह या कुछ महीनों तक का समय लग सकता है। इसलिए अपने डॉक्टर के निर्देशों का सही से पालन करें और समय समय पर जांच करवाते रहें।

हृदय वाल्व रिप्लेसमेंट सर्जरी की जटिलताएं - Valve Replacement me jatiltaye
हृदय वॉल्व प्रतिस्थापन सर्जरी से जुड़े संभावित जोखिम निम्नलिखित हैं:

सर्जरी के दौरान या बाद में रक्त स्राव
रक्त के थक्के जो दिल के दौरे, स्ट्रोक, या फेफड़े की समस्याएं पैदा कर सकते हैं
संक्रमण
निमोनिया
साँस सम्बन्धी परेशानी
अतालता (असामान्य हृदय दर)

बोन मैरो ट्रांसप्लांट - Bone Marrow Transplant in Hindi

बोन मैरो ट्रांसप्लांट क्या होता है? - Bone Marrow Transplant kya hai in hindi?
संक्रमण, बीमारी या कीमोथेरेपी (Chemotherapy) की वजह से अस्थि मज्जा (Bone Marrow; बोन मैरो) को क्षति पहुँच सकती है। अस्थि मज्जा का प्रत्यारोपण करने के लिए मूल कोशिकाओं (स्टेम सेल्स) का प्रत्यारोपण किया जाता है। ये नयी मूल कोशिकाएं रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करती हैं और नए अस्थि मज्जा की वृद्धि में मदद करती हैं। इस प्रक्रिया से अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण (Bone Marrow Transplant; बोन मैरो ट्रांसप्लांट) किया जाता है।

बोन मैरो ट्रांसप्लांट क्यों की जाती है? - Bone Marrow Transplant kab kiya jata hai?
अस्थि मज्जा का अस्वस्थ होना इस प्रत्यारोपण का प्रमुख कारण होता है। लम्बे समय से चला आ रहा संक्रमण अस्थि मज्जा को कुछ समय के बाद कमज़ोर करने लगता है। कीमोथेरेपी, जिसका उपयोग सामान्यतः कैंसर के उपचार में किया जाता है, भी स्वस्थ अस्थि मज्जा को क्षति पहुंचा सकती है। निम्न कारकों से बोन मैरो ट्रांसप्लांट की आवश्यकता हो सकती है:

अप्लास्टिक एनीमिया (Aplastic Anemia)
ऐसा विकार जिसमें अस्थि मज्जा रक्त कोशिकाओं का निर्माण बंद हो जाता है।

ल्यूकीमिया (Leukemia)
यह रक्त बनाने वाले ऊतकों या अस्थि मज्जा का कैंसर है। ल्यूकेमिया से ग्रस्त व्यक्ति में रक्त कोशिकाओं का असामान्य उत्पादन होता है, आम तौर पर सफेद रक्त कोशिकाओं का।

लिंफोमा (Lymphoma)
यह लसीका प्रणाली (Lymphatic System) का कैंसर है। यह विशेष रूप से लिम्फोसाइटों (Lymphocytes) का कैंसर होता है जो कि एक प्रकार की सफेद रक्त कोशिकाएं हैं। चूंकि ये सफ़ेद रक्त कोशिकाओं को अस्थि मज्जा में निर्मित किया जाता है, अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण लिंफोमा के लिए एक उपचार विधि के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

मल्टिपल मायलोमा (Multiple Myeloma)
यह प्लाज्मा कोशिकाओं (Plasma Cells), जो प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune System) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, का कैंसर है। इन कोशिकाओं को अस्थि मज्जा में पाया जा सकता है और इसलिए, अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण मल्टिपल मायलोमा के लिए संभावित उपचार हो सकता है।

कीमोथेरपी (Chemotherapy)
यह कैंसर उपचार कैंसर कोशिकाओं को लक्षित करता है। कीमो दवाओं की उच्च खुराक अस्थि मज्जा को प्रभावित कर सकती है और नयी रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करने की अपनी क्षमता को नष्ट कर सकती हैं।

कंजेनिटल न्युट्रोपेनिया (Congenital Neutropenia)
कंजेनिटल का मतलब है कि रोग जन्म से मौजूद है। कंजेनिटल न्युट्रोपेनिया एक विकार है जिसमें संक्रमण बार बार होता रहता है।

सिकल सेल एनीमिया (Sickle Cell Anemia)
ये लाल रक्त कोशिकाओं के असामान्य आकार की वजह से उत्पन्न एनीमिया का प्रकार है। ये लाल रक्त कोशिकाएं कम ऑक्सीजन प्रदान करती हैं और रोगी आसानी से थका हुआ महसूस करता है। सिकल सेल एनीमिया उपचार के लिए अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण एक विकल्प माना जाता है।

थैलेसीमिया (Thalassemia)
यह एक वंचित रक्त विकार जिसमें शरीर असामान्य प्रकार का हीमोग्लोबिन बनता है। हीमोग्लोबिन रक्त का एक महत्वपूर्ण घटक है और शरीर में प्रत्येक कोशिका को ऑक्सीजन की आपूर्ति करता है।

बार बार विकिरण में अनावरण (Recurrent Exposure To Radiation)
विकिरण चिकित्सा (Radition Therapy; रेडिएशन थेरेपी) कैंसर के उपचार में प्रयोग किया जाने वाला एक विकल्प है। हालांकि यह मरीज़ के लिए लाभकारी है परन्तु इसके कुछ दुष्प्रभाव भी होते हैं। बार बार विकिरण के आधीन होने से अस्थि मज्जा को नुकसान पहुँच सकता है। ऐसे में अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण की आवश्यकता हो सकती है। ऐसे क्षेत्रों, जिनमें लम्बे समय तक विकिरण में रहने की आवश्यकता होती है, में काम कर रहे लोगों को भी यह परेशानी हो सकती है।

बोन मैरो ट्रांसप्लांट होने से पहले की तैयारी - Bone Marrow Transplant ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा:

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)
सर्जरी से पहले किये जाने वाले विशिष्ट टेस्ट्स (Specific Tests Before Surgery)
किस प्रकार की अस्थि मज्जा कोशिकाओं का प्रत्यारोपण किया जाना है ये जानने के लिए कई टेस्ट्स किया जाना आवश्यक है। उपर्युक्त बताये गए टेस्ट्स के अलावा अस्थि मज्जा बायोप्सी (Bone Marrow Biopsy), स्केलेटल स्ट्रक्चर (Skeletal Structure; कंकाल संरचना) के स्वास्थ्य का आंकलन, दांतों की जांच (Complete Dental Checkup), आदि। संक्रमण के जोखिम से बचने के लिए डॉक्टर द्वारा बताये गए सारे टेस्ट्स करवाना आवश्यक है।

बोन मैरो ट्रांसप्लांट कैसे किया जाता है? - Bone Marrow Transplant kaise hota hai?
अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण दो प्रकार से किया जा सकता है: ऑटोलॉगस प्रत्यारोपण (Autologous Transplants) और एलोजेनिएक प्रत्यारोपण (Allogeneic Transplants)।

ऑटोलॉगस प्रत्यारोपण (Autologous Transplants)
इस प्रक्रिया में मरीज़ के ही शरीर की मूल कोशिकाओं से नयी रक्त कोशिकाएं बनाई जाती हैं। इस प्रक्रिया को शुरू करने से पहले मूल कोशिका हार्वेस्टिंग (Stem Cell Harvesting) करनी पड़ती है।

 स्टेम सेल हार्वेस्टिंग (Stem Cell Harvesting; मूल कोशिका हार्वेस्टिंग)

स्टेम सेल हार्वेस्टिंग के लिए, रक्त में प्रसारित परिधीय रक्त स्टेम सेल को एकत्रित किया जाता है और हार्वेस्ट किया जाता है। मोबिलाइजेशन उपचार (Mobilization Treatment) के माध्यम से, अस्थि मज्जा से मूल कोशिकाओं को खून में पारित किया जाता है। एक बार जब मूल कोशिकाएं रक्तप्रवाह में प्रवेश कर जाएँ, एकत्रित करने की प्रकिया शुरू की जा सकती है।

रक्त को अलग करने की प्रक्रिया में कुछ घंटे लगते हैं और इसे एफेरेसिस मशीन (Apheresis Machine) का उपयोग करके किया जाता है। एक बार आवश्यक मात्रा की मूल कोशिकाएं एकत्रित हो जाती हैं, उन्हें स्टेम सेल प्रोसेसिंग (Stem Cell Processing) और क्रियोप्रिजर्वेशन प्रयोगशाला (Cryopreservation Laboratory) में हार्वेस्ट और फ्रीज किया जाता है। उन्हें प्रयोगशाला में तब तक रखा जाता है जब तक कि वे हार्वेस्टिंग के लिए तैयार न हो जाएँ।

जैसे रक्त आधान (Blood Transfusion; खून चढ़ाना) की प्रक्रिया होती है, स्टेम सेल्स के फ्रोजेन बैग्स का विगलन किया जाता है और फिर प्रत्यारोपित किया जाता है। स्टेम सेल अस्थि मज्जा की तरफ जाते हैं और फिर अंततः नए रक्त कोशिकाओं का उत्पादन शुरू करते हैं। इस प्रक्रिया को एन्ग्राफ्टमेंट (Engraftment) कहा जाता है।

अंततः, रक्त उत्पादन में वृद्धि होगी। प्रारंभिक चरण में कम रक्त की संख्या के कारण रक्त आधान की आवश्यकता हो सकती है। संक्रमण या जटिलताओं की जांच के लिए प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद रोगी की स्वास्थ्य स्थिति की जाँच की जाएगी। प्रक्रिया के बाद कई हफ़्तों तक रक्त परीक्षण किये जाएंगे जिससे यह जांच की सके कि रक्त कोशिकाओं की गणना बढ़ी है या नहीं।

एलोजेनिएक प्रत्यारोपण (Allogeneic Transplants)
आम तौर पर, इस प्रक्रिया को रक्त के कैंसर और अन्य जटिल, गंभीर विकारों जैसे ल्यूकेमिया (Leukaemia) और उसके प्रकार, मायलोमा (Myeloma), मायलोडिसप्लास्टिक सिंड्रोम (Myelodysplastic Syndromes), लिम्फोमा (Lymphoma), अप्लास्टिक एनीमिया (Aplastic Anaemia) और अन्य दुर्लभ प्रकार के अस्थि मज्जा रोगों के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है।

इस प्रक्रिया में, रोगियों की मूल कोशिकाओं का इस्तेमाल नहीं किया जाता, बल्कि आनुवंशिक रूप से मिलने वाले स्टेम सेल डोनर द्वारा डोनेट किया जाता है। डोनर्स ज्यादातर रोगी के परिवार के ही सदस्य होते हैं - भाई या बहन। यदि परिवार का कोई भी सदस्य उपलब्ध नहीं है, तो असंबंधित स्टेम सेल जो रोगी के शरीर के लिए उपयुक्त है, उसे प्रत्यारोपित किया जाता है।

एलोजेनिएक अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण डोनर द्वारा डोनेट की गयी स्वस्थ मूल कोशिकाओं को प्राप्तकर्ता के प्रभावित या क्षतिग्रस्त स्टेम कोशिकाओं के साथ बदल देता है। कीमोथेरेपी और विकिरण चिकित्सा की ज़्यादा खुराक के कारण स्टेम सेल क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। डोनर्स के रक्त में मौजूद श्वेत रक्त कोशिकाओं को भी मूल कोशिकाओं के साथ प्रत्यारोपित किया जाता है ताकि संगतता बढ़ जाए और अंतर्निहित बीमारी भी ठीक हो जाये।

जब डोनर आनुवंशिक रूप से संबंधित नहीं होते तो इस प्रक्रिया की जटिलता बढ़ जाती है। असंबंधित स्टेम सेल में ज़रा सा भी अंतर जटिलताओं का कारण हो सकता है। इसलिए, 60 वर्ष से अधिक या गंभीर बीमारी से पीड़ित रोगियों के लिए, एलोोजेनिक अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण की सलाह नहीं दी जाती।

वरिष्ठ व्यक्तियों के लिए 'मिनी-' या काम तीव्रता वाले प्रत्यारोपण एक विकल्प होता है। यह प्रक्रिया कम तीव्रता वाली है क्योंकि यह अस्थि मज्जा को पूरी तरह से नष्ट नहीं करती। यह विशेष रूप से अस्थि मज्जा कैंसर से पीड़ित रोगियों के लिए फायदेमंद है क्योंकि डोनर की प्रतिरक्षा प्रणाली (जिसमें सफेद रक्त कोशिकाओं भी शामिल हैं) प्राप्तकर्ता को कैंसर कोशिकाओं को मारने में सहायता करेगी। इसके अलावा यह अंतर्निहित रोगों को रोक देगा जिससे प्राप्तकर्ता के शरीर द्वारा अस्वीकृति की संभावना को कम हो जायेगी।

चूंकि, प्रक्रिया में डोनर द्वारा मूल कोशिकाओं को डोनेट करना शामिल है, उसे ग्रेन्युलोसाइट कॉलोनी स्टिमुलेटिंग फैक्टर (Granulocyte Colony Stimulating Factor, G-CSF) नामक इंजेक्शन की एक सीरीज दी जाती है। इंजेक्शन, आम तौर पर, रक्तप्रवाह में प्रवेश करने के लिए मूल कोशिकाओं को उत्तेजित करने के लिए चार खुराकों में वितरित चार दिनों के लिए दिया जाता है। एक बार स्टेम सेल या पेरीफेरल ब्लड स्टेम सेल (Peripheral Blood Stem Cells, PBSC) रक्तप्रवाह में आवश्यक मात्रा में इकट्ठा हो जाते हैं, तो उन्हें एफेरेसिस मशीन (Apheresis Machine) का उपयोग करके निकाला जाता है जो डोनर से जुड़ी होती है। प्रक्रिया पीड़ारहित है और डोनर उस ही दिन सामान्य गतिविधियों को फिर से शुरू कर सकता है।

प्रत्यारोपण के दौरान, डोनेट की गयी स्टेम कोशिकाओं को नसों के माध्यम से रोगी के रक्तप्रवाह में डाला जाता है। प्रक्रिया रक्त आधान के समान है। एक बार, स्टेम सेल प्राप्तकर्ता के रक्तप्रवाह में प्रवेश करते हैं, वे अस्थि मज्जा तक जाते हैं और अंततः नयी रक्त कोशिकाओं का उत्पादन शुरू करते हैं।

प्रक्रिया के एक हफ्ते बाद, रक्तगणना में काफी गिरावट आ सकती है। इसलिए, इस अवधि के दौरान संक्रमण की संभावनाएं बहुत अधिक हैं। कम रक्तगणना से बचने के लिए दवाओं और कभी-कभी, रक्त आधान की आवश्यकता पड़ सकती है।

बोन मैरो ट्रांसप्लांट के बाद देखभाल - Bone Marrow Transplant hone ke baad dekhbhal
रिकवरी में समय लगेगा। रिकवरी बिना किसी परेशानी के हो जाए इसके लिए निम्न बातों का ध्यान दें।

संक्रमण की जांच
प्रत्यारोपण के बाद, संक्रमण का जोखिम बढ़ सकता है, खासकर अगर शरीर पर प्रक्रिया का प्रभाव अनुकूल न हो। अगर संक्रमण हो, तो मरीज़ को अपने चिकित्सक को बताना चाहिए जिससे चिकित्सक संक्रमण से लड़ने के लिए दवा निर्धारित करदे। इसलिए उपयुक्त देखभाल से संक्रमण के खतरे को रोककर जटिलताओं से बचा जा सकता है। शुरूआती तीन महीनों में रोग प्रतिरोधक शक्ति कम होती है लेकिन देखभाल करने से और समय के साथ रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाया जा सकता है। संक्रमण कई बार गंभीर भी हो सकते हैं, जो घातक सिद्ध हो सकते हैं।

ग्राफ्ट वर्सिस होस्ट डिज़ीज़ (Graft Versus Host Disease, GVHD) एक आम जटिलता है जो इस प्रत्यारोपण के बाद हो सकती है। इसमें डोनेट किया हुआ अस्थि मज्जा प्रतिरक्षा कोशिकाओं को नहीं पहचान पाता और रक्षात्मक उपाय के रूप में उनपर हमला कर देता है।

स्वच्छता का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है। रोज़ नहाने से शरीर की त्वचा पर बैठने वाले बैक्टीरिया से बचा जा सकता है। मौखिक स्वच्छता का ध्यान रखना भी ज़रूरी है। दिन में दो बार दांत ब्रश करें। भोजन के बाद दांत साफ़ करने चाहिए। धूल-मिट्टी में न जाएँ। भोजन करने या टॉयलेट जाने के बाद हाथ ढंग से धोयें। सैनिटाइज़र का प्रयोग करें।

सर्जरी के बाद फॉलो-अप (Follow-Up)
डॉक्टर से नियमित रूप से चेक-अप करवाते रहना बहुत ज़रूरी है। डॉक्टर द्वारा निर्धारित शिड्यूल का पालन करें और डॉक्टर ने जब कहा हो तब चेक-अप के लिए जाएँ। मरीज़ को कितने दिन में जांच करवानी होगी यह सर्जरी की प्रक्रिया और उसकी जटिलता पर निर्भर करता है। डॉक्टर द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों का पालन करें और समय पर दवा लें। निम्न कोई भी परेशानी लगातार कुछ दिनों तक होने पर डॉक्टर को दिखाएँ:

उच्च तापमान ( ऑटोलॉगस प्रत्यारोपण के मरीज़ों में 100°F और एलोजेनिएक प्रत्यारोपण के मरीज़ों में 100.5°F)
सूखी खांसी या हरे या पीले बलगम वाली खांसी लगातार होना
सांस लेने में कठिनाई
जहाँ सेंट्रल वेनस कैथेटर (Central Venous Catheter) लगाया हो वहां सूजन या लाल होना
दस्त
आहार (Diet, डाइट)
अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण के बाद रिकवरी और भी बेहतर होगी अगर आप स्वस्थ भोजन का सेवन करेंगे। लाल रक्त कोशिकाओं की गणना को बढ़ाने के लिए आयरन युक्त भोजन जैसे हरी पत्तेदार सब्ज़ियां, खजूर, आदि का सेवन करें। ध्यान रखें कि आप आयरन युक्त आहार खाने के बाद विटामिन सी (Vitamin C) युक्त कोई भी पदार्थ का सेवन करें जिससे आयरन आसानी से शरीर में अवशोषित हो जाए। पशु स्त्रोत से मिलने वाला आयरन पौधे या वनस्पति से प्राप्त होने वाले आयरन से अधिक आसानी से अवशोषित हो जाता है इसलिए आपको डॉक्टर द्वारा मीट खान के लिए कहा जा सकता है जिससे अरक्तता (Anaemia, एनीमिया) से बचा जा सके, जो कि आयरन की कमी से होने वाली बीमारी है।

व्यायाम
शरीर के जल्दी रिकवर होने के लिए व्यायाम बहुत ज़रूरी है। शुरुआत में, आप ज़्यादा थकाने वाले व्यायाम नहीं कर पाएंगे। चलना, तैरना, योग, आदि व्यायाम रोज़ करें जिनसे मांसपेशियों पर अत्यधिक तनाव न पड़े। आप हलके व्यायाम से शुरू करके धीरे धीरे व्यायाम की तीव्रता को बढ़ा सकते हैं।

इस प्रक्रिया का सफलता दर इस बात पर निर्भर करता है कि प्रत्यारोपण किये जाने का कारण क्या है। कैंसर के उपचार में अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण काफी सफल प्रक्रिया के रूप में सामने आया है। इससे 85 प्रतिशत तक जीवन दर बढ़ा है जो एक समय में शून्य था। अन्य बीमारियों में भी यह काफी लाभकारी पाया गया है। किसी भी प्रकार के जोखिम से बचने और इस प्रक्रिया के सारे लाभ उठाने के लिए इस प्रक्रिया के बाद उपर्युक्त तरीकों और जैसा डॉक्टर कहे वैसे देखभाल किया जाना आवश्यक है।

बोन मैरो ट्रांसप्लांट के बाद सावधानियां - Bone Marrow Transplant hone ke baad savdhaniya
सर्जरी के बाद पूरी तरह रिकवरी होने में लगभग एक साल लग सकता है। प्रक्रिया के बाद के पहले 100 दिन बहुत महत्वपूर्ण हैं जिनमें स्धिक्तम जटिलताएं होने का खतरा रहता है। रिकवरी की प्रक्रिया हर मरीज़ के लिए अलग होगी। कुछ मरीज आराम से रिकवर हो जायेंगे और कुछ को परेशानियां हो सकती हैं।

बोन मैरो ट्रांसप्लांट की जटिलताएं - Bone Marrow Transplant me jatiltaye
अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण प्रक्रिया में कुछ जोखिम और जटिलताएं भी शामिल हैं। हालांकि, उचित दवाओं और उपचार के साथ उन्हें समाप्त किया जा सकता है। सामान्य जोखिम और जटिलताएं जो अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण के बाद हो सकती हैं निम्न लिखित हैं:

संक्रमण
स्टेम सेल (ग्राफ्ट) प्रत्यारोपण विफल हो सकता है
नए प्रकार का कैंसर विकसित हो सकता है
एलोजेनिएक प्रत्यारोपण रोगियों में ग्राफ्ट वर्सिस होस्ट डिज़ीज़ (Graft Versus Host Disease, GVHD) के विकास की संभावना है
किसी अंग को क्षति हो सकती है
प्रजनन क्षमता में कमी
मोतियाबिंद
बहुत दुर्लभ स्थितियों में अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण घातक साबित हो सकता है। ऐसा तब होता है जब प्रत्यारोपित मूल कोशिकाओं द्वारा बिलकुल भी प्रतिक्रिया नहीं होती।

26. लिवर ट्रांसप्लांट - Liver Transplant Surgery in Hindi

लिवर ट्रांसप्लांट क्या है - Liver Transplant Surgery kya hai in hindi?
लिवर प्रत्यारोपण (Liver Transplantation) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें लिवर फेलियर के परिणामस्वरूप एक गैर-कार्यकारी लिवर को सर्जरी से हटा दिया जाता है और पूर्ण या आंशिक रूप से स्वस्थ लिवर से प्रतिस्थापित किया जाता है। लिवर कैंसर सर्जरी करवाते समय, अगर यह ज्ञात होता है कि लिवर की कार्यवाही बहुत ही बिगड़ चुकी है तो ऐसे में लिवर प्रत्यारोपण करना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि सिर्फ प्रभावित भाग हटाने से लिवर फेलियर हो सकता है। प्रत्यारोपण के लिए, लिवर जीवित या मृत डोनर से लिया जा सकता है।

चूंकि, कोई भी यंत्र या मशीन विश्वसनीय तरीके से लिवर का कार्य नहीं कर सकती, जिन मरीज़ों का लिवर फेल हो चुका हो उनकी स्थिति में प्रत्यारोपण ही एकमात्र विकल्प होता है।

जिन रोगियों को लिवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, वे आमतौर पर तीव्र या जीर्ण लिवर फेलियर से पीड़ित होते हैं। आमतौर पर, लिवर प्रत्यारोपण को गंभीर जटिलताओं, जैसे अंत-चरण जीर्ण लिवर रोग, से पीड़ित रोगियों के लिए वैकल्पिक उपचार के रूप में आरक्षित किया जाता है। अचानक से लिवर फेल होना एक दुर्लभ स्थिति है।

लिवर ट्रांसप्लांट क्यों की जाती है? - Liver Transplant Surgery kab kiya jata hai?
जिन मरीज़ों की स्थिति अन्य उपचारों से नियंत्रित नहीं की जा सकती, ऐसे मरीज़ों में लिवर फेलियर के इलाज के विकल्प के रूप में लिवर प्रत्यारोपण किया जाता है। लिवर कैंसर से रोगग्रस्त लोगों के इलाज के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है।

लिवर फेलियर दो प्रकार का होता है: तीव्र लिवर फेलियर (Acute Liver Failure or Fulminant Hepatic Failure) जिसमें अचानक से या जल्दी से (कुछ हफ़्तों में) लिवर की कार्यवाही विफल हो जाती है और यह आमतौर पर दवाओं से होने वाली लिवर की खराबी या क्षति से होता है।

हालांकि लिवर प्रत्यारोपण तीव्र लिवर फेलियर के उपचार में प्रयोग किया जाता है लेकिन ज़्यादातर इसका प्रयोग जीर्ण (बहुकालीन) लिवर फेलियर (Chronic Liver Failure) के उपचार में किया जाता है। जीर्ण लिवर फेलियर कई महीनों या सालों में होता है।

विभिन्न स्थितियों के कारण जीर्ण लिवर फेलियर हो सकता है। इसका सबसे आम कारण है सिरहोसिस, एक प्रक्रिया जिसमें स्कार ऊतक सामान्य लिवर ऊतक की जगह ले लेते हैं और लिवर की कार्यवाही खराब हो सकती है। सिरहोसिस लिवर प्रत्यारोपण का अक्सर उद्धृत किया जाने वाला कारण है।
सिरोसिस के प्रमुख कारण जिनसे लिवर फेलियर और अंततः लिवर ट्रांसप्लांट करने की आवश्यकता पड़ती है निम्न हैं:

हेपेटाइटिस बी और सी (Hepatitis B and C)
मदिरा या मादक पदार्थ से होने वाली लिवर की समस्या (Alcoholic Liver Disease)
मादकता रहित वसायुक्त लिवर रोग (Nonalcoholic Fatty Liver Disease)
पित्त वाहिका (Bile Duct; पित्त-विकार को लिवर से बाहर ले जानी वाली ट्यूब) को प्रभावित करने वाली बीमारियां जैसे कि प्राथमिक पित्त सिरोसिस (Primary Biliary Cirrhosis), प्राइमरी स्केलेरोसिंग कोलिन्जाइटिस (Primary Sclerosing Cholangitis) और पित्त अविवरता (Biliary Atresia)। पित्त अविवरता बच्चों में लिवर का सबसे प्रमुख कारण है।
लिवर को प्रभावित करने वाली अनुवांशिक बीमारियां, जिनमें रक्तवर्णकता (Hemochromatosis) और विलसन्स डिज़ीज़ (Wilson's Disease) भी शामिल हैं
सिरोसिस के कारण लिवर फेलियर के लक्षण:

काला मल (Black stool)
उल्टी में रक्त निकलना
पेट में पानी (Ascites; जलोदरियां)
उनींदापन और मानसिक भ्रम
मामूली घावों से अत्यधिक रक्तस्राव
पीलिया
गुर्दे की शिथिलता
अत्यधिक थकान
हीमोग्लोबिन और अन्य रक्तगणना की संख्या में कमी
लिवर प्रत्यारोपण से लिवर में उत्पन्न होने वाले कई कैंसर (Primary Liver Cancer; प्राथमिक लिवर कैंसर) के उपचार में भी प्रयोग किया जा सकता है।

लिवर ट्रांसप्लांट होने से पहले की तैयारी - Liver Transplant Surgery ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा:

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)
प्रत्यारोपण के लिए डोनर ढूंढ़ना (Finding The Donor For The Transplant)
प्रत्यारोपण 3 प्रकार के होते हैं: जीवित व्यक्ति (आम तौर पर परिवार के सदस्य) का लिवर प्रत्यारोपित करना (Living Donor Transplant), किसी मृत (हाल ही में) व्यक्ति का लिवर प्रत्यारोपित करना (Orthotopic Transplant), या स्प्लिट डोनेशन जिसमें मृत व्यक्ति के लिवर को दो हिस्सों (दांया और बांया) में करके दो शरीरों (एक बचा और एक वयस्क) में प्रत्यारोपित कर देते हैं (बड़ा हिस्सा व्यसक के शरीर में और छोटा हिस्सा बच्चे के शरीर में) (Split Donation)।
टेस्ट्स और अन्य मूल्यांकन के बाद, मरीज को शवदायी डोनेशन (Cadaveric Donation) के लिए प्रतीक्षा सूची में रखा जाता है, या अगर परिवार में ही कोई डोनर जिसका ब्लड ग्रुप मरीज़ के ग्रुप से मैच करता हो और जो प्रत्यारोपण के लिए तैयार हो, तो उसकी डोनेशन के लिए जांच और जांच के परिणाम अनुकूल होने पर प्रत्यारोपण की योजना बनायी जाती है।
मृतक डोनर (Deceased Donor) की प्रतीक्षा के दौरान, जब तक एक उपयुक्त लिवर उपलब्ध नहीं हो जाता तब तक रोगी प्रत्यारोपण टीम के साथ फॉलो-अप करता रहता है। यदि रोगी की स्थिति में बिगड़ने के लक्षण दिखाई देते हैं, तो सामान्य रूप से परिवार को लिवर डोनेट करने पर विचार करने को कहा जाता है।

लिवर डोनेशन से सम्बंधित ध्यान देने योग्य बातें:

डोनर का लिवर स्वस्थ होना चाहिए।
आदर्श रूप से, डोनर का ब्लड ग्रुप प्राप्तकर्ता के ब्लड ग्रुप के लिए अनुकूल होना चाहिए।
डोनर की उम्र से 18-60 के बीच होनी चाहिए।
लिवर डोनेट करने के पीछे का उद्देश्य आर्थिक लाभ नहीं होना चाहिए बल्कि यह सहायता के भाव से किया जाना चाहिए।
डोनर के लिवर का आकार प्राप्तकर्ता के लिवर के आकार से मेल खाना चाहिए।
डोनर अगर जीवित है तो उसका शारीरिक परीक्षण किया जाना चाहिए, जिसमें उपर्लिखित टेस्ट्स भी शामिल हैं।
लिवर ट्रांसप्लांट कैसे किया जाता है? - Liver Transplant Surgery kaise hota hai?
अगर आपको यह सूचित किया जाता है कि किसी शवदायी डोनर का लिवर उपलब्ध है, तो आपको उस ही वक़्त अस्पताल आना होगा। आपको अस्पताल में भर्ती करवाया जायेगा और सर्जरी से पहले आपके स्वास्थ्य की जांच की जाएगी जिससे यह सुनिश्चित हो जाए कि आप सर्जरी एक लिए तैयार हैं।

ट्रांसप्लांट सर्जन मरीज़ के पेट में एक लंबा चीरा (जिगर तक पहुंचने के लिए) बनाता है। चीरे का आकार आपकी शारीरिक बनावट और सर्जन के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है।

सर्जन लिवर में रक्त आपूर्ति और पित्त वासिका को वियोजित कर देता है और फिर रोगग्रस्त लिवर को निकाला जाता है। इसके बाद सावधानी से वास्तविक लिवर के स्थान पर डोनर का लिवर रख दिया जाता है और रक्त आपूर्ति व पित्त वासिका को फिर जोड़ दिया जाता है। सर्जरी का समय आपकी स्थिति पर निर्भर करता है। सर्जरी में 6 से 18 घंटे लग सकते हैं।

इसके बाद सर्जिकल धागों और स्टेपल्स की मदद से चीरा सिल दिया जाता है। इसके बाद आपको Intensive Care Unit (ICU) में रखा जायेगा।

अगर लिवर जीवित शरीर से लिया जा रहा है, तो ऐसे में डोनर के लिवर का कुछ हिस्सा (40-70%) ही लिया जाता है नाकि पूरा लिवर। ऐसे में पहले डॉक्टर डोनर का एक ऑपरेशन करते हैं जिसमें डोनर के लिवर का हिस्सा निकाला जाता है। यह सर्जरी तीन से चार घण्टे चलती है।

इसके बाद रोगी के शरीर में, उपर्लिखित मृत डोनर द्वारा प्रत्यारोपित लिवर को लगाने की सर्जरी की प्रक्रिया द्वारा, लिवर प्रत्यारोपित किया जाता है।

डोनर और प्राप्तकर्ता दोनों को शरीर में लिवर का पुनर्जनन होता है। इसमें कुछ महीने लगते हैं। लिवर का आकर और विस्तार-क्षेत्र फिरसे सामान्य लिवर की तरह हो जाता है।

लिवर ट्रांसप्लांट के बाद देखभाल - Liver Transplant Surgery hone ke baad dekhbhal
कुछ दिनों के लिए ICU आपको में रखा जायेगा। डॉक्टर और नर्स आपकी स्थिति को मॉनिटर करते रहेंगे जिससे किसी भी प्रकार की जटिल को टाला जा सके। वे आपके नए लिवर की कार्यवाही की जांच भी करेंगे।
आपको अस्पताल में 5 से 10 दिन बिताने हो सकते हैं।
अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद भी आपको नियमित रूप से डॉक्टर्स से चेक-अप करवाने होंगे। सर्जरी के बाद भी आपको कई हफ़्तों तक कुछ रक्त परीक्षण करवाने हो सकते हैं।
प्रत्यारोपण के बाद आपको आजीवन दवाएं लेनी होंगी, कुछ दवाएं रोग निरोधक क्षमता बनाये रखने के लिए जिससे बीमारियां प्रत्यारोपित लिवर पर हमला न कर सकें और कुछ दवाएं जटिलताओं से बचने के लिए दी जा सकती हैं।
लिवर ट्रांसप्लांट के बाद सावधानियां - Liver Transplant Surgery hone ke baad savdhaniya
पूरी तरह रिकवर होने और प्रत्यारोपण के बाद पूरी तरह बेहतर महसूस करने में छह महीने या उससे ज़्यादा लग सकते हैं। हालांकि आप सर्जरी के कुछ महीने बाद से सामान्य गतिविधियां एवं काम पर जाना शुरू कर सकते हैं। सर्जरी के बाद रिकवरी की अवधि इस बात पर निर्भर करती है कि आप सर्जरी से पहले कितने बीमार थे।

लिवर ट्रांसप्लांट की जटिलताएं - Liver Transplant Surgery me jatiltaye
लिवर प्रत्यारोपण का कुल सफलता दर 94% से ज़्यादा है और अधिकांश प्राप्तकर्ता अपनी सामान्य गतिविधियां कर पाते हैं और 95% स्थितियों में जीवन की गुणवत्ता पहले के सामान हो जाती है। प्रत्यारोपण की सफलता इसपर भी निर्भर करती है कि रोग का निदान किस स्टेज पर हुआ। जितनी जल्दी रोग का पता चलेगा, उसके उपचार के परिणाम भी उतने ही बेहतर होंगे।

अधिक सफलता दर होने पर भी रोगी को इससे जुड़ी जटिलताओं का ज्ञान होना चाहिए। सर्जरी के बाद होने वाले कुछ जोखिम और जटिलताएं निम्न हैं:

पित्त वासिका में जटिलताएं जैसे पित्त वासिका लीक्स या पित्त वासिका का सुकड़ना
रक्तस्त्राव
रक्त के थक्कों का गठन
डोनेट किये हुए लिवर का फेलियर
संक्रमण
शरीर द्वारा डोनेट किये हुए लिवर का अग्रहण
मानसिक भ्रम या मिर्गी के दौरे
प्रत्यारोपित लिवर में लिवर की बीमारी की पुनरावृत्ति
अग्रहण-रोधी दवाओं के प्रति दुष्प्रभाव
लिवर प्रत्यारोपण के बाद, आपको आजीवन दवाएं लेनी होंगी जिनसे शरीर द्वारा डोनेट किये हुए लिवर का अग्रहण न हो। इन दवाओं से हड्डियों की कमज़ोरी, मधुमेह, दस्त, सिरदर्द, उच्च रक्त चाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल, जैसे दुष्प्रभाव हो सकते हैं। ये दवाएं रोग प्रतिरोधक क्षमता को रोक कर कार्य करती हैं इसलिए संक्रमण का खतरा भी बढ़ सकता है। इसलिए आपको डॉक्टर द्वारा संक्रमण रोधी दवाएं भी दी जा सकती हैं।

27. किडनी ट्रांसप्लांट - Kidney Transplant Surgery in Hindi

किडनी ट्रांसप्लांट क्या होता है? - Kidney Transplant Surgery kya hai in hindi?
गुर्दा प्रत्यारोपण (Kidney Transplantation) एक सर्जिकल प्रक्रिया है जो गुर्दे के फेलियर (Kidney Failure) के इलाज के लिए की जाती है। गुर्दे रक्त से अपशिष्ट (Waste; वेस्ट) को फिल्टर करते हैं और मूत्र के माध्यम से इसे शरीर से हटा देते हैं। वे आपके शरीर के द्रव और इलेक्ट्रोलाइट बैलेंस (Electrolyte Balance) को बनाए रखने में भी सहायता करते हैं। यदि आपके गुर्दे काम करना बंद कर देते हैं तो शरीर में अपशिष्ट बढ़ जाता है और आपको बहुत बीमार कर सकता है।

जिन लोगों के गुर्दे फेल हो गए हों उन्हें आमतौर पर डायलिसिस (Dialysis) नामक एक उपचार से गुजरना पड़ता है। जब गुर्दे काम करना बंद कर देते हैं, तो यह उपचार रक्तप्रवाह में बनने वाले अपशिष्ट को यांत्रिक रूप से फ़िल्टर कर देता है। कुछ लोग जिनके गुर्दे फेल हो चुके हैं, उन्हें गुर्दा प्रत्यारोपण के लिए भी कहा जा सकता है, जिसमें एक या दोनों गुर्दों को जीवित या मृतक व्यक्ति द्वारा डोनेट किये हुए अंग से प्रस्थापित कर दिया जाता है।

गुर्दा प्रत्यारोपण डायलिसिस मशीन पर आजीवन निर्भरता और उसके प्रयोग से जुड़े कड़े शिड्यूल से छुटकारा दिला सकता है। इससे आपका जीवन अधिक सक्रिय हो सकेगा। हालाँकि गुर्दे का प्रत्यारोपण सबके लिए उचित नहीं है।

प्रत्यारोपण के दौरान, सर्जन डोनेट किया हुआ गुर्दा आपके शरीर में लगा देगा। भले ही मनुष्य का जन्म दो गुर्दों के साथ होता है, लेकिन वो एक स्वस्थ गुर्दे पर भी जी सकते हैं। प्राप्तकर्ता को आम तौर पर एक ही गुर्दा मिलता है। दुर्लभ स्थितियों में, उसे किसी मृत डोनर से दोनों गुर्दे मिल सकते हैं। रोगग्रस्त गुर्दों को आम तौर पर उनकी जगह पर ही छोड़ दिया जाता है। प्रत्यारोपित गुर्दे पेट के निचले हिस्से में आगे की तरफ लगा दिए जाते हैं।

किडनी ट्रांसप्लांट क्यों की जाती है? - Kidney Transplant Surgery kab kiya jata hai?
गुर्दे का प्रत्यारोपण उन मरीज़ों के लिए एक विकल्प है जिनके गुर्दे पूरी तरह से काम करना बंद कर चुके हैं। इस स्थिति को अंत-स्तरीय गुर्दे की बीमारी (End-Stage Renal Disease, ESRD Or End-Stage Kidney Disease, ESKD) कहा जाता है। इस स्थिति पर पहुँचने पर डॉक्टर आपको डायलिसिस का सुझाव दे सकते हैं।
डायलिसिस के अतिरिक्त डॉक्टर यह भी देखते हैं कि गुर्दे का प्रत्यारोपण आपके लिए उचित है या नहीं। एक बड़ी सर्जरी से गुजरने के लिए और आजीवन दवाओं का सेवन करने के लिए आपका स्वस्थ होना आवश्यक है।
अगर आपको कोई गंभीर मेडिकल समस्या है तो, गुर्दे का प्रत्यारोपण आपके लिए खतरनाक सिद्ध हो सकता है और इसके असफल होने की भी सम्भावना है। निम्न स्थितियों में आप गुर्दे का प्रत्यारोपण नहीं करवा सकते:

हृदय की गंभीर बीमारी,
वृद्धावस्था,
कैंसर है या कभी कैंसर रह चुका है,
मानसिक बीमारी,
मनोभ्रंश (Dementia),
आप धूम्रपान या मदिरा का सेवन करते हैं,
लिवर की कोई बीमारी,
गंभीर संक्रमण जैसे टीबी (TB), आदि।
गुर्दा प्रत्यारोपण से पहले की तैयारी - Kidney Transplant Surgery ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा:

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)
प्रत्यारोपण के लिए डोनर ढूंढ़ना (Finding The Donor For The Transplant)
प्रत्यारोपण 2 प्रकार के होते हैं: जीवित व्यक्ति का, आम तौर पर परिवार के सदस्य या अन्य किसी करीबी का जो गुर्दा डोनेट करने के लिए तैयार है और यदि आपके परिवार के सदस्य के रक्त और ऊतक आपके रक्त और ऊतकों से मैच हो जाते हैं तो, गुर्दा प्रत्यारोपित करना (Living Donor Kidney Transplant) और किसी मृत (हाल ही में) व्यक्ति का गुर्दा प्रत्यारोपित करना (Deceased Donor Kidney Transplant)।
आपकी जांच के दौरान आपका ब्लड ग्रुप और मानव ल्यूकोसाइट एंटीजन (Human Leukocyte Antigen, HLA) जांचा जाता है। अगर आपका HLA टाइप और डोनर का HLA टाइप मैच कर जाता है तो शरीर द्वारा गुर्दे की अस्वीकृति की सम्भावना बहुत कम हो जाती है। संभावित डोनर मिलने पर एक और टेस्ट किया जाता है कि आपके एंटीबॉडीज (Antibodies) डोनर के अंग पर हमला न करें। ऐसा बहुत ही छोटी मात्रा में आपके रक्त को डोनर के रक्त के साथ मिलाकर जांचा जाता है। अगर आपके रक्त में डोनर के रक्त के प्रभाव में एंटीबॉडीज बनते हैं तो प्रत्यारोपण नहीं किया जा सकता। और अगर इस जांच और अन्य सभी जांचों के परिणाम अनुकूल हैं तो प्रत्यारोपण की योजना बनाई जाती है।
मृतक डोनर (Deceased Donor) की प्रतीक्षा के दौरान, जब तक एक उपयुक्त गुर्दा/ गुर्दे उपलब्ध नहीं हो जाते तब तक रोगी प्रत्यारोपण टीम के साथ फॉलो-अप करता रहता है। यदि रोगी की स्थिति में बिगड़ने के लक्षण दिखाई देते हैं, तो सामान्य रूप से परिवार को गुर्दा डोनेट करने पर विचार करने को कहा जाता है।
प्रक्रिया से पहले डायलिसिस (Dialysis Before The Procedure)
अगर आप सर्जरी से पहले से नियमित डायलिसिस पर हैं तो आपको सर्जरी की प्रक्रिया से पहले भी डायलिसिस दिया जाएगा।

अगर आप किसी शवदायी डोनर (Cadaver Donor) द्वारा गुर्दे प्रत्यापित किये जाने का इंतज़ार कर रहे हैं जिसके ऊतकों का प्रकार आपसे मैच कर जाये तो ऐसे में आपको जैसे ही अस्पताल से डोनर के मिलने की खबर मिले उस ही वक़्त तुरंत अस्पताल पहुंचना होगा। उसके बाद जैसे जीवित डोनर की जांच के दौरान एंटीबॉडीज टेस्ट्स किये जाते हैं वैसे ही इसमें भी किये जायेंगे। परिणाम उचित होने पर सर्जरी शुरू की जा सकती है।

किडनी ट्रांसप्लांट कैसे किया जाता है? - Kidney Transplant Surgery kaise hota hai?
जैसे ही एनेस्थीसिया अपना प्रभाव दिखाना पूरी तरह शुरू करदे, सर्जन पेट में एक चीरा काटते हैं। फिर डोनर के गुर्दे/ गुर्दों को अंदर रखा जाता है। उसके बाद डॉक्टर आपकी धमनियों और नसों से डोनर के गुर्दे/ गुर्दों की धमनियां और नसें जोड़ते हैं। इससे नए गुर्दे में से रक्त का प्रवाह शुरू हो जाएगा। फिर नए गुर्दे की मूत्रनली को आपके मूत्राशय से जोड़ा जाएगा जिससे आप सामान्य रूप से मूत्रत्याग कर पाएंगे। मूत्रनली गुर्दे को मूत्राशय से जोड़ने वाली ट्यूब है। डॉक्टर आपके वास्तविक गुर्दों को शरीर में ही रहने देंगे जब तक कि वो उच्च रक्त चाप या संक्रमण जैसी परेशानियां न पैदा कर रहे हों। चीरे को सर्जिकल धागों की मदद से सिल दिया जायेगा।

गुर्दा प्रत्यारोपण के बाद देखभाल - Kidney Transplant Surgery hone ke baad dekhbhal
अस्पताल में देखभाल (Hospital Care)
होश आने के बाद अस्पताल का स्टाफ आपका शारीरिक परीक्षण करेंगे। रक्तचाप, नब्ज और श्वास स्थिर हो जाने पर आपको ICU में शिफ्ट किया जायेगा ताकि आपकी स्थिति पर और ढंग से निगरानी की जा सके। कुछ समय बाद आपको अस्पताल के सामान्य कमरे में शिफ्ट कर दिया जायेगा। प्रत्यारोपण के बाद अगर आप बहुत अच्छा भी महसूस करते हैं (जैसा कि अक्सर लोग करते हैं), फिर भी आपको लगभग एक हफ्ते तक अस्पताल में ही रहना होगा।

नए गुर्दे तुरंत ही अपशिष्ट फ़िल्टर करना शुरू कर सकते हैं या इसमें कुछ हफ्ते भी लग सकते हैं। परिवार के सदस्यों द्वारा डोनेट किये गए गुर्दे अन्य डोनर्स के गुर्दे के मुकाबले जल्दी काम करना शुरू करते हैं।
आपके मूत्राशय में एक कैथेटर (Cathetar) लगाया जाएगा जिससे मूत्रत्याग में आसानी होगी। मूत्र की मात्रा का आंकलन आपके नए गुर्दे की जांच करने के लिए किया जायेगा।
जब तक कि आप स्वयं खा या पी नहीं पाएंगे तब तक आपको IV द्रव दिए जायेंगे। धीरे धीरे आपकी को डाइट तरल आहार से ठोस आहार में बदला जायेगा।
जब तक आप अस्पताल में हैं, डॉक्टर्स जांच करते रहेंगे कि किसी भी प्रकार की जटिलता न हो। नए गुर्दे और शरीर के अन्य अंगों की स्थिति की जांच करने के लिए आपके रक्त परीक्षण किये जायेंगे।
आमतौर पर आप प्रक्रिया के अगले दिन से चलना शुरू कर देंगे। आपको हलकी मूवमेंट करते रहना चाहिए।
घाव की जगह पर दर्द महसूस हो सकता है। इसके लिए डॉक्टर आपको दर्द निवारक (Pain Killer) देंगे।
अस्पताल से छुट्टी मिलने से पहले डॉक्टर आपको अच्छे से समझायेंगे कि कौन सी दवा कब लेनी है। आपको डॉक्टर द्वारा निर्धारित हर निर्देश का पालन करना होगा।

घर में रिकवरी (Recovery At Home)
घर पहुँचने के बाद, आपको डॉक्टर के साथ नियमित चेक-अप करवाने होंगे जिससे डॉक्टर यह जांच कर पाए कि नया गुर्दा सही से कार्य कर रहा है या नहीं।
घाव को साफ़ और सूखा रखा जाना ज़रूरी है। घाव को गीला करने से संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। जब डॉक्टर ने कहा हो तब टाँके खुलवाने अवश्य जाएँ।
कोशिश करें कि आपको ऐसी जगहों पर न जाना पड़े जहाँ कोई बीमार हो क्योंकि प्रत्यारोपण के बाद दवाओं द्वारा आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बाधित कर दिया जाता है जिससे नए गुर्दे के अग्रहण (Rejection) को रोका जा सके। ये सावधानी आपको आजीवन बरतनी होगी।
बुखार; चीरे की जगह पर सूजन, लाल होना या रक्तस्त्राव; चीरे के स्थान पर दर्द बढ़ जाने जैसे संक्रमण या अग्रहण के लक्षण पाए जाने पर अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
दवाएं (Medication)
आपको दवाओं कड़े शिड्यूल का आजीवन पालन करना होगा। आपको प्रतिरक्षा दमनकारी दवाएं (Immunosuppressant Drugs; रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करके या प्रतिरक्षा प्रणाली की कार्यवाही को बाधित करके काम करने वाली दवाएं) दी जाएँगी जिससे नए गुर्दे के अग्रहण को रोका जा सके। संक्रमण से बचने के लिए भी अन्य दवाएं निर्धारित की जाएँगी। दर्द से बचने के लिए डॉक्टर दर्द निवारक दवाएं भी निर्धारित कर सकते हैं।

अग्रहण को रोकने के लिए (To Prevent Rejection)
जैसा की उपर्लिखित है, आपके शरीर में नए गुर्दे के अग्रहण को रोकने के लिए आपको आजीवन दवाओं का सेवन करना होगा। हर व्यक्ति की इन दवाओं के प्रति अलग प्रतिक्रिया हो सकती है।

नयी अग्रहण रोधी दवाएं विकसित और अनुमोदित की जा रहीं हैं। आपके शरीर की ज़रूरतों के हिसाब से आपके लिए दवाएं निर्धारित की जाएँगी।

आम तौर पर शुरुआत में कई सारी अग्रहण रोधी दवाएं दी जाती हैं। इन दवाओं की खुराक को आपके द्वारा होने वाले प्रभाव के अनुसार बदलते रहते हैं। क्योंकि अग्रहण रोधी दवाएं प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करती हैं जिससे आपके शरीर में संक्रमण का जोखिम बढ़ जाता है इसलिए संक्रमण रोधी दवाएं भी दी जाती हैं। अग्रहण रोकने और संक्रमण के प्रति अतिसंवेदनशील होने में संतुलन बनाये रखना अत्यंत आवश्यक है।

आपको थ्रश (Thrush; मुँह में खमीर संक्रमण), दाद या श्वसन वायरस (Respiratory Virus) जैसे संक्रमण का जोखिम ज़्यादा होता है। कुछ महीनों तक कोशिश करें कि आप भीड़ में न जाएँ या ऐसे किसी ऐसे व्यक्ति के पास न जाएँ जिसे संक्रमण हो।

बुखार और गुर्दे के ऊपर की त्वचा पर संवेदनशीलता अग्रहण के सबसे आम लक्षण हैं। रक्त में क्रिएटिनिन दर (Blood Creatinine Level) का बढ़ना (गुर्दे की कार्यवाही की जांच के लिए रक्त परीक्षण) और/ या रक्त चाप का बढ़ना भी अग्रहण की वजह से हो सकता है। अग्रहण के लक्षण भी अन्य सामान्य मेडिकल परेशानियों जैसे ही लगते हैं। कोई भी परेशानी होने पर अपने डॉक्टर से संपर्क करें।

किडनी ट्रांसप्लांट के बाद सावधानियां - Kidney Transplant Surgery hone ke baad savdhaniya
आपको पहले कुछ महीनों तक डॉक्टर से नियमित रूप से मिलते रहना होगा। पूरी तरह रिकवर होने में छह महीने लग सकते हैं।

किडनी ट्रांसप्लांट की जटिलताएं - Kidney Transplant Surgery me jatiltaye
गुर्दे का प्रत्यारोपण एक बड़ी सर्जरी है। इसलिए इसमें जोखिम भी होते हैं:

एनेस्थीसिया के प्रति एलर्जिक प्रतिक्रिया
रक्तस्त्राव
रक्त के थक्कों का गठन
मूत्रनली में स्त्राव
मूत्रनली में ब्लॉकेज
संक्रमण
डोनेट किये हुए गुर्दे का शरीर द्वारा अग्रहण
डोनेट किये हुए गुर्दे का फेलियर
दिल का दौरा
स्ट्रोक (Stroke)
दवाओं के दुष्प्रभाव जैसे वज़न बढ़ना, हड्डियों का कमज़ोर होना, बालों के विकास का बढ़ जाना, मुँहासे (Acne) आदि।
कोई भी जटिलता या दुष्प्रभाव होने पर अपने डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें।

28. डायलिसिस - Dialysis in Hindi

डायलिसिस क्या होता है? - Dialysis kya hai in hindi?
जब गुर्दे उचित तरीके से कार्य करने में सक्षम नहीं रहते, तो ऐसी प्रक्रिया जिसमें मानव शरीर से जहरीले अपशिष्ट (Waste; वेस्ट) और अत्यधिक द्रव को निकाला जाता है, उसे डायलिसिस (Dialysis) कहा जाता है।

गुर्दे रीढ़ की हड्डी के दोनों ओर स्थित होते हैं। सामान्य परिस्थितियों में, गुर्दे शरीर से अपशिष्ट पदार्थों को निकालने का कार्य करते हैं और इन अपशिष्ट पदार्थों को मूत्र के माध्यम से शरीर से बाहर निकाला जाता है।

डायलिसिस गुर्दे का सबसे महत्वपूर्ण कार्य करता है, जो कि शरीर का सारा कचरा बाहर करना है। इसलिए इस प्रक्रिया को गुर्दे की प्रतिस्थापन चिकित्सा (Renal Replacement Therapy) के रूप में भी जाना जाता है।

डायलिसिस क्यों की जाती है? - Dialysis kab kiya jata hai?
जब किसी व्यक्ति के गुर्दे ठीक से काम करना बंद कर देते हैं और शरीर से अपशिष्ट पदार्थों को फ़िल्टर करने में सक्षम नहीं रहते, तो अपशिष्ट शरीर में जमा होने लगता है। यह गंभीर जटिलताएं पैदा कर सकता है। जब गुर्दे गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और गुर्दे का फेलियर हो जाता है, तो डायलिसिस एक मुख्य विकल्प होता है। गुर्दे के फेलियर के कारण, रक्त ठीक से फ़िल्टर नहीं होता जिससे गंभीर दुष्प्रभाव होते हैं। जब गुर्दे की बीमारियां अनुपचारित रहती हैं, तो वे गंभीर जटिलताओं को जन्म देती हैं और अंततः गुर्दे के फेलियर का कारण बनती हैं। डायलिसिस की प्रक्रिया अवांछित पदार्थों और तरल पदार्थ को हटाने में मदद करती है इससे पहले कि गुर्दे की गंभीर बीमारी वाले किसी मरीज़ के गुर्दे फेल हों।

ज्यादातर स्थितियों में, गुर्दे का फेलियर स्थायी होता है, लेकिन ऐसा हमेशा हो ये ज़रूरी नहीं। अधिकांश मरीज़ों में गुर्दे के एक्यूट फेलियर (Acute Kidney Failure) का इलाज किया जा सकता है और मरीज़ को कुछ समय के लिए डायलिसिस की आवश्यकता होती है। गुर्दे के ठीक हो जाने पर, ज्यादातर रोगियों को डायलिसिस की आवश्यकता नहीं होती। गुर्दे के क्रोनिक फेलियर (Chronic Kidney Failure) और या अंत-स्तरीय गुर्दे के फेलियर (End-Stage Kidney Failure) में गुर्दे के ठीक होने की कोई सम्भावना नहीं होती और और डायलिसिस ही एक मात्र उपचार होता है। अत्यधिक गंभीर स्थितियों में डोनर के गुर्दे के साथ रोगी के गुर्दे के प्रत्यारोपण की ज़रुरत हो सकती है।

डायलिसिस होने से पहले की तैयारी - Dialysis ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा:

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)
ध्यान देने योग्य अन्य बातें (Other Things To Be Kept In Mind Before Surgery)
जैसा कि उपर्लिखित है कि आपसे जुड़ी हर मेडिकल समस्या और दवाओं का ज्ञान आपके डॉक्टर को होना चाहिए। अगर आपकी इससे पहले कोई भी सर्जरी हुई है तो उसके बारे में अपने डॉक्टर को ज़रूर बताएं। अगर आपके शरीर में पेसमेकर डला हुआ है, तो यह भी आपके डॉक्टर को पता होना चाहिए। यह सारी जानकारी अत्यंत महत्वपूर्ण है। डायलिसिस उपचार के दौरान गर्भधारण करना जोखिम भरा हो सकता है। डायलिसिस के दौरान सफल गर्भावस्था मुम्किन है, लेकिन इसके लिए मरीज़ की स्थिति पर निरंतर जांच और निगरानी रखी जाने की आवश्यकता है। डायलिसिस उपचार के दौरान अगर आप गर्भावस्था की योजना बना रहीं हैं, तो अपने डॉक्टर के साथ ज़रूर बात करें। इससे जटिलताओं से बचने में मदद होगी।

डायलिसिस कैसे किया जाता है? - Dialysis kaise hota hai?
डायलिसिस के दो मुख्य प्रकार हैं।

हेमोडायलिसिस (Hemodialysis): इसमें रक्त को एक बाहरी साधन की ओर मोड़ देता है जिससे फिल्टर्ड रक्त शरीर में वापस डाला जाता है।
पेरिटोनियल डायलिसिस (Peritoneal Dialysis): इस पद्धति में डायलिसिस द्रव को उदर गुहा में पंप किया जाता है जिससे रक्त वाहिकाओं में से अपिष्ट को बाहर निकला जा सके।

हेमोडायलिसिस (Hemodialysis)
अधिकांश रोगियों में, एक सप्ताह में हेमोडायलिसिस के तीन सत्र किए जाते हैं। प्रत्येक सत्र लगभग चार घंटे का हो सकता है। इस प्रक्रिया को अस्पताल या घर में (जब मरीजों को अपने आप डायलिसिस करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है) किया जाता है।

एवी नालव्रण (AV Fistula) में दो पतली सुइयों को डाला जाता है और टेप किया जाता है। एक सुई की सहायता से धीरे-धीरे रक्त निकाला जाता है और डायलाइज़र (Dialyzer) नामक डायलिसिस मशीन में स्थानांतरित किया जाता है।

इस डायलिसिस मशीन में एक विशेष प्रकार का द्रव होता है जिसे डायलिसेट (Dialysate) कहते हैं और झिल्ली (Membrane) की एक श्रृंखला होती है जो एक फिल्टर के रूप में काम करती है। ये झिल्ली रोगियों के खून से अपशिष्ट पदार्थों को फ़िल्टर करने में मदद करते हैं। बाद में, ये पदार्थ डायलिसेट द्रव में जाते हैं।

यह उपयोग किया हुआ डायलिसेट द्रव डायलिसिस मशीन से बाहर निकाला जाता है और फ़िल्टर्ड रक्त अन्य सुई की मदद से शरीर में वापस आ जाता है। हेमोडायलिसिस की प्रक्रिया सामान्य रूप से दर्दनाक नहीं होती। कुछ रोगियों को चक्कर आना और बीमारी का अनुभव हो सकता है और हेमोडायलिसिस के दौरान मांसपेशिओं में ऐंठन महसूस कर सकते हैं। हेमोडायलिसिस उपचार के दौरान रक्त में द्रव के स्तर में तेजी से बदलाव के कारण मांसपेशिओं में ऐंठन हो सकती है। डायलिसिस उपचार पूरा होने पर, सुइयों को हटाया जाता है और रक्तस्राव को रोकने के लिए, सुई लगाने की जगह पर प्लास्टर चढ़ाया जाता है। डायलिसिस के पूरा होने के बाद रोगी घर जा सकते हैं। मरीज़ की स्वास्थ्य स्थिति के आधार पर अस्पताल में भर्ती होने के लिए कहा जाता है।

पेरिटोनियल डायलिसिस (Peritoneal Dialysis)
पेरिटोनियल डायलिसिस के दो मुख्य प्रकार हैं:

कंटीन्यूअस एम्बुलेटरी पेरिटोनियल डायलिसिस (Continuous Ambulatory Peritoneal Dialysis, CAPD): इस प्रकार के डायलिसिस में, रोगियों का खून एक दिन में कई बार फ़िल्टर होता है।
स्वचालित पेरिटोनियल डायलिसिस (Automated Peritoneal Dialysis, APD): इस प्रकार के डायलिसिस में, खून को रात को फ़िल्टर किया जाता है, जब रोगी सो रहा होता है।
पेरिटोनियल डायलिसिस के दोनों प्रकार घर पर किये जा सकते हैं जब रोगियों को खुद डायलिसिस करने के लिए प्रशिक्षित कर दिया जाता है।

कंटीन्यूअस एम्बुलेटरी पेरिटोनियल डायलिसिस (Continuous Ambulatory Peritoneal Dialysis, CAPD)

CAPD में, डायलिसिस के लिए एक विशेष उपकरण का उपयोग किया जाता है। इस उपकरण में डायलिसेट द्रव का एक बैग, अपशिष्ट उत्पादों को इकट्ठा करने के लिए एक खाली बैग और दोनों बैग सुरक्षित रखने के लिए टयूबिंग और क्लिप की एक श्रृंखला होती है। ऐसा इन बैगों को कैथेटर से जोड़कर किया जा सकता है।

CAPD प्रक्रिया के दौरान, रोगियों के पेट में कैथेटर के साथ डायलिसेट द्रव का एक बैग जुड़ा होता है। यह पेरिटोनियल गुहा में द्रव प्राप्त करने और कुछ घंटों तक वहां रहने में मदद करता है। अपशिष्ट पदार्थों और शरीर के अतिरिक्त द्रवों को पेरिटोनियल गुहा लाइनिंग के माध्यम से खून से निकाल दिया जाता है जबकि डायलिसेट द्रव पेरिटोनियल गुहा में छोड़ दिया जाता है।

कुछ घंटों के बाद, पुराना द्रव अपशिष्ट इकट्ठा करने के लिए रखे बैग में चला जाता है। नया द्रव रोगी की पेरीटोनियल गुहा में पुराने द्रव की जगह ले लेता है और अगले उपचार सत्र तक वहां रहता है। द्रव एक्सचेंज की प्रक्रिया कम दर्दनाक होती है और इसे पूरा होने में लगभग 30-40 मिनट लगते हैं। हालांकि इसमें कम दर्द होता है, लेकिन शुरुआत में मरीजों द्वारा असुविधा अनुभव की जा सकती है। डायलिसिस के सत्र के दौरान, बैग को हटाया जाता है। कैथेटर के एंड्स को सही से सील किया जाना आवश्यक है।

स्वचालित पेरिटोनियल डायलिसिस (Automated Peritoneal Dialysis, APD)

जब रोगी सोने जा रहा होता है, तब स्वचालित पेरिटोनियल डायलिसिस मशीन (APD) के साथ जुड़े हुए बैग को डायलिसेट द्रव से भरा जाता है। जब रोगी नींद में होता है, तो APD मशीन द्वारा स्वचालित रूप से विभिन्न द्रव एक्सचेंज किये जाते हैं। इस प्रक्रिया को आम तौर पर 8-10 घंटे लगते हैं। उपचार के पूरा होने के बाद, कुछ मात्रा में डायलिसेट द्रव रोगी के पेट में रहता है। उपचार के अगले सत्र में यह द्रव निकल जाता है। यदि रात को रोगी शौचालय जाना चाहता है, तो द्रव एक्सचेंज की प्रक्रिया में रुकावट हो सकती है। कुछ स्थितियों में, APD के दौरान बिजली कटौती से जुड़े जोखिमों की वजह परेशानी रहती है। अगर एक रात द्रव एक्सचेंज न किया जाए तो भी कोई परेशानी की बात नहीं है क्योंकि उपचार 24 घंटों में ही शुरू होता है। तकनीकी आपातकालीन परेशानियों के लिए मरीज़ अपनी मेडिकल टीम से संपर्क कर सकते हैं। असामन्य परेशानियों को रिपोर्ट कर देना चाहिए जिससे आगे होने वाली किसी भी प्रकार की जटिलता से बचा जा सके।

डायलिसिस के बाद देखभाल - Dialysis hone ke baad dekhbhal
आहार (Diet; डाइट)
डायलिसिस उपचार का प्रयोग कर रहे रोगियों को, आहार (डाइट) और तरल पदार्थ प्रतिबंधों का पालन करना चाहिए। आपके द्वारा सेवन किये जा रहे तरल पदार्थों की मात्रा पर प्रतिबन्ध होता है क्योंकि डायलिसिस मशीन दो से तीन दिनों के अतिरिक्त द्रव की मात्रा को निकालने में सक्षम नहीं है। रक्त, फेफड़े और अन्य ऊतकों में अतिरिक्त द्रव का निर्माण गंभीर जटिलताओं को जन्म दे सकता है। रोगियों के आकार और वजन के आधार पर, डॉक्टरों द्वारा द्रव का सेवन तय किया जाता है। अधिकांश रोगियों को प्रति दिन 1000-1500ml द्रव की अनुमति दी जाती है। रोगियों के आहार की भी सावधानीपूर्वक योजना बनाने की आवश्यकता है क्योंकि खनिजों की खपत से शरीर में खनिज संचय (Mineral Accumulation) के जोखिम को बढ़ा सकता है। डायलिसिस प्रक्रिया से गुजरते समय बेहतर आहार योजना के लिए मरीजों को डायटीशियन से संपर्क करने के लिए कहा जाता है। डाइट रोगियों के आधार पर भिन्न होती है। इन रोगियों को पोटेशियम और फॉस्पोरस युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन न करने के लिए कहा जाता है। जटिलताओं से बचने के लिए नमक सेवन को भी कम करने की सलाह दी जाती है। डायलिसिस सामान्य रूप से सप्ताह में तीन बार किया जाना चाहिए।

प्रक्रिया के कारण होने वाली तकलीफ (Discomfort Due To The Process)
डायलिसिस की प्रक्रिया के कारण कुछ रोगियों को तकलीफ का अनुभव होता है। डायलिसिस की प्रक्रिया दर्द रहित है, फिर भी कुछ मामलों में सुई की वजह से तकलीफ हो सकती है। कुछ रोगियों को रक्तचाप कम होना, पेट खराब होना, सिरदर्द, ऐंठन और उल्टी का अनुभव हो सकता है। उपचार के लगातार सत्र के बाद, ये लक्षण गायब हो जाते हैं और रिकवरी भी जल्दी होने लगती है।

सफलता दर (Success Rate)
डायलिसिस का सफलता दर रोगियों के गुर्दे की क्षति और स्वास्थ्य स्थिति पर आधारित है। जब तक कि मरीजों को गुर्दा प्रत्यारोपण सर्जरी करवाने की सलाह नहीं दी जाती, तब तक उन्हें गुर्दे के फेलियर के उपचार के लिए डायलिसिस प्रक्रिया की ज़रुरत होती है। रोगियों द्वारा प्राप्त चिकित्सा और उपचार के अनुसार जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) का निर्धारण किया जाता है। डायलिसिस के बाद औसत रोगी 5 से 10 वर्षों तक जीवित रह सकते हैं। ऐसे रोगियों के कई उदाहरण हैं जो 20 से अधिक वर्षों तक जीवित रहे हों। डायलिसिस के दौरान मरीजों को स्वस्थ जीवन शैली का पालन करना चाहिए। यह उन्हें जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने में मदद करता है।

गर्भवस्था की योजना (Planning Pregnancy While On Dialysis)
डायलिसिस के दौरान पुरुष रोगी अपने साथी के साथ गर्भवस्था की योजना बना सकते हैं। लेकिन महिला रोगियों में, गर्भावस्था के कारण कई परेशानियां हो सकती हैं। एक साथ गुर्दे का फेलियर और गर्भावस्था महिला और बच्चे दोनों के लिए स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानी का कारण बन सकते हैं। इसके अलावा इससे गुर्दे की बीमारी और बढ़ सकती है। गर्भावस्था की योजना बनाने से पूर्व एक बार अपने चिकित्सक से सलाह ज़रूर करें। इससे गर्भस्थ में होने वाली जटिलताओं से बचा जा सकता है।

डायलिसिस की जटिलताएं - Dialysis me jatiltaye
हेमोडायलिसिस और पेरिटोनियल डायलिसिस के जोखिम और दुष्प्रभाव भी हैं। डायलिसिस प्रक्रिया के दुष्प्रभाव नीचे दिए गए हैं।

दीर्घकालिक डायलिसिस की वजह से मरीज़ को पूरा दिन थकान महसूस हो सकती है। कई बार, थकान गुर्दे की कार्यवाही की परेशानी, डायलिसिस के दौरान आहार प्रतिबंध और पूरी प्रक्रिया के दौरान होने वाले तनाव के कारण हो सकती है। रोगी को अपने ऊर्जा स्तर के बारे में सर्जन को सूचित करना होगा। सर्जन ऊर्जा प्रदान करने वाले आहार और व्यायाम बताएँगे।

डायलिसिस के बाद मरीज के स्वास्थ्य के आधार पर कम-से-मध्यम ऊर्जा वाले व्यायाम किये जा सकते हैं।

हेमोडायलिसिस के दुष्प्रभाव
रक्तविषंणता (Sepsis)
इस प्रक्रिया के मरीजों में सेप्सिस (रक्त के विषाक्तता) विकसित करने की अधिक संभावना रहती है। बैक्टीरिया इस चरण में इन रोगियों के शरीर में प्रवेश करते हैं और पूरे शरीर में फैल जाते हैं। इससे मल्टिपल ऑर्गन फेलियर हो सकता है। चक्कर आना और उच्च तापमान सेप्सिस के संकेत हैं। अन्य असामान्य लक्षणों के साथ इन लक्षणों के पाए जाने पर, रोगियों को डायलिसिस सर्जन को सूचित चाहिए। समय पर उपचार करने से जटिलताओं की गंभीरता को कम किया जा सकता है। सेप्सिस विकसित होने पर, एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं।

निम्न रक्त चाप (Hypotension Or Low Blood Pressure)
हाइपोटेन्शन या निम्न रक्तचाप हेमोडायलिसिस प्रक्रिया का सामान्य दुष्प्रभाव है। यह डायलिसिस प्रक्रिया के दौरान तरल पदार्थ के स्तर में कमी का एक परिणाम है। निम्न रक्तचाप के परिणामस्वरूप, मरीज मतली और चक्कर आना अनुभव कर सकते हैं। यदि लक्षण स्थायी हैं तो रोगियों को सर्जन से परामर्श करना चाहिए। यह जल्दी रिकवरी पाने में मदद कर सकता है।

मांसपेशियों में ऐंठन (Muscle Cramps)
डायलिसिस प्रक्रिया के दौरान, रोगी मांसपेशियों की ऐंठन का अनुभव कर सकते हैं; विशेष रूप से पैर के निचले हिस्से में। यह डायलिसिस प्रक्रिया में हुए तरल पदार्थ के नुकसान के लिए मांसपेशियों की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप होती है। बेहद दर्दनाक मांसपेशियों की ऐंठन होने पर सर्जन को तुरंत सूचित करें।

त्वचा पर खुजली (Itching Of The Skin)
रोगी त्वचा पर खुजली का अनुभव कर सकते हैं। यह सत्रों के दौरान शरीर में खनिज के बनने की वजह से है। खुजली से निजात पाने हेतु डॉक्टर मॉइस्चराइजिंग या स्मूथनिंग क्रीम्स निर्धारित कर सकते हैं।

द्रव अधिभार (Fluid Overload)
गुर्दा डायलिसिस के परिणामस्वरूप, रोगियों में द्रव की अधिक मात्रा हो सकती है। इससे बचने के लिए, रोगियों को एक निश्चित मात्रा में द्रव का उपभोग करने की आवश्यकता होती है।

अन्य दुष्प्रभाव (Other Side Effects)
हेमोडायलिसिस प्रक्रिया के कुछ अन्य दुष्प्रभाव हैं, जैसे:

मुंह का सूखना (Dryness Of Mouth)
घबराहट (Anxiety)
अनिद्रा (Insomnia; नींद आने में कठिनाइयों)
यौन इच्छा में कमी (Loss Of Sex Drive)
स्तंभन दोष (Erectile Dysfunction)
पेरिटोनियल डायलिसिस के दुष्प्रभाव
हर्निया (Hernia)
पेरिटोनियल डायलिसिस के माध्यम से उपचार पाने वाले मरीजों में हर्निया से प्रभावित होने की अधिक संभावना रहती है। यह पेरिटोनियल गुहा में लंबे समय तक तरल पदार्थ रखने के कारण होता है। इसके परिणामस्वरूप, पेट की मांसपेशियों पर तनाव बढ़ जाता है। गांठ (Lump) का प्रकटन शरीर में हर्निया के विकास का एक प्रमुख लक्षण है। यह गांठ दर्द रहित हो सकती है और विस्तृत जांच-पड़ताल के बाद ही इसका पता लगाया जा सकता है। हर्निया की इस स्थिति को सर्जरी द्वारा ठीक किया जाता है। उदर भित्ति (Abdominal Wall) को मज़बूत करने के लिए एक कृत्रिम जाल (Synthetic Mesh) लगाया जा सकता है।

वज़न बढ़ना (Weight Gain)
पेरिटोनियल डायलिसिस करते समय प्रयुक्त तरल पदार्थ में शुगर मोलेक्युल होते हैं। इनमें से कुछ डायलिसिस की प्रक्रिया के दौरान शरीर में अवशोषित हो जाते हैं। इससे रोगियों के शरीर में कैलरी की मात्रा में वृद्धि होती है। कैलोरी की दैनिक खपत का ध्यान न रखने के कारण वजन बढ़ने लगता है। जिन मरीज़ों में वज़न बढ़ने का खतरा ज़्यादा होता है, उनके लिए डॉक्टर डाइट और व्यायाम की योजना बना सकते हैं।
रोगी फैड डाइट (Fad Diet), जो वजन कम करने का दावा करते हैं, न लें। अत्यधिक परहेज़ से शरीर में समस्याएं हो सकती हैं जिनसे विभिन्न विकार हो सकते हैं।

पेरिटोनिटिस (Peritonitis)
पेरिटोनिटिस पेरिटोनियम (Perotoneum) का एक बैक्टीरियल संक्रमण है। यह पेरिटोनियल डायलिसिस प्रक्रिया का  दुष्प्रभाव है। ऐसा तब हो सकता है जब डायलिसिस के लिए इस्तेमाल किए गए उपकरण स्वच्छ स्थिति में नहीं होते। डायलिसिस उपकरण पर मौजूद बैक्ट्रिया रोगियों के पेरिटोनियम में फैलता है और यह संक्रमित हो जाता है। संक्रमण से बचने के लिए डायलिसिस उपकरण को स्वच्छ रखने के लिए कहा जाता है। पेरिटोनिटिस के लिए एंटीबायोटिक उपचार की आवश्यकता होती है। जिन मरीज़ों में संक्रमण की पुनरावृत्ति हो रही हो, उन्हें इस डायलिसिस प्रक्रिया के बजाय हेमोडायलिसिस प्रक्रिया शुरू कर देनी चाहिए।

29. यूरेटेरोस्कोपी - Ureteroscopy (URS) in Hindi

यूरेटेरोस्कोपी क्या होता है? - URS kya hai in Hindi?
यूरेटेरोस्कोपी (Ureteroscope) मूत्रनली (Ureter) और गुर्दे (Kidney) के अंदर देखने के लिए यूरेटेरोस्कोप (Ureteroscope) का उपयोग करता है। यूरेटेरोस्कोप में एक छोर पर एक आईपीस (Eyepiece) होता है, मध्य में एक कठोर या लचीली ट्यूब, और ट्यूब के दूसरे छोर पर एक छोटा लेंस और लाइट होती है। हालांकि, यूरेटेरोस्कोप एक सिस्टोस्कोप की तुलना में अधिक लंबा और पतला होता है ताकि यूरोलॉजिस्ट (Urologist; मूत्र रोग विशेषज्ञ) मूत्रनली और गुर्दे की लाइनिंग के विस्तृत चित्र देख सकें। मूत्रनली और गुर्दे भी मूत्र पथ के भाग हैं।

यूरेटेरोस्कोपी क्यों की जाती है? - Ureteroscopy surgery kab ki jati hai?
यूरोलॉजिस्ट मूत्रनली में मूत्र के ब्लॉकेज या मूत्रनली या गुर्दे की असामान्यताएं का आंकलन करने हेतु युरेटेरस्कोपी करते हैं।
युरेटेरस्कोपी के दौरान, यूरोलॉजिस्ट मूत्रनली या गुर्दे का स्टोन, या गुर्दे या मूत्रनली की लाइनिंग पर असामन्य ऊतकों, जंतु, ट्यूमर या कैंसर को देख सकते हैं और इन समस्याओं का इलाज भी कर सकते हैं।

इस प्रक्रिया का उपयोग मूत्रनली या गुर्दे की बायोप्सी करने के लिए भी किया जाता है। बायोप्सी या स्टोन रिमूवल के लिए की गयी युरेटेरेस्कोपी में लगाए हुए स्टेंट को हटाने के लिए सिस्टोस्कोपी (Cystoscopy) का उपयोग कर सकते हैं।

यूरेटेरोस्कोपी होने से पहले की तैयारी - URS procedure ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा:

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)
ध्यान देने योग्य अन्य बातें (Other Things To Be Kept In Mind Before Ureterscopy)
युरेटेरेस्कोपी से पहले मरीज़ों को डॉक्टर द्वारा विशेष तैयारी करने के लिए कहा जा सकता है। डॉक्टर द्वारा बताई हर सलाह का पालन करें। अगर आपको मूत्र पथ का संक्रमण (Urinary Tract Infection) है तो आपको युरेटेरेस्कोपी से पहले एंटीबायोटिक दवाएं निर्धारित की जा सकती हैं। यह प्रक्रिया आउट-पेशेंट (जब मरीज़ को प्रक्रिया के बाद अस्पताल में भर्ती होने की ज़रुरत नहीं होती) आधार पर की जा सकती है। प्रक्रिया में एनेस्थीसिया के लिए एनेस्थेटिक जेल का प्रयोग किया जा सकता है। डॉक्टर के हर निर्देश जैसे कब मूत्राशय को खाली करना है या अन्य निर्देशों का पालन करें।

यूरेटेरोस्कोपी कैसे किया जाता है? - Ureteroscopy operation kaise hota hai?
युरेटेरेस्कोपी के दौरान, महिलाएं पीठ के बल घुटने ऊपर की तरफ करके (टाँगे फैलाकर) लेटेंगी।

एनेस्थीसिया का असर शुरू होने पर, यूरोलॉजिस्ट धीरे-धीरे युरेटेरेस्कोप की टिप को मूत्रमार्ग में डालेंगे। फिर धीरे से उसे मूत्रमार्ग से खिसकाकर मूत्राशय की तरफ ले जायेंगे। यूरेटेरोस्कोप द्वारा एक संक्रमण रहित द्रव (Sterile Liquid), जिसे सेलाइन (Saline) कहा जाता है, से मूत्राशय को भरा जाता है जिससे मूत्राशय स्ट्रेच (फ़ैल) हो जाए और मूत्राशय भित्ति (Bladder Wall) को ढंग से देखा जा सके। यूरोलॉजिस्ट मूत्रनली की लाइनिंग की जांच करते हैं। वे युरेटेरेस्कोप को गुर्दे तक भी ले जा सकते हैं। मूत्रनली या गुर्दे की परेशानियों के उपचार के लिए युरेटेरेस्कोप के साथ छोटे उपकरण भी लगाए जा सकते हैं।

मूत्रशय के द्रव से भर जाने से रोगी को बेचैनी या परेशानी हो सकती है और मूत्रत्याग करने की इच्छा हो सकती है। प्रक्रिया के दौरान, यूरोलॉजिस्ट थोड़ा द्रव निकाल सकते हैं। प्रक्रिया के समाप्त होने पर, यूरोलॉजिस्ट द्वारा मूत्राशय से द्रव निकाल दिया जायेगा या मरीज़ को स्वयं ही मूत्राशय खाली करने के लिए कह दिया जाएगा।

इस प्रक्रिया में 15 से 30 मिनट लग सकते हैं। यह समय बढ़ सकता है अगर युरेटेरेस्कोपी का प्रयोग स्टोन के उपचार या बायोप्सी के लिए किया जा रहा हो।

यूरेटेरोस्कोपी के बाद देखभाल - Ureteroscopy hone ke baad dekhbhal
प्रक्रिया के बाद, आम तौर पर मरीज़ सीधा घर जा सकते हैं। हालांकि अस्पताल में कितने समय तक रुकना होगा, यह एनेस्थीसिया के प्रभाव पर निर्भर करता है। अपने चिकित्सक द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करें।

प्रक्रिया के बाद समस्याएं
युरेटेरस्कोपी के बाद मरीज़ों को निम्न समस्याएं हो सकतीं हैं। आम तौर पर ये परेशानियां 24 घंटों में ठीक हो जाएँगी लेकिन अगर समस्याएं गंभीर हैं या 24 घंटों में ठीक नहीं होती तो अपने चिकित्सक को अवश्य सूचित करें।

मूत्रत्याग करने में हल्की जलन
मूत्र में रक्तस्त्राव
मूत्रत्याग करने में मूत्राशय या गुर्दे के आसपास बेचैनी या कठिनाई
बार बार मूत्रत्याग करने की इच्छा होना
प्रक्रिया के बाद आम सलाह
प्रक्रिया के बाद, दो घंटे के लिए हर घंटे 16 अउंस पानी पियें।
जलन से निजात पाने के लिए हलके गरम पानी से नहाएं।
बेचैनी न हो इसके लिए एक कपड़े या टॉवल को हलके गरम पानी से गीला करके मूत्रमार्ग के छिद्र पर लगाकर सिकाई करें।
दर्द से बचने के लिए दर्द निवारक लें।
संक्रमण
संक्रमण न हो इसके लिए आपको 1 या 2 दिन के लिए एंटीबायोटिक निर्धारित की जा सकती है। संक्रमण के लक्षण जैसे दर्द, ठंड लगना या बुखार दिखने पर चिकित्सक से परामर्श करें।

यूरेटेरोस्कोपी के बाद सावधानियां - Ureteroscopy surgery hone ke baad savdhaniya
यूरेटेरोस्कोपी की जटिलताएं - URS surgery me jatilta
युरेटेरोस्कोपी से जुड़े जोखिम निम्न हैं:

मूत्र पथ संक्रमण
असामान्य रक्तस्त्राव
पेट में दर्द
मूत्रत्याग के दौरान जलन या दर्द
मूत्रमार्ग, मूत्राशय, या मूत्रनली में चोट
स्कार ऊतक (Scar Tissue) के गठन के कारण मूत्रमार्ग सिकुड़ जाना
आसपास के ऊतकों की सूजन के कारण मूत्रत्याग करने में असमर्थता
एनेस्थीसिया से जुड़ी जटिलताएं
निम्न समस्याएं या जटिलताएं होने पर तुरंत अपने चिकित्सक से संपर्क करें:

मूत्र त्याग करने में अक्षमता और मूत्राशय का भरा हुआ लगना
मूत्र त्याग करने में दर्द या जलन (जो 2 दिन से ज़्यादा समय तक रहे)
मूत्र का रंग लाल होना या मूत्र में रक्त के थक्के होना
बुखार (जिसमें ठण्ड भी लग सकती है)
अत्यधिक बेचैनी


30. सिस्टोस्कोपी - Cystoscopy in Hindi

सिस्टोस्कोपी क्या है? - Cystoscopy kya hoti hai in hindi?
सिस्टोस्कोपी (Cystoscopy) में मूत्रमार्ग (Urethra) और मूत्राशय (Bladder) के अंदर देखने के लिए एक सिस्टोस्कोप (Cystoscope) का उपयोग किया जाता  है। सिस्टोस्कोप एक लम्बा, पतला ऑप्टिकल उपकरण है, जिसके एक छोर पर एक आईपीस (Eyepiece), मध्य में एक कठोर या लचीली ट्यूब, और ट्यूब के दूसरे छोर पर एक छोटा लेंस और लाइट होते हैं। सिस्टोस्कोप के माध्यम से देखकर, यूरोलॉजिस्ट (Urologist; मूत्र रोग विशेषज्ञ) मूत्रमार्ग और मूत्राशय की लाइनिंग के विस्तृत चित्र देख सकता है। मूत्रमार्ग और मूत्राशय मूत्र पथ (Urinary Tract) का हिस्सा हैं।

सिस्टोस्कोपी क्यों की जाती है? - Cystoscopy kab kiya jata hai?
यूरोलॉजिस्ट मूत्र पथ की समस्याओं (निम्नलिखित) के कारणों का पता लगाने के लिए सिस्टोस्कोपी करते हैं:

मूत्र पथ में बार बार संक्रमण होना (Frequent Urinary Tract Infections, UTIs)
मूत्र में रक्त (Blood In Urine, Hematuria)
दिन में आठ से अधिक बार मूत्र त्याग करना
मूत्र त्याग रोक पाने में असमर्थता
मूत्र प्रतिधारण - मूत्राशय को पूरी तरह से खाली करने में अक्षमता (Urinary Retention)
आकस्मिक मूत्र त्याग (Accidental Loss Of Urine)
मूत्र त्याग करने से पहले, के दौरान या के बाद दर्द
मूत्र त्याग शुरू करने या खत्म करने  या दोनों में परेशानी
मूत्र सैंपल (Urine Sample) में असामान्य कोशिकाएँ, जैसे कि कैंसर कोशिकाएँ, पाए जाना
सिस्टोस्कोपी के दौरान, यूरोलॉजिस्ट मूत्रमार्ग या गुर्दे या मूत्राशय में स्टोन्स, असामान्य ऊतक, स्ट्रिक्चर, जंतु या कैंसर या ट्यूमर को देख सकते हैं।

सिस्टोस्कोपी के दौरान, यूरोलॉजिस्ट मूत्राशय में रक्तस्राव और ब्लॉकेज जैसी समस्याओं का इलाज कर सकता है। यूरोलॉजिस्ट निम्न परेशानियों के लिए भी सिस्टोस्कोपी का उपयोग कर सकते हैं:

मूत्राशय या मूत्रमार्ग में स्टोन
असामान्य ऊतक, जंतु, और कुछ प्रकार के ट्यूमर निकालने या उनका इलाज करने के लिए
जांच के लिए माइक्रोस्कोप द्वारा मूत्रमार्ग या मूत्राशय के ऊतकों के छोटे टुकड़े लेना (इस प्रक्रिया को बायोप्सी कहा जाता है)
मूत्र रिसाव (यूरिनरी लीकेज; Urinary Leakage) के उपचार हेतु मूत्राशय या मूर्त्रमार्ग भित्ति (Bladder Or Urethra Wall) में कोई पदार्थ या दवा इंजेक्ट करना
मूत्रनली (Ureter) से मूत्र सैंपल (Urine Sample) प्राप्त करने हेतु
रेट्रोग्रेड पाइलोग्राफी (Retrograde Pyelography) करने के लिए (एक एक्स-रे प्रक्रिया जिससे ट्यूमर या किडनी स्टोन जैसी परेशानियों के कारणों का पता लगाया जा सकता है)
बायोप्सी या स्टोन रिमूवल के लिए की गयी युरेटेरेस्कोपी (Ureterescopy) में लगाए हुए स्टेंट को हटाने के लिए
सिस्टोस्कोपी होने से पहले की तैयारी - Cystoscopy ki taiyari

सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा:

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)
ध्यान देने योग्य अन्य बातें (Other Things To Be Kept In Mind Before Cystoscopy)
सिस्टोस्कोपी से पहले डॉक्टर द्वारा मरीज़ों को विशेष तैयारी करने के लिए कहा जा सकता है। अपने डॉक्टर द्वारा बताई हर सलाह का पालन करें। अगर आपको मूत्र पथ का संक्रमण (Urinary Tract Infection) है तो आपको सिस्टोस्कोपी से पहले एंटीबायोटिक दवाएं निर्धारित की जा सकती हैं। डॉक्टर के हर निर्देश जैसे कब मूत्राशय को खाली करना है या अन्य निर्देशों का पालन करें। यह प्रक्रिया आउट-पेशेंट (जब मरीज़ को प्रक्रिया के बाद अस्पताल में भर्ती होने की ज़रुरत नहीं होती) आधार पर की जा सकती है। प्रक्रिया में एनेस्थीसिया के लिए एनेस्थेटिक जेल का प्रयोग किया जा सकता है।

सिस्टोस्कोपी कैसे किया जाता है? - Cystoscopy kaise hota hai?
इस प्रक्रिया के दौरान, महिलाएं पीठ के बल घुटने ऊपर की तरफ करके (टाँगे फैलाकर) लेटेंगी। पुरुष रोगी अपनी प्रक्रिया के दौरान अपनी पीठ के बल लेट सकते हैं या बैठ भी सकते हैं।

एक बार एनेस्थीसिया का प्रभाव शुरू हो जाए, यूरोलॉजिस्ट आराम से सिस्टोस्कोप की टिप को मूत्रमार्ग में डालते हैं और धीरे धीरे उसे मूत्रमार्ग से मूत्राशय की ओर ले जाते हैं। एक विसंक्रमित द्रव (Sterile Liquid)- पानी या खारा पानी, जिसे सेलाइन (Saline) कहते हैं- सिस्टोस्कोप से बहता है जो धीरे धीरे मूत्राशय को भर देता है और उसे स्ट्रेच (फैलाना) करता है जिससे मूत्राशय की भित्ति (Bladder Wall) अच्छे से देखी जा सके। यूरोलॉजिस्ट मूत्रमार्ग और मूत्राशय की लाइनिंग की जांच करेंगे। बायोप्सी करने या मूत्रमार्ग की परेशानियों के उपचार के लिए सिस्टोस्कोपे के साथ अन्य छोटे उपकरणों को भी डाला जा सकता है।

इस प्रक्रिया को पूरा करने में 15 मिनट से आधा घंटा तक लग सकता है। अगर प्रक्रिया का प्रयोग स्टोन को हटाने या बायोप्सी करने के लिए किया जा रहा है तो समय ज़्यादा भी हो सकता है।

जैसे जैसे द्रव से मूत्राशय भरता है, रोगी को कठिनाई महसूस हो सकती है और मूत्रत्याग की इच्छा हो सकती है। यूरोलॉजिस्ट प्रक्रिया के दौरान थोड़ा द्रव निकाल देंगे। प्रक्रिया के समाप्त होने के बाद, यूरोलॉजिस्ट मूत्राशय से निकाल देंगे या मरीज़ खुद मूत्रशय को खाली कर देंगे।

सिस्टोस्कोपी के बाद देखभाल - Cystoscopy hone ke baad dekhbhal
प्रक्रिया के बाद मरीज़ मूत्रत्याग करने में हल्की जलन, मूत्र में रक्तस्त्राव, मूत्रत्याग करने में मूत्राशय या गुर्दे के आसपास बेचैनी या बार बार मूत्रत्याग करने की इच्छा महसूस कर सकते हैं। आम तौर पर ये समस्याएं 24 घंटों में ठीक हो जाएँगी। यदि परेशानियां गंभीर हैं या एक दिन में ठीक नहीं होती तो अपने चिकित्सक से संपर्क करें।
सिस्टोस्कोपी के बाद, दो घंटे के लिए हर घंटे 16 अउंस पानी पियें।
संक्रमण न हो इसके लिए आपको 1 या 2 दिन के लिए एंटीबायोटिक निर्धारित की जा सकती है। संक्रमण के लक्षण जैसे दर्द, ठंड लगना या बुखार दिखने पर चिकित्सक से परामर्श करें।
जलन से निजात पाने के लिए हलके गरम पानी से नहाएं। बेचैनी या दर्द से आराम पाने के लिए मूत्रमार्ग के छिद्र पर एक कपड़े या टॉवल को हलके गरम पानी से गीला करके सिकाई करें।
दर्द ज़्यादा होने पर दर्द निवारक दवाएं ली जा सकती हैं।
आम तौर पर सिस्टोस्कोपी के बाद मरीज़ सीधा घर जा सकते हैं। हालांकि अस्पताल में कितने समय रहना है यह इस पर निर्भर करता है कि प्रक्रिया के बाद एनेस्थीसिया का प्रभाव कितना है। अपने चिकित्सक की हर सलाह का पालन अवश्य करें।
सिस्टोस्कोपी की जटिलताएं - Cystoscopy me jatiltaye
सिस्टोस्कोपी से जुड़े जोखिम निम्न हैं:

मूत्र पथ में संक्रमण
असामान्य रक्तस्त्राव
मूत्रत्याग के दौरान जलन या दर्द
पेट में दर्द होना
मूत्रमार्ग, मूत्राशय, या मूत्रनली में चोट लग जाना
स्कार ऊतक (Scar Tissue) के गठन के कारण मूत्रमार्ग का संकुचन
आसपास के ऊतकों की सूजन के कारण मूत्रत्याग करने में अक्षमता
एनेस्थीसिया से जुड़ी जटिलताएं
निम्न समस्याएं या जटिलताएं होने पर तुरंत अपने चिकित्सक से संपर्क करें:

मूत्र त्याग करने में असमर्थ होना और मूत्राशय का भरा हुआ लगना
मूत्र त्याग करने में दर्द या जलन (जो 2 दिन से ज़्यादा समय तक रहे)
मूत्र का रंग लाल होना या मूत्र में रक्त के थक्के होना
बुखार (जिसमें ठण्ड भी लग सकती है)
अत्यधिक बेचैनी का अनुभव होना

31. परक्यूटेनियस नेफ्रोलिथोटॉमी - Percutaneous Nephrolithotomy (PCNL) in Hindi

परक्यूटेनियस नेफ्रोलिथोटॉमी क्या होता है? - PCNL surgery kya hai in hindi?
परक्यूटेनियस नेफ्रोलिथोटॉमी (Percutaneous Nephrolithotomy, PCNL) मरीज की पीठ में बनाये गए एक ट्रैक के माध्यम से गुर्दे में डाले गए नेफ़्रोस्कोप (Nephroscope के माध्यम से रोगी के मूत्र पथ से मध्यम या बड़े आकार के गुर्दे के स्टोन या गुर्दे की पथरी (Kidney Stone/ Renal Calculi)  को हटाने की एक प्रक्रिया है। PCNL को पहली बार 1973 में स्वीडन (Sweden) में एक कम चीरकर या काटकर की जाने वाली प्रक्रिया (Minimally Invasive Procedure) के रूप में किया था।  "परक्यूटेनियस" शब्द का अर्थ है कि प्रक्रिया त्वचा के माध्यम से की जाती है। नेफ्रोलिथोटॉमी एक यूनानी (Greek) शब्द है जिसका मतलब है "गुर्दा" और "काटकर स्टोन को निकालना"।

परक्यूटेनियस नेफ्रोलिथोटॉमी क्यों की जाती है? - PCNL surgery kab ki jati hai?
इस प्रक्रिया का उपयोग गुर्दे की पथरी के इलाज के लिए किया जा सकता है जो:

व्यास (Diameter) में 2 cm (0.8 इंच) से बड़ी हो।
आकार में बड़ी हो और संक्रमण (Staghorn Calculi) के कारण हुई है।
गुर्दे से मूत्र के प्रवाह को बाहर निकलने में अवरोध उत्पन्न कर रही हो।
एक्स्ट्राकोर्पोरियल शॉक वेव लिथोट्रिप्सी (Extracorporeal Shock Wave Lithotripsy, ESWL) द्वारा ब्रेक (टूट) नहीं पा रही हो।
परक्यूटेनियस नेफ्रोलिथोटॉमी होने से पहले की तैयारी - PCNL operation ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा:

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)
ध्यान देने योग्य अन्य बातें (Other Things To Be Kept In Mind Before Surgery)
प्रक्रिया से पहले, आपके चयापचय परीक्षण (Metabloic Tests) किये जा सकते हैं। ऑपरेशन से पहले, 24 घंटों के लिए मरीज को केवल तरल पदार्थ (चिकन या बीफ़ का सूप/ शोरबा, फलों का जूस) का सेवन करने के लिए कहा जाता है। प्रक्रिया से पहले, आधी रात के बाद कुछ खाना या पीना नहीं होता।

परक्यूटेनियस नेफ्रोलिथोटॉमी कैसे किया जाता है? - PCNL surgery ka procedure kya hai?
स्टैंडर्ड परक्यूटेनियस नेफ्रोलिथोटॉमी (Standard PCNL)
स्टैंडर्ड परक्यूटेनियस नेफ्रोलिथोटॉमी को आमतौर पर पूरा करने में लगभग तीन से चार घंटे लगते हैं। रोगी को एनेस्थीसिया देने के बाद, सर्जन रोगी की पीठ पर प्रभावित गुर्दे के ऊपर एक छोटा चीरा काटता है, जो लम्बाई में लगभग 0.5 इंच (1.3 सेंटीमीटर) का होता है। उसके बाद सर्जन त्वचा से गुर्दे की ओर एक ट्रैक बनाता है और टेफ्लॉन डाइलेटर (Teflon Dilator) या किसी अन्य उपकरण की मदद से ट्रैक को बड़ा करते हैं। आखिरी डाइलेटर के साथ एक म्यान (Sheath) की मदद से ट्रैक को खुला रखा जाता है।

ट्रैक को बड़ा करने के बाद, सर्जन एक नेफ्रोस्कोप (Nephroscope) डालते हैं। नेफ्रोस्कोप एक उपकरण है जिसमें एक फाइबर ऑप्टिक लाइट का स्रोत होता है और दो अतिरिक्त चैनल्स होते हैं जिनसे गुर्दे के अंदर देखा और उसे इर्रिगेट (धोया; Irrigate) किया जाता है। सर्जन छोटे स्टोन या पथरी को निकालने के लिए एक ऐसे उपकरण का भी इस्तेमाल कर सकते हैं जिसके एक छोर पर एक टोकरी या बास्केट लगी होती है जिससे पथरी को पकड़ा जा सके। बड़े स्टोन या पथरी को अल्ट्रासोनिक या विद्युत हाइड्रोलिक प्रोब (Ultrasonic or Electro Hydraulic Probe) , या हॉल्मियम लेज़र लिथोट्रिप्टर (Holmium Laser Lithotriptor) से ब्रेक (तोड़ा) जाता है। हॉल्मियम लेज़र का यह फायदा होता है कि इसे हर प्रकार की पथरी में प्रयोग किया जा सकता है।

मूत्राशय से मूत्र प्रणाली को खाली करने के लिए एक कैथेटर (Cathetar) लगाया जाता है और चीरे में एक नेफ्रोस्टोमी ट्यूब (Nephrostomy Tube) लगायी जाती है जिससे गुर्दे से द्रव को ड्रेनेज बैग में निकाला जा सके। कैथेटर को 24 घंटों में हटाया जा सकता है।

मिनी-परक्यूटेनियस नेफ्रोलिथोटॉमी (Mini-Percutaneous Nephrolithotomy, MPCNL)
यह परक्यूटेनियस नेफ्रोलिथोटॉमी की एक नयी प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया एक छोटे नेफ्रोस्कोप से की जाती है। यह प्रक्रिया 99% बार पथरी (जो आकर में 1-2.5 cm तक हों) हटाने में प्रभावशाली सिद्ध हुई है। हालांकि यह बड़े स्टोन्स और पथरी के लिए प्रयोग नहीं की जा सकती। इस प्रक्रिया में कम जटिलताएं होती हैं, सर्जरी का समय कम होता है (लगभग एक से डेढ़ घंटे) और रिकवरी में भी कम समय लगता है।

परक्यूटेनियस नेफ्रोलिथोटॉमी के बाद देखभाल - PCNL surgery hone ke baad dekhbhal
स्टैंडर्ड परक्यूटेनियस नेफ्रोलिथोटॉमी के बाद पांच से छह दिनों के लिए अस्पताल में रहने की आवश्यकता होती है। प्रक्रिया के बाद भी कहीं कोई स्टोन या उसके टुकड़े रह तो नहीं गए इसकी जांच करने के लिए यूरोलॉजिस्ट अतिरिक्त इमेजिंग अध्ययन करने के लिए कह सकते हैं। इन्हें ज़रुरत पड़ने पर नेफ्रोस्कोप से हटाया जा सकता है। नेफ्रोस्टोमी ट्यूब को हटा दिया जाता है और चीरे को पट्टियों से ढक दिया जाता है। मरीज़ को घर में पट्टियां बदलने के लिए निर्देश दिए जाते हैं।
सर्जरी के बाद मरीज़ को एक या दो दिन तक इंट्रावेनस (Intravenous; नसों में) ट्यूब से द्रव दिए जाते हैं। उसके बाद मरीज़ को ज़्यादा से ज़्यादा मात्रा में द्रव का सेवन करने के लिए कहा जाता है ताकि प्रतिदिन 2 qt (1.2 l) मूत्र त्याग किया जा सके। कुछ दिनों तक मूत्र में रक्त आना सामान्य है। जोखिमों और जटिलताओं का आंकलन करने के लिए रक्त और मूत्र के सैंपल लिए जाते हैं।

सर्जरी के बाद डॉक्टर द्वारा बताये गए सभी निर्देशों का पालन करें जिससे जल्द से जल्द रिकवरी हो सके।

परक्यूटेनियस नेफ्रोलिथोटॉमी की जटिलताएं - Percutaneous Nephrolithotomy (PCNL) me jatiltaye
इस प्रक्रिया का स्टोन हटाने में एक अच्छा सफलता दर है, 98% से ज़्यादा जब स्टोन गुर्दे में थे और 88% जब स्टोन मूत्रनली में चला गया हो। हालांकि फिर भी हर प्रक्रिया की तरह इससे भी जुड़े कुछ जोखिम और जटिलताएं होती हैं।

अगर प्रक्रिया के दौरान नेफ्रोस्कोप डालने के लिए ट्रैक बड़ा न किया जा सके तो यह गुर्दे की ओपन सर्जरी में बदल जाएगी।
चीरे के आसपास या गुर्दे के अंदर की रक्यत वाहिकाओं को क्षति पहुँचने से रक्तस्त्राव हो सकता है।
संक्रमण
सर्जरी के बाद एक या दो दिन तक हल्का बुखार रहना सामान्य है। हालांकि अगर दो दिन के बाद भी बुखार ठीक न हो तो यह संक्रमण का लक्षण हो सकता है। अपने डॉक्टर को तुरंत सूचित करें।
चीरे के आसपास द्रव संचय हो जाना।
आर्टेरिओवेनस फिस्टुला (Arteriovenous Fistula) बन जाना (यह धमनी और नस के बीच एक जोड़ है जिससे रक्त धमनी से नस में प्रवाहित हो जाता है।
आसपास के अंगों को सर्जरी के दौरान आकस्मिक क्षति पहुंचना। इस प्रक्रिया से लिवर, फेफड़े, या अग्नाशय को क्षति हो सकती है।
गुर्दे में छेद हो जाना। यह छिद्र आम तौर पर बिना उपचार के ठीक हो जाते हैं।
पेट के अन्य अंगों को क्षति।
क्षति जिससे गुर्दे की सामान्य कार्यवाही पर प्रभाव पड़े।
दुर्लभ स्थितियों में जब स्टोन का आकर बहुत बड़ा हो तो ऐसे में दुबारा उपचार की आवश्यकता भी हो सकती है।

32. एक्स्ट्राकोर्पोरियल शॉक वेव लिथोट्रिप्सी - ESWL (Extracorporeal Shock Wave Lithotripsy) in Hindi

एक्स्ट्राकोर्पोरियल शॉक वेव लिथोट्रिप्सी क्या होता है? - ESWL Surgery kya hai in hindi?
एक्स्ट्राकोर्पोरियल शॉक वेव लिथोट्रिप्सी (Extracorporeal Shock Wave Lithotripsy, ESWL) स्टोन निकालने का एक सर्जिकल उपचार है। इस प्रक्रिया में एक बाहरी स्त्रोत से हाई फ्रीक्वेंसी साउंड वेव्स (High Frequency Sound Waves) का इस्तेमाल किया जाता है जिससे स्टोन्स को छोटे टुकड़ों में टूट जाते हैं और मूत्र पथ (Urinary Tract) के ज़रिये बाहर आ जाते हैं।

एक्स्ट्राकोर्पोरियल शॉक वेव लिथोट्रिप्सी क्यों की जाती है? - ESWL Surgery kab ki jati hai?
इसका प्रयोग उन मरीज़ों में किया जाता है जिनके गुर्दे में स्टोन है और उस स्टोन में दर्द होता है, साथ ही उससे मूत्रत्याग ब्लॉक हो रहा है। जो स्टोन्स व्यास (Diameter; डायमीटर) में 4 mm (0.16 in) और 2 cm (0.8 in) के बीच होते हैं उनके लिए ESWL किये जाने की अधिक सम्भावना है।

इस प्रक्रिया का उपयोग यूरेटेरिक स्टोन्स (Ureteric Stones), मूत्राशय के स्टोन्स (Bladder Stones) और बेनिन प्रोस्टेटिक हाइपरप्लेशिया (Benign Prostatic Hyperplasia, BPH) के उपचार के लिए भी किया जाता है।

यदि आप गर्भवती हैं, आपको कोई रक्तस्त्राव सम्बन्धी विकार है, गुर्दे का अनुपचारित संक्रमण, मूत्रपथ का संक्रमण या गुर्दे का कैंसर है, या गुर्दे की कार्यवाही में कोई असामन्यता है तो ये प्रक्रिया नहीं की जा सकती।

एक्स्ट्राकोर्पोरियल शॉक वेव लिथोट्रिप्सी होने से पहले की तैयारी - ESWL operation ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा:

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)

एक्स्ट्राकोर्पोरियल शॉक वेव लिथोट्रिप्सी कैसे की जाती है? - ESWL Operation kaise hota hai?
यह प्रक्रिया लगभग एक घंटे तक चलती है। मरीज़ को एक विशेष ऑपरेटिंग रूम टेबल पर लिटाया जाता है जिसपर एक पानी से भरा हुआ कुशन (Cushion; तकिया) लगा हुआ होता है जिसके द्वारा हाई फ्रीक्वेंसी साउंड वेव्स गुर्दे तक प्रेषित की जाती हैं। प्रक्रिया के दौरान एक्स-रे (X-Ray) और अल्ट्रासाउंड (Ultrasound) का प्रयोग किया जाता है ताकि स्टोन का स्थान जाना जा सके और स्टोन विखंडन (Stone Fragmentaion) की प्रभावशीलता के बारे में पता लगाया जा सके।

कई स्थितियों में युरेटेरल स्टेंट (Ureteral Stent) का भी प्रयोग किया जा सके जिससे मूत्रनली को विस्तारित किया जा सके और मूत्राशय से स्टोन के पारित होने में आसानी हो।

एक्स्ट्राकोर्पोरियल शॉक वेव लिथोट्रिप्सी के बाद देखभाल - Extracorporeal Shock Wave Lithotripsy hone ke baad dekhbhal
सर्जरी के बाद कुछ हफ़्तों तक स्टोन के टुकड़े मूत्र से पारित होंगे और इससे हल्का दर्द भी हो सकता है। कभी कभी, मरीज़ को इस प्रक्रिया को फिर करवाने की आवश्यकता हो सकती है या कोई और काम चीरकर की जाने वाली प्रक्रिया करवानी पड़ सकती है। सर्जरी के बाद पहले 48 घंटों तक होने वाले मूत्रत्याग को छानकर टन के टुकड़ों को इकठा करें और एक सूखे कंटेनर (Container; पात्र) में रखकर अपने डॉक्टर के पास ले जाएँ जिससे उनकी जांच की जा सके।

स्टोन के टुकड़ों को पारित करने में आसानी हो इसके लिए प्रतिदिन 8 से 10 गिलास पानी पियें। सर्जरी के बाद कम से कम 24 घंटों तक ड्राइविंग न करें। डॉक्टर द्वारा बताये हुए समय और दिन पर चेक-अप करवाने ज़रूर जाएँ और डॉक्टर द्वारा निर्धारित सभी दवाएं निर्धारित खुराक में लें। आपको कुछ टेस्ट्स करवाने के लिए भी कहा जा सकता है।

एक्स्ट्राकोर्पोरियल शॉक वेव लिथोट्रिप्सी की जटिलताएं - Extracorporeal Shock Wave Lithotripsy operation me jatiltaye
यह एक सुरक्षित प्रक्रिया है हालांकि हर सर्जिकल प्रक्रिया की तरह इससे भी कुछ जोखिम और जटिलताएं जुड़ी हैं:

स्टोन के टुकड़ों के पारित होने पर दर्द।
स्टोन के टुकड़ों की वजह से मूत्रत्याग में ब्लॉकेज जिससे अन्य सर्जरी करनी पड़ सकती है।
संक्रमण
शॉक वेव्स की वजह से ऊतकों को क्षति हो सकती है जिसके कारण गुर्दे के बाहर रक्तस्त्राव हो सकता है।

33. पुरुष नसबंदी ऑपरेशन - Vasectomy in Hindi

पुरुष नसबंदी ऑपरेशन क्या होता है? - Vasectomy kya hai in hindi?
पुरुष नसबंदी या वैसेक्टॉमी एक ऑप्रेशन प्रक्रिया होती है, जिसकी मदद से पुरुषों को शुक्राणुरहित किया (बांझ बनाना) जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान पुरुषों में उस ट्यूब को काट दिया जाता है, जो शुक्राणुओं को वृषण से लिंग तक पहुंचाता है। पुरुष नसबंदी से पुरुषों में मेल सेक्स हार्मोन बनने, सेक्स का आनंद लेने या चरम सुख प्राप्त करने की क्षमता में किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ता। पुरुष नसबंदी ऑपरेशन पुरुषों के लिए होता है, जिससे उनकी महिला साथी को गर्भवती होने से रोका जाता है। पुरुष नसबंदी के बाद व्यक्ति वीर्यपात (Ejaculation) कर सकते हैं, लेकिन उसमें शुक्राणु नहीं होते।

पुरुष नसबंदी को गर्भावस्था रोकने का एक स्थायी तरीका माना जाता है। इसको किसी भी उम्र में किया जा सकता है।

पुरुष नसबंदी क्यों की जाती है? - Vasectomy kab kiya jata hai?
पुरुष नसबंदी की आवश्यकता कब पड़ती है?

जो पुरुष निश्चित तौर पर भविष्य में किसी भी महिला को गर्भवती नहीं करना चाहते ,उनके लिए पुरुष नसबंदी की सिफारिश की जाती है। पुरुष नसबंदी पुरुषों को बांझ (Sterile) बना देती है, जिसके बाद वे किसी महिला को गर्भवती नहीं कर पाते। पुरुष नसबंदी को थोड़े समय के लिए जन्म नियंत्रण के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता, बल्कि यह पूर्णकालिक होता है। पुरुष नसबंदी प्रक्रिया को वापस हटाने के लिए किया जाने वाला ऑपरेशन और अधिक जटिलताओं भरा होता है।

पुरुष नसबंदी करवाने का विकल्प निम्न व्यक्तियों के लिए बेहतर हो सकता है:

अगर रिश्ते में दोनों साथी ये चाहते हैं कि उन्हें बच्चे या और बच्चे नहीं चाहिए और वे जन्म नियंत्रण के अन्य तरीके नहीं अपनाना चाहते।
अगर किसी व्यक्ति की महिला साथी के लिए उसकी स्वास्थ्य समस्याओं के कारण गर्भधारण करना असुरक्षित है, तो पुरुष नसबंदी का विकल्प अपनाया जा सकता है।
अगर किसी रिश्ते में किसी एक या दोनों साथियों को आनुवंशिक विकार (Genetic disorders) है, जिसे वे एक दूसरे में संचारित करना नहीं चाहते।
अगर कोई जोड़ा सेक्स करने के दौरान अन्य प्रकार के जन्म नियंत्रण तरीके अपना कर परेशान हो चुका है या परेशान नहीं होना चाहता, तो पुरुष नसबंदी उनके लिए भी एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है।

पुरुष नसबंदी ऑपरेशन होने से पहले की तैयारी - Vasectomy se pahale ki taiyari
पुरुष नसबंदी के लिए क्या तैयारियां की जाती हैं?

पुरुष नसबंदी करने से पहले डॉक्टर आपसे मिलते हैं और इस बारे में निश्चित करते हैं कि क्या यह जन्म नियंत्रण प्रक्रिया आपके लिए ठीक है?

पहले अपॉइंटमेंट के दौरान डॉक्टर से निम्न बातों पर चर्चा करने के लिए तैयार रहना चाहिए:

यह समझना कि पुरुष नसबंदी स्थायी होती है और अगर आपके लिए कोई ऐसी संभावना है जिससे आपको भविष्य में बच्चे पैदा करने की जरूरत पड़ सकती है, तो पुरुष नसबंदी करवाना आपके लिए एक सही विकल्प नहीं है।
आपके बच्चे हैं या नहीं और अगर आप किसी रिश्ते में है तो आपकी महिला साथी की इस फैसले पर क्या प्रतिक्रिया है।
आपके लिए जन्म नियंत्रण के अन्य तरीके भी उपलब्ध हैं।
पुरुष नसबंदी में सर्जरी व अन्य कौन सी जटिलताएं शामिल हैं।

पुरुष नसबंदी के लिए की जाने वाली सर्जरी को अस्पताल या किसी सर्जरी केंद्र में किया जाता है। सर्जरी के दौरान मरीज को लोकल अनस्थेसिया (Local anesthesia) दी जाती है। लोकल अनेस्थेसिया में आप होश में रहते हैं, बस शरीर के उसी क्षेत्र को सुन्न किया जाता है जिसकी सर्जरी करनी होती है।

अगर आप एस्पिरीन या अन्य खून पतला करने वाली दवाएं लेते हैं, तो डॉक्टर कुछ दिन के लिए उन्हें ना लेने के लिए कह सकते हैं। इन दवाओं में निम्न शामिल हो सकती हैं:

वारफेरीन (Warfarin)
हेपारिन (Heparin)
एस्पिरिन (Aspirin)
आइबूप्रोफेन (Ibuprofen)
टाइट फिटिंग अंडरवियर या एथलेटिक सपोर्टर का खरीद लें, ताकी सर्जरी के बाद अंडकोष में सूजन आने से रोकथाम की जा सके।

ऑपरेशन के दिन नहाएं और यह सुनिश्चित कर लें की आपने अपने जननांगों के क्षेत्र को अच्छे से साफ कर लिया है।

सर्जरी के बाद घर जाने के लिए एक साथी की व्यवस्था कर लें, ताकि ड्राइविंग आदि करने के दौरान वृषणों पर किसी प्रकार का दबाव या झटका आदि ना पड़े।

पुरुष नसबंदी ऑपरेशन कैसे किया जाता है? - Vasectomy kaise hota hai?
पुरूष नसबंदी कैसे की जाती है?

पुरुष नसबंदी का ऑपरेशन आमतौर पर अस्पताल या किसी सर्जरी केंद्र में किया जाता है, इसमें लगभग 30 मिनट का समय लगता है। प्रक्रिया के दौरान आप होश में ही होते हैं। आपकी अंडकोष की थैली को सुन्न करने के लिए डॉक्टर लोकल अनेस्थेसिया का उपयोग करते हैं। ऑपरेशन के दौरान डॉक्टर एक विशेष उपकरण से अंडकोष की थैली में एक छोटा सा चीरा (Cut) लगाते हैं और फिर उसी उपकरण से उस छेद को आराम से फैलाया जाता है, जिससे अंदर की ट्यूब तक पहुंचा जाता है।

उस छोटे छेद के अंदर से ट्यूब को सतह तक लाया जाता है। अलग-अलग डॉक्टर अलग-अलग तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन सभी तकनीकों में ट्यूब में कट लगाकर उन दोनों सिरों को बंद कर दिया जाता है और अलग-अलग ही छोड़ दिया जाता है।

दूसरी ट्यूब को भी इसी तरीके से और इसी छेद के अंदर से बंद किया जाता है। इस तकनीक में बहुत ही कम मात्रा में खून बह पाता है।

कट को बंद करने के लिए किसी प्रकार के टांके आदि की आवश्यकता नहीं होती, यह कट जल्दी ठीक हो जाता है और कोई निशान भी नहीं बनता।

कुछ लोगों में नो-स्कैलपल वैसेक्टॉमी (No-scalpel vasectomy) नामक प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है,  जिसका मतलब होता है बिना छुरी के की जाने वाली (पुरुष नसबंदी) प्रक्रिया। इस प्रक्रिया में किसी कट की बजाए एक छोटा गोल छेद किया जाता है।

पुरुष नसबंदी ऑपरेशन के बाद देखभाल - Vasectomy hone ke baad dekhbhal
पुरुष नसबंदी प्रक्रिया के बाद क्या करना चाहिए?

इस प्रक्रिया के बाद साधारण रूप से आपकी अंडकोष की थैली में थोड़ी सूजन, निशान, दर्द व अन्य तकलीफ जैसी समस्याएं हो सकती है। अगर आपको ज्यादा समस्या हो रही है, तो दर्द को कम करने के लिए आप दर्दनिवारक दवा का इस्तेमाल कर सकते हैं, जैसे पेरासिटामोल आदि। अगर दर्दनिवारक दवा के बाद भी आपकी तकलीफें कम नहीं हुई तो इस बारे में डॉक्टर से बात करें।

ऑपरेशन के बाद एक- दो बार वीर्यपात के दौरान वीर्य के साथ खून आ सकता है, यह साधारण स्थिति होती है जो हानिकारक नहीं होती।

ऑपरेशन के बाद दिन और रात में टाइट फीटिंग वाले अंडरवियर पहनें, जो अंडकोषों को सहारा प्रदान करते हैं और सूजन व दर्द को कम करने में मदद करते हैं। अपनें अंडरवियर को रोजाना बदलते रहें।

ऑपरेशन के बाद नहाना आमतौर पर आपके लिए सुरक्षित होता है, यह सुनिश्चित कर लें कि नहाने के बाद आपने अपने जननांगों को अच्छे से साफ कर लिया है।

ऑपरेशन के बाद आप उतनी ही जल्दी सेक्स क्रिया कर सकते हैं, जितनी जल्दी आप इसमें सुविधाजनक महसूस करें, हालांकि कुछ दिन तक इंतजार करना फायदेमंद होता है। ऑपरेशन करने के तुरंत बाद किए गए वीर्यपात में शुक्राणु हो सकते हैं, क्योंकि ट्यूब में बचे हुए शुक्राणु पूरी तरह से खत्म होने में समय लगता है। औसतन 20-30 वीर्यपात होने के बाद ट्यूब में शुक्राणु पूरी तरह से साफ हो जाते हैं। जब तक आपके 2 क्लियर सीमेन टेस्ट (Semen tests) नहीं हो जाते तब तक गर्भनिरोधक के अन्य तरीकों का इस्तेमाल करना चाहिए।

पुरुष नसबंदी ऑपरेशन के बाद सावधानियां - Vasectomy hone ke baad savdhaniya
जब पुरुष नसबंदी का ऑपरेशन सफल हो जाता है और क्लियर सीमेन टेस्ट में शुक्राणु की उपस्थिति नहीं मिलती, तो आप अपने स्थायी यौन साथी के साथ बिना कंडोम के सेक्स कर सकते हैं।

हालांकि, पुरुष नसबंदी एचआईवी एड्स या यौन संचारित रोग से नहीं बचाती, इसलिए किसी भी नए यौन साथी के साथ सेक्स करने के दौरान कंडोम का इस्तेमाल करना चाहिए।

पुरुष नसबंदी की जटिलताएं - Vasectomy me jatiltaye
पुरुष नसबंदी में क्या जटिलताएं हो सकती हैं?

सर्जरी के तुरंत बाद पुरुष नसबंदी के कई विपरित प्रभाव हो सकते हैं:

इनमें निम्न शामिल है:

सूजन,
मध्यम दर्द व तकलीफ,
वीर्य में खून आना,
अंडकोष की थैली नीली हो जाना
अंडकोष की थैली के अंदर खून बहना और खून के थक्के बनना इत्यादि।

पुरुष नसबंदी की प्रक्रिया के बाद के जोखिम व जटिलताएं बहुत कम हैं, जिनमें निम्न शामिल हैं:

चीरे की जगह पर संक्रमण होना और बहुत ही दुर्लभ मामलों में संक्रमण अंडकोष की थैली के अंदर भी फैल जाता है।
ट्यूब से शुक्राणु लीक होना जो एक ऊतक में जमा हो जाते हैं और एक गांठ का रूप धारण कर लेते हैं, इस स्थिति को शुक्राणु ग्रेन्युलोमा (Sperm granuloma) कहा जाता है। आमतौर पर यह स्थिति दर्दनाक नहीं होती और आराम तथा दवाओं आदि से इनका इलाज किया जा सकता है। कुछ मामलों में ग्रेन्युलोमा को निकालने के लिए सर्जरी की आवश्यकता भी पड़ सकती है।
उस ट्यूब में सूजन व जलन होना जो वृषणों से शुक्राणुओं को ले जाती है।
बहुत ही दुर्लभ मामलों में ट्यूब फिर से विकसित होने लग जाती है, जिससे व्यक्ति फिर से प्रजनन योग्य (Fertile) बन जाता है।

34. थायराइड सर्जरी - Thyroidectomy in Hindi

थायराइड ऑपरेशन क्या होता है? - Thyroidectomy kya hai in hindi?
थायरॉयडेक्टॉमी (Thyroidectomy) एक सर्जिकल प्रक्रिया है जिसमें पूरी थायरॉयड ग्रंथि या थायरॉयड ग्रंथि का कुछ हिस्सा हटा दिया जाता है। थायरॉइड ग्रंथि गर्दन के आगे के हिस्से में त्वचा के नीचे और टेंटुए (Adam's Apple; कंठमणि) के सामने स्थित है। थायरॉयड शरीर की अंतःस्रावी ग्रंथियों (Endocrine Glands) में से एक है, जिसका अर्थ है कि यह शरीर के अंदर अपने उत्पादों (Products) को रक्त या लसीका में स्रावित करता है। थायरॉयड कई हार्मोन उत्पन्न करता है, जिनके दो प्राथमिक कार्य होते हैं: शरीर के ऊतकों में से अधिकांश में प्रोटीन के संश्लेषण को बढ़ाना और शरीर की ऑक्सीजन खपत का स्तर बढ़ाना।

थायराइड सर्जरी क्यों की जाती है? - Thyroidectomy kab kiya jata hai?
इस सर्जिकल प्रक्रिया का प्रयोग थायरॉइड ग्रंथि के विकारों का उपचार करने के लिए किया जाता है:

थायरॉइड कैंसर या ट्यूमर (कैंसर सम्बन्धी या कैंसर रहित, जिन्हें अक्सर नोड्यूल कहा जाता है)
अतिगलग्रंथिता या हाइपर-थाइरॉयडिज़्म (Hyperthyroidism; अतिसक्रिय थायरॉयड ग्रंथि)
कंठमाला या थायरॉयड नोड्यूल्स (Goiter Or Thyroid Nodules) जिससे निगलने या सांस लेने में कठिनाईयां हो रहीं हों।
मल्टी-नोड्यूलर कंठमाला (Multi-Nodular Goiter)
अगर हाइपर-मेटाबोलिस्म (Hypermetabolism) दवा द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा पा रहा हो, या यदि यह स्थिति एक बच्चे या गर्भवती महिला में हो तो।
थायराइड के ऑपरेशन से पहले की तैयारी - Thyroidectomy ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा:

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)
अन्य विशिष्ट परीक्षण (Specific Tests Before Surgery)
सबसे आम परीक्षण है रक्त में प्रवाह होने वाले थायरॉइड स्टिम्युलेट करने वाले हॉर्मोन्स (Thyroid Stimulating Hormone) का आंकलन करने के लिए रक्त परीक्षण। थायरॉइड ग्रंथि के आकार और असामन्यतायों का पता लगाने के लिए सोनोग्राफी (Sonography) और सीटी स्कैन (CT Scan) किये जाते हैं। थायरॉइड नोड्यूल की स्थिति का आंकलन करने या थायरॉइड ग्रंथि की कार्यवाही की जांच करने के लिए नाभिकीय दवा स्कैन (Nuclear Medicine Scan) का भी प्रयोग किया जा सकता है। हालांकि यह एक रूटीन टेस्ट नहीं है। नीडल बायोप्सी, एस्पिरेशन या आपकी स्थिति के हिसाब से अन्य परीक्षण भी किये जा सकते हैं।

थायराइड का ऑपरेशन कैसे होता है? - Thyroidectomy kaise hota hai?
एनेस्थीसिया अपना काम शुरू कर दे उसके बाद, सर्जन गर्दन के आगे की ओर उस स्तर पर एक चीरा काटेंगे जहां एक टाइट फिटिंग हार (चोकर) (Tight Fitting Necklace/ Choker Necklace) आता है। सर्जन ध्यान से, जिससे पैराथाइरॉइड ग्रंथियों (Parathyroid Glands) और आवर्तक स्वरयंत्र नसों (Recurrent Laryngeal Nerves) को कोई क्षति न पहुंचे, थाइरॉइड ग्रंथि को मुक्त करते हैं। इसके बाद थायरॉइड ग्रंथि में रक्त की आपूर्ति को बंद किया जाता है।

अगर कैंसर का निदान हुआ है तो, पूरी थायरॉइड ग्रंथि या ग्रंथि के कुछ हिस्से को निकाल दिया जाता है। अगर अन्य कोई विकार या नोल्ड्यूल्स हों तो, ग्रंथि का कुछ हिस्सा ही निकाला जाता है। ग्रंथि के ऊतकों का कितना हिस्सा निकाला जायेगा यह पूरी तरह से रोग पर निर्भर करता है। चीरे को बंद करने से पहले सर्जन एक ड्रेन (Drain) भी लगा सकते हैं, जो कि एक नरम प्लास्टिक ट्यूब है जिससे ऊतकों के द्रव को एक क्षेत्र से बाहर स्त्रावित किया जा सके।

फिर सर्जिकल धागों या धातु की क्लिप्स से बंद कर दिया जाता है।

थायराइड ऑपरेशन के बाद देखभाल - Thyroidectomy hone ke baad dekhbhal
सर्जरी के बाद मरीज़ों को एक से चार दिन के लिए अस्पताल में रहने की आवश्यकता होती है। घर जाने के बाद निर्धारित रूप से सर्जन से जांच करवाएं।
थाइरॉयडेक्टमी के चीरे को ड्रेसिंग (Dressing; पट्टियां) हट जाने के बाद ज़्यादा देखभाल की आवश्यकता नहीं होती। चीरे की त्वचा को हलके साबुन (Mild Soap) से धोया जा सकता है। सर्जरी के बाद तीन से सात दिनों में ड्रेसिंग हटा दी जाती है। चीरे की त्वचा जल्दी भर जाए इसके लिए विटामिन-ई (Vitamin-E) या समान उत्पादों का प्रयोग किया जा सकता है, हालांकि यह इतना ज़रूरी नहीं है। चीरे की त्वचा को सूरज से बचाने के लिए सनस्क्रीन (Sunscreen) का प्रयोग करें और उसे ढक कर रखें। आप नहा सकते हैं लेकिन घाव को सिर्फ हल्का गीला करें, उसे पूरी तरह भिगाएं न।
सर्जरी के दो हफ़्तों बाद से सामान्य गतिविधियां शुरू की जा सकती हैं। चलना-फिरना, सीढ़ियां उतरना-चढ़ना और काम थकाने वाली गतिविधियां करना आपके लिए अच्छा है। ज़्यादा थकाने वाले कार्य न करें। ज़्यादा भार न उठायें। आम तौर पर, आप कुछ हफ़्तों के बाद काम पर जा सकते हैं।
कैंसर के मरीज़ों को इसके बाद ऑन्कोलॉजिस्ट (Oncologist; ट्यूमर का निदान और उपचार करने वाले विशेषज्ञ) या एंडोक्राइनोलोजिस्ट (Endocrinologist; एंडोक्राइन ग्रंथियों और होर्मोनेस सम्बन्धी विकारों का उपचार करने वाले विशेषज्ञ​) से उपचार करवाने की आवश्यकता होती है।
सामान्य आहार लिया जा सकता है। ज़्यादा से ज़्यादा तरल पदार्थों का सेवन करें।
थायराइड में ऑपरेशन की जटिलताएं - Thyroidectomy me jatiltaye
हर सर्जरी की तरह इस सर्जरी से भी कुछ जोखिम और जटिलताएं जुड़ी हैं:

अगर आवर्तक स्वरयंत्र नसों को सर्जरी के दौरान चोट लग जाती है तो इससे गला बैठ सकता है या आवाज़ भी जा सकती है। जिन मरीज़ों को बड़ी कंठमाला या कैंसरग्रस्त ट्यूमर हों, उनमें नसों को क्षति पहुँचने का जोखिम ज़्यादा होता है।
अगर सर्जरी के दौरान पैराथायरॉइड ग्रंथियों को क्षति पहुँच जाए या उन्हें हटाया गया हो, तो हाइपोपैराथायरॉइडिज़्म (Hypoparathyroidism; पैराथायरॉइड ग्रंथियों की सामान्य से कम कार्यवाही) हो सकती है। इसमें रक्त में कैल्शियम का स्तर गिर जाता है जिससे मांसपेशियों में ऐंठन हो सकती है और या मरोड़ पड़ सकती है।
अगर पूरी थायरॉइड ग्रंथि को हटाया गया है तो हाइपोथायरॉइडिज़्म (Hypothyroidism; थायरॉइड ग्रंथियों की सामान्य से कम कार्यवाही) होने का जोखिम रहता है।
अगर मरीज़ का थायरॉइड का स्तर कम ही रहता है तो ऐसे में आजीवन थाइरोइड प्रतिस्थापन दवाओं (Thyroid Replacemnt Medicines) का सेवन करना पड़ सकता है।
सर्जरी के स्थान पर रक्तस्त्राव हो सकता है और इसे रोकना मुश्किल हो सकता है। अगर शरीर के इस अंग में हेमाटोना (Hematona; किसी अंग या ऊतक में रक्त एकत्रित हो जाना) हो जाये तो यह जानलेवा हो सकता है। इसके बढ़ने से सांस लेने में परेशानी हो सकती है। अगर गर्दन में हेमाटोना विकसित हो जाये, तो इसको निकालने के लिए सर्जन को ड्रेनेज करनी पड़ सकती है ताकि वायुपथ में रूकावट न हो।
घाव संक्रमण (Wound Infections) भी हो सकते हैं।

35. बवासीर का ऑपरेशन - Haemorrhoidectomy

बवासीर का ऑपरेशन क्या होता है? - Haemorrhoidectomy kya hai in hindi?
हेमोर्रोइडेक्टमी (Hemorrhoidectomy) हेमोर्रोइड (Hemorrhoid) को हटाने की सर्जिकल प्रक्रिया है। हेमोर्रोइड वाहिकीय ऊतकों का समूह है जो मांसपेशियों से जुड़ा होता है और मलाशय के निचले भाग या गुदे के आसपास स्थित होता है।

बवासीर का ऑपरेशन क्यों की जाती है? - Haemorrhoidectomy kab kiya jata hai?
इस प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य हेमोर्रोइड के लक्षणों से निजात दिलाना है जिनपर दवाओं का कोई प्रभाव न पड़ रह हो। आम तौर पर यह लक्षण हैं- रक्तस्त्राव और दर्द। कुछ स्थितियों में यह मरीज़ के गुदे से बाहर निकल सकता है। कभी कभी, मरीज़ श्लेम (Mucus) स्त्रावित होता हुआ महसूस कर सकते हैं या उनको ऐसा लग सकता है कि पूर्ण रूप से मलत्याग नहीं हो पाया है।

हेमोर्रोइड इतने हानिकारक नहीं होते इसलिए इसे मेडिकल आपातकालीन स्थिति न मानते हुए पहले इलाज दवाओं या पथ्य-संबंधी उपायों की मदद से किया जाता है। कई मरीज़ों में हेमोर्रोइड के कोई लक्षण नहीं पाए जाते।

बवासीर का ऑपरेशन होने से पहले की तैयारी - Bawaseer ke operation ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा:

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)
ध्यान देने योग्य अन्य बातें (Other Things To Be Kept In Mind Before Surgery)
मलाशय के क्षेत्र और बड़ी आंत के निचले भाग को साफ़ करने के लिए मरीज़ों को कम मात्रा में सेलाइन एनिमा (Small-Volume Saline Enema) दिया जाता है। इससे सर्जन को सर्जरी की जगह साफ़ मिलेगी।

बवासीर का ऑपरेशन कैसे किया जाता है? - piles ki surgery kaise hoti hai?
हेमोर्रोइड को कम करने के लिए कई प्रकार की सर्जिकल प्रक्रियाओं का प्रयोग किया जा सकता है। ज़्यादातर प्रक्रियाएं आउट-पेशेंट (Out Patient; मरीज़ को सर्जरी के बाद अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं होती) आधार पर हो जाती हैं।

रबर-बैंड लिगेशन (Rubber-Band Ligation) एक प्रक्रिया है जो अंदरूनी हेमोर्रोइड, जो मल त्याग के ज़रिये बाहर निकलते हों, के लिए एक अच्छा उपचार है। हेमोर्रोइड पर एक छोटा रबर-बैंड लगाया जाता है जो रक्त की आपूर्ति को बंद करदेता है। हेमोर्रोइड और रबर-बैंड कुछ दिनों में निकल जायेंगे और घाव भी एक-दो हफ़्तों में भर जायेगा। इस प्रक्रिया में हलकी असुविधा और रक्तस्त्राव होता है।

अन्य प्रक्रिया, जिसे स्क्लेरोथेरेपी (Sclerotherapy) कहा जाता है, में रक्त वाहिकाओं में एक रासायनिक सोल्युशन इंजेक्ट किया जाता है जिससे हेमोर्रोइड सुकड़ जाता है। तीसरा प्रभावशाली उपचार है अवरक्त स्‍कंदन (Infrared Coagulation), जिसमें हेमोर्रोइड के ऊतकों को ऊष्मा (Heating) से सिकोड़ा जाता है। दोनों प्रक्रियाओं, इंजेक्शन और स्कंदन, का प्रयोग हेमोर्रोइड, जिनसे रक्तस्त्राव हो और जो बाहर न निकल रहे हों, का प्रभावशाली रूप से उपचार करने एक लिए किया जा सकता है। कुछ सर्जन इन तीनों प्रक्रियाओं के संयोजन (Combination) का प्रयोग करते हैं और ये मेल 90.5% बार सफल भी हुआ है।

बवासीर के ऑपरेशन के बाद देखभाल - Piles ke operation ke baad dekhbhal
सर्जरी के बाद, मरीज़ को गुदे में गतिविधियों से दर्द हो सकता है। दर्द से निजात पाने हेतु डॉक्टर द्वारा आपको मादक दवाएं निर्धारित की जा सकती हैं। मलत्याग और मूत्रत्याग करते समय परेशानी न हो इसके लिए मरीज़ को स्टूल सॉफ्टनर (Stool Softener) लेनी चाहिए। गरम पानी से नहाने से थोड़ा आराम महसूस हो सकता है और लक्षणों से भी राहत मिल सकती है।

बवासीर के ऑपरेशन की सफलता दर काफी अच्छी रही है। इस प्रक्रिया के बाद लगभग दो हफ्ते में व्यक्ति रिकवर हो जाता है। अपने डॉक्टर के निर्देशों का पालन करें।

बवासीर के ऑपरेशन की जटिलताएं - Piles ke operation me jatiltaye
इस प्रक्रिया से जुड़े जोखिम निम्नलिखित हैं:

संक्रमण
रक्तस्त्राव
एनेस्थीसिया के प्रति एलर्जिक रिएक्शन
स्टेनोसिस (Stenosis; गुदा का संकुचन)
हेमोर्रोइड की पुनरावृत्ति
नालव्रण (Fistula) का गठन
घाव न भरना

36. अपेंडिक्स का ऑपरेशन - Appendectomy in Hindi

अपेंडिक्स का ऑपरेशन क्या होता है? - Appendectomy kya hai in hindi?
अपेंडिक्स का ऑपरेशन (अपेन्डेक्टमी/ एपेन्डेक्टमी; Appendectomy) एक सर्जिकल प्रक्रिया है जिसके ज़रिये संक्रमित अपेंडिक्स (Appendix) को हटाया जाता है। इस स्थिति को अपेंडिसाइटिस (Appendicitis) कहा जाता है। अपेन्डेक्टमी, जिसे अपेंडिसेक्टोमी (Appendisectomy or Appendicectomy) भी कहा जाता है, एक आम आपातकालीन सर्जरी है।

अपेंडिक्स बड़ी आंत से जुड़ा एक छोटा पाउच है। यह पेट की निचिले हिस्से में दाँई ओर होता है। अगर आपको अपेंडिसाइटिस है तो आपके अपेंडिक्स को तुरंत निकालने के ज़रूरत होती है। अगर इसका उपचार न किया जाये तो अपेंडिक्स फट सकता है। यह एक मेडिकल एमर्जेन्सी (Emergency; आपातकालीन स्थिति) है।

अपेंडिक्स का ऑपरेशन क्यों किया जाता है? - Appendectomy kab kiya jata hai?
अपेंडिसाइटिस का निदान होने पर आपको इस सर्जरी की आवश्यकता होती है। इस स्थिति में आपका अपेंडिक्स पीड़ादायक, सूजा हुआ और संक्रमित हो जाता है। आगरा आपको अपेंडिसाइटिस है तो, अपेंडिक्स के फटने का गंभीर जोखिम रहता है और ये लक्षण दिखने के 48 से 72 घंटों में हो सकता है। इस स्थिति में आपके पेट में पेरिटोनाइटिस नामक एक गंभीर जानलेवा संक्रमण हो सकता है।

अपेंडिसाइटिस के लक्षण पाए जाने पर तुरंत अपने चिकत्सक को बताएं और मेडिकल सहायता प्राप्त करें:

नाभी के पास अचानक दर्द शुरू होना जो पेट के दाहिने निचले हिस्से तक हो
पेट में सूजन
पेट की मांसपेशियों में अनम्यता (Rigid Abdominal Muscles)
दस्त
मतली (Nausea)
उलटी
भूख कम लगना
लो-ग्रेड बुखार (Low Grade Fever- 98.6° F से ज़्यादा लेकिन 100.4° F से कम)
हालांकि अपेंडिसाइटिस का दर्द पेट के दाहिने निचले भाग में होता है लेकिन क्योंकि गर्भावस्था में अपेंडिक्स ऊपर हो जाता है इसलिए गर्भवती महिलाओं में इस स्थिति में दर्द पेट के दाहिने ऊपरी भाग में होता है।

अपेंडिक्स का ऑपरेशन होने से पहले की तैयारी - Appendectomy ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा:

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)

अपेंडिक्स का ऑपरेशन कैसे होता है? - Appendectomy kaise hota hai?
अपेंडिक्स को हटाने की सर्जरी को करने के दो तरीके हैं:

ओपन अपेन्डेक्टमी (Open Appendectomy) - यह इस सर्जरी को करने का मानक तरीका है
लैप्रोस्कोपिक अपेन्डेक्टमी (Laparoscopic Appendectomy) - यह कम काटकर या चीरकर की जाने वाली प्रक्रिया है
लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के दौरान, सर्जन ओपन सर्जरी करने का निर्णय ले सकते हैं। अगर मरीज़ का अपेंडिक्स फट गया है, तो ऐसे में ओपन सर्जरी की ज़रुरत होती है।

हाल में, अध्ययनों में कहा जा रहा है कि इंट्रावेनस (नसों में) एंटीबायोटिक्स दिए जाने से भी इस समस्या से निजात पाया जा सकता है। हालांकि यह अभी भी विवादास्पद है और अपेन्डेक्टमी को अभी भी उपचार की मानक प्रक्रिया माना जाता है।

ओपन अपेन्डेक्टमी (Open Appendectomy)
पेट के निचले भाग में दांयी तरफ एक चीरा काटा जायेगा, जिसकी लम्बाई दो से चार इंच तक होगी।
पेट की मांसपेशियों को हटाया जायेगा और फिर सर्जिकल धागों से बांधकर अपेंडिक्स को निकाला जायेगा।
अगर रोगी का अपेंडिक्स फट गया है तो आपके उदर को सेलाइन से धोया जायेगा।
फिर पेट की लाइनिंग और मांसपेशियों को सिला जायेगा और घाव को पट्टियों से ढका जायेगा। चीरे के अंदर द्रव निकालने के लिए एक छोटी ट्यूब लगाई जा सकती है।
लैप्रोस्कोपिक अपेन्डेक्टमी (Laparoscopic Appendectomy)
इस प्रक्रिया में ओपन सर्जरी की तुलना में छोटे चीरे किये जाते हैं। हालांकि चीरों की संख्या ज़्यादा होती है। इस प्रक्रिया में एक से तीन तक चीरे काटे जा सकते हैं।
एक चीरे से लैप्रोस्कोप (Laparascope), एक लम्बी पतली ट्यूब, डाला जाता है जिससे एक छोटा वीडियो कैमरा और अन्य सर्जिकल उपकरण जुड़े होते हैं। कैमरा की मदद से सर्जन को पेट के अंदरूनी हिस्सों को देखने और उपकरणों का प्रयोग करने में मदद मिलेगी।
पेट में कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide) डालकर पेट को फुलाया जाता है ताकि अंदरूनी हिस्से आसानी से देखे जा सकें।
अपेंडिक्स को सर्जिकल धागों से बाँध कर बाहर निकाला जाएगा।
सर्जरी के समाप्त होने पर लैप्रोस्कोप और अन्य उपकरणों को निकला जायेगा और कार्बन डाइऑक्साइड को चीरों से बहार निकलने दिया जायेगा। द्रव निकालने के लिए चीरे के अंदर एक ट्यूब लगायी जा सकती है।
अंत में चीरे को सिल दिया जायेगा और घाव को पट्टियों से ढक दिया जायेगा।

अपेंडिक्स का ऑपरेशन होने के बाद देखभाल - Appendectomy hone ke baad dekhbhal
अस्पताल में देखभाल (Hospital Care)
सर्जरी के बाद मरीज़ को रिकवरी रूम में ले जाया जायेगा। चिकत्सकों और नर्सों द्वारा मरीज़ की ह्रदय गति, श्वास, रक्त चाप, नब्ज आदि की जांच की जाएगी और स्थिति नियंत्रण में आते ही मरीज़ को अस्पताल के कमरे में शिफ्ट किया जायेगा।
लैप्रोस्कोपिक सर्जरी आउट-पेशेंट (Out Patient; जिसमें मरीज़ को सर्जरी के बाद अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं होती) आधार पर भी की जा सकती है।
रिकवरी में कितना समय लगेगा यह इस पर निर्भर करता है की सर्जरी किस प्रक्रिया से की गयी है और प्रक्रिया के दौरान एनेस्थीसिया का कौनसा प्रकार दिया गया था।
सर्जरी के अंत में चीरे के अंदर लगायी गयी ट्यूब को तब निकाला जायेगा जब आँतों की कार्यवाही सामान्य हो जाएगी। जब तक उस ट्यूब को निकाल नहीं दिया जाता तब तक मरीज़ कुछ खा या पी नहीं पाएंगे।
आपको आपकी स्थिति के अनुसार दर्द निवारक दवाएं दी जा सकती हैं।
घर में देखभाल (Recovery At Home)
जब आपको अस्पताल से छुट्टी मिल जाये तो ध्यान रखें कि आप घाव को साफ़ और सूखा रखते हैं। आपको किस प्रकार नहाना है इसके निर्देश डॉक्टर द्वारा दिए जायेंगे। डॉक्टर द्वारा कुछ समय में टाँके खोल दिए जायेंगे।
घर आने के बाद भी नियमित रूप से डॉक्टर से चेक-अप करवाते रहें।
ज़्यादा देर तक खड़े रहने पर चीरे की जगह और पेट की मांसपेशियों में दर्द हो सकता है। डॉक्टर द्वारा निर्धारित दवाओं का नियमित रूप से सेवन करें।
अगर आपका उपचार लैप्रोस्कोपिक प्रक्रिया से हुआ है तो आपको यह लग सकता है कि कार्बन डाइऑक्साइड अभी भी आपके पेट में है। यह समस्या कुछ दिनों में ठीक हो जाएगी।
सर्जरी के बाद हर वक़्त बिस्तर पर न रहकर, इधर उधर टहलना रोगी के लिए अच्छा होगा। लेकिन थकाने वाले कार्य न करें। डॉक्टर से पूछें कि आप कबसे काम पर वापिस जा सकते हैं।
निम्न परेशानियां होने पर अपने चिकित्सक को सूचित करें:

बुखार या ठंड लगना
चीरे की जगह पर सूजन, रक्तस्त्राव, लाल होना या अन्य किसी प्रकाव का स्त्राव
चीरे की जगह पर दर्द
उलटी
भूख कम लगना
लगातार खांसी होना, सांस लेने में तकलीफ या सांस फूलना
पेट में दर्द, अकड़न या सूजन
दो दिन या उससे ज़्यादा समय तक मलत्याग न होना
तीन दिन से ज़्यादा समय से पानी वाले दस्त होना
अपेंडिक्स के ऑपरेशन की जटिलताएं - Appendectomy me jatiltaye
दोनों प्रक्रियाओं में जटिलताएं और जोखिम कम हैं। लैप्रोस्कोपिक प्रक्रिया में अस्पताल में कम समय तक रहने की आवश्यकता होती है, रिकवरी में कम समय लगता है और संक्रमण का जोखिम भी कम होता है।
अपेन्डेक्टमी से होने वाले कुछ जोखिम निम्न हैं:

रक्तस्त्राव
घाव पर संक्रमण
पेट में सूजन, संक्रमण या पेट का लाल होना (अगर अपेंडिक्स सर्जरी के दौरान फट जाए तो)
आँतों का अवरुद्ध हो जाना
आसपास के अंगों में चोट लग जाना
किसी भी तरह की परेशानी होने पर (उपर्लिखित या कोई अन्य समस्या भी) अपने चिकित्सक से परामर्श ज़रूर करें।


37. वंक्षण हर्निया ऑपरेशन - Inguinal Hernia Surgery in Hindi

वंक्षण हर्निया ऑपरेशन क्या होता है? - Inguinal Hernia Surgery kya hai in hindi?
इनगुइनल हर्निया या वंक्षण हर्निया (Inguinal Hernia) तब होता है जब नरम ऊतक किसी क्षतिग्रस्त या कमज़ोर क्षेत्र से पेट की निचिली मांसपेशियों, ज्यादातर पेट और जांध के बीच के भाग में या उसके आसपास, से बाहर फ़ैल या उभर जाता है। यह किसी को भी हो सकता है, लेकिन यह महिलाओं की तुलना में पुरुषों में ज़्यादा आम है। इस स्थिति को ठीक करने के लिए सर्जरी की जाती है।

हर बार सर्जरी की आवश्यकता नहीं भी होती, परन्तु आम तौर पर हर्निया बिना सर्जरी के ठीक नहीं होते। कई स्थितियों में हर्निया का उपचार न किया जाना जानलेवा भी हो सकता है। सर्जरी के साथ कई जोखिम और जटिलताएं जुड़ी होने के बावजूद भी ज़्यादातर मरीज़ों को सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं।

वंक्षण हर्निया ऑपरेशन क्यों किया जाता है? - Inguinal Hernia Surgery kab ki jati hai?
अगर हर्निया से कोई परेशानी न हो रही हो, तत्काल सर्जरी की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन जैसा कि पहले बताया गया है, ज़्यादातर हर्निया बिना सर्जरी के पूरी तरह ठीक नहीं हो पाते। ये समय के साथ बड़े और असुविधाजनक भी हो सकते हैं।

अधिकतर लोगों को हर्निया का उभार (Bulge) दर्दरहित लगता है। हालांकि खांसने, झुकने या कोई सामान उठाने में इसमें दर्द या परेशानी हो सकती है। आपको डॉक्टर द्वारा सर्जरी की सलाह दी जा सकती है अगर:

हर्निया का आकार बढ़ जाए।
दर्द होने लगे या दर्द बढ़ जाए।
आपको दैनिक गतिविधियों को पूरा करने में परेशानी हो रही हो।
अगर मरीज़ की आंतें मुड़ जाती हैं या फंस जाती हैं तो हर्निया खतरनाक हो सकता है। ऐसा होने पर आपको निम्न परेशानियां हो सकती हैं:

बुखार
ह्रदय गति का बढ़ना
दर्द
मतली
उलटी
उभार का रंग गहरा होना
इन में से कोई भी परेशानी होने पर तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें। यह एक जानलेवा स्थिति है और इसमें आपातकालीन सर्जरी की आवशयकता हो सकती है।

वंक्षण हर्निया ऑपरेशन होने से पहले की तैयारी - Inguinal Hernia Surgery ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा:

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग/ खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)

वंक्षण हर्निया ऑपरेशन कैसे किया जाता है? - Inguinal Hernia Surgery kaise hoti hai?
वंक्षण हर्निया की सर्जरी दो प्रकार से की जा सकती है: ओपन सर्जरी या लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के माध्यम से।

ओपन सर्जरी (Open Surgery)
इस प्रक्रिया को हर्नियोराफी (Herniorrhaphy) या हर्नियोप्लास्टी (Hernioplasty) भी कहा जाता है। एनेस्थीसिया का प्रभाव शुरू होते ही, सर्जरी शुरू की जाती है। सर्जन ऊसन्धि (Groin; पेट और जांध के बीच का भाग) में एक लम्बा चीरा काटते हैं। इसके बाद सर्जन हर्निया के स्थान का पता लगाते हैं। फिर उसे आसपास के अन्य ऊतकों से अलग किया जाता है। सर्जन हार्नियाग्रस्त ऊतक को पेट की ओर वापिस दबा देंगे।

टांकों की मदद से चीरे को सिल दिया जाएगा और पेट की कमज़ोर मांसपेशियों को प्रबल किया जायेगा। कभी कभी सर्जन पेट के ऊतकों को मज़बूत करने के लिए और दोबारा हर्निया न बन जाए इसके जोखिम को कम करने के लिए एक मैश (Mesh; जाल) भी लगा सकते हैं।

लैप्रोस्कोपिक सर्जरी (Laparoscopic Surgery)
यह सर्जरी तब की जाती है जब हर्निया छोटा होता है और उस तक पहुंचना आसान होता है। इसमें ओपन सर्जरी की तुलना छोटे चीरे काटे जाते हैं लेकिन चीरों की संख्या ज़्यादा होती है। चीरों के माधयम से लैप्रोस्कोप (Laparoscope) डाला जाता है, जिससे एक वीडियो कैमरा जुड़ा होता है जो डॉक्टर को अंदरूनी अंगों को देखने और सर्जरी करने में मदद करता है, और अन्य सर्जिकल उपकरण डाले जाते हैं। आगे की प्रक्रिया ओपन सर्जरी के समान ही होती है।

आम तौर पर लैप्रोस्कोपी (Laparoscopy) ओपन सर्जरी से कम पीड़ादायक होती है।

वंक्षण हर्निया ऑपरेशन के बाद देखभाल - Inguinal Hernia Surgery hone ke baad dekhbhal
यह सर्जरी अक्सर आउट-पेशेंट (Out-Patient; सर्जरी के बाद मरीज़ को अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं होती) आधार पर की जाती है। हालांकि अगर कोई जटिलताएं हों तो, जब तक वे ठीक नहीं हो जाती तब तक मरीज़ को अस्पताल में ही रखा जायेगा।

सर्जरी के बाद मूत्रत्याग करने में परेशानी न हो इसके लिए मूत्राशय में एक कैथेटर लगाया जा सकता है। पुरुषों में सर्जरी के कुछ घंटों तक मूत्रत्याग करने में परेशानी हो सकती है। यह कैथेटर द्वारा ठीक की जा सकती है।

सर्जरी के बाद आप कुछ दिनों में सामान्य गतिविधियां शुरू कर सकते हैं। कम से कम चार से छह हफ़्तों तक कोई थकाने वाले व्यायाम न करें। आप करीब तीन हफ़्तों के बाद संभोग कर सकते हैं।

वंक्षण हर्निया ऑपरेशन के बाद सावधानियां - Inguinal Hernia Surgery hone ke baad savdhaniya
ओपन सर्जरी में पूरी तरह रिकवरी होने में छह हफ्ते लग सकते हैं और लैप्रोस्कोपी में करीब दो हफ्ते, इसलिए अपने डॉक्टर के निर्देशों का पूरी तरह पालन करें।

वंक्षण हर्निया ऑपरेशन की जटिलताएं - Inguinal Hernia Surgery me jatiltaye
इस सर्जरी के बाद निम्न जोखिम और जटिलताएं हो सकती हैं:

श्वास सम्बन्धी समस्याएं
रक्तस्त्राव
एनेस्थीसिया या अन्य दवाओं के प्रति एलर्जिक रिएक्शन
संक्रमण
सर्जरी की जगह पर लम्बे समय तक दर्द
रक्त वाहिकाओं की क्षति (इससे पुरुषों में अंडकोष को नुक्सान पहुँच सकता है)
नस या आसपास के किसी अंग को क्षति

38. अम्बिलिकल हर्निया ऑपरेशन - Umbilical Hernia Surgery in Hindi

अम्बिलिकल हर्निया ऑपरेशन क्या होता है? - Umbilical Hernia Surgery kya hai in hindi?
अम्बिलिकल हर्निया सर्जरी (Umbilical hernia surgery) एक प्रक्रिया है जो अम्बिलिकल हर्निया को ठीक करने के लिए की जाती है। अम्बिलिकल हर्निया पेट में एक थैली या उभार होता है। इस प्रकार का उभार तब होता है जब आंतों का कोई हिस्सा पेट के मांसपेशियों के किसी नाज़ुक हिस्से को धकेलता है। यह छोटे बच्चों और वयस्कों में विकसित हो सकता है। बच्चों में अम्बिलिकल हर्निया अक्सर अपने आप ही ठीक हो जाता है, लेकिन वयस्कों को सर्जिकल हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है। अम्बिलिकल हर्निया सर्जरी एक सरल और कम जोखिम वाली सर्जरी है। सर्जरी के बाद हर्निया के वापस होने की संभावना नहीं होती है।

दुर्लभ मामलों में, अम्बिलिकल हर्निया से ग्रस्त व्य्यासकों को गंभीर समस्या का सामना करना पड़ सकता है। जिन्हें स्ट्रेंग्युलेशन (Strangulation) कहा जाता है। यह तब होता है जब शरीर के कुछ हिस्सों में रक्त का प्रवाह अचानक बंद हो जाता है। इसके लक्षणों में मतली, उल्टी, और गंभीर दर्द शामिल हैं। अम्बिलिकल हर्निया के आसपास का क्षेत्र नीला दिख सकता है, जैसे आपको नील पड़ने पर होता है।

अम्बिलिकल हर्निया ऑपरेशन क्यों किया जाता है? - Umbilical Hernia Surgery kab ki jati hai?
अम्बिलिकल हर्निया को हमेशा सर्जरी की आवश्यकता नहीं होती है। अम्बीलिकल हर्निया सर्जरी की आवश्यकता तब होती है जब हर्निया:

दर्द का कारण बनता है
आधे इंच से बड़ा होता है
विरूपण का कारण बनता है
शिशुओं में अम्बिलिकल हर्निया काफी आम हैं। गर्भावस्था के समय गर्भ में गर्भनाल एक छिद्र के द्वारा शिशु के पेट की मांसपेशियों से गुज़रता है। यह छिद्र आमतौर पर जन्म के तुरंत बाद बंद हो जाता है। अगर यह पूरी तरह से बंद नहीं होता है, तो शिशु के पेट की भित्ति में एक कमजोर जगह विकसित हो सकती है। यह उनके लिए अम्बिलिकल हर्निया का खतरा बढ़ा देता है।

जब अम्बिलिकल हर्निया जन्म के समय विकसित होता है, तो यह नाभि को बाहर कि ओर धकेल सकता है। नवजात शिशुओं में अम्बिलिकल हर्निया हमेशा ही लगभग सर्जरी के बिना ठीक हो जाता है। हालांकि, आपका चिकित्सक आपको सर्जरी की सलाह दे सकता है यदि:

हर्निया 3 या 4 साल की उम्र तक ठीक न हुआ हो
हर्निया के कारण दर्द हो रहा है या रक्त प्रवाह प्रतिबंधित हो रहा है
वयस्कों में अम्बिलिकल हर्निया के कारण निम्न हो सकते हैं:

उदर गुहा में द्रव
पिछली पेट सर्जरी के कारण
बहुकालीन पेरीटोनियल डायलिसिस (chronic peritoneal dialysis)
ये उन वयस्कों में सबसे आम हैं जिनका वज़न अधिक होता है और जो महिलाएं हाल ही में गर्भवती थीं। जो महिलाएं कई गर्भ धारण कर चुकी हैं, उन्हें इसका जोखिम और अधिक होता है।

वयस्कों में अम्बिलिकल हर्निया की अपने आप ठीक हो जाने की सम्भावना कम ही होती है। आमतौर पर हर्निया समय के  साथ बड़े हो जाते हैं और अक्सर इन्हे सर्जरी की आवश्यकता होती है।

अम्बिलिकल हर्निया ऑपरेशन होने से पहले की तैयारी - Umbilical Hernia Surgery ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा:

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग/ खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)

अम्बिलिकल हर्निया ऑपरेशन कैसे किया जाता है? - Umbilical Hernia Surgery kaise hoti hai?
अंबिलिकल हर्निया सर्जरी दो अलग-अलग तरीकों से की जाती है: ओपन सर्जरी और लैप्रोस्कोपिक सर्जरी (Laparoscopic hernia surgery)। ओपन हर्निया सर्जरी के दौरान, सर्जन हर्निया तक पहुंचने के लिए आपकी नाभि के नीचे चीरा बनाता है।

लैप्रोस्कोपिक हर्निया सर्जरी एक कम अहितकर प्रक्रिया है। सर्जन हर्निया साइट के आसपास कई छोटे चीरे बनाता है। फिर उन्हीं में से एक चीरे के द्वारा एक पतली, लचीली रौशनी सम्मिलित ट्यूब को अंदर डालते हैं। इस उपकरण को लैपरसस्कोप (laparoscope) कहा जाता है। इसकी सहायता से सर्जन आपकी उदर गुहा को वीडियो स्क्रीन पर देख सकते हैं।

सर्जरी किस प्रकार की है इसके बावजूद, प्रक्रिया सामान ही होती है। सर्जन धीरे से पेट की भित्ति में छिद्र के माध्यम से उभरी हुई आंत और उदर की परत को भीतर की ओर धकेलते हैं। इसके बाद वे छिद्र को टाँके लगा देते हैं। कभी-कभी वे क्षेत्र को मजबूत करने के लिए पेट में एक कृत्रिम जाल सामग्री (synthetic mesh material) भी डालते हैं।

अम्बिलिकल हर्निया ऑपरेशन के बाद देखभाल - Umbilical Hernia Surgery hone ke baad dekhbhal
प्रक्रिया के बाद आपको एक रिकवरी रूम में ले जाया जाएगा। अस्पताल स्टाफ आपकी शारीरिक स्थिति की निगरानी करेंगे, जिसमें आपके श्वास, हृदय दर और रक्तचाप परिक्षण शामिल होंगे। ज्यादातर अम्बिलिकल हर्निया सर्जरी आउट पेशेंट (outpatient; आप सर्जरी के दिन घर जाने में सक्षम होंगे) के आधार पर की जाती हैं।

आपका डॉक्टर आपको दर्द के लिए दवाइयां और आपके टांकों को सूखा रखने के लिए निर्देश देगा। वे आपकी चिकित्सा का आकलन करने के लिए कुछ हफ्तों के भीतर ही फॉलो-आप अपॉइंटमेंट का समय निर्धारित करेंगे। भविष्य में अम्बिलिकल हर्निया के पुनः होने की सम्भावना हो सकती है, परन्तु यह काफी दुर्लभ है।

अम्बिलिकल हर्निया ऑपरेशन के बाद सावधानियां - Umbilical Hernia Surgery hone ke baad savdhaniya
अधिकांश लोग सर्जरी के दो से चार सप्ताह के भीतर अपनी रोज़ाना की गतिविधियों और सामान्य दिनचर्या में वापस आ सकते हैं। अपने डॉक्टर के निर्देशों का सही से पालन करें।

अम्बिलिकल हर्निया ऑपरेशन की जटिलताएं - Umbilical Hernia Surgery me jatiltaye
अम्बिलिकल हर्निया सर्जरी के जोखिम कम हैं। हालांकि, यदि आपको कोई अन्य गंभीर समस्या है, तो जटिलताएं हो सकती हैं। अगर आप बीमारी के कारण किसी जोखिम को लेकर चिंतित हैं तो अपने चिकिसक से सलाह करें।

अन्य दुर्लभ जोखिम निम्न हो सकते हैं:

एनेस्थिसिया के प्रति एलर्जिक प्रतिक्रिया
खून के थक्के
संक्रमण
छोटी आंत में क्षति

39. सिजेरियन ऑपरेशन - C-Section (Cesarean Delivery) in Hindi

सिजेरियन ऑपरेशन क्या होता है? - C Section kya hota hai in hindi?
गर्भवती महिला के पेट और गर्भाशय में चीरा काटकर की जाने वाली डिलीवरी (प्रसव) को सी-सेक्शन या सिजेरियन सेक्शन कहा जाता है। कुछ स्थितियों में सी-सेक्शन सर्जरी की योजना पहले ही तय कर ली जाती है। अन्य स्थितियों में, यह अनपेक्षित जटिलताओं की प्रतिक्रिया के रूप में की जाती है।

आम तौर पर जब तक गर्भावस्था को 39 हफ्ते पूरे नहीं हो जाते, तब तक यह प्रयास किया जाता है कि बच्चा नॉर्मल डिलीवरी से हो जाए। हालांकि कभी कभी जटिलताओं की वजह से 39 हफ़्तों से पहले ही सी-सेक्शन सर्जरी करनी पड़ सकती है।

सिजेरियन ऑपरेशन क्यों की जाती है? - C Section delivery kab hoti hai?
आम तौर पर, सी-सेक्शन का सहारा तब लिया जाता है जब प्रसव के पारम्परिक तरीके (योनि से) में कठिनाई हो रही हो या नार्मल डिलीवरी से माँ या शिशु या दोनों को स्वास्थ्य या जान का खतरा हो। कभी कभी सी-सेक्शन की योजना पहले से ही बना ली जाती है लेकिन ज़्यादातर स्थितियों में यह तब की जाती है जब लेबर में जटिलताएं हो रही हों।

निम्न कारणों की वजह से सी-सेक्शन डिलीवरी की जा सकती है:

शिशु के साथ विकास संबंधी परेशानियां हों
बच्चे का सिर जन्‍म नली (Birth Canal) से बड़ा हो
बच्चे के पैर पहले बाहर आ रहे हों (Breech Birth)
माँ को कोई स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानी हो, जैसे गर्भावस्था में हाई ब्लड प्रेशर या ह्रदय की कोई बीमारी
माँ को सक्रिय जननांग दाद (Genital Herpes) हों जो डिलीवरी के समय बच्चे को भी होने का खतरा हो
पहले सी-सेक्शन डिलीवरी हो चुकी है
प्लेसेंटा (Placenta) की कोई समस्या, जैसे प्लेसेंटा पृथक्करण (Placenta Abruption) या प्लेसेंटा प्रिविआ (Placenta Previa)
गर्भनाल (Umbilical Cord; अम्बिलिकल कॉर्ड) की कोई परेशानी
शिशु को ऑक्सीजन आपूर्ति कम होना
स्टॉल्ड लेबर (Stalled Labor) - जब महिला सक्रिय लेबर में हो और लेबर धीमा या बंद हो जाए
बच्चे का कन्धा पहले बाहर आ रहा हो (Transverse Labor)
गर्भ में एक से ज़्यादा बच्चे होना
एक्टोपिक प्रेगनेंसी (Ectopic Pregnancy) - भ्रूण का गर्भाशय के अलावा कहीं और स्थित होना
वेसिक्युलर मोल (Vesicular Mole) - भ्रूण का न बढ़ना बल्कि सिर्फ प्लेसेंटल ऊतकों का असामान्य रूप से बढ़ना और गर्भाशय की दीवार (भित्ति) तक चले जाना, किसी किसी स्थिति में गर्भाशय से भी आगे फ़ैल जाना
अन्य अर्ली प्रेगनेंसी कॉम्प्लीकेशन्स (Early Pregnancy Complications)
सिजेरियन ऑपरेशन होने से पहले की तैयारी - C-Section ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा:

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)
ध्यान देने योग्य अन्य बातें (Other Things To Be Kept In Mind Before Surgery)
प्रक्रिया के दौरान मूत्रत्याग करने के लिए मूत्रमार्ग में एक कैथेटर (Cathetar) लगाया जाएगा। सर्जरी से पहले प्यूबिक हेयर (Pubic Hair; गुप्तांग के बाल) का ऊपरी हिस्सा शेव (बाल हटाना) किया जाता है।

सिजेरियन ऑपरेशन कैसे किया जाता है? - Cesarean Delivery kaise hoti hai?
सारी तैयारियां हो जाने के बाद, डॉक्टर आपके जननांग से ऊपर पेट के निचले हिस्से में चीरा काटते हैं, जिसे 'बिकिनी कट' भी कहा जाता है। आम तौर पर यह श्रोणि (Pelvis) के ऊपर आड़ा (Horizontally) काटा जाता है। आपातकालीन स्थितियों में यह चीरा लम्बाई (Vertically) में भी काटा जा सकता है।

पेट में चीरा काटने के बाद, जब गर्भाशय दिखने लगे, सर्जन गर्भाशय पर एक चीरा काटते हैं। इस चीरे के माध्यम से शिशु को गर्भाशय से बाहर निकाला जाता है। इस क्षेत्र को सर्जरी के दौरान ढक कर रखा जाता है ताकि आप प्रक्रिया न देख पाएं।

पहले डॉक्टर शिशु की नाक और मुँह को पोछेंगे जो द्रव से भरे हुए होते हैं। इसके बाद गर्भनाल को काटा जाता है। फिर नवजात शिशु को नर्सों को सौंप दिया जाता है ताकि वो उसे आपकी गोद में देने के लिए तैयार (साफ़) कर दें।

इस दौरान, डॉक्टर महिला के गर्भाशय को और पेट को टांकों से सिल देते हैं।

Procedure

सिजेरियन ऑपरेशन के बाद देखभाल - Cesarean Delivery ke baad dekhbhal
सर्जरी के बाद आपको आमतौर पर तीन से चार दिनों तक अस्पताल में रहने की आवश्यकता होती है।
गर्भाशय पर इस्तेमाल किये गए टाँके शरीर में स्वयं घुल जायेंगे। पेट पर लगाए टाँके कुछ दिनों में हटा दिए जायेंगे।
सर्जरी के बाद आपको रिकवरी रूम में ले जाया जायेगा जहां आपकी स्वास्थ्य अवस्था को मॉनिटर किया जायेगा। अगर शिशु पूरी तरह स्वस्थ है, तो वह भी आपके साथ रिकवरी रूम में रहेगा अन्यथा उसे नर्सरी या किसी अन्य वार्ड में रखा जायेगा जहाँ उसकी स्थिति पर भी निगरानी रखी जाएगी।
आपको IV द्वारा द्रव दिए जाएंगे जब तक आप खुद खाने या पीने में समर्थ नहीं हो जातीं।
आप शिशु को स्तनपान करवाने का भी प्रयास कर सकतीं हैं।
आपको दर्द के लिए भी दवाएं दी जा सकती हैं।
सर्जरी के बाद जितना हो सके उतना आराम करें। सी-सेक्शन एक बड़ी सर्जरी है और शरीर को इसके बाद आराम की बहुत आवश्यकता होती है। प्रयास करें कि आप कुछ महीनों तक घरेलु काम न करें और सिर्फ अपना और अपने बच्चे का ध्यान रखें। अगर सर्जरी के बाद, पूरी तरह रिकवर होने से पहले ही आप ज़्यादा थकाने वाले कार्यो करने लगतीं हैं और आराम नहीं करतीं तो इससे भविष्य में जटिलताएं हो सकती हैं।
बच्चे के स्वास्थ्य के लिए बहुत ज़रूरी है कि आप मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहें। सर्जरी के बाद, किसी भी प्रकार के तनाव से बचें।
सर्जरी के बाद पोषण और आहार का ध्यान रखा जाना अत्यंत आवश्यक है।
इस समय के बाद घाव का ध्यान रखें। घाव को साफ़ रखें और। घाव को गीला किया जा सकता है। हलके साबुन से घाव को धोएं। घाव को मिटने के लिए विटामिन ई क्रीम्स का भी प्रयोग किया जा सकता है। अपने डॉक्टर की सलाह का पालन करें।

निम्न परेशानियां होने पर अपने डॉक्टर को सूचित करें:

चीरे की जगह पर सूजन या जगह का लाल होना
चीरे की जगह पर दर्द 100 °F से ज़्यादा बुखार होने पर
योनि से बदबूदार स्त्राव
योनि से भारी रक्तस्त्राव
सांस लेने में परेशानी
पैरों में सूजन या पैरों का लाल होना
छाती में दर्द
स्तन में दर्द
सिजेरियन ऑपरेशन के बाद सावधानियां - Cesarean Delivery hone ke baad savdhaniya
हर सर्जरी की तरह इस सर्जरी के बाद भी रिकवरी का समय इस पर निर्भर करता है कि सर्जरी के बाद मरीज़ की देखभाल कितने अच्छे से की जाती है। कम से कम छह हफ्ते लग सकते हैं पूर्ण रूप से रिकवर होने में। इस सर्जरी में रिकवरी में नार्मल डिलीवरी से ज़्यादा समय लगता है।

सिजेरियन ऑपरेशन की जटिलताएं - C-Section me jatiltaye
सी-सेक्शन एक बड़ी सर्जरी है और यह नॉर्मल डिलीवरी से ज़्यादा जोखिम भरी होती है।
इस सर्जरी के बाद महिलाओं में संक्रमण, अत्यधिक रक्तस्त्राव, रक्त के थक्के, प्रसवोत्तर के बाद ज़्यादा दर्द या रिकवरी में ज़्यादा समय लगने की संभावना ज़्यादा है। मूत्राशय या आँतों में भी चोट लग सकती है, हालांकि यह एक दुर्लभ स्थिति है।
अगर निर्वाचित सी-सेक्शन 39 हफ़्तों से पहले की गयी हो तो ऐसे में शिशु को श्वास सम्बन्धी परेशानी हो इसका जोखिम रहता है।
अगर आप फिर गर्भावस्था की योजना बना रहें हों तो हर सी-सेक्शन में जोखिमों और जटिलताओं का खतरा बढ़ता जाता है।
सर्जरी के दौरान अन्य अंगों को क्षति पहुँच सकती है।

40. बर होल सर्जरी - Burr Hole Surgery

बर होल सर्जरी क्या होती है? - Burr Hole Surgery kya hai in hindi?
न्यूरोसर्जन (Neurosurgeon; तंत्रिका-विज्ञान विशेषज्ञ) द्वारा मस्तिष्क की सर्जरी के लिए खोपड़ी (Skull; स्कल) में किये जाने वाले छोटे छेदों को बर होल्स (Burr Holes) कहते हैं। जब रक्त जैसे द्रव बढ़ने लगते हैं और मस्तिष्क के ऊतकों को संकुचित करने लगते हैं, तो बर होल्स की मदद से मस्तिष्क पर पड़ने वाले दबाव को कम किया जा सकता है।

बर होल सर्जरी क्यों की जाती है? - Burr Hole Surgery kab kiya jata hai?
बर होल्स की ज़रुरत पड़ने की सबसे आम वजह है सबड्यूरल हिमाटोमा (Subdural Hematoma)। ऐसा तब होता है जब सिर की किसी मामूली चोट के बाद ड्यूरा परत (Dura Layer) के नीचे धीरे-धीरे रक्त बनने या बढ़ने लग जाए। यहाँ नसें नाज़ुक होती हैं और आसानी से टूट सकती हैं, खासकर वृद्ध लोगों में। इससे सिरदर्द, व्यवहार में बदलाव, मिर्गी और एक-तरफ की मांसपेशियों की कमजोरी जैसे लक्षण पाए जा सकते हैं। अगर रक्त बढ़ना बंद न हुआ तो इससे कोमा या मस्तिष्क की क्षति हो सकती है।

अन्य भी कारण हो सकते हैं जिनकी वजह से आपको बर होल प्रक्रिया करवाने की ज़रुरत पड़ सकती है:

अचानक से सबड्यूरल हिमाटोमा हो जाना
लम्बे समय से (बहुकालिक) सबड्यूरल हिमाटोमा होना
एपीड्यूरल हिमाटोमा (Epidural Hematona)
मस्तिष्क के कई प्रकार के कैंसर
मेनिन्जेस (Meninges) के आसपास पस बनना
जलशीर्ष (Hydrocephalus; दिमाग के पर्दों में पानी आ जाना)
मस्तिष्क से ही कई प्रकार के रक्तस्त्राव (यह एक दुर्लभ स्थिति है)
बड़े हिमाटोमा या ठोस थक्कों की स्थिति में, आपको चिकित्सक द्वारा मस्तिष्क के आसपास का पदार्थ को हटाने के लिए अन्य प्रक्रिया करवाने के लिए कहा जा सकता है। उदाहरणतः सर्जन मस्तिष्क का उपचार करने के लिए खोपड़ी से हड्डी का बड़ा टुकड़ा निकाल सकते हैं। इसे क्रेनियोटॉमी (Craniotomy; कपाल-उच्छेदन) कहते हैं। या, सर्जन हड्डी को वापिस उसकी ही जगह पर लगा सकते हैं , जिसे क्रेनियेक्टॉमी (Craniectomy) कहते हैं।

बर होल सर्जरी होने से पहले की तैयारी - Burr Hole Surgery ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा:

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गई दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग/ खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)

बर होल सर्जरी कैसे किया जाता है? - Burr Hole Surgery kaise hota hai?
यह प्रक्रिया आम तौर न्यूरोसर्जन द्वारा की जाती है, जो विशेषज्ञताप्राप्त नर्सों की एक टीम के साथ काम करते हैं। प्रक्रिया निम्न क्रम में की जाती है:

प्रक्रिया के पहले, सिर के बाल काट दिए जाते हैं।
एनेस्थीसिया का प्रभाव शुरू होते ही, प्रक्रिया शुरू की जाती है।
सिर की त्वचा पर चीरा काटा जाता है।
विशेष ड्रिल की मदद से, सर्जन खोपड़ी पर एक या दो छोटे छिद्र करते हैं जिससे ड्यूरा को देखा जा सके।
सर्जन ड्यूरा को खोलते हैं और खोपड़ी पर पड़ रहे दबाव को कम करने के लिए अतिरिक्त द्रव को निकाल देते हैं।
सर्जन, फिर, द्रव को निकालने के लिए एक अस्थायी ड्रेन (Temperory Drain) लगा सकते हैं या ड्यूरा और सिर की त्वचा को बंद कर दिया जायेगा।
बर होल सर्जरी के बाद देखभाल - Burr Hole Surgery hone ke baad dekhbhal
आपको सर्जरी के बाद कुछ दिनों तक अस्पताल में ही रहना होगा। इस दौरान चिकित्सकों द्वारा आपकी शारीरिक स्थिति और स्वास्थ्य का ध्यान रखा जायेगा।

आपको चीरे के स्थान पर दर्द महसूस हो सकता है। अक्सर दर्द निवारक दवाओं से यह ठीक हो जाता है।

आप सर्जरी के बाद सामान्य रूप से खा या पी सकते हैं। जैसे ही आप ठीक महसूस करने लगें और आप अधिकतर गतिविधियां फिर से शुरू कर सकते हैं। ऐसी कोई भी गतिविधियां न करें जिनसे सिर पर झटका या ज़ोर पड़े। जब तक चिकित्सक न कहे तब तक ड्राइविंग न करें। आपको घाव का ध्यान रखने के लिए डॉक्टर द्वारा निर्देश दिए जायेंगे। डॉक्टर द्वारा दी गयी हर सलाह का पालन करें।

निम्न परेशानियां होने पर चिकित्सक से तुरंत संपर्क करें:

मिर्गी/ दौरे
मांसपेशियों की कमज़ोरी
भ्रमित होना
बुखार या गर्दन में अकड़न
ध्यान रखें कि आप डॉक्टर से नियमित रूप से चेक-अप करवाते रहें। डॉक्टर से फॉलो-अप करवाते रहना बहुत आवश्यक है।

बर होल सर्जरी की जटिलताएं - Burr Hole Surgery me jatiltaye
इस सर्जरी से जुड़े जोखिम निम्न हैं:

रक्तस्त्राव
संक्रमण
रक्त के थक्कों का गठन
मस्तिष्क पर चोट लगना
दिल का दौरा या स्ट्रोक
एनेस्थीसिया के दुष्प्रभाव
लक्षणों से निजात न पाना (जिससे किसी अन्य सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है)
उम्र, स्वास्थ्य और सामान्य स्वास्थ के अनुसार जोखिम और जटिलताएं अलग-अलग हो सकती हैं।


41. क्रेनियोटोमी - Craniotomy in Hindi

क्रेनियोटोमी क्या होता है? - Craniotomy kya hai in hindi?
क्रैनियोटमी (Craniotomy) एक मस्तिष्क सर्जरी का प्रकार है इसमें खोपड़ी की हड्डियों को सर्जरी द्वारा हटाया जाता है ताकि मस्तिष्क ट्यूमर की उपस्थिति का निर्धारण करने में डॉक्टर को मदद मिल सके। इस प्रकार मस्तिष्क को साफ़ तरह से देखा जा सकता है और सर्जरी करने में सहायता होती है।

क्रेनियोटोमी क्यों की जाती है? - Craniotomy kab kiya jata hai?
क्रैनियोटमी कई कारणों के लिए किया जाता है जैसे:

डिवाइस इम्प्लांट (Device implant): पार्किंसंस जैसे न्यूरोलॉजिकल रोगों के उपचार के लिए उत्तेजक उपकरण सर्जरी (stimulator device surgery) के दौरान क्रैनिओटमी किया जा सकता है।
खून के थक्के (Blood clots)
मस्तिष्क का ट्यूमर (Brain tumor)
मस्तिष्क व्रण (Brain abscess): मस्तिष्क में किसी दुर्घटना या चोट के बाद जीवाणु संक्रमण होना।
खोपड़ी का फ्रैक्चर (Skull fractures): दुर्घटनावश खोपड़ी की हड्डियों के टूटने पर क्रैनियोटमी के माध्यम से इलाज किया जाता है।
मिक्रोवास्कुलर डीकंप्रेसन (Microvascular decompression): कपाल नसों पर दबाव।
फोरामेन मैग्नम डीकंप्रेसन (Foramen magnum decompression): मस्तिष्क के निचले भाग का रीढ़ की हड्डी में प्रवेश करना।

क्रेनियोटोमी होने से पहले की तैयारी - Craniotomy ki taiyari
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा:

सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच (Tests Before Surgery)
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच (Anesthesia Testing Before Surgery)
सर्जरी की योजना (Surgery Planning)
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ (Medication Before Surgery)
सर्जरी से पहले फास्टिंग/ खाली पेट रहना (Fasting Before Surgery)
सर्जरी का दिन (Day Of Surgery)
सामान्य सलाह (General Advice Before Surgery)
ध्यान देने योग्य अन्य बातें:
​अगर आप किसी भी दवा, आयोडीन, लेटेक्स या एनेस्थेसिया (लोकल और जनरल) से एलर्जिक हो तो अपने चिकित्सक को बताएं।
आपकी चिकित्सा स्थिति के आधार पर, आपका चिकित्सक आपको किसी अन्य विशिष्ट तैयारी की सलाह दे सकता है।


क्रेनियोटोमी कैसे किया जाता है? - Craniotomy kaise hota hai?
सर्जरी शुरू करने के लिए, जनरल एनेस्थेसिया दिया जाता है। आपको ऑपरेशन टेबल पर इस तरह लेटाया जाता है, कि एक विशेष 3 पिन डिवाइस (special 3 pin device) सर्जरी के दौरान उचित स्थिति में खोपड़ी को रख/ पकड़ सके।

सर्जरी के दौरान रीढ़ की हड्डी के द्रव (spinal fluid) को हटाने के उद्देश्य से आपके मस्तिष्क के  निचले हिस्से में एक नली डाली जाती है। इसके बाद खोपड़ी को ऑपरेशन के लिए साफ़ (shave) किया जाता है।

चीरा कहाँ लगाया जायेगा ये चोट/ समस्या के स्थान पर निर्भर करता है। खोपड़ी को मस्तिष्क तक पहुंचने के लिए काटा जाता है और इससे रक्त के नुकसान को भी सीमित किया जा सकता है। खोपड़ी पर छोटे छेद करने के लिए सर्जिकल ड्रिल (surgical drill) का उपयोग किया जाता है। सर्जिकल आरि (saw) की मदद से  हड्डी प्रालंब (bone flap) काटा जाता है। इस प्रकार निर्मित प्रालंब सर्जन को मस्तिष्क के ऊतकों को देखने में सहायता देता है।

इंट्राकैनायल दबाव (Intracranial pressure; खोपड़ी के अंदर का दबाव) एक विशेष उपकरण का उपयोग करके मापा जाता है। सर्जन फिर मस्तिष्क के ऊतकों को सी देता है। प्रालंब को तारों (wires) और पेचों (screws) की सहायता से अपने मूल स्थान पर वापस लाया जाता है। शल्य चिकित्सा के दौरान रक्तचाप, नाड़ी और शरीर के तापमान कि लगातार निगरानी की जाती है।

क्रेनियोटोमी के बाद देखभाल - Craniotomy hone ke baad dekhbhal
प्रक्रिया के तुरंत बाद, आपकी हालत के आधार पर आपको सामान्य कक्ष या ICU (आईसीयू) में स्थानांतरित किया जाएगा। जब तक आप सचेत नहीं होते और एनेस्थेसिया का प्रभाव खत्म नहीं होता, तब तक सांस का रेस्पिरेटरी सप्पोर्ट (respiratory support) का इस्तेमाल किया जाता है।
जब आपकी हालत स्थिर हो जाएगी तो आपको सामान्य कक्ष में स्थानांतरित कर दिया जायेगा और  लगातार आपकी निगरानी की जाएगी।
आपके अस्पताल में रहने के दौरान आपके नर्वस सिस्टम (nervous system) के परिवर्तन और कार्यकाज का आकलन करने के लिए कुछ परीक्षण नियमित अंतराल पर किए जाएंगे।
मूत्र इकट्ठा करने और निकालने के लिए मूत्राशय में एक मूत्र कैथेटर (urinary catheter) रखा जायेगा। एक फिजियोथेरेपिस्ट (physiotherapist) आपको गहरी साँस लेने के व्यायाम सिखाएगा। आपकी गतिशीलता और स्ट्रेंथ को बढ़ाने के लिए कुछ अन्य व्यायाम भी सिखाये जायेंगे।
संपीड़न उपकरणों को पैरों पर रखा जाएगा ताकि वे रक्त के थक्कों के गठन को रोक सकें
सर्जरी के दौरान लगाए गए स्यूचर्स (sutures; खोपड़ी की हड्डी का जोड़; टाँके) को निकालने के लिए आपको एक सप्ताह वापिस अस्पताल आना होगा।
सर्जरी के बाद क्या करें और क्या न करें

खोपड़ी पर लगे चीरों के ठीक होने के बाद, वहां बाल फिर से बढ़ने लगेंगे उसके बाद आप अपने सामान्य बाल उत्पादों का उपयोग शुरू कर सकते हैं।
दौरों को रोकने के लिए दवाएं निर्धारित की जाएंगी। उन्हें निर्धारित रूप से लें और चिकित्सक से परामर्श किये बिना किसी भी दवाई को लेना बंद न करें।
आप उच्च फाइबर और तरल पदार्थ समृद्ध आहार लें मज़बूत दवाओं के कारण कब्ज़ हो सकता है।  इस तरह का आहार पाचन तंत्र को ठीक से काम में रखने में मदद करता है।
 नियमित अंतराल पर चलना- फिरना महत्वपूर्ण है। यदि आप ऐसा महसूस करते हैं कि ऐसा करते समय आप संतुलन खो देंगे  तो आपको वाकिंग एड्स (walking aids) का उपयोग करना चाहिए, ।
सिर की हड्डियां ठीक होने के लिए कम से कम एक साल लेती हैं। इसलिए उस अवधि में, किसी भी ऐसे गतिविधि या खेल से बचें जो आपके सिर पर तनाव या ज़ोर डाल सकती है।
आप  एक महीने की आराम अवधि के बाद काम पर वापस लौट सकते हैं।
अगर चीरा साइट पर सूजन के लक्षण दीखते हैं, तो सूजन को कम करने के लिए एक कपड़े में लिपटे आइस पैक का उपयोग करें।
यदि आपको उच्च बुखार, दृष्टि परिवर्तन, असंतुलन, बोलने की समस्याएं, लगातार सिरदर्द, खोपड़ी में सूजन का अनुभव होता है जो दवा लेने पर भी कम नहीं होता है, तो जल्द ही अपने चिकित्सक से संपर्क करें।
जब तक डॉक्टर आपको ड्राइव करने की अनुमति नहीं देता तब तक ड्राइविंग न करें। इसके अलावा, बगीचे में काम, घर के काम, कपडे धोने आदि न करें जब तक आपका चिकित्सक अनुमति नहीं देता।
अपनी क्षमता से अधिक काम न करें।

क्रेनियोटोमी की जटिलताएं - Craniotomy me jatiltaye
मस्तिष्क की सूजन और मस्तिष्क में तरल पदार्थ का अवधारण, करेनियोटॉमी से संबंधित सबसे आम जटिलताएं हैं। सर्जरी की वजह से मस्तिष्क के आसपास सेरेब्रल द्रव का रिसाव भी एक संभावना है और साथ ही दबाव भी पड़ सकता है।

सर्जरी में लापरवाही के कारण मस्तिष्क में नसों और ऊतकों को अनजाने में क्षति पहुंच सकती हैं। इससे काफी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं जैसे कि सुनने में परेशानी, दृष्टि की हानि, सूंघने की क्षमता की हानि, विरसपन, लकवा, मिर्गी आदि जैसे मस्तिष्क कार्य। मस्तिष्क प्रतिधारण की समस्याएं, भाषण विकार, व्यवहार संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं।

Comments

Popular posts from this blog

OMH Video Links

Medicine Gyan Links